Show me an example

Monday, February 25, 2008

दुर्योधन की डायरी -पेज ३३५०


@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी -पेज ३३५०Tweet this (ट्वीट करें)!

आजकल टीवी न्यूज़ चैनल में जिस तरह से कम्पीटीशन बढ़ा है, उससे नित नए-नए कारनामें देखने को मिल रहे हैं. हाल ही में एक न्यूज़ चैनल ने रावण की खोज कर डाली और प्रोग्राम दिखाया 'जिंदा है रावण'. चैनल ने बताया कि रावण की लाश एक संदूक में रखी हुई है. इस चैनल के कम्पीटीशन में एक और चैनल ने दुर्योधन के बारे में पूरी जानकारी निकाल ली. चैनल के जरिये ही पता चला कि दुर्योधन डायरी लिखता था. पढिये उसी डायरी में से कुछ अंश. (अब चूंकि डायरी बहुत पुरानी है तो लाजमी है कि डायरी के पन्ने अलग-अलग हो चुके हैं.)

दुर्योधन की डायरी (पेज ३३५०)

आज केशव आए थे. कह रहे थे संदेश लेकर आए हैं कि पांडवों को पाँच गाँव चाहिए.कैसे दे देता पांच गाँव? इन पांच गावों में एक गुडगाँव भी था. एक बार तो इच्छा हुई कि केशव को जमीन की कीमतों के बारे में जानकारी देने के लिए एक क्लास ले लूँ. उन्हें मेरी मनोदशा की जानकारी कहाँ है?

जब से जमीन की कीमतें बढ़ी हैं, रात को नींद नहीं आती. अपनी बेवकूफी पर गुस्सा ऊपर से आता है.

अब जाकर पता चल रहा है कि जोश में होश नहीं खोना चाहिए. अर्जुन के ख़िलाफ़ कर्ण को खड़ा करना था. जोश में आकर बेवकूफी कर बैठा. पूरा का पूरा अंग प्रदेश दे दिया उसको. अरे, केवल राजा ही तो बनाना था उसे. कोई छोटा-मोटा राज्य देने से ही काम चल जाता. लेकिन जोश में होश कहाँ रहता है. इतना बड़ा अंग प्रदेश दे डाला उसको. वैसे भी ये कर्ण इतना सीरियस रहता है. न तो हमारे साथ दारू पीता है और न ही नाच वगैरह में कोई दिलचस्पी है इसकी. ऐसे में इतना बड़ा अंग प्रदेश देकर पछताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं.

जिस तरह से रीयल इस्टेट डेवेलप होने शुरू हुए हैं, जमीन की कीमतें आसमान छूने लग गई हैं. आज अगर अंग प्रदेश पास में होता तो उसकी कीमत कम से कम सौ खरब डॉलर होती. और कुछ नहीं तो दुशासन के लिए एक रीयल इस्टेट कंपनी खोल देता. जब से वो द्रौपदी की साड़ी उतारने में असफल रहा है, बहुत डिप्रेस्ड रहता है.

पास के राज्य की रीयल इस्टेट कंपनी से बात चली थी. कह रहा था शापिंग माल, होटल, रहने के लिए फ्लैट और कुछ स्कूल बनाना चाहता था. कह रहा था कंपनी में पचास परसेंट का कैपिटल दे देगा. आज शाम की ही तो बात है. जब से केशव को पाँच गाँव देने से मना किया है, बिल्डर कह रहा है कि अब तो युद्ध निश्चित है. युद्ध के लिए बड़ा सा मैदान चाहिए. उसे ही डेवेलप करने का ठेका दे दो कंपनी को. पचीस परसेंट देने के लिए राजी है.

काश इस बात का पता रहता कि रीयल इस्टेट का दाम एक दिन खूब बढेगा तो कर्ण को अंग प्रदेश देता ही नहीं.

कई बार सोचता हूँ कर्ण को बोल दूँ कि अंग प्रदेश वापस कर दो. वैसे भी अब तो अर्जुन से उसका डायरेक्ट झगड़ा शुरू हो चुका है. अब उसे राजा बने रहने की जरूरत भी नहीं है. लेकिन मेरी बात सुनकर क्या सोचेगा. क्या करूं बड़ी दुविधा में हूँ. कभी-कभी सोचता हूँ, एक बार बेशरम होकर मांग ही लूँ. एक बार ही तो शर्म खोनी है. लेकिन शर्म खोने के बदले जो मिलेगा उसकी कीमत का अंदाजा सच पूछो तो मुझे भी नहीं है.

फ्रश्ट्रेशन इतना बढ़ गया है कि कई बार तो सोचा कि कर्ण के नाम के सुपारी दे डालूँ किसी को. लेकिन फिर सोचता हूँ कि अगर कहीं ये बच गया तो फिर मेरी तो दुर्गति पक्की है. किसी को नहीं छोड़ेगा. मैं, दुशासन, जयद्रथ वगैरह तो दौड़ के भाग भी लेंगे लेकिन मामा श्री का क्या होगा. वैसे ही चल नहीं पाते. उनकी हालत तो बहुत बुरी हो जायेगी. ये सब के बारे में सोचकर फिर ये सुपारी वाला आईडिया छोड़ देना पड़ता है.अब समझ में आता है कि राजा का पुत्र जितना भी अग्रेसिव हो, उसे भी कभी-कभी होश से काम लेना चाहिए.


मेरी हालत पर मुझे उस शायर का शेर याद आ रहा है जिसने लिखा था;

हँसी आती है अपने रोने पर
और रोना है जग हँसाई का

17 comments:

  1. वाह साब वाह दुर्योधन की डायरी पढ़वाकर बड़ा नायब काम किया है.
    दुरोयोधन का ये कष्ट है बड़ा जेनुइन. बेफालतू मे कर्ण के लपेटे मे आ गया बेचारा.
    लेकिन एक बात बताइए कि जब आपको ये डायरी मिली ही पत्रकार से है तो थोड़ा क्रेडिट भी उन्हें दीजिये.
    गरियाने मे तो आप हरदम ही आगे रहे हैं.
    वैसे एक पत्रकार से मेरी भी बात-चित चल रही. शायद अगले कुछ दिनों मे मेरे पास भी रावण की डायरी आ जाए.

    ReplyDelete
  2. अपन तो केशव की तरफ ही हैं जी। मालुम है कि अल्टीमेटली उन्ही की तरफ जीत होने वाली है। गांव क्या, अपन को आठ-दस बिस्सा जमीन केशव दे दें सिविल लाइन्स में तो मजा आ जाये!

    ReplyDelete
  3. बहुत बढिया व्यंग्य मजा आ गया

    दीपक भारतदीप

    ReplyDelete
  4. सही लिखा है, यै चैनल वाले कुछ दिनों मे फैन्‍टैसी भी दिखाने लगें कि भविष्‍य 2050..... :)

    ReplyDelete
  5. आपको ऐसी दो चार डायरी और मिल गईं तो प्रभु चावला जैसों की तो छुट्टी...

    ReplyDelete
  6. बॉस, छुट्टी से वापस लौटे हो तब से और भी मारक हो गए हो क्या बात है ;)

    ReplyDelete
  7. "और कुछ नहीं तो दुशासन के लिए एक रीयल इस्टेट कंपनी खोल देता. जब से वो द्रौपदी की साड़ी उतारने में असफल रहा है, बहुत डिप्रेस्ड रहता है."
    बंधू
    बहुत धारदार व्यंग लिखे हैं आप...हास्य की चाशनी में डुबो कर जो तीर चलाये हैं की क्या कहें? आप का लेखन अब देश के किसी भी व्यंगकार से उन्नीस नहीं है,बताय देते हैं. स्वर्गिये शरद जोशी और परसाई जी स्वर्ग में प्रसन्न हो लड्डू बाँट रहे होंगे. आनंद आ गया कसम से.
    नीरज

    ReplyDelete
  8. आप हर दिन डायरी का एक पेज जरूर पढवायें.

    ReplyDelete
  9. वाह जी वाह आनंद आ गया दुर्योधन जी की डायरी पढ कर ।
    जोरदार व्यंग ।

    ReplyDelete
  10. समूची डायरी के प्रकाशन का बंदोबस्त किया जाए .

    ज्ञान जी तो पॉश लोकैलिटी में आठ-दस बिस्सा ज़मीन मांग रहे हैं,अरे हमें तो केशव ने एक छोटा-सा फ्लैट मुहैया करवाया है और उसकी भी हर महीने नियम से ईएमआई वसूलते हैं .

    ReplyDelete
  11. सारे चैनल वाले आपके घर की दौड़े आ रहें है. डायरी उठाओ और भाग लो...

    ReplyDelete
  12. भाई,बहुत दिनों बाद ब्लॉग खोलने का मौका मिला.लेकिन सारा पढ़ते पढ़ते अन्तिम वाले तक मे आनंद मे सराबोर हो गई.तेरी जय हो.भाई ऐसी डायरी का तो एक पन्ना रोज पढ़ा दिया कर, तो और कुछ चाहिए ही नही.बहुत बहुत बहुत सुंदर व्यंग्य भाई.
    ranjana

    ReplyDelete
  13. नीरज गोस्वामी जी की बात 100% सही है जनाब आप अब किसी से कम नहीं , पूरी डायरी पढ़वाइए

    ReplyDelete
  14. ओह, सो टचिंग.. यह डायरी तो बड़ा समाजोपयोगी है! देखिए, आजू-बाजू कुछ चैनल प्रमुखों के अंतरंग किस्‍से भी न दबे हों? या बुद्धदेब बाबा की ही डायरी दबी-छिपी पड़ी हो? बहरियाइये सब!

    ReplyDelete
  15. हो सकता है [किडनी कांड के बाद] दुर्योधन की strategy में परिवर्तन हो और "अंग" अलग से माँगा जाय और "प्रदेश" अलग से [:-)] - क्या कहते हैं

    ReplyDelete
  16. ek plot ka jugad lag sakta hai kya. two nside open ho to aur bhi behtar.

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय