कल बाल किशन फिर आफिस में आए. हमारे आफिस के आस-पास ही उनके एक वकील साहब रहते हैं. उनसे मिलने के बाद आफिस में आए थे. ब्लागिंग की बातें होने लगीं. अचानक पूछ बैठे; "अच्छा एक बात बताओ, तुम मीर हो या गालिब?"
सवाल बड़ा अटपटा लगा मुझे. मैंने कहा; "यार गजलें तुम लिखते हो और पूछ मुझसे रहे हो कि मैं मीर हूँ या गालिब. ये बात कुछ समझ में नहीं आई."
बोले; "नहीं नहीं, बताओ न. तुम मीर हो या गालिब?"
मुझे लगा, पता नहीं क्या पूछना चाहते हैं. मैंने फिर अपना बचाव करते हुए कहा; "अरे भाई, आजतक जिसने एक भी शेर नहीं लिखा तुम उससे पूछ रहे हो कि वो मीर है या गालिब. हाँ, एक बात है. अगर मैंने दो-चार शेर भी लिखे होते तो तुम्हें जरूर बताता कि मैं मीर हूँ या गालिब."
मेरी बात सुनकर कुछ देर चुप रहे फिर बोले; "लेकिन इस बात का फैसला कैसे करते कि ख़ुद को मीर बताओ या गालिब?"
मैंने कहा; "बहुत आसान है. सिक्का उछालकर फैसला कर लेता. कुछ भी आता तो अपना क्या जाता? या तो मीर कहलाते नहीं तो गालिब."
मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "असल में बात ये है कि कल राजेश रोशन जी के ब्लॉग पर कुछ लोगों का नाम देखा. नाम के ऊपर कैप्शन में लिखा था; 'मैं तुझे मीर कहूं तू मुझे गालिब'. बहुत सारे नामों में तुम्हारा नाम भी था. अब आज तुम्हारे साथ ब्लागिंग के बारे में बात हो रही थी तो पूछ लिया. बाकी लोगों को मेल करके पूछ लूंगा. पता चल जायेगा तो भविष्य में संबोधन करने के लिए ठीक रहेगा."
मैंने कहा; "वाह. रोशन साहब ने ब्लागिंग भी शुरू कर दी! संगीत के ऊपर लिखते होंगे अपने ब्लॉग पर. शायद इसीलिए शायरों को याद किया."
मेरी बात सुनकर कुछ देर के लिए चुप हो गए. लगा जैसे मेरी किसी बात से आश्चर्य हुआ उनको. फिर बोल पड़े; "अरे तुम क्या संगीतकार राजेश रोशन की बात कर रहे हो? नहीं-नहीं, ये वो राजेश रोशन नहीं हैं. ये तो कोई और हैं. शायद पत्रकार हैं."
मैंने रोशन साहब के ब्लॉग का एड्रेस टाइप किया और उनके ब्लॉग पर पहुँच गया. वहाँ जाकर देखा तो मामला समझ में आया. ये कैप्शन ब्लॉगरोल के लिए लिखा गया था. लेकिन फिर भी इस कैप्शन के बारे में सोचते हुए मुझे लगा कि रोशन साहब ने ऐसा क्यों लिखा? अनुमान लगाते हुए मैंने बाल किशन से कहा; "शायद उनके लिखने का मतलब है कि रोशन साहब अमित गुप्ता जी को, काकेश जी को, जीतू जी को, फुरसतिया जी को, तरकश वाले भाई बंधू को, ज्ञान दत्त जी को और मुझे मीर कहेंगे और चाहते हैं कि हमसब उन्हें गालिब कहें. लेकिन जहाँ तक मेरा ख़याल है, जितने लोगों का नाम है वहाँ, उनमें से कोई शायर तो है नहीं. फिर उन्हें मीर क्यों कहेंगे वे?"
बाल किशन ने कहा; "हो सकता है वे ख़ुद गालिब कहलाने का शौक रखते हों."
उनकी बात सुनकर मैंने कहा; "हाँ, ये हो सकता है. कविता वगैरह तो लिखते हैं पहले से. शायद भविष्य में गजल में भी हाथ आजमाने का प्लान बनाया हो. मुझे लगता है, यही बात है."
मैंने कहा; "भाई, अगर ऐसी बात है तो मैं उन्हें आज से ही गालिब कहना शुरू करता हूँ. उन्हें मीर कहने की जरूरत नहीं है. हाँ, अगर भविष्य में मैंने कभी कोई एक-आध शेर मारा तो उन्हें सूचित कर दूँगा कि वे भी मुझे मीर कहना शुरू कर दें."
बाल किशन बोले; "तुम्हारा कहना एक दम ठीक है.यही होना ही चाहिए. मैं तो कहता हूँ कि हो सके तो रोशन साहब को आज ही सूचित कर दो."
रोशन साहब, ये पोस्ट आपको सूचना देने के लिए है. आप निश्चिंत रहें, मैंने आज से ही आपको मीर कहना शुरू कर दिया है. जब मैं शेर मारूंगा तो आपको सूचित कर दूँगा.
Friday, June 13, 2008
तुम मीर हो या गालिब?
@mishrashiv I'm reading: तुम मीर हो या गालिब?Tweet this (ट्वीट करें)!
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ब्लागरी में मौज
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:)
ReplyDeleteto aap kyaa hain ye bataa bhi dijiye..
saath hi ham kya hai ye bhi declare kar dijiye..
शिवकुमार+बालकिशन = पंगेबाज
ReplyDeleteशिवकुमार+बालकिशन ≠ मीर/गालिब
:)
अजी हमे तो ये गणित की उलझने समझ ही नही आती..
ReplyDeleteफिर चचा सेक्सपियर कह गये है.. नाम में क्या रखा है..
ज्ञान दादा धन्यवाद ,अब भले दोनो हम से इर्ष्या से जल भुन जाये :)
ReplyDeleteइन बाल किशन साहब को कह दे आपके ऑफिस के इतने चक्कर न काटे वे काटते है ओर आपको एक नई पोस्ट दे जाते है ...फ़िर किसी दिन आपसे ईष्या करने लगे तो....
ReplyDeleteतो मामला ब्लॉग रोल का है.
ReplyDeleteहमें लगा फिर कोई ब्रेकिंग डायरी लिक हुई है :)
बंधू
ReplyDeleteपोस्ट का हेडिंग देख कर सोचा की आप ये सवाल मुझसे पूछ रहे हैं...हम भी पढ़ कर चौड़े हो गए की चलो करोड़ों में एक तो है जिसे हमारी शायरी में मीर या ग़ालिब की झलक नज़र आती है लेकिन ये ग़लतफहमी जल्दी ही ब्लॉग पढ़ कर दूर हो गयी. जिस ब्लॉग रोल में हमारा जिक्र ना हो उसे मीर या ग़ालिब का शीर्षक देना ही ग़लत है. हम राजेश जी से बात करेंगे और समझायेंगे की शायरी करने वालों को अपने ब्लॉग रोल की बिरादरी से बाहर ना रखें.
बाल किशन जी से कहिये अब आप के ऑफिस न जाकर यहाँ खोपोली चला आए.
नीरज
तीन दिन का मौन व्रत लिया है वरना मंत्रोच्चार में शामिल होता. आपके यहाँ हवन जमा हो तो दो चार मंत्र तो जरुर पढ़ता. शुभकामनाऐं. :)
ReplyDeleteदेखिये जी आप ये मीर ग़ालिब करते करते हमारे केडीक़े साहब को क्यों भूल गये.चंद शेर मार कर भेजे हैं.
ReplyDeleteये शेर चचा ग़ालिब ने भी मार लिये थे ओरिजनली केडीक़े साहब के हैं.
ये ना थी हमारी किस्मत,जरा ऐतबार होता
हम पोस्ट लिखते रहते, उन्हे इंतजार होता
कहते ना खुद को ग़ालिब ना मीर ही बुलाते
ज़ो तीर ही चलाते तो जिगर के पार होता
जो डायरी थी वो भी, अब मिल गयी है उनको
हम को मिल जो जाती तो बेड़ा-पार होता
अब मीर साहब वाले शेर देखें.
जो तू ही पोस्ट लिख कर बेज़ार होगा
तो हमको कुछ भी कहना दुश्वार होगा
कैसे लिखते है डेली डेली, सुबह वह पोस्ट
कहते हैं लोग हमसे, कोई व्यौपार होगा
दिन में भी जो ठेलते हैं कई कई पोस्ट
समझो कि वो तो कोई बीमार होगा.
कुछ लोग कलम से शेर लिखते हैं तो कुछ गोली से शेर मारते हैं. आपने कलम से शेर को ढेर किया.
ReplyDeleteहा हा शिव भाई मजा आ गया आप की पोस्ट का भी और काकेश जी की टिप्पणी का भी, इसे पढ़ मै तो असली शेर भी भूल रही हूँ अब तो ये काकेश जी के शेर घूमेगें दिमाग में।
ReplyDeleteमीर ना हुए अमीर,
ReplyDeleteचचा गालिब की रुह
हुई पशेमाँ ..
क्या कलजुग आयो है!!
- लावण्या
मीर के थे तीर और गालिब का भी था इक कमान
ReplyDeleteनाम लेकर इन्ही का चलती है कितनी ही दुकान
क्यों नहीं ये सोचते जो मीर-गालिब थे तो क्या
लिख दिया 'कमलेश' ने भी एक मोटा सा दीवान
मीर-गालिब ब्लॉग पर लिखते गजल की पोस्ट जो
गर न मिलती टिपण्णी तो लुट गया होता जहान
ये समझ लो ब्लागिंग में भी कितने गालिब-मीर हैं
सब मिले तो उठ गया है, ब्लॉग का ऊंचा मचान
है सदा 'रोशन' तुम्हीं से बुद्धि का दीपक यहाँ
और ऐसे दीपकों से जगमगाता है मकान
कह दिया 'कमलेश' ने भी बात जो मन में रही
और कहकर दे गया अपना भी छोटा सा निशान
---कमलेश 'बैरागी'
कमलेश जी को केडीके का सलाम
ReplyDeleteआपकी दोस्ती की खातिर कुछ फ़रमा रहा हूँ.
जिन्दगी से दो चार होइये साहब
मुई ब्लॉगिग में टैम ना खोइये साहब
टिप्पणी मिलती हैं उनको,तो ख़फा क्यों हैं
अपनी ग़जलों में यूं ना रोइये साहब
क्यूँ सुबौ सुबौ उठके पोस्ट करते हैं ज़नाब
चादर में मँह घुसाकर खूब सोइये साहब
पुरानी दोस्ती ऐसे न खोइए साहब
इज़ारबंद से बाहर न होइए साहब
शेर मुंआ मुँह से फिसल गया.ऐसे पढ़ें
ReplyDeleteक्यूँ सुबौ सुबौ उठके पोस्ट करते हैं ज़नाब
चादर में मुँह घुसाकर खूब सोइये साहब
एक और बोनस
क्या बदल लेंगे दुनिया लिख के ब्लॉग-पोस्ट
यह सोच के अपने होश ना खोइये साहब
जनाब केडीके साहब को इस नाचीज का आदाब. चाँद अश-आर हैं. आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ..
ReplyDeleteअब गजल की वाट लगने दीजिये
कुछ जरा मुझको भी कहने दीजिये
जो भी था सो कह दिया है आपने
जो बचा है उसको रहने दीजिये
क्यों भला रोकें जो गिरता है यहाँ
गजल के 'अस्तर' को ढहने दीजिये
मुंह ढके चादर में तो ही ठीक है
औ हवा ऊपर से बहने दीजिये
कह दिया 'कमलेश' ने भी दिल की बात
और गहे फिर से तो गहने दीजिये
बहुत जबरदस्त मुशायरा जम रहा है.
ReplyDeleteजमाये रहिये जी.
हम भी एक आध शेर लेकर थोडी देर में हाजिर होते हैं.
मुशायरे में मेरा नंबर कब आएगा...ये लोग थमे तो कुछ हम भी कहें...अर्ज़ किया है...भाई बाल किशन हमें यूँ पीछे मत घसीटो यार....अमां एक आध तो शेर तो कहने दो...बड़ी दूर से आए हैं मियां...ये क्या माईक ही उठा के ले गए जनाब...अब शेर पढ़ें या चिल्लाएं? इन बाल किशन जी को समझाओ यार...कमलेश और काकेश भाई को कुछ नहीं कहते हमारे पीछे पड़े हैं..
ReplyDeleteनीरज
अमां बाल किशन..मियां ये क्या कर रिये हो?..जनाब नीरज साहब को मुशायरे में कुछ पेश करने का मौका दो...म्येने सुना था एक ज़माना था जब दाग़ साहब से शाइर लोग जलते थे...म्येने तो सुना है कि जनाब असद साहब से भी शाइर लोग जलते थे...क्या कहा? असद कौन? लाहौलबिलाकुव्वत...चचा असद का नाम नहीं मालूम? कैसे नामाकूल इंसान हो तुम?...हाँ तो मैं कह रिया था कि असद उर्फ़ गालिब से भी लोग जलते थे...एक बार एक शाइर ने उनके शेर सुनकर कह दिया;
ReplyDeleteकलाम-ए-मीर समझे औ जुबान-ए-मीरजा समझे
मगर इनका कहा ये आप समझें, या ख़ुदा समझे
और आप तो ऐसे नामाकूल शाइर से भी आगे निकल गए...माईक लेकर ही भाग लिए..उर्दू शायरी में कला दिना कहेंगे हम इसे..जनाब नीरज साहब, हम आपके लिए नया माईक लेकर आते हैं.
ज़नाब आप ने कहा तो हम ग़ौर फ़रमा रहे हैं.आप भे फ़रमायें.
ReplyDeleteजो बचा है उस्को रहने दे रहे हैं
अंडे हुए थे 'रोशन',अपन से रहे हैं
कश्ती कहां से निकली,कहां पहुंच रही है
ये सोचते नहीं अपन तो बस खे रहे हैं
चांद निकलता था तब,अब चांद निकल गयी है
सर के बाल रो रोकर, दुआ दे रहे हैं
जो लिखते थे व्यंग्य,अब ग़जल लिख रहे हैं
वो जल रहे हैं फिर भी, मजे ले रहे हैं.
वाह वाह वाह,क्या बात है.जबरदस्त मुशायरा है.
ReplyDeleteकृपया चलने दीजिये,
हम दर्शक दीर्घा मे कृतार्थ हो रहे हैं
कहीं से तीर कहीं से गोले आ रहे हैं..
जनाब नीरज साहब और जनाब केडीके साहब...गौर फरमाईये...जनाब बाल किशन...कान इधर दीजिये... अरे क्या करते हैं...कान उखाड़ कर नहीं देना है..मेरा मतलब सुनिए..
ReplyDeleteबड़ी कोशिश की गजल में व्यंग कर दूँ
लिख के कुछ व्यंग उनको दंग कर दूँ
जो लिखी ऐसी गजल भौचक्के हैं वो
मैंने ये सोचा उन्हें भी तंग कर दूँ
दिख रही हैं सडियल सी घर की दीवारें
आज सोचा उनको मैं ही रंग कर दूँ
और ख़ास तौर पर ये शेर सुनिए...अर्ज किया है..
वो थे, मैं था, और था 'रोशन' समा ये
दिल में आया आज ही मैं जंग कर दूँ.
ज़नाब थोड़ी हाज़त का मामला था. अभी अभी पहुंचा हूँ वापस.
ReplyDeleteमेरी सासों से बसी है इस ब्लॉग की खुशबू
वरना ब्लॉगिंग में अब टिपियाता कौन है
लोग आ रहे हैं,पढ़ रहे हैं,जा रहे हैं
वरना आजकल मुस्कुराता कौन है.
अब मीर साहब ...
शेर की मस्ती शराब की सी है
आदत अपनी नबाब की सी है
वो हड्डी बने हैं बीच में अपने
हालत अपनी कबाब की सी है
वो लिखते हैं कुछ भी हिट होते है
अपनी हालत खाना-ख़राब की सी है
भागो भाई! यहाँ तो शेर लड़ रहे हैं।…हम किसी पेड़ पर चढ़ कर नजारा लेते हैं
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