जब से स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और हॉस्टल तोड़कर अपनी प्रतिमा लगवाई है, उसका फायदा दिखाई दे रहा है.
पिछले सप्ताह मामाश्री के सुझाव पर दो दिन की पदयात्रा पर निकल गया था. प्रजा के बीच जाकर लगा जैसे ईमेज कुछ ठीक हो रही है. लेकिन मुझे बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है. मामाश्री कह रहे थे मुझे सबसे ज्यादा जरूरत इस बात पर ध्यान देने की है कि संवाददाता सम्मेलनों में मुंह से कुछ उलटा-पुल्टा न निकल आए.
पिछले महीने एक सभा में भाषण देते-देते जोश में गलती कर बैठा. कुछ पुरानी परियोजनाएं जो महाराज भरत के जमाने से चल रही हैं, उन्हें पिताश्री के द्वारा शुरू की गई परियोजनाएं बताने की गलती कर बैठा. अखबारों के सम्पादकों ने इस बात पर मेरी बहुत खिल्ली उडाई थी.
मामाश्री की कृपा से हस्तिनापुर का युवा वर्ग मुझमे अपना भविष्य देखने लगा हैं. हुआ ऐसा कि पदयात्रा के दौरान मामाश्री ने अपने 'लड़कों' की एक टोली अचानक भेज दी. एक गाँव में मेरे पहुँचने से पहले ही उनके लड़के पहुँच चुके थे. और मेरे पंहुचने के साथ-साथ इन लोगों ने नारा लगना शुरू कर दिया;
जब तक सूरज चाँद रहेगा, सुयोधन तेरा नाम रहेगा
सुयोधन तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं
हस्तिनापुर का राजा कैसा हो, सुयोधन के जैसा हो
नारे लगाते इन लड़कों को देखकर प्रजा के बीच से भी कुछ नौजवान आगे आए और उन्होंने भी नारे लगाने में मामाश्री द्वारा भेजे गए लड़कों का हाथ बटाया. बड़ी सुखद अनुभूति थी. वैसे संघर्ष करने की बात वाले नारे पर मुझे एक बार के लिए हंसी आ गई थी. मेरे मन में आया कि मैं ठहरा राजकुमार. मुझे किससे संघर्ष करने की जरूरत पड़ गई भला? फिर मामाश्री की बात याद आई.
एक बार राजनीति का पाठ पढ़ाते हुए उन्होंने कहा था; "एक बात हमेशा याद रखना वत्स दुर्योधन, राजनीति में सफल होना है तो नारों का सहारा कभी न छोड़ना. नारों का कोई मतलब निकले या न निकले. नारों में मतलब ढूढना बेवकूफ राजनीतिज्ञ की निशानी होती है."
कुछ नौजवानों से वार्तालाप करके पता चला कि वे हस्तिनापुर में नेतृत्व परिवर्तन चाहते हैं. कहते हैं राज-काज देखने वाले लोग बूढ़े हो गए हैं. वैसे ज्यादातर नौजवान यही मानते हैं कि राज-काज देखने वाले लोग, जैसे पितामह, विदुर चाचा, गुरु द्रोण वगैरह बहुत सक्षम हैं. मुझे ऐसे नौजवान अच्छे नहीं लगे.
जब मैंने ये बात मामाश्री को बताई तो उन्होंने बड़ा अच्छा सुझाव दिया. उन्होंने बताया कि मैं अपने गुप्तचरों द्वारा ये व्हिस्पर कैपेन चला दूँ कि पितामह आजकल बीमार रहते हैं. बैठे-बैठे सो जाते हैं. मामाश्री ने तो यहाँ तक कहा कि इस बात को भी फैला देना चाहिए कि विदुर चाचा पिछले महीने पन्द्रह दिन के लिए अस्पताल में भर्ती थे और उन दिनों राज-काज का सारा काम मैं देखता था. मैंने फैसला कर लिया है, मामाश्री के सुझावों का तुरंत पालन करूंगा.
मामाश्री ने एक सुझाव और दिया है. कह रहे थे कि कुछ छंटे हुए नौजवानों का एक प्रतिनिधिमंडल लेकर विदुर चाचा से मिलूं और पूरे हस्तिनापुर के नौजवानों के कल्याण के लिए कुछ योजनायें चलाने का सुझाव दूँ. ऐसे में नौजवानों के बीच मेरी छवि और अच्छी होगी. नौजवानों को लगेगा कि मैं उनके बारे में सोचता हूँ.
मुझे मामाश्री के इस प्लान पर शक हो रहा था. मुझे डर था कि कहीं ऐसा न हो कि विदुर चाचा मेरी मांग ठुकरा दें. बाद में मैंने माताश्री से इस योजना के बारे में बात की तो उन्होंने आश्वासन दिया कि वे विदुर चाचा को समझा देंगी.
प्लान ये है कि जब मैं प्रतिनिधिमंडल लेकर विदुर चाचा से मिलूंगा तो वे पत्रकारों के सामने ही मेरे प्लान की बहुत सराहना करेंगे और मेरा प्लान तुरंत मानते हुए नौजवानों के लिए सुझाई गई परियोजाओं के लिए धन मुहैया कराने का वादा कर देंगे.
बहुत अच्छा लग रहा है. मेरा कद ऊंचा हो रहा है.
Thursday, June 5, 2008
दुर्योधन की डायरी - पेज २९६२
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज २९६२Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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"कल शाम की खबर है झासी के एक गांव मे लोगो ने इकट्ठा होकर पडोस गांव के लोगो की रोटिया लूट ली" हम यहा पेट्रोल के भाव पर तपसरा कर रहे थे, वहा लोग रोटिया लूट रहे थे.राजकुमार दुर्योधन भी पहले तो पाच सितारा रोटी लेकर घूम रहे थे. अब वो और उनके वादे सारे गायब है,अब ऐसे मे कैसे टिपियाये दोस्त, तुम्ही बताओ ? जब लुटेरे सिर्फ़ रोटिया लूटने निकल पडे तो, क्या आप इन्हे लुटेरे मानते है ? मुझे शर्म आ रही है अपने को उत्तर प्रदेश का निवासी कहने मे.पत्रकार खामोश है चैनल पर शायद इससे टी आर पी नही बढेगी.दूसरो को फ़िलिस्तीन ने लिये अंधा और गूंगा बहरा कहने वाले तथाकथित पत्रकार ब्लोगर्स इन्हे कौन से खाने मे रख रहे है, क्या यहा भी उन्हे अगडा पिछडा हिंदू मुस्लमान की तलाश है ? शर्मसार हू मै कि जब हमे ऐसे किस्से यहा उठाने चाहिये तब भी हम फ़ालतू की बहस का हिस्सा बने हुये है ? माफ़ कीजीयेगा शिव भाई मै भावनाओ मे बह कर कुछ ज्यादा ही लिख गया हू
ReplyDeleteनारों में मतलब ढूढना बेवकूफ राजनीतिज्ञ की निशानी होती है."
ReplyDeleteये बहुत खूब कही आपने..
अब यह इतना रोचक चल रहा है कि जासूसी उपन्यास की तरह अन्त उजागर करने की खुजली जरूर उठ रही है।
ReplyDeleteअन्त तो मालुम ही है! वहां आते आते त्रासदी में बदल जाती है कथा। तब ये नौजवान और व्हिस्पर केम्पेन काम नहीं आते। :(
निसंदेह किताब के रूप में छपने योग्य व्यंग्य.
ReplyDeleteडायरी पसन्द आ रही है.
"गुप्तचरों द्वारा ये व्हिस्पर कैपेन चला दूँ कि पितामह आजकल बीमार रहते हैं. बैठे-बैठे सो जाते हैं."
ReplyDeleteहा हा हा भौत मज़ेदार है .....
आज आप भले व्यंग्य करते रहें पर जल्द ही समय आएगा जब दुर्योधन भइया भी पूजे जायेंगे. लोग मेराडोना जैसे कबाड़ी को भी आदर्श बताने में लगे हैं.
ReplyDeleteमैं संजय बेंगाणी जी से सहमत हूं।
ReplyDeleteलगता है सुयोधन जी उस रात जल्दी सो गये थे.. नहीं तो पिछली डायरी के पन्नों की तरह ये पन्ना भी थोड़ा लम्बा होता.. :)
ReplyDeleteवैसे बहुत ही बढिया है जी..
आपका दुरोधन हिट हो रहा है..देखिये कही लोग इल्जाम न लगा दे की आप उनकी आत्मकथा छाप रहे है बिना रोयाल्टी दिये..... ...
ReplyDeleteएक और मारक व्यग्य सुयोधन के मार्फ़त.
ReplyDeleteमुझे डर है ये राजनेता एकजुट होकर तुम्हारे दुरोधन को जेल मे ना डाल दें मेरा मतलब डायरी जब्त ना हो जाए.
(इतना अच्छा लिखोगे तो ये सब तो होगा ही)
सावधान!
बंधू
ReplyDeleteये नारे लगाने वाले भी अजीब लोग हैं दुर्योधन की जगह सुयोधन के की जय जय कार कर रहे हैं...क्या दुर्योधन और सुयोधन एक ही व्यक्ति के दो नाम हैं? हमारा महाभारत ज्ञान में हाथ थोड़ा क्या बहुत ज्यादा तंग है इसी से पूछ रहे हैं...आप खिल्ली न उडाईये.
बाकि आप ने बहुत जोरदार लिखा है...जब सब कह रहे हैं तो हम क्यों अलग लिख कर आफत मोल लें.?
हमें कभी कभी लगता है कहीं पूर्व जनम में आप ही तो दुर्योधन नहीं थे....शोध का विषय है ये....सारी बातें ऐसे लिखते हैं जैसी असली दुर्योधन ने भी नहीं लिखी होंगी अपनी डायरी में...अगर लिखी हैं तो डायरी का एक पन्ना सत्यापन के लिए हमें भेज दें.
नीरज
ऐसे किसी का मजाक नहीं उडाते... कल को सरकार बन गई तो आपको कृष्ण भगवान् की जन्मस्थली के दर्शन कर दिए जायेंगे :-)
ReplyDeleteनौजवानों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाने का माश्री का सुझाव तो सबसे बढ़िया है.
ReplyDeleteबहुत खूब भाई. यह डायरी सटीक है. संजय बैगाणी जी की बात पर कान दिजिये.
महाभरतीय विंबों में दुर्योधन की डायरी पढ़ते-पढ़ते एक रामायणी की पंक्तियां कानों में घुरघराने लगती हैं....
ReplyDeleteघर-घर लंका, घर-घर रावण
इतने राम कहां-से लाएं।
अरुण जी टिप्पणी ने झकझोर दिया। वाकई हमे ऐसे सवालों के केंद्र में मगज मारना होगा, तभी इस मंच की सार्थकता सबल हो सकेगी।
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