Show me an example

Saturday, March 21, 2009

चुरातत्व हीन पोस्टें


@mishrashiv I'm reading: चुरातत्व हीन पोस्टेंTweet this (ट्वीट करें)!


शिवकुमार मिश्र हलकायमान और हड़कायमान रहते हैं कि उनकी पोस्टें फलाने तिवारी छाप देते हैं अखबार में। छाप देना तो ठीक, उसमें कटपेस्ट का कमाल भी दिखाते हैं। और फिर लीपापोती में बुलशिट टिप्पणी करने की सीनाजोरी भी करते हैं। 

Shiv शिवकुमार मिश्र

हम ने तो कालजयी न लिखने का सवा आने का संकल्प कर रखा है – कुछ ऐसा लिखो ही मत जिसमें चुरातत्व हो। टीएसाआई (थेफ्टोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया) उसपर अपना अधिपत्य ही न जमा सके। जब वह तत्व ही न हो तो कौन छापेगा?!

लिहाजा हमें चिरकुट टाइम्स में अपने ब्लॉग के जिक्र का डंका पीटती पोस्ट भी न बनानी पड़ेंगी और उस अखबार के आठवें कॉलम के कोने का फोटो स्कैन कर ब्लॉग पर ठेलने से भी बच सकेंगे। पर क्या बतायें, शिव ने अपने लेखन का कमाल ऐसा जमा लिया है कि उन्हें पोस्ट की सज्जा या फोटो चेंपने की जरूरत ही नहीं महसूस होती। उनकी पोस्टें कालजयी छाप होती हैं। सुयोधन की डायरी कालान्तर में एमए/एमबीए में पढ़ाई न जाने लगे – बड़ी आशंका है मुझे!

खैर हास्य-व्यंग अपार्ट, मैने पाया है कि अखबार अपना स्पेस भरने को चुरातत्व पर या सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों पर निर्भर रहते हैं। जितना प्रेम से मेहनत हम अपनी छोटी सी पोस्ट पर करते हैं, उसका एक आना भी इन अखबारों के अधिकांश स्क्राइब्स अपनी रिपोर्टिंग/स्टिंग/फीचर में नहीं करते।

मैं फिर चाहूंगा कि शिव कुछ बेकार छाप लेखन करने लगें, जिससे तुलनात्मक रूप से मैचिंग पोस्ट इस ब्लॉग पर ठेलने में मुझे झेंप न महसूस हो।

सुन रहे हो प्यारे भाई!    


24 comments:

  1. इस ब्लॉग की सभी पोस्ट, चित्र, ऑडियो, वीडियो या कोई अन्य सामग्री शिव कुमार मिश्रा और ज्ञानदत्त पाण्डेय की सम्पत्ति है और बिना पूर्व स्वीकृति के उसका पुन: प्रयोग या कॉपी करना वर्जित है। फिर भी; उपयुक्त ब्लॉग/ब्लॉग पोस्ट को हापइर लिंक/लिंक देते हुये छोटे संदर्भ किये जा सकते हैं।


    कमाल है लोग इसे पढ़कर भी नहीं पढ़ते है .

    ReplyDelete
  2. अब इन लोगों का क्या इलाज है ? जबकि स्वकृति मिलने पर ही इस तरह का कार्य किया जाना चाहिए ।

    ReplyDelete
  3. सही वक़्त पर सही पोस्ट ले आए है आप... अनुराग जी से सहमत हू.. लोग ये पढ़कर भी क्यो नही पढ़ते??

    ReplyDelete
  4. लौट कर टिप्पणी करती हूँ..

    ReplyDelete
  5. theek hai, unhen unka kaam karne dijiye aap apna karte hain, aakhir chori hogi tabhi to pulis hogi.

    ReplyDelete
  6. कमाल है कुछ जगह लोगों ने सूचनापट्ट लगा रखे हैं कि इस माल को कोई भी उपयोग कर सकता है, पर लोग करते ही नहीं।
    हमने घोषणा कर रखी है कि जो कोई हमारे मुवक्किल को भगा ले जाना चाहे ले जाए हमें कोई आपत्ति नहीं। कोई हमारे मुवक्किल पर हाथ डालता ही नहीं है। जो किसी के साथ भाग ले वैसा मुवक्किल चाहिए भी नहीं।

    ReplyDelete
  7. मेरे ब्लॉग से उठा कर कोई क्यों नहीं छापता? :)

    ReplyDelete
  8. संजय बेंगाणी said...
    मेरे ब्लॉग से उठा कर कोई क्यों नहीं छापता? :)

    मैं भी बरसों से इसी बात से परेशान हूं, कभी ना तो कोई हमारे ब्लॉग के पोस्ट चोरी कर ब्लॉग में छापता है ना कोई अखबार में।
    इतनी सारी कालजयी पोस्ट्स होने के बावजूद!!!

    ReplyDelete
  9. देखिए ज्ञान जी! असल बात ये है कि कोई ढंग का सम्पादक आप्ंको देख नहीं रहा है और अगर देख रहा है तो उसकी प्रोफाइल इस बात की इजाजत नहीं दे रही है. बस इसीलिए आप बचे हुए हैं, वरना टीएसआई के दायरे में आ तो आप भी गए हैं. मौका मिलने दीजिए, मैं साबित भी कर दिखाउंगा. एक बात और, दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जो कालजयी हो. अरे जब दुनिया ही कालजयी नहीं तो इसकी कोई चीज़ कैसे कालजयी हो जाएगी. और असल में जो यह मानकर लिखता है, वही सबसे बढिया लिखता है. आप मानते हैं, इसके लिए बधाई.

    ReplyDelete
  10. अब अगर चोरी भी लोग पूछकर करने लगें तब तो चुका। आपकी सिखाई बात से शिवकुमार जी कुछ सीखने से रहे। वे ऐसी ही चोरी करने लायक लिखते रहेंगे। आप कालजयी लेखन का संकल्प नहीं किये लेकिन लिखते कालजयी हैं। लोग इसीलिये चुराते नहीं सोचते हैं जल्दी क्या है आराम से उठा लेंगे!

    ReplyDelete
  11. @ इष्ट देव जी -
    आप अगर कहते हैँ कि थॉट प्रॉसेस में सब कुछ नया हो - तब तो चुरातत्व पर ही टिकी पाई जायेगी यह दुनियाँ।
    खैर आपको बुरा लगा, क्षमाप्रार्थी हूं। आगे अपनी पोस्टों के बारे में और सजग रहूंगा। अपनी मानसिक हलचल ही ठेलूंगा - यह अलग बात है कि हलचल में ही कबाड़/पुराना पढ़ा हो तो कह नहीं सकता। यह तो कई बार लगता है कि अपने में ओरीजनल तो कुछ है नहीं। :(

    ReplyDelete
  12. शिवजी आप तो लिखते रहिये ऐसे ही, युं भी चुराने लायक माल होगा तभी तो कोई चुरायेगा.
    जैसे जैसे चोरी होगा वैसे वैसे ये और फ़ैल कर बढेगा.

    रामराम.

    ReplyDelete
  13. पाण्डेय जी, आपकी राय को मैं शब्दशः फालो करता हूं, इसलिए मैं कुछ लिखता ही नहीं। न रहे बांस, न बजे बांसुरिया:)
    अभी द्विवेदीजी को फिज़ा जैसा मुवक्किल नहीं न मिला वर्ना चांद का कमाल देखते:):)

    ReplyDelete
  14. Microsoft की तर्ज पर शिव जी को भी सोच लेना चाहिये कि अच्छा है कि मेरा माल लोग चोरी न करे पर करना ही है तो मेरे आर्टिकल की ही करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों में इसी का प्रचार हो । भाई चोरी करने के लायक (कीमती) है तभी तो चुराया जाता है ।

    ReplyDelete
  15. हम तो कालजयी के बजाय मालजयी लिखना चाहते हैं। लेकिन उतने काबिल ही नहीं हैं। सुना है अखबारों में छपने पर माल मिलता है लेकिन चुरातत्व से नहीं। शायद चुरमुरा तत्व से। चटक मसालेदार टाइप से।

    ये अखबारवाले चुरातत्व को मसालेदार बनाने के लिए काट-पीट की कला सीख गये हैं। अब शिव भैया को इससे एतराज है तो वे उन्हें मेरी ओर रेफ़र कर दें। सच में, मैं बुरा नहीं मानूंगा।

    ReplyDelete
  16. अनुरागजी कहते हैं: 'कमाल है लोग इसे पढ़कर भी नहीं पढ़ते है .'
    मुझे एक लाइन याद आ रही है: 'ताला शरीफों के लिए होता है ! चोरों के लिए नहीं, ताला अक्सर चोर को निमंत्रण देता है... घर का मालिक कहीं बाहर गया हुआ है.'

    ReplyDelete
  17. ये चुरातत्व की परेशानी तो तभी परेशान करनी चाहिए अगर आप आने विचारों इत्यादि से धनीकरण करना चाहते हैं अन्यथा छापने दीजिये लोगों को आपका मैटेरीअल। एक तरीके से आपकी लोकप्रियता का प्रतीक ही है...मेरे हिसाब से इसके बारे में चिंता करके कोई लाभ नही है...उद्देश्य है की लोगो तक विचार पहुंचे अब वो एक माध्यम से या दूसरे, क्या फरक पड़ता है...

    ReplyDelete
  18. मै भी डॉ अनुराग जी के विचार से सहमत हूँ ,लेकिन क्या किया जाये चाहे जितना प्रवचन दिया जाय जिसको इसकी लत लग चुकी है नहीं सुधरने वाला .

    ReplyDelete
  19. बहुत बढ़िया आपके चिठ्ठे की चर्चा समयचक्र में आज

    ReplyDelete
  20. अखबारों में न कुछ मौलिक होता है, न ही मौलिकता का दावा किया जाता है। अखबारों में संपादकीय विभाग की डेस्‍क पर काम करनेवाले लोग कई तरह के स्रोतों से सूचनाएं एकत्र कर खबर या आलेख तैयार करते हैं। उन स्रोतों में समाचार एजेंसियां, संबंधित अखबार के निजी संवाददाता, सूचनापरक वेबसाइटें, टीवी प्रसारण, प्रेस विज्ञप्तियां, अन्‍य अखबारों की खबरें आदि सभी शामिल हैं। आजकल अखबारों के कई संस्‍करण निकलते हैं और बहुत कम समय में सारी चीजें परोसनी होती हैं। समयाभाव में कई बार दूसरे अखबारों की खबरों को मामूली परिवर्तन के साथ कटपेस्‍ट कर भी काम चला लिया जाता है। गलत होते हुए भी पेशागत मजबूरी में ऐसा हर अखबार में होता है।
    लेकिन जहां तक ब्‍लॉग की बात है तो यह संबंधित लेखक का एक तरह से निजी दस्‍तावेज है। ब्‍लॉगलेखक की अनुमति के बिना किसी लेख को कहीं पुन:प्रस्‍तुत करना बौद्धिक चोरी का मामला है और निन्‍दनीय है।

    ReplyDelete
  21. "चुरातत्व"

    वाह वाह!! इसी तरह से अगले पच्चीस साल और ब्लागरी कीजियेगा, हिन्दी में कम से कम पच्चीस सौ नये शब्द और पच्चीस हजार उपशब्द जुड जायेंगे!!!

    सस्नेह -- शास्त्री

    ReplyDelete
  22. हम कुछ सिरिअस टाईप टिपियाने के मूड में हैं...देखिये ब्लॉग पर कोई ब्लोग्गर अपनी पोस्ट क्यूँ छापता है? इसलिए की लोग उसे पढें...अगर ये बात नहीं होती तो लोग अपनी भडांस बात रूम की दीवारों पर लिख कर निकाल लेते...अब किसी अखबार वाले ने आप के ब्लॉग से चुरा के कुछ छाप दिया है तो वो बहुत से लोगों की नज़रों से गुजरेगा...याने आपका लिखा बहुत लोग पढेंगे बिना ये जाने की ये किसने लिखा है...हाँ अगर आपका उद्धेश्य लिख कर नाम कमाना है तो परेशानी हो सकती है... लेकिन अगर आपके लिखने का उद्धेश्य अपनी बात लोगों तक पहुँचाना है तो परेशानी नहीं होनी चाहिए...क्यूँ गलत बात कह दी? नहीं न...तो दो ताली...
    नीरज

    ReplyDelete
  23. समझ में नहीं आ रहा की खेद करूँ या हर्ष.....

    तुम्हारी बातें,कईयों तक पहुंचे,इससे हर्ष का विषय और क्या हो सकता है...परन्तु प्रिंट मिडिया का जो तानाशाही रवैया है,वह भी किसी हालत में स्वीकार्य नहीं है......
    पता नहीं क्यों उन्हें लगता है वे कुछ भी कर सकते हैं और यदि वे किसी को समाचारपत्र में स्थान देते हैं तो उसे कृत्य कृत्य कर देते हैं,उसपर बहुत बड़ा उपकार करते हैं....
    उन्हें धमकाकर अच्चा ही किया,उम्मीद है आगे से वे सचेत रहेंगे...

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय