Show me an example

Monday, November 10, 2008

न जाने कौन सा गुंडा वजीर बन जाए


@mishrashiv I'm reading: न जाने कौन सा गुंडा वजीर बन जाएTweet this (ट्वीट करें)!

हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने विरोध के 'लोकतांत्रिक तरीकों' में इजाफा कर डाला. 'हम हैं नए, अंदाज़ क्यूं हो पुराना?' के सिद्धांत पर काम करते हुए इन छात्रों ने अपने ही एक प्रोफेसर के मुंह पर थूक दिया. असहमति होने पर नारे लगाना, मार-पीट करना और तोड़-फोड़ जैसे टुच्चे और पुराने तरीकों का महत्व कम होता जा रहा है. ऐसे में छात्रों का कर्तव्य है कि वे नए तरीकों का अविष्कार करें. आख़िर पुराने तरीकों को नए छात्र कितने दिन ढोयेंगे?

विरोध के लिए उठाये गए इस कदम को लोकतंत्र के परिपक्व होने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जाय या नहीं, इसपर समाजशास्त्री दिन-रात एक कर रहे होंगे. हो सकता है जल्द ही कोई वक्तव्य भी दें. लेकिन हम तो आज आपको उस छात्र का एक साक्षात्कार बंचवाते हैं, जिसने प्रोफेसर के मुंह पर थूका था.

पत्रकार: नमस्कार, थूकन प्रसाद जी. मुझे बड़ी खुशी है कि मैं आपका इंटरव्यू ले रहा हूँ. ये बताईये, प्रोफेसर साहब के मुंह पर थूकने के बाद, आपके गौरव में कितना इजाफा हुआ?

थूकन प्रसाद: नमस्कार जी. मेरा इंटरव्यू लेकर आपको खुशी होनी ही चाहिए. आपको खुशी नहीं होगी, तो मैं इसका विरोध करूंगा. अब विरोध के नाम पर मैं कुछ भी कर सकता हूँ. आपके मुंह पर थूक भी सकता हूँ. तो अब गेंद आपके पाले में है. ये आप पर निर्भर करता है कि आप खुश होंगे, या....

पत्रकार: नहीं-नहीं, मैं खुश हूँ. सचमुच खुश हूँ. आपको मेरा विरोध करने की ज़रूरत नहीं है.

थूकन प्रसाद: ये अच्छा हुआ कि आप समझ गए. हम तो चाहते हैं कि किसी को हमारे विरोध का सामना न करना पड़े. वैसे अब मैं आपके सवाल पर आता हूँ. गौरव में इजाफा होने के बारे में पूछा है आपने. तो ये समझिये कि बहुत इजाफा हुआ है. जो लोग हमें जानते नहीं थे, वे जानने लगे हैं. साथ में डरने लगे हैं कि...

पत्रकार: समझ गया. वैसे ये बताईये कि प्रोफेसर के मुंह पर थूकने के बाद आपको कैसा लगा?

थूकन प्रसाद: थूकने के बाद हम हल्का महसूस करने लगे. हमें लगा जैसे शरीर से कोई बोझ उतर गया.

पत्रकार: मतलब ये कि आपका थूक बड़ा वजनदार है.

थूकन प्रसाद: हाँ, वही समझ लें.

पत्रकार: अच्छा, ये बताईये कि थूकने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

थूकन प्रसाद: प्रेरणा कहीं से मिले, ये ज़रूरी नहीं. वैसे अगर सच कहूं तो थूकने की प्रेरणा हमें बोर होने से मिली. बोरियत जो न कराये. नारे लगाकर, तोड़-फोड़ और मार-पीट वगैरह करके हम बोर हो गए थे. ऐसे में हमने सोचा कि कुछ नया किया जाय. नए करने की ललक ने हमें थूकने के लिए प्रेरित किया.

पत्रकार: वैसे ये बताईये, थूकने में आपने जो परफेक्शन हासिल किया है, वो क्या किसी प्रैक्टिस का नतीजा है? मेरा मतलब ऐसा कैसे हुआ कि आपने थूका और थूक सीधे प्रोफेसर साहब के मुंह पर गिरा?

थूकन प्रसाद: ये अच्छा सवाल किया है आपने. देखिये लोगों को ये लगता है कि थूकना साधारण काम है. लेकिन आपको बता दूँ कि थूकना कोई मामूली काम नहीं है. बड़ा परफेक्शन चाहिए इस काम में. वैसे थूकने में हमारे इस परफेक्शन के पीछे मेरे पिताजी का हाथ है.

पत्रकार: पिताजी का हाथ है! आपके कहने का मतलब आपके पिताजी आपको थूकने की प्रैक्टिस करवाते थे?

थूकन प्रसाद: नहीं, इस मामले में आप मुझे एकलव्य कह सकते हैं. असल में हमने बचपन से ही अपने पिताजी को पान और खैनी खाकर थूकते हुए देखा है. नौवीं कक्षा तक आते-आते हम ख़ुद पान मसला खाने लगे. उसके बाद पान का सेवन शुरू किया. हम विश्वविद्यालय के प्रांगन में पान मुंह में दबाये एक जगह बैठे थूकते रहते हैं.

पत्रकार: आप तो वाकई में एकलव्य हैं. अच्छा, ये बताईये कि प्रोफेसर के मुंह पर थूकने के पीछे कोई और कारण था क्या?

थूकन प्रसाद: हाँ. एक और कारण था. हम भारतीय संस्कृति के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा रहे थे.

पत्रकार: भारतीय संस्कृति के प्रति उत्तरदायित्व निभा रहे थे? वो कैसे?

थूकन प्रसाद: वो ऐसे कि हम बचपन से तमाम मुहावरे सुनते आए हैं. जैसे "मैं उसके मुंह पर न थूकूं."..."मैं उसके द्वार पर थूकने न जाऊं...मैं थूक कर चाटने वालों में से नहीं हूँ...मैं...वैस भी हम जिस पार्टी से हैं, भारतीय संस्कृति के रक्षा की जिम्मेदारी उसी पार्टी ने अपने कंधे पर ले रखी है. अब मेरे ऐसा करने से दो-दो काम हो गए. संस्कृति की रक्षा भी और पार्टी का काम भी.

पत्रकार: समझ गया, समझ गया. अच्छा ये बताईये, इस घटना के बाद आपको लगता है कि विरोध के इस नए तरीके का इस्तेमाल आम हो जायेगा?

थूकन प्रसाद: होना ही चाहिए. लेकिन उससे पहले मैं चाहूँगा कि इस तरीके के अविष्कार का क्रेडिट मुझे मिले.

पत्रकार: और क्या-क्या चाहते है आप?

थूकन प्रसाद: हमारी मांग है कि थूक कर विरोध जताने को संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में जगह दी जाय. और इस तरीके के इस्तेमाल पर छात्रों को सत्ताईस प्रतिशत का आरक्षण भी मिले.

पत्रकार: और अगर सरकार ने आपकी मांग को ठुकरा दिया तो?

थूकन प्रसाद: तो हम सरकार का विरोध करते हुए उसके ऊपर थूक देंगे. उसके बाद हम इंतजार करेंगे कि हमारी पार्टी की सरकार आए और संविधान में उचित संशोधन करके थूकने के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दे. अगर संविधान में संशोधन के लिए हमारी पार्टी के पास बहुतमत नहीं रहा तब हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब हम ख़ुद मंत्री बनेंगे और....

पत्रकार उनकी बात सुनकर कुछ मन ही मन बुदबुदा उठा. ध्यान से सुनने पर पता चला कि पॉपुलर मेरठी साहब का एक शेर टांक रहा था. शेर है;

अजब नहीं कभी तुक्का जो तीर हो जाए
दूध फट जाए कभी तो पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए

27 comments:

  1. जब गुरू नए जमाने के है और उनसे शिक्षा पाए शिष्य भी नए जमाने के है तो विरोध के तरीके भी नए ही होंगे ना जी.

    अच्छा व्यंग्य, इस पर कोई विरोध नहीं कर सकते. :)

    ReplyDelete
  2. बड़ी ही दुखद और गंभीर घटना है है..
    गुरु और शिष्य के रिश्ते की परिभाषा के सर्वथा बाहर..

    ReplyDelete
  3. किसी तालिब-इल्म ने किसी टीचर के मुंह पर थूक दिया इस पहलू से कहीं ज्यादा अहम् है नफ़रत का वो पहलू जो इस थूकने का बाइस बना. यह थूकना सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर एक तमाचा है जिसने मिस्टर जीलानी को बाइज्ज़त बरी कर दिया. क्या आप ये नहीं देख रहे है कि मुल्क में एक ऐसा तबका ताक़तवर होता जा रहा है जिसकी निगाहों में न कानून कोई चीज़ है, न अदालत.
    motamulashbal@gmail.com

    ReplyDelete
  4. मूर्ख लोग है जो थूक कर गिलानी जैसे लोगो को साहनुभूति दिला रहे है......

    ReplyDelete
  5. कम से कम जिलानी को गुरु और थूकन को शिष्य का दर्जा न दें, गुरु और शिक्षक में ज़मीन आसमान का अन्तर है, शिष्य और छात्र में भी उतना ही अन्तर है. न तो अब शिक्षक आदर्श रहे और न तो अब छात्रों से पहले जैसी श्रद्धा की उम्मीद करना उचित होगा.

    अगर बच्चे आज इन हरकतों पर उतरे हैं तो इसमे बड़ों का ही दोष है.

    ReplyDelete
  6. थू थू !..

    ग़लत मत समझिए.. इस से आपके ब्लॉग को नज़र नही लगेगी..

    दमदार इंटरव्यू.. कही मेरी छुट्टी करने का इरादा तो नही.. :)

    ReplyDelete
  7. ये बेचारे निरीह हैं, नहीं जानते कि आसमान की ओर मुंह कर थूंक रहे हैं। भविष्य जल्दी ही उनपर थूंकेगा! :(

    ReplyDelete
  8. अजब नहीं कभी तुक्का जो तीर हो जाए
    दूध फट जाए कभी तो पनीर हो जाए
    मवालियों को न देखा करो हिकारत से
    न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए
    ..........
    सौ फीसदी सही बात.
    कलयुग अभी तो बाल्य वस्था में ही है.युवा और प्रौढ़ होगा तो क्या क्या होगा ,पता नही.
    पढ़ते समय लगा जैसे वह थूक अपने ही मुंह पर लिसड गया हो.
    इस व्यंग्य पर हंस नही पाई, बडा ही क्षोभ हुआ.....

    ReplyDelete
  9. बढया किया जो थूंका ....सरेआम पाकिस्तान परस्ती की बात करने करने वाले इस देशद्रोही की टांग तोङते तो ज्यादा ठीक रहता है.....

    ReplyDelete
  10. सडक के बीच
    हिदुस्तान के फ़डफ़डाते हुये नक्शे पर
    किसी गाय ने गोबर कर दिया है !!

    पैदल जब वजीर हुये टेढो-टेढो जाये !!

    ReplyDelete
  11. sir aap ka lekhan humari prerana he

    ReplyDelete
  12. अब नैतिक मूल्यों में बहुत ज्यादा गिरावट आ चुकी है ! ना तो शिष्य ही शिष्य रहे और ना गुरु ही गुरु रहे ! एक हाथ से ताली नही बजती ! आपने विषय पर बहुत ही सशक्त व्यंग लिखा है ! शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  13. मैं एक दूसरा कमेण्ट जोड़ रहा हूं। मेरे पहले कमेण्ट को; जिस पर थूका गया है; उसका महिमामण्डन या तरफदारी न माना जाये।

    ReplyDelete
  14. आख़िर चेला किसका था. योग्य शिष्य साबित हुआ.

    ReplyDelete
  15. परसाईजी का लेख
    आवारा भीड़ के खतरे शायद इसी स्थिति के लिये लिखा गया होगा। लड़के के पास और कोई उज्ज्वल भविष्य न होगा सिवा नेतागिरी वाया गुंडागिरी के।

    ReplyDelete
  16. यहाँ गुरु और चेले में नीचे गिरने की होड़ लगी है, और चेला गुरू से आगे निकल रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।

    वैसे इण्टरव्यू बड़ा जोरदार बन पड़ा है।

    ReplyDelete
  17. टाईटेनिक फिल्म मे इन्हें ही लेना चाहिये था, हिरोईन के साथ जब हीरो थूकने की प्रतियोगिता करता है तब शायद ये लोग थियेटर में भावावेग होकर पर्दे पर ही थूक न दिये हों :)
    वैसे गिलानी जैसे लोगों का समर्थन तो मैं कत्तई नहीं करना चाहूँगा, लेकिन यह भी नहीं चाहूँगा कि उस पर थूक कर अपनी ही देह से निकले किसी तत्व का अपमान किया जाय़।

    ReplyDelete
  18. अजब नहीं कभी तुक्का जो तीर हो जाए
    दूध फट जाए कभी तो पनीर हो जाए
    मवालियों को न देखा करो हिकारत से
    न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए

    इतना अच्छा व्यंग लिखा है, मै नहीं जानता कि,
    ना जाने आप का ब्लॉग कब नज़ीर हो जाए

    ReplyDelete
  19. किस गुरु परम्परा से कलजुगी गुरुओं की तुलना कर रहे हैं?ज्ञान देनें के अलावा सारे (कु)कर्म कर रहे हैं ये तथाकथित गुरू।कोर्स की पढ़ाई के अलावा न जानें कौन कौन से वाद गढ़ और पढ़ा रहे है ये गुरू घण्टाल।ऎसे गुरू घण्टाल के शिष्यों से इस से कम की उम्मीद करना सरासर ना इंसाफी है।

    ReplyDelete
  20. बंधू जो सबसे आनंद दाई बात आप की इस पोस्ट पर लगी वो थी पापुलर मेरठी साहेब का मुक्तक ....वाह ...उनको सुनना एक अनुभव है...खैर उसके अलावा आप ने पोस्ट में इतना थूका है की क्या कहूँ...अच्छा किया जो बरसों पहले हमने बच्चों की पढ़ने की साध का गला घोंट दिया, वरना कोई हमारे चेहरे पर भी थूक कर चलता बनता...थूकने का येही सिलसिला चलता रहा तो लोग अपने चेहरे पर स्टीकर चिपका कर चलेंगे... " देखो कुत्ता थूक रहा है..."( बतर्ज देश की हर नयी दीवार पर लिखा पोस्टर...या पैंट किया वाक्य...)
    नीरज

    ReplyDelete
  21. सटीक लिखा है.. शेर भी बहुत दमदार निकाल के लाए हैं..

    ReplyDelete
  22. अजब नहीं कभी तुक्का जो तीर हो जाए
    दूध फट जाए कभी तो पनीर हो जाए
    मवालियों को न देखा करो हिकारत से
    न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए

    vaah kya baat kahi aapne.. :)

    ReplyDelete
  23. मजेदार साक्षात्‍कार रहा, और ये पंक्‍ति‍यॉं तो बैनर बन गई-
    अजब नहीं कभी तुक्का जो तीर हो जाए
    दूध फट जाए कभी तो पनीर हो जाए
    मवालियों को न देखा करो हिकारत से
    न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए।

    (थूकने की लत पर एक लेख मैंने भी लि‍खा था)

    ReplyDelete
  24. यह तो शर्म की बात है कि आज शिक्षक जिलानी जैसे पैदा हो गए हैं जो राष्ट्रवाद की शिक्षा देने की बजाये देशद्रोह फैला रहे हैं और खाते-पीते तो हैं भारत का और जयगान और गुणगान पाकिस्तान का करते हैं. ऐसे शिक्षक क्या आदर और सम्मान की अपेक्षा कर सकते हैं? यदि करते हैं तो यह तो उनकी ही भूल है. सम्मान व्यक्ति को नहीं उसके कर्मों और करनी को मिलता है और जिलानी की कथनी और करनी किसी भी व्यक्ति में में श्रद्धा और सम्मान की भावना नहीं करती. उनकी तो जितनी भी भर्त्सना और निंदा की जाए उतनी ही कम है. जब तक जिलानी अपने राष्ट्रविरोधी कारनामों के लिए राष्ट्र से मुआफी नहीं मांगते उनके साथ यही कुछ होता रहेगा. अब यह तो जिलानी को ही चुनना है कि उन्हें सम्मान चाहिए या कि अपमान.

    ReplyDelete
  25. सारे गुंडे ही वजीर बने बैठे हैं कोई कुर्सी पे हैं कोई कुर्सी बाहर से पकड़े हुए है

    ReplyDelete
  26. भई, चेहरे पर थूकना तो गलत है। हाँ, अगर मुँह में थूकें तो कोई बात नही। थूक में थूक जो मिल गया!!!!

    ReplyDelete
  27. कई दिनों से चर्चा सुनता-सुनता आज पहली बार आया आपके ब्लौग पर.और सम्मोहित हो जाने कितनी पोस्टें पढ़ गया हूँ.
    कोशिश करूँगा बराबर बने रहने की...

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय