हमारे समाज में भाई का महत्व कई युगों से है. हमारे देश के गौरवशाली इतिहास और अति गौरवशाली वर्तमान में भाई के महत्व को नकारने का मतलब है पूरी संस्कृति को ही नकार देना. वैसे भी किसकी हिम्मत है जो भाई के महत्व को नकार सके?
अब जब किसी में हिम्मत ही नहीं है तो कह सकते हैं कि; "जब तक सूरज-चाँद रहेगा, भाई....."
रामायण से लेकर महाभारत और दुबई से लेकर भारत, सब जगह भाई का महत्व किसी से छिपा नहीं है.
रामायण में राम,भरत और लक्षमण जैसे भाई थे. शत्रुघ्न भी थे लेकिन वे थोड़ा डारमेंट टाइप थे. उन्होंने किसी बहुत महत्वपूर्ण काम को अंजाम दिया हो, ऐसा कम ही लगता है. कोई बहुत महत्वपूर्ण कार्य उनके नाम दर्ज हो, ऐसा उदाहरण कम ही होगा.
या फिर उन्होंने किया भी होगा तो उसका विज्ञापन ठीक से नहीं कर सके.
मैं सोच रहा था कि शत्रुघ्न के इस तरह की 'डारमेन्टता' का कारण क्या हो सकता है. शायद वे लक्ष्मण टाइप नहीं थे. मेरा मतलब ये कि लक्ष्मण जी बड़े भइया राम जी के आज्ञानुसार तो चलते ही थे, कभी-कभी बिना आज्ञा के भी परफार्म कर जाते थे. शायद यही फरक था लक्ष्मण और शत्रुघ्न में. शत्रुघ्न केवल आज्ञा वगैरह मिलने पर ही कुछ करते होंगे.
लेकिन वहीँ लक्ष्मण जी को देखिये. कई केस में देखा गया है कि राम जी ने जो नहीं कहा, लक्ष्मण वह भी करने पर आमादा रहते थे. आख़िर राम जी ने नहीं कहा था कि लक्ष्मण भी उनके साथ वन चलें. लेकिन लक्ष्मण जी अपने आप तैयार हो गए.
शायद उन्हें लगा होगा कि सबकुछ बड़े भाई के कहने पर ही करेंगे तो लोग उनकी क्षमता को शंका की दृष्टि से देखते. लोग फब्ती कस सकते थे कि; "जबतक बड़ा भाई नहीं कहता, ये कुछ करता ही नहीं है."
इसलिए धनुष-वाण लेकर श्री राम के साथ वन जाने के लिए तैयार हो गए होंगे.
जब राम जी आर्डर देते थे तो भी सबकुछ करने के लिए तैयार रहते थे. राम ने कहा कि सूर्पनखा को नाकविहीन कर दो, तो उन्होंने फट से कर दिया. आख़िर बड़े भाई की आज्ञा का पालन कैसे नहीं करते? लेकिन दूसरी तरफ़ राम जी के बिना कहे परशुराम से पंगा लेने पर उतारू थे.
बिना आज्ञा के अपनी बुद्धि से कुछ करने से ही लक्ष्मण हमेशा विजिबल रहते थे. यही कारण था कि शत्रुघ्न पीछे रह गए.
भाईयों के समूह में किसी एक या फिर कई भाई के डारमेंट होने की कहानी द्वापर तक में दिखाई दी. महाभारत में युधिष्ठिर बड़े भाई थे. भीम और अर्जुन उनसे छोटे थे. युधिष्ठिर जो कहते थे, उसे तो छोटे भाई करते ही थे, लेकिन अर्जुन और भीम बिना आज्ञा मिले भी ख़ुद डिशीजन ले लेते थे. भीम को ही देखिये. शादी-वादी खुदे कर लिए थे. अर्जुन युधिष्ठिर से आज्ञा लिए बिना ही बाण वगैरह बरसा देते थे. ज्यादातर प्रकरण में यही तीनों दिखाई पड़ते हैं.
रामायण की तर्ज पर ही जैसे वहां शत्रुघ्न डारमेंट थे वैसे ही महाभारत में नकुल और सहदेव डारमेंट भाई थे.
दास्तान-ए-महाभारत में नकुल और सहदेव का रोल छोटा था. ये लोग विजिबल नहीं थे. एक्स्ट्रा कलाकारों की तरह थे जो फिलिम के एक-दो सीन में ही दिखाई देता है.
भाईयों के विजिबल न रहने की कहानी दूसरे खेमे में भी दिखाई देती है. दुर्योधन के निन्यानवे भाई थे. इन निन्यानवे में से दुशासन को छोड़कर बाकी के अट्ठानबे डारमेंट गति को प्राप्त हो चुके थे. दुर्योधन ने दुशासन को छोड़कर बाकी के भाईयों को शायद उभरने का मौका ही नहीं दिया. या फिर बाकी के अट्ठानबे निकम्मे टाइप थे. मैं कहता हूँ कि अगर दुर्योधन ने दुशासन को द्रौपदी का चीरहरण करने का काम सौंपा था तो बाकी के भाईयों को भी लग जाना चाहिए था.
और कुछ नहीं तो चीरहरण वाला एपिसोड कम से कम तीन-चार महीना तो चलता ही. मामला लंबा खिंचता. समय मिलता तो शायद दुर्योधन को भी बुद्धि आ जाती और ख़ुद ही रोकवा देता.
वैसे ये पता नहीं चल सका कि दुर्योधन ही अपने बाकी के भाईयों को कैपेबल नहीं मानता था या फिर बाकी के भाई सचमुच निकम्मे थे. अगर उसके बाकी के भाई निकम्मे नहीं थे तो मैं तो यही कहूँगा कि दुर्योधन की बेवकूफी उसे ले डूबी. अरे डेलिगेशन ऑफ़ अथॉरिटी भी कोई चीज है कि नहीं?
रावण के भी कुम्भकरण और विभीषण जैसे ब्रह्माण्ड प्रसिद्द भाई थे जो अपने बड़े भाई के लिए कुछ भी करने के वास्ते तत्पर रहते थे. लेकिन एक बात है. विभीषण बिना रावण के आज्ञा पाये भी अपनी बुद्धि लगाकर परफार्म कर लेते थे. वहीँ कुम्भकरण ऐसा नहीं था. वो बिना रावण जी के आज्ञा के कुछ करता ही नहीं था.
शायद यही कारण था कि विभीषण सरवाईव कर गए और कुम्भकरण मारा गया. रावण ने कुम्भकरण से कहा कि राम की सेना के ख़िलाफ़ मैदान में उतर जाओ तो बेचारा उतर गया. ये जानते हुए कि मारा जायेगा. लेकिन अपनी बुद्धि अप्लाई नहीं किया उसने.
सदियों से चली आ रही भाईयों की ये गाथा आगे ही बढ़ी. हाँ थोड़ा अन्तर है. अब सगे भाई का महत्व उतना नहीं रहा जितना 'भाई जैसे' भाई का है. अब अमर सिंह जी को ही देख लीजिये. वे कहते हैं कि अमिताभ बच्चन उनके बड़े भाई जैसे हैं. और देखिये कि क्या-क्या कर डाला उन्होंने. मिसेज बच्चन से नेतागीरी तक करवा दी. ठीक वैसे ही अमिताभ बच्चन जी ने क्या-क्या करवा डाला उनसे. हम सभी जानते ही हैं.
अमिताभ बच्चन जी अमर सिंह जी के बड़े भाई जैसे हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि अमर सिंह जी केवल वही काम करते हैं जो करने के लिए उनके बड़े भाई उन्हें कहते हैं. अमर सिंह जी अपना दिमाग चलाते हैं. उनके सरवाईव करने का राज ही यही है.
दिमाग नहीं चलाते और पार्टी बदल कार्यक्रम को अंजाम न देते तो अभी तक कांग्रेस में रहते हुए 'डारमेंटता' का शिकार हो जाते.
अपनी बुद्धि से काम करने का नतीजा ये हुआ है कि अमर सिंह जी, जो ख़ुद दस दिन पहले तक छोटे भाई थे, अब बड़े भाई बन गए हैं. संजय दत्त जी के बड़े भाई. दत्त साहब ने हाल ही में बताया कि अमर सिंह उनके बड़े भाई जैसे हैं. वे जो कहेंगे, दत्त साहब उसको झट से कर डालेंगे.
बड़े भाई के कहने पर लखनऊ से चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन देखने वाली एक ही बात है. दत्त साहब क्या केवल वही करेंगे जो अमर सिंह कहेंगे? क्या वे बड़े भाई नहीं बनना चाहेंगे? क्या वे लॉन्ग रन में सरवाईव नहीं करना चाहेंगे?
कैसे करेंगे सरवाईव? वही, अपने हिसाब से चलकर. कुछ ऐसा भी करें जो बड़े भइया न कहें. ऐसा क्या कर सकते हैं?
आने वाले समय में शायद पार्टी बदल लें. राजनीति में सरवाईव करने का इससे बढ़िया तरीका और क्या है? वो भी एक 'अभिनेता' के लिए.
मुझे तो पक्का विश्वास है कि संजय दत्त भी एक दिन बड़े भाई बनेंगे.
Tuesday, January 20, 2009
भाई-गाथा
@mishrashiv I'm reading: भाई-गाथाTweet this (ट्वीट करें)!
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मजा आ गया भाई गाथा में.. वैसे संजय दत्त तो आलरे्डी बडे़ भाई है...
ReplyDeleteरंजन
सतयुग से कलयुग तक युगों युगों की निचोड़ "भाई गाथा" प्रस्तुत कर दी भाई (वो भाई वाला भाई नही,अनुज वाला भाई)....लाजवाब !
ReplyDeleteदेखो समय के साथ छोटे भाई समझदार हो गए हैं,राजनीती के मंच पर जबतक चढ़े नही होते पूर्वस्थापित भाई को बड़ा भाई घोषित करते हैं और उनके मार्गदर्शन में चलने की दुहाई देते हैं और जैसे ही हाथ पकड़कर मंच पर चढ़े नही कि फ़िर ख़ुद ही बड़े भाई बन जाते हैं.पिछले उदाहरानो से उन्होंने भी सबक सीख लिया है,सो जागरूक हो गए हैं.
आपको ये पोस्ट लिखने के लिए ज्ञान भैया ने कहा है या फिर आप डारमेंटता से बचने के लिए ये सब लिख रहे है..
ReplyDeleteहमे जवाब चाहिए... जनता जवाब मांगती है..
मेरा यह भाई तो उत्कृष्ट लेखन के मामले में छद्म डॉरमेण्टता भी नहीं दिखाता! बड़ी मुसीबत है।
ReplyDeleteओर कितने भाई अमर ?ओर कितने ?
ReplyDeleteवाह वाह पण्डितजी बयाने-डॉरमेण्टता बड़ी ग़ज़ब रही।
ReplyDeleteभाई गाथा तो मजेदार रही,मगर कलयुग मे तो भाई भी कई प्रकार के होते हैं......जैसे हफ्तावसूली वाले भाई....सुपारी लेने वाले भाई वही जिनके पीछे पुलिस पडी रहती है मगर होता जाता कुछ नही....अब कौन जाने कल को कौन कैसा भाई बनने वाला है "
ReplyDeleteRegards
मजा आ गया पढ़कर. वाह!
ReplyDeleteबहुत ही आलेख . भाई तो भाई होता है .भाईगिरी के अब मायने बदल गए है .महाराज जी इस दुनिया में अब तरह तरह के भाई लोग है कोई भाईगिरी की दम पे वसूली कर रहा है तो मुन्ना भाई अपनी दम पे राजनीति में कूंद पड़ा है . ....
ReplyDeleteभाइयों से संबंधित सब उद्धरण दे दिए....पर एक बात छोड दी .....चोर चोर मौसेरे भाई भी होते हैं....आजकल यह अधिक चल रहा है।
ReplyDeleteशानदार....
ReplyDeleteक्या लिखे हो बड़े भाई....
वाह!
संजूबाबा उर्फ छोटे भाई सर्वाइव कर जाएंगे. कांग्रेस के स्थान पर सपा और बादमें देखेंगे...कहीं ओर...
भाई अगर डार्मेंट भी हों तो इसका मतलब यह नहीं कि निष्क्रिय हो गए है ,आख़िर संतोष भी कोई चीज भी है भाई !
ReplyDeleteनमस्कार जी
ReplyDeleteभाई पुराण ही लिख डाला. जरा अपने पाण्डे भाई के प्रश्न का जवाब भी दे दो.
बड़े भाई के छोटे भाई को राम राम!!
ReplyDeleteभैया हो तो अमर सिंह जैसा, सबका बड़ा भाई. सत्य वचन हैं आपके, कलम पर सरसुती बैठीं हैं, एक दिन जरूर बड़े भाई बनेंगे अपने संजय भाई.
ReplyDeleteअमर भाई जी हां भाई ही कहना चाहिये उनको, सिर्फ़ सुविधा से आगे छोटा या बडा ही लगाना है, भाई तो वो हैं ही.
ReplyDeleteउनका विचार अब ब्लागीवुड मे घुसपैठ का है सो यहां भी वो एक भाई ढुंढ रहे हैं. कौन हो सकता है यहां उनका भाई? जरा अन्दाजा लगाईये. :)
रामराम.
ये हुआ चौचक लेखन वो भी हमसे बिना पूछे. :)
ReplyDeleteबिना पूछे ही काफी सक्रिय हो लिये हो-जल्दी ही बड़े भाई बनोगे.
शुभकामनाऐं.
विश्लेषण में तो पूरा मैदान लूट लिया-मान गये भाई.
आप भी तो हमारे बड़े भाई जैसे हैं, जैसे क्या हैं ही. अब इसका मतलब निकलते रहिये :-)
ReplyDeleteभाई साहब, शत्रुघ्न ने अगर डारमेंट गति का वरण नहीं किया होता तो लक्ष्मण को पूरा स्पेस नहीं मिल पाया होता। किसी को बड़ा भाई बनाने के लिए किसी को उससे छोटा बनना ही पड़ता है।
ReplyDeleteवैसे सुना है कि ननिहाल से लौटने पर भरत जी के साथ शत्रुघ्न ने भी मन्थरा के कूबड़ पर पद-प्रहार का पुनीत कर्तव्य बड़े भाई के इशारे पर निभाया था। :)
इस भाई के लिए बहुत से सर्किट आगे आजाएंगे .
ReplyDeleteरही बात आपकी , यहाँ तो डॉरमेण्टता का नामोनिशान दिखाई नहीं देता !
बडे भाई तो बहुत पीछे रह गए इस केस में :)
तीन बजे थे उस वक्त जब आप की ये पोस्ट पढ़ी थी...समझने में और मनन करने में रात के दस बजने को है और आलम ये है की क्या टिपियाये ये ही सोच सोच के सर के बाल नोच रहे हैं... आप कुछ मदद कीजियेगा न...अमर जी की भी तो मुलायम जी करते हैं...आप क्यूँ सख्त बने हुए हैं...बहुत उधेड़बुन में हैं सोच रहे थे की कमेन्ट ऐसा होगा जो पोस्ट पर भारी पड़ेगा और हकीकत ये है की हम ख़ुद ही पोस्ट के भार से पड़े हुए हैं..चित.. आप भाईयों का खूब जिक्र किए हैं क्यूँ की आप विद्वान हैं...हम तो सिर्फ़ राज कपूर शम्मी कपूर और शःसी कपूर का जिक्र करना चाहेंगे जहाँ डारमेंटी का चक्कर ही नहीं था...हम माइथोलोजी में ना पड़ते...
ReplyDeleteक्या कमेन्ट लिखें हैं हमें ख़ुद नहीं मालूम...आप समझ गए हों तो बताने का कष्ट करें...
नीरज
भाईयोँ मेँ प्रेम बना रहे तब
ReplyDeleteसँसार और जीवन सुखी रहते हैँ
- लावण्या
ReplyDeleteसुरुआत तो ठिक्कै रहा..
बोलिये तो अच्छा रहा, सब एंगल से..
मुला, आखिर तक आये तो मूडवै खराब हो गया ।
ई अमर सिंघवा, अपने साथे साथ हमारा नाम भी बूड़ा रहा है ।
बाकी, संजयवा तो भाईगिरी का चस्का में हि तो धराय थे !
हम सुबह छह बजकर चौवालीस मिनट पर कह रहे हैं अरे बेटा जरा डिक्शनरी तो लाना देखें ई डारमैंट का क्या मतलब होता है। देखके फ़िर टिपियाते हैं।
ReplyDeleteअरे शिव भैया.. आप तो मेरे लिए बड़े भाई के सामान हैं.. :)
ReplyDeleteवैसे संजय दत्त जी तो पहले से ही बड़े भाइयों के संपर्क में हैं और बड़े भाइयों ने ही उन्हें इस गति तक पहुंचाया है कि उन्हें एक और बड़ा भाई बनाना पड़ा.
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