जबसे युद्ध की घोषणा हुई है, जान का बवाल हो गया है. जगह-जगह जाकर सपोर्ट के लिए गिड़गिडाना पड़ रहा है. न दिन को चैन और न रात को आराम. इतनी जगह जाकर राजाओं से सपोर्ट के लिए रिक्वेस्ट करने से तो अच्छा था कि केशव की बात मानकर पांडवों को पाँच गाँव ही दे देता.
आज ही केशव का सपोर्ट लेने द्वारका पहुँचा. द्वारका की सीमा में रथ घुसा ही था कि पत्रकारों की तरफ़ से चिट्ठी मिली. इन पत्रकारों को भी कोई काम-धंधा नहीं है. जहाँ कहीं पहुँच जाओ, ये अपने सवाल की लिस्ट लिए खड़े रहते हैं. पत्रकार महासभा की तरफ़ से जो चिट्ठी मिली उसमें आग्रह किया गया था कि एक प्रेस कांफ्रेंस कर दूँ.
आग्रह तो क्या था, पढ़कर लगा जैसे ये पत्रकार धमकी दे रहे हैं कि केशव से मिलने से पहले प्रेस कांफ्रेस नामक नदी पार करना ही पड़ेगा.
सवाल वही घिसे-पिटे. "आपने पांडवों को वनवास और अज्ञातवास दिया था. इसके लिए आप दुःख व्यक्त करते हैं क्या?"
अब इस सवाल का क्या जवाब दूँ? दुःख ही व्यक्त करना रहता तो इतने कुकर्म करता ही क्यों? पहला कुकर्म करने के बाद ही दुखी होकर हिमालय के लिए निकल लेते.
एक पत्रकार ने तो यहाँ तक पूछ दिया कि; "लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मार देने की कोशिश नाकाम होने के पीछे क्या कारण थे?" पूछ रहा था; "क्या राजमहल का कोई व्यक्ति पांडवों से मिला हुआ था?"
अब कोई इसका क्या जवाब दे? सालों पहले हुई घटनाओं पर प्रश्न पूछना कहाँ की पत्रकारिता है?
एक पत्रकार ने पूछा; "युद्ध शुरू होने से मंहगाई की समस्या गहरा जायेगी. ऐसे में प्रजा में असंतोष व्याप्त होगा?"
इस तरह के बेतुके सवाल सुनकर दिमाग भन्ना जाता है. हर बार वही सारे सवाल. मैं यहाँ युद्ध को लेकर चिंतित हूँ और इन पत्रकारों को मंहगाई की पड़ी है.
कोई पूछ बैठा कि सालों से जो कुकर्म हम करते आए हैं, उनके लिए हम माफी मांगने के लिए तैयार हैं क्या?
अरे, हम माफी क्यों मांगे? किस-किस कुकर्म पर माफी मांगते फिरेंगे? ऐसा शुरू किया तो देखेंगे कि पूरा जीवन ही माफीनामा लिखते बीत गया. फिर हम राजा कब बनेंगे?
एक पत्रकार ने पूछा कि दुशासन ने मेरे ही कहने पर द्रौपदी की साड़ी उतारने की कोशिश की थी. द्रौपदी चूंकि केशव की बहन है, ऐसे में मैं केशव से युद्ध के लिए मदद कैसे मांग सकता हूँ?
इस पत्रकार का सवाल सुनकर तो लगा कि उसका गला वहीँ दबा दूँ. फिर याद आया कि ये हस्तिनापुर नहीं बल्कि द्वारका
है. ऊपर से मैं यहाँ सपोर्ट लेने के लिए आया हूँ. ऐसे में राजनीति का तकाजा यही है कि गला दबाने के प्लान को डिस्कार्ड कर दिया जाय.
यही सवाल हस्तिनापुर के किसी पत्रकार ने किया होता तो जवाब में "नो कमेन्ट" कह कर निकल लेता. ऊपर से बाद में पत्रकार की कुटाई भी करवा देता. लेकिन द्वारका में ऐसा कुछ कर नहीं सकता. जब तक केशव का सपोर्ट हासिल न हो जाए, कुछ भी करना ठीक नहीं होगा.
यही कारण था कि मुझे कहना ही पड़ा कि अगर उस समय ऐसा कुछ हुआ था तो वो दुर्भाग्यपूर्ण था. न्याय-व्यवस्था का काम है कि उस घटना की पूरी तहकीकात करे और अगर दुशासन का दोष निकलता है तो उसे सजा मिलेगी. मेरी इस बात पर पत्रकार पूछ बैठा कि; "तहकीकात की क्या ज़रूरत है? आप तो वहीँ पर थे."
अब इसका क्या जवाब दूँ? पत्रकारों को समझ में आना चाहिए कि राज-पाठ चलाने का एक तरीका होता है. हर काम थ्रू प्रापर चैनल होना चाहिए. जांच होगी. सबूत इकठ्ठा किए जायेंगे. उसके बाद न्यायाधीश बैठेंगे. न्यायाधीश सुबूतों की जाँच करेंगे. उसके बाद फ़ैसला सुनायेंगे.
वैसे पत्रकारों से मैंने वादा कर डाला है कि उस घटना की जांचा करवाऊंगा. वादा करने में अपना क्या जाता है? एक बार युद्ध ख़त्म हो जाए तो फिर कौन याद रखता है ऐसे वादों को?
अगर युद्ध समाप्त होने के बाद फिर से कोई ये मामला उठाएगा ही तो एक जाँच कमीशन बैठा दूँगा. मेरे पिताश्री का क्या जाता है? मैंने तो सोच लिया है कि अगर जाँच कमीशन बैठाना भी पड़ा तो क्या फ़िक्र? मैं जो चाहूँगा, वही तो होगा. मैं तो साबित कर दूँगा कि दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी उतारने की कोशिश नहीं की. ख़ुद द्रौपदी ही राज दरबार में आकर अपनी साड़ी उतारने लगी. ताकि वहां हंगामा करके दुशासन को फंसा सके.
ऐसी रिपोर्ट बनवा दूँगा कि द्रौपदी को ही सज़ा हो जायेगी.
Wednesday, November 19, 2008
दुर्योधन की डायरी - पेज ३४२१
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज ३४२१Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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. मैं तो साबित कर दूँगा कि दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी उतारने की कोशिश नहीं की. ख़ुद द्रौपदी ही राज दरबार में आकर अपनी साड़ी उतारने लगी. ताकि वहां हंगामा करके दुशासन को फंसा सके.
ReplyDeleteबहुत शानदार ! लगता है दुर्योधन के शिष्य ही आज की राजनिती में आगये हैं ! :) कितना दूरदर्शी था दुर्योधन ?
बहुत सही ! शुभकामनाएं !
शिव भाई, ये कोई बात हुई। ये हुआ धारदार व्यंग्य। इन्हीं की जरूरत है। आप के औजार में बहुत धार है लेकिन कभी कभी उलटा भी चला देते हैं तो मजा किरकिरा हो जाता है।
ReplyDeletewah hujoor, bilkul taajmahal chay ke aid sorry ad ki tarah.
ReplyDeleteअरे, हम माफी क्यों मांगे? किस-किस कुकर्म पर माफी मांगते फिरेंगे? ऐसा शुरू किया तो देखेंगे कि पूरा जीवन ही माफीनामा लिखते बीत गया. फिर हम राजा कब बनेंगे?
ReplyDelete" wah kya kya prashan dageyn hain yhan to aam aadme to soch bhee nahe skta..."
regards
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ReplyDeleteपेज ३४२१ (फुटनोट)
मुझे नहीं मालुम था कि द्वारका का वातावरण इतना लल्लू बना देता है लोगों को। अर्जुन पहले से ही वहां था पर उसने केवल केशव की ही डिमाण्ड की। केशव तो और भी घोंघा, बोले तो स्नेल निकले। पूरी की पूरी आर्मी मेरे हवाले कर दी।
अब तो मैदान फतह! पत्रकारों की बैठक का कोई मलाल नहीं।
हम जीत गये समझो!
आज तो मैं बहुत हैप्पी हूं। बहुतई हैप्पी!
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धारदार.
ReplyDeleteअगली माफी राजकुमार की संतान मांगेगी, जल्दी क्या है. यही रजवंश और यही भारत रहेगा.
इस दुर्योधन में आज का सफल नेता बनने के सारे गुण हैं।
ReplyDelete"मैंने तो सोच लिया है कि अगर जाँच कमीशन बैठाना भी पड़ा तो क्या फ़िक्र? मैं जो चाहूँगा, वही तो होगा. मैं तो साबित कर दूँगा कि दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी उतारने की कोशिश नहीं की. ख़ुद द्रौपदी ही राज दरबार में आकर अपनी साड़ी उतारने लगी. ताकि वहां हंगामा करके दुशासन को फंसा सके."
ReplyDeleteवर्तमान परिवेश पर बिलकुल सार्थक व्यग्यं
इस दुर्योधन के वंशज अभी देश चला रहे है... कमाल का व्यंग्य
ReplyDeleteये कोई व्यंग्य थोडे ही है, बस संदर्भ बदल गए हैं बाकी आज की सच्चाई है :)
ReplyDeleteहम सोच रहे थे की शायद डायरी के पन्ने समाप्त हो गए हैं या आप भूल चुके हैं लेकिन दुर्योधन से पीछा छुड़ाना शायद इतना आसान नहीं है आप के लिए...और ये दुर्योधन...कमबख्त ने कोई भी तो प्रसंग नहीं छोड़ा...सारे ही डायरी में लिख लिए हैं....उसे शायद पता नहीं था की उसकी ये डायरी किसी ब्लोग्गर के हाथ पड़ जायेगी...और सार्वजनिक हो जायेगी... मैंने तो ये देख कर ही डायरी लिखना छोड़ दिया है...
ReplyDeleteनीरज
bahut badhiya sir.. :)
ReplyDeleteतो यह है कल युग की नयी महाभारत, ओर इस के साथ ही आप ने एक नंगा सच भी लिख दिया..मैं तो साबित कर दूँगा कि दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी उतारने की कोशिश नहीं की. ख़ुद द्रौपदी ही राज दरबार में आकर अपनी साड़ी उतारने लगी. ताकि वहां हंगामा करके दुशासन को फंसा सके
ReplyDeleteओर हो भी तो यही रहा है आज कल , बहुत ही सटीक ओर सत्य से भरपुर, हंसी के साथ साथ कुछ सोचने पर भी मजबुर करती है आप की आज की पोस्ट.
धन्यवाद
इसे पढ़कर लगता है कि दुर्योधनजी अपने समय के कित्ते बड़े राजनेता रहे होंगे।
ReplyDeleteदुर्योधन को अभी टी वी वालों से पाला नहीं पडा , वर्ना उसे अभिमन्यू को इस चक्र्व्यूह से निकले के लिए बुलाना पड़ता और वह बेचारा भी कहता- ज़रा रुकिये डैडी से पूछ कर आता हूं।
ReplyDeleteअच्छे व्यंग्य के लिए बधाई।
शिव भैय्या पढ कर ऐसा लगा की मै वाकई किसी नेताजी की प्रेस कांफ़्रेंस मे बैठा हूं।एकदम असली सवाल,असली जवाब और दुर्योधन भी असली।कमाल की पोस्ट है ये।द्वापर की प्रेस कांफ़्रेंस को आपने युगो बाद भी लाईव दिखा दिया,मान गये आपको।
ReplyDeleteबिलकुल शिव जी, यही भारतीय राजनीती है. जो कि प्राचीन काल से चली आ रही है. एक बेहतरीन व्यंग.
ReplyDeleteद्रौपदी भी कहाँ इत्ती सीधी रही होगी इस कलयुग में....कहीं दुर्योधन पर ही न कोई केस वेस लगा दे! आजकल महिलाओं की सुनवाई बड़ी जल्दी होती है!
ReplyDeleteदुस्सासन पर जाँच आयोग बैठे या नहीं, पर कांग्रेस की साड़ी उतारने के जुर्म में आप को सजा जरुर मिलेगी ..... बच के रहिएगा कांग्रेसी टी.वी. चैनल वालो से......... अगर दुस्सासन यह लेख पड़ ले तो .... साड़ी उतारने में आपका लोहा जरुर मान लेगा ... बहुत अच्छा पुरे महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक उधेड़ दिए....
ReplyDeleteअनिल शाव
सही ताना मारे हो दुर्योधन के वंशज अभी देश चला रहे हैं, बहुत खूब लिखा है।
ReplyDeleteसर
ReplyDeleteयह तो अच्छा हुआ किसी राजनेता को आपकी यह डायरी और इससे मिले हुए ज्ञान का पता नहीं चला है.
मुझे तो लगता है कि आप को राजनीति में ले लिया जायेगा और ब्लॉग पढने वाले आपका इंतज़ार करते रहेंगे .
बहुत अच्छा --लिखा- बल्कि पढा गया है