इन्द्र परेशान बैठे थे. माथे पर 'तिरशूल' के जैसे तीन-तीन बल पड़े हुए थे. बहुत कोशिश करने के बाद भी विश्वामित्र की तपस्या इस बार भंग नहीं हो रही थी. मेनका लगातार बहत्तर घंटे डांस करके अब तक गिनीज बुक में नाम भी दर्ज करवा चुकी थी लेकिन विश्वामित्र टस से मस नहीं हुए.
मेनका के हार जाने के बाद उर्वशी ने भी ट्राई मारा लेकिन विश्वामित्र तपस्या में ठीक वैसे ही जमे रहे जैसे राहुल द्रविड़ बिना रन बनाए पिच पर जमे रहते हैं. उधर मेनका और उर्वशी से खार खाई रम्भा खुश थी. इन्द्र को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाय?
दरबारियों और चापलूसों की मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग बहुत देर तक चली. बीच में लंच ब्रेक भी हुआ. आधे से ज्यादा दरबारी केवल सोचने की एक्टिंग करते रहे जिससे लगे कि वे सचमुच इन्द्र के लिए बहुत चिंतित हैं. काफी बात-चीत के बाद एक बात पर सहमति हुई कि इन्द्र को उनके मजबूत पहलू को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए.
दरबारियों ने सुझाव दिया कि चूंकि इन्द्र का मजबूत पहलू डांस है सो एक बार फिर से डांस का सहारा लेना ही उचित होगा. डांस परफार्मेंस के लिए इस बार रम्भा को चुना गया. मेनका और उर्वशी इस चुनाव से जल-भुन गई. लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था.
रम्भा ने तरह तरह के शास्त्रीय और पश्चिमी डांस किए लेकिन विश्वामित्र जमे रहे. उन्होंने रम्भा की तरफ़ देखा भी नहीं. हीन भावना में डूबी रम्भा ने एक लास्ट ट्राई मारा. मशहूर डांसर पाखी सावंत का रूप धारण किया और तीन दिनों तक फिल्मी गानों पर डांस करती रही लेकिन नतीजा वही, ढाक के तीन पात.
रम्भा को वापस लौटना पडा. रो-रो कर उसका बुरा हाल था. रोने की वजह से पूरा मेक-अप धुल चुका था. उसे अपनी असफलता का उतना दुख नहीं था जितना इस बात का था कि उर्वशी और मेनका अब उठते-बैठते उसे ताने देंगी.
प्लान फेल होने से इन्द्र दुखी रहने लग गए. सप्ताह में तीन चार दिन तो दारू चलती ही थी, अब सुबह-शाम धुत रहने लगे. राहत की बात ये थी कि उनके प्रमुख सलाहकार को अभी तक नशे की लत नहीं लगी थी. काफी सोच-विचार के बाद वो एक दिन चंद्र देवता के पास गया. वहाँ पहुँच कर उसने पूरी कहानी सुनाई और साथ में चंद्र देवता से सहायता की मांग की.
चंद्र देवता की गिनती वैसे ही इन्द्र के पुराने साथियों में होती थी. सभी जानते थे कि चन्द्र देवता इन्द्र के कहने पर एक बार मुर्गा तक बन चुके थे. वे इन्द्र के लिए एक बार फिर से पाप करने पर राजी हो गए.
चंद्र देवता रात की ड्यूटी करते-करते परेशान रहते थे, सो वे बाकी का समय सोने में बिताते थे. लेकिन इन्द्र की सहायता की जिम्मेदारी कन्धों पर आन पड़ी तो नीद और चैन जाते रहे. दिन में भी बैठ कर सोचते रहते थे कि 'इस विश्वामित्र का क्या किया जाय. इन्द्र के सलाहकार को वचन दे चुका हूँ. इन्द्र को भी दारू से छुटकारा दिलाना है नहीं तो आने वाले दिनों में पार्टियों का आयोजन ही बंद हो जायेगा.'
एक दिन बेहद गंभीर मुद्रा में चिंतन करते चंद्र देवता को 'नारद' ने देख लिया. देखते ही नारद ने अपना विश्व प्रसिद्ध डायलाग दे मारा; "नारायण नारायण, किस सोच में डूबे हैं देव?"
"अरे देवर्षि, बड़ी गंभीर समस्या है. वही इन्द्र और विश्वामित्र वाला मामला है. इसी सोच में डूबा हूँ कि इन्द्र की मदद कैसे की जाए. वैसे, हे देवर्षि, आप तो देवलोक, पृथ्वीलोक, ये लोक, वो लोक सब लोक घूमते रहते हैं. आप ही कोई रास्ता सुझायें. आख़िर इस विश्वामित्र की क्या कोई कमजोरी नहीं है?"; चंद्र देवता ने लगभग गिडगिडाते हुए पूछा.
"नारायण नारायण. ऐसा कौन है जिसकी कोई कमजोरी नहीं है. वैसे आप तो रात भर जागते हैं, लेकिन आप भी नहीं देख सके, जो मैंने देखा"; नारद ने चंद्र देवता से पूछा.
"हो सकता है, आपने जो देखा वो मुझे इतनी दूर से न दिखाई दिया हो. वैसे भी आजकल जागते-जागते आँख लग जाती है. लेकिन हे देवर्षि, आपने क्या देखा जो मुझे दिखाई नहीं दिया?"; चंद्र देवता ने पूछा.
"मैंने जो देखा वो बताकर इन्द्र की समस्या का समाधान कर मैं ख़ुद क्रेडिट ले सकता हूँ. लेकिन फिर भी आपको एक चांस देता हूँ. आज रात को ध्यान से देखियेगा, ये विश्वामित्र एक से तीन के बीच में क्या करते हैं"; नारद ने चंद्र देवता से कहा.
रात को ड्यूटी देते-देते चंद्र देवता विश्वामित्र की कुटिया के पास आकर ध्यान से देखने लगे. उन्हें जो दिखाई दिया उसे देखकर दंग रह गए. उन्होंने देखा कि विश्वामित्र अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिख रहे हैं. पोस्ट पब्लिश करके वे और ब्लॉग पर कमेंट देने में मशगूल हो गए. चंद्र देवता को समझ में आ गया कि नारद का इशारा क्या था.
दूसरे ही दिन इन्द्र के सलाहकार ने इन्द्र का एक ब्लॉग बनाया. ब्लॉग पर पहले ही दिन विश्वामित्र की निंदा करते हुए इन्द्र ने एक पोस्ट लिखी. साथ में विश्वामित्र के ब्लॉग पोस्ट पर उन्हें गाली देते हुए कमेंट भी लिखा.
कमेंट और पोस्ट का ये सिलसिला शुरू हुआ तो विश्वामित्र का सारा समय अब पोस्ट लिखने, इन्द्र के गाली भरे कमेंट का जवाब देने और इन्द्र के ब्लॉग पर गाली देते हुए कमेंट लिखने में जाता रहा. उनके पास तपस्या के लिए समय ही नहीं बचा.
विश्वामित्र की तपस्या भंग हो चुकी थी. इन्द्र खुश रहने लगे.
Wednesday, January 28, 2009
ब्लॉग महिमा
@mishrashiv I'm reading: ब्लॉग महिमाTweet this (ट्वीट करें)!
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ब्लागरी में मौज
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:)
ReplyDeleteहम आपका इशारा समझ गए हैं. नाहक पोस्टों पर ध्यान नहीं देंगे. :)
ReplyDeleteमतलब टिपियाएँ की नहीं ? हमारी तपस्या भी भंग हुए पड़ी है :-)
ReplyDeleteभाई ये तो सोचने वाली बात हो गई. :)
ReplyDeleteरामराम.
रीठेल पर पुराना वाला कमेण्ट रीठेल:
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट - मैं अत्रि के पुत्र चन्द्र के गोत्र में हूं। चान्द्रात्र। अब देखिये मेरे पूर्वज चन्द्र ने ब्लॉग को देवलोक में स्थान दिलाया।
ब्लॉग का यह महात्म्य मेरे पूर्वज के शोध का परिणाम है - इससे ज्यादा मस्त और क्या बात होगी। :-)
बहुत बढीया.. कर दो ्बिजी विश्वामित्र को..
ReplyDeleteआपका इशारा समझ गए हैं| :)
ReplyDeleteअब समझ आ गया कि तपस्या टूटने का राज क्या है. :)
ReplyDeleteबहुत सटीक - तीर निशाने पर है.
विश्वामित्र नकली थे। असली होते तो इन की परवाह नहीं करते।
ReplyDeleteआप किसकी और ईशारा कर के ये पोस्ट लिखे हैं बंधू...हम इसे ना समझ पाये...बहुत से लोगों ने समझ लिया है की आप का ईशारा किधर है...हमारी जो बात समझ में वो आयी वो ये है की अगर आप ब्लॉग लिखेंगे और टिपियायेंगे तो आप तपस्या नहीं कर सकते...इस बात को कहने के लिए आपने पूरी रामायण महाभारत का सहारा लिया है...धन्य हैं आप....
ReplyDelete(अन्दर की बात ये है की इन्द्र सदियों से इन तीन नर्तकियों के नृत्य देख कर बोर हो चुके हैं उन्हें रूप धरे राखी नहीं असली वाली राखी का डांस देखना है...)
नीरज
ये क्या ऊट पटांग लिख रहे है आप ?
ReplyDeleteउंम्मीद है कि अब आप हमे निशाना कर एक लंबी पोस्ट ठेलेगे :) जल्दी करे हम जवाब वाली पोस्ट तैयार किये बैठे है :)
हमने टीवी में एक विज्ञापन देखा था आप सभी को याद होगा
ReplyDelete" वाह सुनील बाबू ! नई बीबी ....."
वह एक पेण्ट का विज्ञापन था . पर कौन से पेण्ट का यह काफी दिन तक विज्ञापन देखने के बाद भी याद नहीं रहता था जब तक कि उस पर गौर न किया .बाकी पूरा विज्ञापन याद रहता था .
पर इस पोस्ट पर तो हमने गौर कर लिया है :)
डांस शो फ्लाप होने से विश्वामित्र की तंद्रा टूट गई और वे लोटपोट हो गए और इन्द्र के चरणों में ...इन्द्र खुश हुआ हा हा . गजब का लिखते है पंडित जी कहानी रूप में पढ़कर तबियत हरी भरी हो गई . आभार
ReplyDeleteओहो तो अब जाकर समझ में आया कि ये 'विश्वामित्र' कौन हैं...? कस्सम से मगज एकदम्मे लक्ष्मण सिल्वेनिया टुपलाईट के माफिक हुआ जा रहा है...
ReplyDeleteकमेंट और पोस्ट के इस जाल से विश्वामित्र और इंद्र भगवान भी नहीं बच सके....
ReplyDeleteउधर विवेक भी ऐसा कुछ पद्य अलापते भये हैं -मैंने जो उनसे पूछा वही आपसे भी पूंछता हूँ -कौन है ये इन्द्र और कौन विश्वा ? नारद तो खैर चर्चित हो चुके हैं !
ReplyDeleteब्लाग महिमा का बखान तो आपने बहुत ही बढिया किया है.किन्तु विद्वानों की सभा में आकर हम बुडबक तो इधर उधर मुंडी घुमाकर यही देखने की कौशिश कर रहे हैं कि आपका इशारा किसकी तरफ है.
ReplyDeleteजय ब्लागिया डांस की। ट्युब लाइटों की बत्ती जला दी जाए(मेरी भी)…:) मस्त पोस्ट
ReplyDeleteफालतू में न चन्द्र, नारद, रम्भा, मेनका सबको परेसान किए इन्द्र. अरे अब मेनका-रम्भा के नाचने से तो हमारी-आपकी तपस्या भी भंग नहीं होगी. ऊ सतजुग मॉडल को कौन देखना चाहता है. ऊ अमर सिंह भइया से मिले होते टी बिप्स क जुगाड़ न हो जाता! फ़िर देखते कितने दिन तपस्या कर लेते विश्वमित्र?
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ReplyDeleteबाकी ई है तो भईय्या अच्छी-खासी राजी खुशी पोस्ट..
मुला स्पष्ट हुई जात कि हम्मैं रतिया के एक बजे वाली पैसिंज़रिया कमेन्ट देनी है, कि तीन बजे की स्पेशल तक सुरती ठोंकिं ठोंकिं के जगार करै के पड़ी ?
शिवकुमारजी!
ReplyDeleteब्लोगेरिया का रोग ऊपर वालो को भी झकड लिया है लगता है ?
ताऊ रामपुरिया said...
भाई ये तो सोचने वाली बात हो गई.
ताऊ! काहे खोपडिया पकडकर बैठन हो ? ये मिश्राजी तो तुम्हे डरा रहे है , तुम्हारा कम्पीटेटर तो तिनो लोक मे नाही। और सुन ताऊ आ बात थारे समझणे कि नाही है - क्यु मिश्राजी ? कही पे ईशारा कही पे निशाना, ये अन्दर कि बात है।
पहिले सोचे कि रात के तीन बजे टिपिया जाये डा.साहब की तरह! लेकिन हम सुर्ती खाते नहीं सो सुबह उठकर फ़ुर्ती से टिपिया रहे हैं! आपकी तपस्या भंग तो नहीं हुई न!
ReplyDeleteशिव भैया गंभीर दिखने की एक्टिंग करते हुये सोचना पड़ेगा।वैसे इंद्र को प्राब्लम रहे तो ज्यादा अच्छा है,पार्टी-शार्टी चल्ती रहेगी सातो दिन्।
ReplyDeleteआईला ......हम तो सोचे थे की हनीमून पे निकले होगे ....आप यहाँ लोगो को मतिभर्म दे रहे है ...कोनू फायदा नही.......न इन्द्र सुधेरेगे न विश्व .....नारद तो वैसे ही अपनी टोली बना रहे है........वो क्या कहते है जी......regards(सुश्री सीमा जी आभार )
ReplyDeleteतो आपने इंद्र से ब्लॉग लिखवा दियाविश्वामित्र से कमेंट करवा करवा के उनकी तपस्या भंग करवा दी ।
ReplyDeleteकथा का सार तपस्या न ही करो तो अच्छा ।
लो भइया, अब तो ब्लॉग का वाइरस देव लोक भी जा पहुंचा। अब हम इंसानों का क्या होगा?
ReplyDeleteसंकेतों में बात न की जाय साफ़ साफ़ बताया जाय कि विश्वामित्र , इन्द्र और चन्द्र हैं कौन लोग
ReplyDeleteये भी खूब रही .....तपस्या भंग करने का आईडिया ....वाह वाह
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