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Monday, March 23, 2009

इलाके के लोग हमें पहचानते हैं.....


@mishrashiv I'm reading: इलाके के लोग हमें पहचानते हैं.....Tweet this (ट्वीट करें)!

भारतीय चुनावों का इतिहास बहुत गौरवशाली रहा है. यह बात विद्वान बताते हैं. वैसे विद्वानों की मानें तो इतिहास ही हमेशा गौरवशाली रहता है. वर्तमान तो ख़तम और भविष्य खतम-तम रहता है. अब जो चीज गौरवशाली रहेगी, उससे तमाम किस्से वगैरह जुड़े ही रहेंगे. लिहाजा भारतीय चुनाव और लोकतंत्र में भी किस्से-कहानियों की भरमार है.

पुराने चुनावों को ही ले लीजिये. पहले सांसद बनने के इच्छुक नेता पार्टी अध्यक्ष के पास जाते थे. अध्यक्ष जी से कहते थे; "महोदय, हमें सासाराम से ही टिकट चाहिए."

अध्यक्ष जी के पूछने पर कि सासाराम से ही क्यों टिकट चाहिए, नेता जी बताते थे कि; "वो इसलिए महोदय, कि सासाराम में हमें सब जानते हैं. इलाके के लोग हमें पहचानते हैं."

कालांतर में कुछ वर्षों बाद ही भारतीय लोकतंत्र की 'पट-कथा' से यह सीन लुप्त हो गया. बाद में ऐसी कथा लिखी जाने लगी कि वोटर पटने से इनकार करने लगा. उनदिनों सांसद बनने का इच्छुक नेता पार्टी अध्यक्ष के पास जाता तो कहता; "महोदय हमें सासाराम से टिकट मत दीजिये."

अध्यक्ष जी के पूछने पर कि सासाराम से टिकट क्यों नहीं चाहिए, नेता जी बताते कि; "वो क्या है महोदय, सासाराम में हमें सब जानते हैं. इलाके के लोग हमें पहचानते हैं. इसलिए वहां से टिकट नहीं चाहिए हमें. आप चाहें तो हमें अंडमान का टिकट दे दीजिये. हम अंडमान से चुनाव भिड लेंगे लेकिन सासाराम से भिड़ने की सजा न दें प्रभो."

वैसे यह दौर भी ज्यादा दिनों तक नहीं चला. अगर चलता तो हम देख पाते कि सासाराम के भवानी पाण्डेय उर्फ़ राजा जी अंडमान से चुनाव लड़ रहे हैं. वहां के आदिवासियों को पटाते हुए कह रहे होते; "हम आपलोगों से वादा करते हैं कि आपलोगों के लिए हर साल हम मदिरा महोत्सव करवाएंगे. इसके लिए हम सरकार से एक अलग ही डिपार्टमेंट खोलवा देंगे."

अब तो टिकट वितरण समारोह में गजब-गजब सीन होते होंगे. सांसद बनने के इच्छुक नेता अब चिरौरी करते हुए कह रहे होंगे; " आप त कहे रहे कि मिनिमम क्वालिफिकेशन के तौर पर प्रार्थी के लिए तेईस मर्डर और चालीस किडनैपिंग जरूरी है. हमारे बायोडाटा में त हम डिटेल जानकारी दिए रहे कि हमारे ऊपर सत्ताईस मर्डर और उनहत्तर किडनैपिंग का केस चल रहा है. फिर भी आप हमरा अप्लिकेशन रिजेक्ट कर दिए."

अध्यक्ष जी कहते होंगे; "वो सब तो ठीक है. आप के पास मिनिमम क्वालिफिकेशन तो है. लेकिन जिनको टिकट मिल रहा है उनका क्वालिफिकेशन आपसे ज्यादा है. ऊपर से किडनैपिंग का उनका साम्राज्य कलकत्ता तक फैला हुआ है. पिछले साल ही उन्होंने कलकत्ते से आठ व्यापारी किडनैप करवाए थे. आपका किडनैपिंग साम्राज्य तो केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश तक फैला है. ऐसे में प्रिफरेंस तो उनको मिलना ही था."

कहीं पर सांसद बनने का इच्छुक नेता कहता होगा; "मैंने तो टिकटार्थी के नामों की घोषणा की तारीख से पहले ही पचीस लाख दे दिए थे. फिर भी टिकट महतो जी क्यों मिला?"

अध्यक्ष जी कहते होंगे; "आप पचीस दिए थे. लेकिन उन्होंने पूरे इकतालीस लाख दिए हैं टिकट के लिए. ऐसे में हम उनको टिकट नहीं देते तो उनके साथ अन्याय हो जाता. और लोकतंत्र में हम सबकुछ बर्दाश्त कर लेंगे लेकिन अन्याय कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे."

कहीं पार्टी की चुनाव समिति के संयोजक कह रहे होंगे; "मैडम, ये फितूर जी चाहते हैं कि वे हमारी पार्टी में शामिल होकर नेता-गति को प्राप्त हो लें. आपका क्या कहना है? वैसे, मैडम पढ़े-लिखे आदमी हैं. पार्टी की ईमेज बनाने के काम आयेंगे."

"इनको कहीं से चुनाव लड़ने का तजुर्बा है?"; मैडम पूछती होंगी.

"काहे का तजुर्बा, मैडम? पिछले पचीस सालों से भारत में ही नहीं हैं. लेकिन चुनाव और लोकतंत्र पर किताब-विताब लिखा है, मैडम इन्होंने. हाँ, चुंनाव से याद आया मैडम, इन्होंने य़ूनाईटेड नेशन्स के सेक्रेटरी जनरल का चुनाव लड़ा था. देखा जाय तो तजुर्बा तो है, मैडम"; संयोजक जी बताते होंगे.

मैडम बोलती होंगी; "ठीक है. तब दे दीजिये."

"कहाँ का टिकट दूं मैडम?"; संयोजक पूछते होंगे.

मैडम सुनकर कहती होंगी; "कहीं से भी दे दीजिये. लेकिन यूपी, बिहार, दिल्ली वगैरह से मत दीजियेगा. जमानत जप्त हो जायेगी. एक काम कीजिये. इनको साउथ से कहीं का टिकट थमा दो. वैसे भी जीतना तो है नहीं, ऐसे में वहां का टिकट थमाओ जो जगह पढ़े-लिखे लोगों की चारागाह हो."

फितूर साहब को टिकट मिल जाता होगा. फितूर साहब त्रिवेंदम से चुनाव लड़ने के लिए नई टाई की खरीद के लिए निकल जाते होंगे.

कहीं-कहीं ऐसा भी सीन होता होगा.

संयोजक जी पार्टी अध्यक्ष के पास जाते होंगे. कहते होंगे; "अरे ऊ टिकट मांग रहा है."

अध्यक्ष जी कहते होंगे; "ऊ माने कौन?"

संयोजक कहते होंगे; "अरे ओही, रतीराम. आपके ऊपर चालीसा लिखा था न. ओही."

अध्यक्ष जी पूछते होंगे; "हमरे ऊपर त हर साले कोई न कोई चालीसा लिखता रहता है. ई कौन वाला है?"

संयोजक जी कहते होंगे; "अरे ओही, जिसको आप होल मीडिया के सामने 'आज का दिनकर' का उपाधी दिए थे."

अध्यक्ष जी कहते होंगे; "अरे उसको त पक्का ही टिकट दो. जो आदमी हमरे ऊपर इतना बढ़िया चालीसा लिख सकता है, उसको समाज को बदलने में जरा भी टाइम नहीं लगेगा."

'आज के दिनकर' को टिकट मिल जायेगा. वे दूसरे दिन से ही 'बन्दरकाण्ड' की रचना शुरू कर देंगे.

14 comments:

  1. अगर किसी के पास सिक्स सेंस है तो वो हमारे पास है...पूछिए कैसे...आप न भी पूछें तो भी हम बताये बिना मांगे थोडी...हम मिष्टी को घुमाने वाशी चले आये साथ में लेप टाप रखे क्यूँ की हमें मालूम था की आप पोस्ट लिखे बिगैर आज मानेंगे नहीं...मिष्टी तो रास्ते में सो गयी और हम जब अभी लेपटाप खोले तो देखा की हमारा सिक्स सेंस काम सही कर रहा है...ये सूचना आप सब पार्टी लीडर्स तक पहुंचा दें तो अपनी ये दूकान चल निकलेगी...पहले से ही बता देंगे की कौन कहाँ से जीतने या हारने वाला है... जो दक्षिणा मिलेगी इस काम की उसे आधा आधा बाँट लेंगे...ईमानदारी से...हमारे सिक्स सेंस की तरह आप की ये पोस्ट भी जोरदार है.

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  2. @ नीरज जी

    ये आधा आधा नही चलेगा . तीन हिस्से करने पडॆंगे. अगर ऐसे ही हम छोड देंगे तो हमारी भैंसो को क्या खिलायेंगे?

    हमारा लठ्ठ और भैंस शिवजी मिश्रा के एजेंडे मे बहुत पहले ही शामिल है.

    बंटवारा हमारे फ़ार्मुले से ही होगा.:)

    रामराम.

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  3. 'आज के दिनकर' को टिकट मिल जायेगा. वे दूसरे दिन से ही 'बन्दरकाण्ड' की रचना शुरू कर देंगे."

    सत्य वचन । इस काण्ड के बारे में बड़ी उत्सुकता है हमें ।

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  4. बिलकुल सत्य और सटीक कहा....यही तो है अवस्था आज की....

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  5. *"विद्वानों की मानें तो इतिहास ही हमेशा गौरवशाली रहता है. वर्तमान तो ख़तम "*
    तभी तो यह तम मिटाने के आज के दिनकर की आवश्यकता है ना:)

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  6. ये तो बहुत धांसू वैज्ञानिक फ़ारमूला बता दिये टिकट बांटने का। इससे अच्छा और का हो सकता है जी भारतीय डेमोक्रेसी के लिये?

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  7. अध्यक्ष महोदय
    आप की ये रचना पढ़ कर हम भी बहुत प्रेरित हो गये मतबल अब हम भी सोच रहे हैं कि चुनाव में हाथ आजमा लिया जाए। हमका भी एक टिकट दिया जाये, हमरा मिनिमम क्वालिफ़िकेशन ये है कि हमें ब्लोगजगत में कोई नहीं जानता तो सारे वोट हमको ही मिलेगें न…

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  8. अईसे कईसे कोई टिकट ले लेगा.. हमने मैडम जी के लिए होली पर ब्लॉगरो से बनवाकर पेशल (कृपया स्पेशल पढ़े) गुझिया भेजी थी.. एक एक गुझिया के अंदर स्वाद बढ़ाने के लिए हज़ार हज़ार के नोट डाल रखे थे.. इतनी स्वादिष्ट गुझिया खाकर भी हमे टिकट नही मिले तो नालत (कृपया लानत पढ़े) है ब्लॉगरो की बनाई गुझिया पर..
    .
    हम अभी और इसी वक़्त मैडम जी के प्रति बागी होते है और विपक्ष के प्रति हृदय परिवर्तन करते है.. हाँ नही तो.. :)

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  9. अच्छा यह बताओ कि हमें अगर चुनाव लड़ना हो तो कहां से लड़ें? जिससे हार कम से कम वोटान्तर से हो! :)

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  10. ज्ञान दा, आप सासाराम से ही चुनाव लड़ने आ जाइए। मैं वोटर हूं इस निर्वाचनक्षेत्र का, मेरा वोट तो पक्‍का समझिए :)

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  11. इ पढ़ के कौनो आपको भी टिकट थमा देगा त फेरा में पड़ जाइयेगा :-)

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  12. अति ही उत्तम महराज! मज़ा आ गया. भारत के संसदीय लोकतंत्र का इससे बढिया खाचा खीच पाना मुश्किल है.

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  13. समय की सच्चाई पर
    सार्थक दृष्टि
    पर सरस शैली ने उसे
    सहज ग्राह्य भी बना दिया.
    ====================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय