आज पढ़िए युवराज दुर्योधन की डायरी का वह पेज जिसमें उन्होंने मामाश्री शकुनि द्बारा भेद-नीति को एक नया ही आयाम दिए जाने के बारे में लिखा है. कहते है यह प्रसंग महाभारत के प्रथम संस्करण में था. बाद के संस्करणों से इस प्रसंग को निकाल दिया गया. इतिहास में से बहुत सारा कुछ निकलता रहता है. कभी-कभी कुछ जुड़ भी जाता है. यह प्रसंग उन्ही में से एक है.
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धन्य है मामाश्री भी. हलचल मचवाना कोई उनसे सीखे. सच कहें तो उनसे सीखने के लिए क्या कुछ नहीं है इस संसार में. प्रेस मैनेजमेंट से लेकर पितामह मैनेजमेंट तक, कोई ऐसी बात नहीं है जिसे मामाश्री मैनेज नहीं कर सकें. माताश्री के तथाकथित विचारों की काट से लेकर चचा विदुर की खाट तक, मामाश्री सबकुछ खड़ी कर सकते हैं.
कभी-कभी लगता है जैसे ये नहीं होते तो पृथ्वी रसातल में चली जाती.
परसों की ही बात ले लो. जैसे ही गुप्तचरों के एक ग्रुप ने फील्ड से वापस आकर रिपोर्ट दी कि कुरुक्षेत्र में हमारी हार हो सकती है, हमारा तो दिमाग घूम गया. एक मिनट के लिए लगा कि इतनी मेहनत सब बेकार चली जायेगी? क्या-क्या नहीं किया? द्वारका जाकर केशव की सेना माँगी. तिकड़म लगाकर मद्र नरेश महाराज शल्य को अपनी तरफ ले आया. कर्ण को पटाया. न जाने कितने पापड़ बेले. लेकिन गुप्तचरों के द्बारा इस तरह का सन्देश लाने से तो कुछ समय के लिए मेरा हर्ट का टुकड़ा-टुकड़ा हो गया.
जहाँ गुप्तचरों द्बारा दी गई सूचना से मैं हलकान हुआ जा रहा था, वहीँ मामाश्री बिना किसी टेंशन के बैठे थे. मैंने उनसे टेंशन न करने का कारण पूछा तो बोले; "चिंता तो चिता से भी डेंजर होती है पुत्र दुर्योधन."
गजब आदमी हैं. इन्हें किसी बात का टेंशन ही नहीं रहता. वैसे भी ठीक ही है. जो आदमी हमेशा दूसरों को टेंशनग्रस्त रखे, उसे किस बात की टेंशन?
फिर भी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय. मैंने जब अपनी बात रखी तो बोले; "अब तो युद्ध की तैयारी पूरी हो चुकी है भांजे, अब क्या किया जा सकता है? वैसे भी तमाम नरेश, रथी, अधिरथी, महारथी वगैरह तो अपना-अपना समर्थन दोनों दलों को दे ही चुके हैं."
जब मैंने पूछा कि क्या अब कोई उपाय नहीं है तो बोले; "ऐसा कैसे हो सकता है? मेरे रहते उपाय न रहे ऐसा सपने में भी न सोचना वत्स."
लो कर लो बात. जब उपाय है तो उसे बताईये. काहे फूटेज खा रहे हैं. मुझे लगता है कि ज्ञानी और विद्वान टाइप लोग कोई उपाय तुंरत बता दें तो उनका महत्व कम हो जाता है. इसीलिए मामाश्री भी इतनी भूमिका बाँध रहे हैं.
लेकिन जब उन्होंने उपाय बताया तो मैं दंग रहा गया.
कुछ देर तक आँखें बंद रखने के बाद अचानक ध्यान-मुद्रा में ही कहना शुरू किया. बोले; "साम, दाम, दंड वगैरह के लिए समय भले ही चला गया हो वत्स दुर्योधन लेकिन भेद के लिए समय कभी नहीं जाता. इसलिए अब भेद का सहारा लेना ही नीतिगत सही होगा."
मैं सोच रहा था कि भेद कहाँ से लायेंगे?
शायद मेरी सोच को ताड़ गए. मुझे देखते ही बोले; "यही सोच रहे हो न वत्स कि मैं क्या कहने वाला हूँ? तो सुनो. भेद-नीति के तहत कल सुबह ही तुम एक प्रेस कांफ्रेंस कर डालो."
जब मैंने पूछा कि मुझे प्रेस कांफ्रेंस में बोलना क्या है तो बोले; "मेरी बात ध्यान देकर सुनो वत्स. प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत में ही पत्रकारों से कहो कि बलराम, जो अभी तक निष्पक्ष थे, अब हमारी तरफ से लड़ेंगे."
मैंने जब इस बात पर शंका जाहिर की, कि अगर पत्रकार डिटेल मांगेंगे तो मैं क्या कहूँगा तो बोले; "तुम्हें केवल इतना कहना है कि बलराम जी से हमारी बात हुई है. उन्होंने हमें ही समर्थन देने का वादा किया है." आगे बोले; "और लगे हाथ पत्रकारों को यह भी बता देना कि अभी तक खुद को निष्पक्ष बताने वाले विदर्भ नरेश रुक्मी भी अब हमारी तरफ से लड़ेंगे."
क्या कांफिडेंस है इनका. मान गए इन्हें. मैंने जब उनसे बहस करनी चाही तो बोले; "कल सुबह प्रेस कांफ्रेंस में ये बात तुम बोलना. फिर में दोपहर में एक प्रेस कांफ्रेंस दुशासन से करवा दूंगा. वो भी यही बात बोलेगा. शाम को टेलीविजन के पैनल डिस्कशन में एक चैनल पर जयद्रथ को और दूसरे पर कर्ण से भी यही बात कहलवा देंगे. बस इतने में अपना काम बन जाएगा."
मैंने जब फिर से शक जाहिर किया तो बोले; "तुम डरते बहुत हो पुत्र दुर्योधन. मैं तो सोच रहा हूँ कि दो दिन बाद तुम्ही से फिर एक प्रेस कांफ्रेंस करवा दूँ. उसमें तुम पत्रकारों को बताना कि जब से बलराम और विदर्भ नरेश रुक्मि ने हमारी तरफ से लड़ने के लिए हामी भरी है, खुद सात्यकि, महाराज विराट और शिखंडी तक अपने स्टैंड पर पुनः विचार करने लगे हैं. इन लोगों से हमारे योद्धा संपर्क बनाये हुए हैं. ये हमारी तरफ से लड़ेंगे."
बाप रे बाप. मान गए मामाश्री को.
जब से मैंने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर प्रेस को बताया है कि बलराम और विदर्भ नरेश महाराज रुक्मि हमारी तरफ से लड़ेंगे तभी से बवाल हो गया है. एक बार तो लोगों ने मेरी बात पर शक जाहिर किया. लेकिन जब मेरी दी हुई बाइट्स को मामाश्री ने 'अपने चैनल' पर दिन भर चलवा दिया तो शक-सुबो की कोई गुन्जाईस ही नहीं रही.
उसके बाद तो बवाल हो गया. मीडिया में एक ही सवाल. जनता भी परेशान सी यही पूछ रही है कि बलराम ने ये क्या कर डाला? उधर पांडव बार-बार बलराम से पूछ रहे हैं कि क्या सच है? खुद बलराम कल दोपहर से ही हलकान हुए जगह-जगह कैमरे के सामने मेरी बात को डिनाय कर रहे हैं.
तेरह चैनलों पर तो खुद महाराज रुक्मि सफाई दे चुके हैं कि वे हमारी तरफ से नहीं लड़ेंगे लेकिन कोई उनकी बात मानने के लिए तैयार ही नहीं है.
अब तो पांडव भी सकते में आ गए हैं. जब बलराम और महाराज रुक्मि को लेकर ये हाल है तो कल जब प्रेस कांफ्रेंस में ये बताऊँगा कि शिखंडी, विराट और सात्यकि वगैरह हमारी तरफ से लड़ेंगे तो न जाने क्या हो जाएगा? पूरा हड्कम्पे मच जाएगा.
मान गए मामाश्री को. इनका बस चले तो मुझसे प्रेस कांफ्रेंस में यहाँ तक कहलवा दें कि केशव ने हमारी तरफ से लड़ने का फैसला किया है.
धन्य है भेद-नीति. मामाश्री के लिए एक ठो नारा लगाने का मन कर रहा है. बाहर जाकर तो बोल नहीं सकते. डायरिये में लिख देते हैं...
जब तक सूरज चाँद रहेगा
मामा तेरा नाम रहेगा
Monday, May 11, 2009
दुर्योधन की डायरी - पेज ३४५९
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दुर्योधन की डायरी
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बहुत करारा पेज लाये है शिव भाई आप.. और लगता है आपने छापने से पहले दिल्ली में बटंवा भी दिया... :)
ReplyDeleteआज कल मामा लोगों का नुस्खा फैल होने लगा है।
ReplyDeleteतेरह चैनलों पर तो खुद महाराज रुक्मि सफाई दे चुके हैं कि वे हमारी तरफ से नहीं लड़ेंगे लेकिन कोई उनकी बात मानने के लिए तैयार ही नहीं है.
ReplyDeleteबहुत लाजवाब व्यंग..लिखा. आज अचानक दुर्योधन दादा की डायरी देख कर मन प्रशन्न हो गया. काहे से कि दुर्योधन दादा के बिना दुनियां फ़ीकी फ़ीकी लग लगने लगती है.:)
रामराम.
मान गए मामाश्री को. इनका बस चले तो मुझसे प्रेस कांफ्रेंस में यहाँ तक कहलवा दें कि केशव ने हमारी तरफ से लड़ने का फैसला किया है.
ReplyDeleteमान गये आपको भी दुर्योधन जी ।
भाई पीठ के दर्द से परेसान थे, दिल्ली से कब आयें. दुर्योधन पर रहम करो, नहीं तो कभी मामा की भेद नीति से माया की माया नीति सकते में नहीं आ जाये, बहुते अच्हा लिखे हो ---
ReplyDelete"अब तो पांडव भी सकते में आ गए हैं. जब बलराम और महाराज रुक्मि को लेकर ये हाल है तो कल जब प्रेस कांफ्रेंस में ये बताऊँगा कि शिखंडी, विराट और सात्यकि वगैरह हमारी तरफ से लड़ेंगे तो न जाने क्या हो जाएगा? पूरा हड्कम्पे मच जाएगा"
जमाना ही मामा लोगन का है. कल तक कह रहे थे, केशव का हाथ थामे बलराम साम्प्रदायिक है. हमसे हाथ मिलाते ही धरम निरपेक्ष हो गए....
ReplyDeleteहर बार की तरह मारक....
वाह वो मामा का चैनल है? हमें तो पता ही नहीं था. मान गए... क्या बेजोड़ आईडिया है !
ReplyDeletemama aur italian ho to kya baat hai??
ReplyDeleteदेख लीजिये मिश्रा जी ....किसी चैनल वाले ने आईडिया उठा लिया....तो ?
ReplyDeleteकहाँ दूर से निशाना लगाया है कि आनन्द आ गया. धन्य है भेद-नीति.
ReplyDeleteये हुई ना बात ...इसे कहते हैँ आइडीया सर जी ..दूर्योधन की डायरी ज़िँदाबाद !
ReplyDelete- लावण्या
पहले तो इतने दिनों बाद इस डायरी के पन्ने फिर से खोलने का शुक्रिया शिवकुमार जी
ReplyDeleteऔर जल्द से इस आइडिये को अपने नाम से पंजीकृत करवा लें...बहुत सारे लोग टीपने वाले हैं
अब देख लीजिये, मामाजी की भेद नीति के बावजूद सुयोधन हारा था और कस के हारा था!
ReplyDeleteक्या यह भविष्यवाणी करती पोस्ट है?!
पिछले चुनाव मे मामा के आईडिया को जया मौसी ने फ़ालो किया था।उन्होने तो अपने चैनल पर हार जाने तक़ अपनी जीत प्रसारित करवाई थी मगर अफ़सोस मामाजी के जीजाजी टाईप के उनके दुश्मन ने जीत हासिल कर ली थी।
ReplyDeleteमामाजी ने घाट घाट का पानी पिया है.. वैसे देश मामा लोगन के भरोसे ही चल रहा है..
ReplyDeleteमान गए आपकी पारखी नज़र और लेखन शैली को....वाह...वैसे माने तो पहले भी हुए थे लेकिन एक बार फिर मान गए कहने में क्या हर्ज़ है...
ReplyDeleteआप से एक गुजारिश है...सही समझे आमिर खान के कमीज़ उतार कर गाये गाने "है गुजारिश..."( फिल्म:गजनी) से ही प्रभावित हो कर "गुजारिश" शब्द का प्रयोग कर रहे हैं....गुजारिश माने रिक्वेस्ट...प्रार्थना...वो ये की आप एक कथा को समाप्त करके ही दूसरी कथा शुरू किया करें....ये महाभारत वाली स्टाईल ना चलाया करें...जिसमें एक कथा में दूसरी लिपटी रहती है...देखिये हम सेंट मोला की तीसरी कड़ी की प्रतीक्षा में थे की आपने दुर्योधन को बीच में टपका दिया...क्या है की कथा की काँटीनुएटी टूटती है....
हम को गुजारिश करनी थी सो कर दी अब आप पर है माने ना मानें....
नीरज
ग्रेट दुर्योधन और मामाजी जी तुम्हारे कलम से चिरकाल के लिए अमर हो गए हैं...उनकी बेतहाशा यश वृद्धि हुई है.
ReplyDeleteलेकिन भाई, तुमने राम अवतार जी की कथा में ऐसे बाँधा कि अभी उनकी ही प्रतीक्षा अधिक थी...
मेरा अनुरोध है कि कुछ समय के लिए दुर्योधन जी को सुस्ताकर वर्तमान भारतीय राजनीति का ड्रामा देखने और उससे सीखने समझने दो और रामावतार जी की कथा को आगे बढाओ..
ठीक कह रहे हैं. हमके तो बुझाता है जे इस भेदनीति का असर 16 तारीख से पहिलहीं लौकने भी लगा है.
ReplyDeleteमामा प्रकारान्तर से साला भी होता है। एक पुरानी कहावत थी ‘घर बिगाड़ा आलों नें परिवार बिगाड़ा सालों नें, जो अक्सर सही सिद्ध होती दिखी है। वैसे भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मचानें में उत्तर पश्चिम दिशा का विशेष योगदान रहा है। पहले कैकेयी फिर गान्धारी और अब मैडम माइनो। एक बार लंका काण्ड़ हुआ दूसरी बार महाभारत हुई अब क्या होगा? यह भविष्य बताएगा या Q मामा, कौन जानता है?
ReplyDeleteशिव जी,
ReplyDeleteदुर्योधन दिल्ली की तैयारी कर रहा है या कुरुक्षेत्र जीतने की या फिर हस्तिनापुर का रजा बनने की?
एकदम मस्त व्यंग!!!
इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय जोडने वाले शिव ‘व्यास’ को नमन:)
ReplyDeleteमिश्र जी धारदार व्यंग्य के लिए बधाई स्वीकार करिये । हालांकि दिल्ली में मामा नहीं शीला मामी आज कल ज्यादा ज़ोर मार रही हैं ।
ReplyDeleteकभी हमारी तरफ भी तशरीफ का टोकरा लेकर पधारिये ।
shiv kumkar ji
ReplyDeleteduryodhan ka ye page pasand aaya .. sahi hai zamana aisa hi ho chahla hai ..
itne acche lekhan ke liye badhai
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay