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Friday, March 7, 2008

चेयरमैन फैक्ट्री विजिट पर हैं


@mishrashiv I'm reading: चेयरमैन फैक्ट्री विजिट पर हैंTweet this (ट्वीट करें)!

"अरे, ये तो फिर आ धमके" एक असिस्टेंट जनरल मैनेजर उदास होते हुए बोला.

"हाँ सर, अभी बीस दिन ही तो हुए थे, जब बाबू पिछली बार आए थे. फिर अचानक कैसे पधारे. कुछ प्राब्लम है क्या?" उनके पीए ने पूछा.

"अरे प्राब्लम-वाब्लम कुछ नहीं है. काम धंधा कोई है नहीं. घर वालों ने परेशान होने से मना कर दिया होगा तो इम्प्लाई लोगों को परेशान करने आ पहुंचे", असिस्टेंट जनरल मैनेजर ने कहा.

बात इतनी सी थी कि चेयरमैन एक ही महीने में दुबारा आ धमके थे. आस्सी साल उमर हो गई है. इनकी परेशानी ये है कि इन्हें कोई परेशानी नहीं है. सफारी पहनकर चंदन लगाकर जब-तब फैक्ट्री विजिट पर पहुँच जाते हैं. जब तक हेड आफिस में रहते हैं तो भी इन्हें कोई काम नहीं रहता. लेकिन सबको दिखाते हैं कि बहुत काम करते हैं. रात के आठ-आठ बजे तक आफिस में बैठे रहते हैं ताकि कोई कर्मचारी अपने घर ठीक समय पर नहीं जा सके. अब चेयरमैन आफिस में बैठा रहेगा तो कर्मचारी आफिस से निकलकर घर जायेगा भी कैसे.

आज फैक्ट्री विजिट पर आ धमके हैं. आते ही पाण्डेय जी को तलब किया. पाण्डेय जी सबेरे से ही साहब के साथ हैं. साहब इधर-उधर और न जाने किधर-किधर की बातों से पाण्डेय जी को बोर कर रहे हैं. पाण्डेय जी भी क्या करें कुछ नहीं कर सकते. साहब की बातें सुनकर अन्दर ही अन्दर खिसिया रहे हैं. साहब आए तो हैं फैक्ट्री विजिट पर लेकिन जायजा ले रहे हैं मन्दिर के खर्चे का.

"अच्छा पाण्डेय जी, मन्दिर में जो पूजा होती है उसमे एक दिन में कितना लड्डू लगता है?" चेयरमैन साहब ने पूछा.

"सर, तीन किलो लगता है एक दिन की पूजा पर", पाण्डेय जी ने बताया.

"लेकिन पिछले साल तो दो किलो में हो जाता था न. फिर ये तीन किलो?" चेयरमैन साहब लड्डू की मात्रा को लेकर चिंतित लग रहे हैं.

"सर, वो क्या है कि लोगों को जब पता चला कि पूजा में प्रसाद के लिए लड्डू का इस्तेमाल होता है तो ज्यादा लोग आने लगे"; पाण्डेय जी ने लड्डू के ज्यादा खपत होने का कारण बतात हुए कहा.

"लेकिन ये तो ठीक बात नहीं है. शेयरहोल्डर्स को एजीएम में जवाब तो मुझे देना पड़ता है न. ऊपर से ज्यादा लोग आते हैं पूजा में तो आफिस के काम का नुकसान भी होता होगा. एक काम कीजिये, कल से पूजा के प्रसाद में बताशा मंगाईये. इसके दो फायदे होंगे. एक तो खर्चा कम होगा और दूसरा लोग भी कम आयेंगे"; बाबू ने हिदायत दे डाली.

पाण्डेय जी ने उनकी बात सुनकर मन ही मन अपना माथा पीट लिया. ये सोचते हुए कि 'देखो कैसा इंसान है. जब परचेज का नकली बिल बनवाकर कम्पनी से कैश निकालता है तो शेयरहोल्डर्स की चिंता नहीं सताती इसे लेकिन प्रसाद में दो की जगह तीन किलो लड्डू आ जाए तो शेयरहोल्डर्स का बहाना करता है.'

अभी पाण्डेय जी सोच ही रहे थे कि बाबू ने कहा; " क्या सोच रहे हैं पाण्डेय जी? देखिये बूँद-बूँद से ही सागर बनता है. मुझे ही देखिये, इस उमर में भी बारह घंटे काम करता हूँ. आज मूंगफली भी खाता हूँ तो ख़ुद ही अपने हाथ से तोड़कर. आज भी रात के आठ बजे तक आफिस में बैठता हूँ. बोलिए, है कि नहीं?"

पाण्डेय जी क्या करते. हाँ करना ही पडा. भले ही मन में सोच रहे थे कि 'आफिस में बैठकर तुम करते ही क्या हो? माडर्न मैनेजमेंट की एक भी टेक्निक मालूम है तुम्हें? आफिस में बैठे-बैठे केवल कर्मचारियों को सताते हो तुम. मेरी ही हालत देखो न. इंजीनीयरिंग की पढाई की. बाद में एमबीए भी किया. दोनों कालेज में किसी गुरु ने यह नहीं पढ़ाया कि चेयरमैन जब फैक्ट्री विजिट पर आकर मन्दिर में होने वाले पूजा और प्रसाद के बारे में पूछेंगे तो उन्हें कैसे जवाब दिया जाय. मैं एक इंजिनियर. तुम्हारी कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट हूँ लेकिन दिन बुरे चल रहे हैं तो पूजा के खर्च पर बात करनी पड़ रही है.'

यह सोचते-सोचते पाण्डेय जी को अचानक ध्यान आया कि लंच का टाइम हो गया है. उन्होंने कहा; "सर लंच का समय हो गया है. चलिए लंच कर लीजिये."

पाण्डेय जी की बात सुनकर 'बाबू' बोले; "अरे, आपको तो बताना भूल ही गया. आजकल मैं लंच में केवल चना और गुड खाता हूँ. हमारे गुरुदेव ने खाना खाने से मना किया है."

उनकी बात सुनकर पाण्डेय जी का कलेजा मुंह को आ गया. सोचकर परेशान हो गए कि ऐसे वक्त में चना और गुड कहाँ से लायें? थोड़ी देर का समय लेकर फौरन गेस्ट हाऊस की तरफ़ दौड़े. पूछने पर पता चला कि चना मिलना तो बहुत मुश्किल है और गुड मिलना उससे भी कठिन. लेकिन पाण्डेय जी भी ठहरे मैनेजर. उन्हें मालूम था कि फैक्ट्री से थोड़ी दूर ही देसी शराब की दुकान है जहाँ फैक्ट्री के वर्कर्स थकान मिटाते हैं. वहाँ पर प्यून को भेजकर चना मंगवाया गया. लेकिन गुड का इंतजाम नहीं हो सका. चार प्यून दौडाये गए बाज़ार में गुड खोजने के लिए. करीब एक घंटे के बाद गुड भी मिल ही गया.

चेयरमैन साहब चना और गुड प्लेट में सजाये बैठे हैं. बात करते-करते एक चना मुंह रख लेते हैं.

पाण्डेय जी सोच रहे हैं; 'भगवान दया करो और इस आदमी को आज ही यहाँ से रवाना करो.'

आख़िर छोटे-मोटे पद का कोई कर्मचारी होता तो उसे पाण्डेय जी ख़ुद ही रवाना कर देते लेकिन ये तो ठहरे चेयरमैन. और चेयरमैन से बड़े केवल भगवान होते हैं.

पुनश्च:

सालों पहले एक कंपनी की ऑडिट करने फैक्ट्री में गया था. उसी समय चेयरमैन आए हुए थे. उस समय तो ब्लॉग लिखता नहीं था कि ये पोस्ट लिख मारता. लेकिन कल मैंने किसी को फ़ोन किया तो वे बड़े बिजी थे लिहाजा बात नहीं कर सके. केवल इतना बताया कि चेयरमैन फैक्ट्री विजिट पर आए हैं सो बाद में बात करूंगा.

12 comments:

  1. पुरानी यादें ताजा कर दीं आपने.

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  2. मैंने कभी तुम्हें तो बताया नहीं. वैसे पाण्डेय जी की जगह कोई भी हो सकता था....शुक्ला जी, बालकिशन मुसद्दी....

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  3. हर जगह बॉस के आने पर यही होता है।

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  4. :) चेयरमेन से बड़े केवल भगवान होते हैं !

    मजेदार...

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  5. और चेयरमैन से बड़े केवल भगवान होते हैं.
    ***
    क्या कलाकार हैं भगवान! वही हैं चैयरमैन, वही पाण्डेय जी, वही ठर्रा के साथ थकान मिटाते मजदूर, और वही शेयर होल्डर्स!
    यह कहना न होगा कि इस पोस्ट को लिखने में भी भगवान जी ही हैं! क्या मजेदार राग दरबारी है भगवान जी की!

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  6. Kaya Baat kahi hai aap ne......

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  7. हम भाग्यशाली कि आज तक किसी चेयरमेन की विजिट नहीं देखी हाँ हाईकोर्ट के जज की विजिटें जरुर देखी हैं। पर उन का हाल अलग होता है।

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  8. बंधू अब हम समझ गए हैं की शेयर बाज़ार में ये भूचाल क्यों आ जाता है...आप जैसे लोग जब कंपनियों के ओफिसियल सीक्रेट यूँ ही बाहर करते रहेंगे ये होता ही रहेगा.
    चेयर मैन के आने से सबसे खुश काम वाली बाई होती है क्यों की उस दिन सब अधिकारियों की मैडम इस बात की जानकारी में समय लगा देती हैं की किसके पति के साथ उन्होंने क्या और कितनी देर बात की और इस बात पर धयान ही नहीं देती की बाई ने क्या किया और क्या नहीं. गज़ब का लेखन है आप का.
    नीरज

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  9. अब समझ में आ रहा है कि पाण्डेयजी का लिखना अनियमित काहे हो गया। :) वैसे हम अपने बिजी दोस्तों से कहते हैं-क्या बात है बहुत बिजी दिख रहे हो, कोई काम-धाम नहीं है क्या?

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  10. वाह गुरू जी वाह - क्या समां बांधा - कलकतिया "किपिटिलिष्टों" का - बाबू जी का (खास कर परचेज़ वाला किस्सा) - ये पोस्ट तो रही "बाबू जी " की - उम्मीद है इस श्रृंखला में एक "बाबू भईया" के आगमन वाला पन्ना भी खुलेगा - मनीष [देर से आने की माफ़ी- इस हफ्ते के अंत अपने शेयर होल्डर्स की मीटिंग हैगी - जुम्मे तक कोट पीस दफ्तरी चालू आहे ]

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय