Show me an example

Friday, March 20, 2009

मौजत्व पर धोये...


@mishrashiv I'm reading: मौजत्व पर धोये...Tweet this (ट्वीट करें)!

विषय मिले या ना मिले, खुलकर मौज मनाय
मौज चौगुना हो रहा, विषय अगर मिल जाय

सतत मौज की बात तो, जैसे बरखा मास
आँखें निरखत मौज को देखि देखि आकाश

पूरी फुरसत जो मिले, मौज-पृष्ठ भरि जाय
फुरसत गर आधी मिले, खुला रहे अध्याय

आफिस टाइम कर रहा मौज बीच आघात
आधे में ही मौज को चले छोड़कर भ्रात

मौज-मौज तो सब करें, मौज लेय न कोय
मौज बड़ा ही कठिन है सबसे मौज न होय

मौज मिले तो समझ लें दिन सुन्दर बन जाय
मिले नहीं गर मौज तो भृकुटी फिर तन जाय

गर तनाव हो जाय तो, हो दिमाग जो बंद
मौज-नीति फालो करो, पाओ परमानन्द

उत्तम कछु नहि मौज से, सबका ये आधार
नहीं अगर यह पास तो, ले लो मौज उधार

पाठ पढ़े जो मौज का, ब्रह्मज्ञान वो पाय
जीवन में सबकुछ मिले, पेट-वेट भर जाय

सब तत्वों से बड़ा है दुनियाँ में मौजत्व
इसके आगे फेल हैं जीवन के हर तत्त्व

कानपुरी मौजत्व की बात निराली होय
इसके चक्कर जो पड़े खड़ा-खड़ा वो रोय

30 comments:

  1. सब तत्वों से बड़ा है दुनियाँ में मौजत्व
    इसके आगे फेल हैं जीवन के हर तत्त्व

    कानपुरी मौजत्व की बात निराली होय
    इसके चक्कर जो पड़े खड़ा-खड़ा वो रोय

    अति सुंदरतम मौज गाथा है. धन्यवाद.

    रामराम.

    ReplyDelete
  2. मौजत्व ही नित्य है। शेष सब तो एक लाइना हैं! जो रोज बदलती हैं!

    ReplyDelete
  3. मौज के मोजे पहनकर दौड लगा रहे हैं तो मौज में ही होंगे- चलिए मौज कीजिए:)

    ReplyDelete
  4. कनपुरिया मौज के चक्कर मे आप तो कवि टाइप हो गए

    ReplyDelete
  5. फ्यूचर की कुछ सोच के खूब करो तुम मौज।
    मौज मौज में बढ रही इन्सानों की फौज।।

    ReplyDelete
  6. कनपुरिया मौज के आप असली चेले हैं। कनपुरिया मौज के अथाह समुंदर में डुबकी लगा के कई तर लिए
    बहुत सुंदर पोस्ट

    ReplyDelete
  7. मौज मनाया आपने, कहकर दोहे मस्त।
    कनपुरिया मौजें हुईं, फुरसतिया की पस्त॥

    मौज-कथा हो ली विकट, टूट गया पेटेण्ट।
    शिवकुमार ने उड़ा दिया,फुरसतिया का टेण्ट॥

    घणी बधाई दे रहे रमपुरिया जी संत।
    मौज लिया सिद्धार्थ ने मौजूं देख वसन्त॥ :)

    ReplyDelete
  8. रोते रोते लिख रहे हैं:

    आग लगी पर गाँव में, वो हवा रहे दिखलाये
    बुझ जाये जो आग यह, मौज नहीं आ पाये.

    -कहो जय हो उनकी-शामत आई हो जिनकी!!!!

    ReplyDelete
  9. वाह जी वाह.....बड़ी मौजा ही मौजा पोस्ट है!

    ReplyDelete
  10. बहुत बढिया लिखा है आपने। बधाई।

    ReplyDelete
  11. मौजत्व पर धाये है यह तो।

    ReplyDelete
  12. कानपुरी मौजत्‍व की बात सचमुच निराली है...आप तो पूरी मौज में आ ही गए हैं, आपको पढकर दूसरों की भी मौज ही मौज है।

    ReplyDelete
  13. बहुत बढिया ... मजे ले लेकर लिखा है।

    ReplyDelete
  14. मौजा ही मौजा! इलाहाबादी सिद्धार्थ मौज-मौज में हमारा तम्बूइच उड़ा दिये। क्या इस कार्यवाही में ज्ञानजी की भी मिलीभगत बोले तो मौन सहमति हो सकती है? :)

    ReplyDelete
  15. वाह भई क्या बात कही। अगर जीवन में मौजरस स्थाई भाव में आ जाता तो, मजा ही आ जाता।

    ReplyDelete
  16. मौज ही मौज है. कानपुरिया संगत छोड़ें :)

    ReplyDelete
  17. ह्म्म मामला गंभीर है !!!

    ReplyDelete
  18. बहुत मौज लेके लिखे हैं पंडी जी.

    ReplyDelete
  19. "कानपुरी मौजत्व"इधर भी सरका दीजिये मिश्रा जी

    ReplyDelete
  20. अनूप जी से सहमत :-)

    ReplyDelete
  21. सच मे, मौज का अलग ही अंदाज प्रस्तुत किया आपने ,बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर..

    ReplyDelete
  22. बहुत सुंदर हूण तो मौजां ही मौजां ने अच्‍छा लगा पढकर

    ReplyDelete
  23. भाई सिद्धार्थ की पुनरावृत्ति.
    फुरसतिया भाई रिसियाना चाहें तो जी भर के रिसियाए

    अपने राम चले अब तो कत्तो मौज मनाए.

    कबीरा सारारारारारा........

    ReplyDelete
  24. क्या बात है भाई मौजां ही मौजा ।

    ReplyDelete
  25. परमानन्द से ब्रह्मज्ञान तक मौज पर खूब धोये !

    ReplyDelete
  26. मौज-मौज तो सब करें, मौज लेय न कोय
    मौज बड़ा ही कठिन है सबसे मौज न होय

    वाह वा..शिव बंधू...आप नहीं जानते आप क्या लिख दिए हैं...ये कालजयी दोहा है जिसे आपने क्या खूबसूरती से धोया है...जय हो...बहुत सच्ची बात कह गए हैं आप मौज मौज में...
    विगत दो दिनों से मिष्टी के खोपोली आगमन से ब्लॉग जगत हाशिये पर चला गया था...आज आफिस जा कर याद आया की ब्लॉग जगत भी कुछ है...सो आते ही आपकी पोस्ट पढ़ी और दिल धुल कर साफ़ हो गया...
    नीरज

    ReplyDelete
  27. बाकी बातों (किसीसे मौज लेना)को छोड़ कर यदि रचना के शब्द भाव और शिल्प की बात की जाय तो,निसंदेह इसे सफल जीवन सूत्र का विवेचक अद्वितीय उत्कृष्ट सरस कविता है......मौज छोड़ यदि थोडा समय लगा गंभीरता से कविता लिखने पर ध्यान दोगे तो, तुम जो लिख सकते हो किंचित तुम्हे स्वयं ही उसका रंचमात्र भी भान नहीं है.

    जीवन के विषम परिस्थितियों में फंसे रहकर भी मौज लेना/खुश रहना सबके बस में नहीं होता...खुद हंस पाना ही जब कठिन हो तो औरों के होंठों पर हंसी बिखेरना बहुत बड़ी बात है....

    ऐसे ही रहो हमेशा....खुश रहो....तुम्हारी कविता ने हर्ष के साथ साथ परम सुख दिया....

    ReplyDelete
  28. ekdum majedaar!!

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय