राजू जी ने जब से सत्यम बोला है, जेल में भर दिए गए हैं. इस घटना से एक बार फिर से साबित हो गया कि सत्यम का रास्ता बहुत कठिन होता है. आदमी उस रास्ते पर चलकर जेल तक पहुँच जाता है. वैसे मेरा मानना है कि उनके वकीलों ने उन्हें चिंता न करने की सलाह ज़रूर दी होगी. आख़िर उन्हें सुगर और हाई ब्लडप्रेशर वगैरह की शिकायत है. ऐसे में वे कभी भी छाती पर हाथ रखकर जेल से अस्पताल पहुँच सकते हैं.
दक्षिण भारत में वैसे भी मेडिकल टूरिज्म का बड़ा बोलबाला है.
सुना है जेल में रहते हुए आजकल गौतम बुद्ध की जीवनी पढ़ रहे हैं. किसी अखबार में रपट छपी होगी. ये अखबार वाले भी क्या-क्या छापते रहते हैं. ऐसे मौकों पर नोस्टैल्जिक होना कोई इनसे सीखे. मैं एक अखबार में राजू बाबू के बचपन के दोस्त का बयान पढ़ रहा था कि कैसे दोनों एक साथ स्कूल जाते थे. एक साथ भैंस चराते थे. एक ही साथ तालाब में नहाते थे और साथ-साथ बकरी के आवाज की नक़ल करते थे. राजू बाबू के उस बचपनी दोस्त के बहाने मीडिया वाले भी नोस्टैल्जिक हो लिए.
वैसे राजू बाबू द्बारा जेल में गौतम बुद्ध की जीवनी पढ़ने की बात पर मुझे सम्राट अशोक याद आ गए. उन्हें भी जमीन हड़प लेने की बीमारी थी और राजू बाबू को भी वही बीमारी थी. अशोक बुद्ध की शरण में गए. शायद इसी बात से प्रेरित होकर राजू बाबू भी बुद्ध की शरण में जाने के लिए उतावले हुए जा रहे हैं.
आज पता चला कि उनकी कंपनी में तेरह हज़ार कर्मचारी ऐसे थे जो थे ही नहीं. मतलब उनका केवल नाम था. और राजू बाबू अपनी कंपनी से इन कर्मचारियों के नाम पर सैलरी ट्रांफर कर लेते थे. बाद में उसी सैलरी से जमीन खरीद लेते थे. इस बात से पता चलता है कि कि दर्शन वगैरह में राजू बाबू का विश्वास बहुत पहले से दही के माफिक जमा-जमाया है.
उन्होंने कहीं पढ़ा होगा कि "जो है वो नहीं है और जो नहीं है वही है."
बस, इसी सिद्धांत के रस्ते पर चलकर उन्होंने तेरह हज़ार कर्मचारी, जो नहीं थे, उन्हें जिन्दा कर के अपनी कंपनी के हवाले कर दिया. तेरह हज़ार कर्मचारी. और हम यहाँ रो रहे हैं कि बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. वो भी तब जब हमारे यहाँ ऐसे-ऐसे उद्योगपति है जो इतनी हैसियत रखते हैं कि उनको भी रोजगार दे दें जो रोजगार नहीं चाहते या फिर जो हैं ही नहीं.
इस समाचार को पढ़कर मुझे वो दिन याद आ गया जब मैं बैंक में अकाउंट खुलवाने गया था. तमाम तरह के सवाल पूछे थे बैंक वाले ने. पैन कार्ड है कि नहीं? वोटर कार्ड है कि नहीं? एड्रेस प्रूफ़ कहाँ है? ये वाला नहीं चलेगा? आप अपना ताज़ा एड्रेस प्रूफ़ लाईये. क्या कुछ नहीं पूछा. तब जाकर एक अदद अकाउंट खुला.
और यहाँ ऐसे-ऐसे वीर हैं जो तेरह हज़ार अकाउंट खोल लेते हैं. सोचिये ज़रा. तेरह हज़ार अकाउंट के लिए तेरह हज़ार पैन कार्ड. तेरह हज़ार एड्रेस प्रूफ़. तेरह हज़ार वोटर कार्ड. तेरह हज़ार लोगों की सैलरी मिट्टी में गाड़ दिया इस आदमी ने.
वैसे इन्होने उन उद्योगपतियों को रास्ता दिखा दिया जो इस बात का रोना रोते हैं कि हम तो सर्विस इंडस्ट्री वाले हैं. हम ज्यादा घपला नहीं कर पाते. मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री वालों को तो बोगस खर्चा दिखाने का तमाम रास्ता है. इस मामले में हम पीछे रह गए. इसे हम उद्योग के क्षेत्र में क्रान्ति मानते हैं.
तमाम सवाल अपनी जगह हैं.
बैंक वाले कहाँ हैं? सत्यम के केस में उनका रोल कौन देखेगा? इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का रोल क्या रहा? प्रोविडेंट फंड डिपार्टमेंट का रोल क्या रहा? एम्प्लाई स्टेट इंश्योरेंस डिपार्टमेंट का रोल क्या रहा?
और हमलोग अभी भी यही कहते हुए घूम रहे हैं कि राजू ने घोटाला कर दिया. तो बाकी के लोगों ने क्या किया?
Friday, January 23, 2009
राजू ने घोटाला कर दिया....बाकी के लोगों ने क्या किया?
@mishrashiv I'm reading: राजू ने घोटाला कर दिया....बाकी के लोगों ने क्या किया?Tweet this (ट्वीट करें)!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
राजु ने घोटाला किया, बाकी से साथ दिया..
ReplyDeleteसब मिलीभगत है.. राजु ने सच बोला? पता नहीं कितना.. जो आदमी इतनी प्लानिंग से घपले कर रहा था. तो आगे भी प्लान कर रखे होगें.. जय राजु की!!
रंजन
सम्राट अशोक याद आ गए. उन्हें भी जमीन हड़प लेने की बीमारी थी और राजू बाबू को भी वही बीमारी थी. अशोक बुद्ध की शरण में गए. शायद इसी बात से प्रेरित होकर राजू बाबू भी बुद्ध की शरण में जाने के लिए उतावले हुए जा रहे हैं.
ReplyDeleteVery true.
बहुत भयंकर विस्फोटक आलेख है-आर डी एक्स टाईप. जबरदस्त बधाई धर लें.
ReplyDeleteआप तो ख़ुद ही अर्थ सलाहकार हैं शिव जी. जानते ही हैं, अर्थ की दुनिया में कैसा-कैसा अनर्थ होता है. अगर कायदे से जांच हो जाए तो केवल सत्यम ही नहीं, देश की 90 फीसदी कंपनियों के कारोबार में यही मामला पाया जाएगा. आख़िर ये कौन नहीं जनता की हर व्यापारी के दो खाते होते हैं. एक सरकार को दिखने वाला और एक अपना अलसी हिसाब-किताब रखने वाला. रही बात पैन कार्ड और अन्य पहचान पत्रों की, तो वो तो बहुत मामूली बात है. अगर ऐसा न होता तो इतने पाकिस्तानी और बंगलादेशी यहाँ आकर ठाट से कैसे रहते?
ReplyDeleteबाकी लोगों ने साथ दिया| रेवडियाँ बंट रही हों तो पीछे कौन रहना चाहेगा|
ReplyDeleteमार्के की बात है कि राजू ने घोटाला कर दिया तो बाकी के लोगों ने क्या किया?
ReplyDeleteपता नहीं कौन कौन सा विभाग संलिप्त है. इसलिए लिपापोती होनी तय है. नाम मुख्यमंत्री कार्यालय तक का आ रहा है.
देश की 90 फीसदी कंपनियों के कारोबार में यही मामला पाया जाएगा... और 100% सरकारी कर्मचारी...बीना इनको खिलाए न सही काम हो सकते है न गलत.
ReplyDeleteगौतम बुद्ध की जीवनी घोटालोपरान्त ही पढ़ने का मन होता है क्या?!
ReplyDeleteपहले पढ़ें तो घोटाला कैसे कर पायें!
'उन्हें भी जमीन हड़प लेने की बीमारी थी और राजू बाबू को भी वही बीमारी थी'
ReplyDelete"जो है वो नहीं है और जो नहीं है वही है."
मान गए, राजू को भी और आपको भी :-)
ऐसे में वे कभी भी छाती पर हाथ रखकर जेल से अस्पताल पहुँच सकते हैं.
ReplyDelete100 number le jao guruji... maan gaye aapko..
चलिये हम आपको बताते हैं कि साफ्टवेयर इंडस्ट्री में बैंक खाते कैसे खुलते हैं.. जिस दिन मैंने ज्वाईन किया था उस दिन एक बैंक का मार्केटिंग मैनेजर भी वहां आया था.. ढ़ेर सारा नये अकाऊंट खोलने वाला फार्म लेकर.. कुछ भी प्रूफ़ नहीं मांगा.. बड़ा ही सीधा इंसान था.. हमने कहा कि हम बिहार से हैं.. मान लिया.. हमने कहा कि यहां का कोई एड्रेस प्रूफ नहीं है, मगर मेरा पता यही है.. बस मान लिया.. हमने कहां पैन नंबर अभी नहीं है, एप्लाई कर देंगे, बस यह भी मान लिया.. हमने कहा कि पासपोर्ट तो है, मगर घर पर.. कहो तो कल लाकर दिखा दूं.. उसने कहा कि जरूरत नहीं है, हमें आपपर पूरा भरोसा है.. अब जिंदगी में पहली बार किसी ने हमें भरोसे का आदमी माना.. हम तो फूले नहीं समा रहे थे.. अब आप ही कहिये, ऐसे कलयुग में ऐसा सीधा आदमी कहीं आपको मिलेगा?
ReplyDeleteबेचारे बैंक वाले भी क्या करें? आजकल जो एच.डी.एफ.सी वालों को जो देख रहे हैं ना? उनका कमाल बस उनका ही नहीं है.. लगभग सभी आई टी कंपनियां अपने कर्मचारियों को वेतन इसी बैंक की सहायता से देती है.. पहले आईसीआईसीआई के हाथों में था अधिकतर डील सो वो ऊपर था.. अब एचडीएफसी के पास है अधिकतर डील तो अब वह ऊपर है..
यही कोई अलग से कोई एकाऊंट खोल कर दिखा दे मान जाऊं..
दर-असल यह भी एक वीआईपी चीज है, गिरफ्तारी के बाद अस्पताल में भर्ती होना. भैया पीडी तो बहुत खुशनसीब हैं कि उनका अकाउंट झट खुल गया.
ReplyDeleteनहीं आम आदमी भैया.. जो भी प्राईवेट कंपनी में नौकरी करते हैं और उनकी कंपनी थोड़ी भी बड़ी होती है वे सभी सैलेरी अकाऊंट खोलने के मामले में खुशनसीब ही होते हैं.. :)
ReplyDeleteइस गांव के कुएँ में भांग घुली है। लगता है अब मेडीकल टूरिज्म के बाद जेल टूरिज्म का दौर आने वाला है।
ReplyDeleteहमने जब अमेरिका मे मंदी की सुगबुगाहट शुरु हुई थी तब आपके ब्लाग पर ही टीपणि की थी अन्य सबके विपरित कि मंदी का घमासान शुरु हो गया है. और वैसा ही हुआ. अब यहां फ़िर लिख कर जा रहे हैं कि अभी कितने राजू निकलेंगे? जरा देखते जाईये.
ReplyDelete@ मिश्राजी..आपको तो मालूम ही होगा कि एक कम्पनी जिसका भाव ४५% दो दिन मे लुढक गया है, उसके भी शेयर अभी तो प्लेज होने की ही खबर आई है.:)
इस बार कई राजू भगवान बुद्ध की जीवनी तो क्या सीधे धम्मपद ही पढते मिलेंगे. अगर नही मिले तो हम ब्लाग लिखना पढना छोड देंगे. :)
रामराम.
राजू के साथ साथ "वे" भी जेल जाने चाहिये.
ReplyDeleteऐसा ही होता है आपको सलमान याद नही जेल में जाते ही दूसरे दिन टोपी पहन ली थी.....ओर अपने संजू बाबा .जेल के चक्करों में . उन्होंने एक बार भी ख्याल नही आया की मेरी बहन दत्त क्यों लगाती है ?
ReplyDeleteसब समय का फेर है मिश्रा जी !
सब टेम टेम का फेर है जी !
ReplyDeleteझूठ बोलो कहीं डोलो .
सच बोलो रोज रो लो .
बातें-बतोले बन्द करो, हिटलर राज लाओ, सभी भ्रष्टों के पिछवाड़े "गरम" करो…
ReplyDeleteराजू का ताश के पत्तो का साम्राज्य ढह रहा है और बाकी सभी खिलाड़ी अपने मन में खुश हो रहे हैं कि माना तो उसी ने है - सो चोर भी केवल बही सावित हुआ. हम उन आँख के अंधे निदेशक बोर्ड के सदस्यों को क्या कहेंगी जिन्होंने कभी बैलेंस शीट पढने की जेहमत नहीं की. कौन मानेगा इस बात को. पब्लिक लिमिटेड कंपनी हर ३ माह मे अपनी बैलेंस शीट अखवार मे छपती है. और उस पर चर्चा होती है. लेकिन उन सबको लगा जैसे कि राजू भैया के पास कोई जादू है जो वो लाभ तेजी से बढा रहे है और शेयर की कीमत भी उस जादू से उपर जा रही है. तो उस लोभी निदेशक मंडल को राजू ने क्यों अपने बयान मे तमाम जिम्मेदारी से मुक्त किया इसकी जांच होनी चाहिए. कंपनी के औडिटर तो शक के घेरे मे नहीं पूरी तरह दोषी है ही उन बैंको के बारे मे क्या जिन्होंने गलत प्रमाण-पत्र दिए. म्यूचुअल फंड के रिसर्च विभाग मे क्या हो रहा था? क्या उन्हें उद्योग की प्रगति पर शक नहीं करना चाहिए था ? और अब क्या अकेली सत्यम मे गड़बड़ है शायद समंदर के पाने मे ही कुछ गड़बड़ है. समूचे वाणिज्य जगत को इस पर पारदर्शक मंथन करना पडेगा.
ReplyDeleteबाकी लोगो ने साथ दिया शिव जी !! भाईचारा-भाईचारा !!
ReplyDeleteबाकी लोगों ने
ReplyDeleteनहीं किया
इसलिए बाकी
की कोई नहीं
चर्चा कहीं भी
जिसने किया
उसकी सर्च
यहां भी।
भैया बैंक में खाता खुलबाने की बात तो ये है -
ReplyDelete२ आदमी जेल मे बाद थे. एक पढा लिखा साहब टाइप और दूसरा बिल्कुल आम हिन्दुस्तानी. पढ़े लिखे ने पुछा भाई तू तो भला आदमी लगता है तू जेल मे क्यों? उसने कहा ख़ास बात नहीं मैंने फर्जी पता देकर बैंक मे खता खोला कुछ मामला फंस गया सो ६ महीने की कैद हुई है. तुम बताओ साहब तुम कया कैसे ? साहब ने जवाब दिया मैं उस बैंक का मेनेजर हूँ जिसने वो खता खोला था.
अभी पता नही कितने राजू ओर सत्यम परदे के पीछे है फ़टाफ़ट अमीर युही नही बन जाता कोई, आप ने मजाक माजक मै बहुत कुछ कह दिया.
ReplyDeleteधन्यवाद
हमे उम्मीद ही नही पूर्ण विश्वास है कि इन डायरियो से आपने सही माने मे एक सीए कैसे सत्यम ओडिट करता है सीख लिया होगा . हम चाहेगे की अगर आप मे अब ये योग्यता आ गई है तो आप अब हमारी कंपनी मे ओडिटर का कार्य भार संभाल ले . हमे भी सत्य (म) की राह पर चलकर कुछ नोट कमाने है . हम आपको भरोसा देते है कि हम कभी भी किसी /किन्ही भी कारणॊ से कही भी राजू की तरह एम डी की कुर्सी नही छोडेगे . आपके सहयोग से लगातार और उच्च श्रणी के घपले करने मे लीन रहेगे :)
ReplyDelete"इस घटना से एक बार फ़िर साबित हो गया की सत्यम का रास्ता कितना कठिन होता है...." आप के इस वाक्य से हम इतने प्रभावित हुए हैं जितने ओबामा के राष्ट्रपति बनने से भी नहीं हुए... हालाँकि उनके राष्ट्रपति बनने और इस वाक्य में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है...टेड़ा ये है की दोनों अद्भुत हैं...
ReplyDeleteराजू ने घोटाला किया बाकियों ने ताली बजाई... बाकी और करते ही क्या हैं? या तो ताली बजाते हैं या मुहं खोल कर आगे हाथ रख के आश्चर्य की मुद्रा बनाते हुए कहते है..."हाय राम ये कैसे हुआ..." और फ़िर भूल जाते हैं. प्रबुद्ध लोग पोस्ट लिखते हैं और अति प्रबुद्ध लोग टिपियाते हैं...
सदियों से राजू आते रहेंगे गाते रहें "मेरा नाम राजू घराना अनाम..."हम गुनगुनाते रहेंगे और सोचेंगे नहीं की भाई अगर घराना अनाम है तो ये है कौन...साफ़ साफ़ कह कर घोटाला कर रहा है...घोटाले वाले अक्सर ताल थोक कर घोटाला करते हैं...उनमें और हाथी में कोई फर्क नहीं...जो अपनी राह चलते हैं...और उनके पीछे...आप तो जानते ही कौन चलते हैं...काहे कहलवाते हैं....
नीरज
और यहाँ ऐसे-ऐसे वीर हैं जो तेरह हज़ार अकाउंट खोल लेते हैं. सोचिये ज़रा. तेरह हज़ार अकाउंट के लिए तेरह हज़ार पैन कार्ड. तेरह हज़ार एड्रेस प्रूफ़. तेरह हज़ार वोटर कार्ड.........
ReplyDeleteबैंक वाले कहाँ हैं? सत्यम के केस में उनका रोल कौन देखेगा? इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का रोल क्या रहा? प्रोविडेंट फंड डिपार्टमेंट का रोल क्या रहा? एम्प्लाई स्टेट इंश्योरेंस डिपार्टमेंट का रोल क्या रहा?
और हमलोग अभी भी यही कहते हुए घूम रहे हैं कि राजू ने घोटाला कर दिया. तो बाकी के लोगों ने क्या किया?
Ekdam sahi kaha....100/100
aur kuchh kahne ko nahi hai.