Show me an example

Friday, December 18, 2009

सरकार के चिंता कार्यक्रम का लेखा-जोखा


@mishrashiv I'm reading: सरकार के चिंता कार्यक्रम का लेखा-जोखाTweet this (ट्वीट करें)!

जैसा कि आप जानते हैं, सरकार का काम करने का अपना तरीका है. इस तरीके में सबसे ऊपर है चिंता व्यक्त करना. जब भी सरकार को यह साबित करना रहता है कि वो कुछ कर रही है, उसके मंत्री वगैरह किसी मुद्दे पर चिंता व्यक्त कर लेते हैं. सरकार ने चिंता को बढ़ावा देने के लिए बाकायदा एक कैबिनेट कमिटी भी बना रखी है. यह कैबिनेट कमिटी तमाम मंत्रियों के चिंता का लेखा-जोखा रखती है और समय-समय पर प्रधानमंत्री को भेजती रहती है. पहले यह रिव्यू ऐनुअली होता था. बाद में भूतपूर्व फाइनांस मिनिस्टर ने सुझाव दिया कि क्यों नहीं इसे क्वार्टरली कर दिया जाय. हर क्वार्टर का एक लिमिटेड रिव्यू हो जाएगा.

सरकार की तरफ से चिंता मंत्रालय खोलने का प्रस्ताव भी था लेकिन आस्टेरिटी ड्राइव के चलते ऐसा नहीं किया जा सका.

दिसंबर क्वार्टर का लिमिटेड रिव्यू अभी दो-तीन दिन पहले ही हुआ है. कैबिनेट कमिटी ने रिव्यू की रिपोर्ट प्रधानमंत्री को भेज दिया. क्या कहा आपने? दिसम्बर क्वार्टर अभी ख़तम नहीं हुआ तो रिव्यू कैसे? अरे भैया, समझिये. ये छुट्टियों का मौसम है. ऐसे में पहले ही रिव्यू करना अच्छा रहता. कैबिनेट कमिटी ने बताया कि मार्च क्वार्टर की शुरुआत पंद्रह दिसम्बर से होगी.

रिव्यू की रिपोर्ट हाथ में लिए प्रधानमंत्री अपने निजी सचिव से मुखातिब हैं.

प्रधानमंत्री: भाई, क्या लगा आपको चिंता को बढ़ावा देने वाली कैबिनेट कमिटी की रिपोर्ट पढ़कर?

सचिव : सर, रिपोर्ट तो आपके हाथ में है ही. खुद देख लीजिये. वैसे चिंता व्यक्त करने के पैमाने को देखें तो परफार्मेंस संतोष जनक नहीं है.

प्रधानमन्त्री: क्यों? ऐसा क्यों लगा आपको?

सचिव : सर, मंहगाई को लेकर लोग और विपक्ष इतने महीनों से हलकान है लेकिन वित्तमंत्री ने मंहगाई पर अभी चार-पांच दिन पहले चिंता व्यक्त की है. पहले ही व्यक्त करते तो शायद इतना बवाल नहीं होता.

प्रधानमंत्री: देखिये, वित्तमंत्री इतने अनुभवी हैं. उन्होंने ठीक ही किया जो अब चिंता व्यक्त की.

सचिव : लेकिन सर...

प्रधानमन्त्री: अरे, आप भी समझिये न. पहले ही चिंता व्यक्त कर देते तो लोग कहते कि अब चिंता तो व्यक्त कर दिए हैं तो
मंहगाई रोकने के लिए भी कुछ करिए. ऐसे में उन्होंने यह अच्छा किया जो अब चिंता व्यक्त की. अब कुछ दिनों का समय तो मिलेगा उन्हें. वैसे ये बताइए कि चिंता व्यक्त करने के मामले में हेल्थ मिनिस्टर का परफार्मेंस कैसा है.

सचिव: सर, अच्छा नहीं है. स्वाइन फ्लू को लेकर हंगामे के बाद उन्होंने एक बार भी किसी मुद्दे पर चिंता व्यक्त नहीं की है.

प्रधानमंत्री: ऐसा क्यों? क्या कहते हैं वे?

सचिव: उनका कहना है कि उन्होंने मीडिया में जो यह फैसला सुनाया कि अब से मेडिसिन कम्पनियाँ डाक्टरों को गिफ्ट नहीं दे सकेंगी, उसके बाद हेल्थ केयर को लेकर कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं है. हेल्थ केयर में एक यही समस्या थी, और चूंकि उन्होंने फैसला सुना दिया है तो फिर चिंता व्यक्त करने के लिए उनके पास कोई मुद्दा नहीं है.

प्रधानमंत्री: ठीक है, मैं उनकी बात समझता हूँ लेकिन अगर प्राईमरी हेल्थ केयर को और स्ट्रांग बनाने के बारे में कोई अनाउन्समेंट कर देते तो उसे भी चिंता व्यक्त करना ही माना जा सकता था. खैर, जाने दीजिये. वैसे भी अभी तीन महीने पहले ही वे स्वाइन फ्लू पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं.... अच्छा ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्टर ने पिछले क्वार्टर में किसी मुद्दे पर चिंता व्यक्त की या नहीं?

सचिव: नहीं. यही तो समस्या है. आज कल मीडिया वाले भी मजाक करते हुए पूछते हैं कि क्या बात है, आजकल सरकार के मंत्री पर्याप्त मात्रा में चिंता व्यक्त नहीं कर रहे हैं. ऐसे में जनता के बीच असंतोष उभर सकता है.

प्रधानमंत्री: एक तरह से देखा जाय तो मीडिया वाले भी ठीक ही कह रहे हैं. चिंता व्यक्त करने का कार्यक्रम होते रहना चाहिए. वैसे एच आर डी मिनिस्टर क्या कहते हैं चिंता व्यक्त करने के बारे में?

सचिव: सर, उनका कहना है कि वे अलग तरीके से मंत्रालय चलाना चाहते हैं. पहले ही दसवीं की परीक्षा स्क्रैप करने के बारे में वे अनाउन्समेंट कर चुके हैं. उसके बाद आईआईटी के एंट्रेंस एक्जाम के बारे में भी बोल चुके हैं. अब जो मंत्री इतना बोल चुका है उसके बाद उसके पास बोलने या चिंता व्यक्त करने के लिए और मुद्दा है ही कहाँ?

प्रधानमंत्री: लेकिन उन्हें प्राईमरी एडुकेशन पर एक-दो बार तो चिंता व्यक्त करनी ही चाहिए. उनसे पहले जो मंत्री थे, वे साल में चार बार प्राईमरी एडुकेशन की हालत पर चिंता व्यक्त करते थे.

सचिव: यही तो. उनसे कहा गया तो वे बोले कि इस देश में प्राईमरी एडुकेशन का मुद्दा ही नहीं है. असली मुद्दा हायर एडुकेशन को लेकर है.

प्रधानमंत्री: यह तो ठीक नहीं. गरीबों के लिए काम करने वाली सरकार अगर प्राईमरी एडुकेशन की बात नहीं करेगी तो ये अच्छा साइन नहीं है. और विदेशमंत्री का क्या रिकार्ड रहा पिछले क्वार्टर में?

सचिव: सर, उन्होंने तो एक बार भी चिंता व्यक्त नहीं किया. कैबिनेट कमिटी का मानना है कि जो आदमी फाइव स्टार के प्रेसिडेंशियल स्वीट में रहेगा उसे चिंता छू भी नहीं सकती.

प्रधानमंत्री: अरे भाई, चिंता छूने की बात कौन कर रहा है? चिंतित होने के लिए थोड़ी न कहा जा रहा है. यहाँ तो बात यह है कि चिंता व्यक्त किया कि नहीं?

सचिव: कैसे व्यक्त कर सकते हैं सर? शायद एक कारण यह भी हो सकता है कि वे सचमुच चिंताग्रस्त हों.

प्रधानमंत्री: उन्हें किस बात की चिंता?

सचिव: शायद इसलिए चिंतित हों कि उन्होंने मीडिया के सामने कह दिया था कि होटल का बिल वे खुद पेमेंट करेंगे.

प्रधानमंत्री: हाँ, ये बात हो सकती है. जो आदमी सच में चिंतित रहे तो उसे चिंता व्यक्त करने का समय कैसे मिलेगा? वैसे होम मिनिस्टर ने भी किसी बात पर चिंता व्यक्त किया या नहीं?

सचिव: नहीं सर. वे भी आजकल किसी बात पर चिंता व्यक्त नहीं करते. इनसे अच्छे तो पहले के होम मिनिस्टर थे जो कम से कम कश्मीर घाटी में हो रही हिंसा पर महीने में एक बार चिंता व्यक्त कर लेते थे. वैसे सर, उड़ती खबर सुनी है कि लोग इस बात को लेकर काना-फूसी कर रहे हैं कि बहुत दिन हो गए आपने किसी बात पर चिंता व्यक्त नहीं की.

प्रधानमंत्री: समय भी तो चाहिए न चिंता व्यक्त करने के लिए. पिछले कई महीनों से समय ही नहीं मिला. वैसे कोई मुद्दा सुझाइए तो मैं भी अगले दो-तीन दिन में चिंता व्यक्त कर दूँ. मंहगाई पर कर दूँ?

सचिव: सर, मंहगाई पर तो वित्तमंत्री चिंता व्यक्त कर ही चुके हैं. ऐसे में आप भी व्यक्त कर देंगे तो लोग समझेंगे कि आप उनसे नाराज़ हैं.

प्रधानमंत्री: तो फिर नक्सल समस्या पर कर दूँ.

सचिव: नहीं सर. यह नीतिगत सही नहीं होगा. आप पहले ही नक्सल समस्या पर ४-५ बार चिंता व्यक्त कर चुके हैं. फिर से करेंगे तो लोग सवाल उठा सकते हैं कि कुछ करेंगे भी या फिर केवल चिंता व्यक्त कर के निकल लेंगे.

प्रधानमंत्री: तो फिर एक काम करता हूँ. तेलंगाना के मुद्दे को लेकर जो झमेला हुआ है उसपर चिंता व्यक्त कर दूँ?

सचिव: सर, आपको पार्टी के लीडर के तौर पर चिंता व्यक्त नहीं करनी है. आपको तो प्रधानमंत्री के तौर पर चिंता व्यक्त करनी है. इस मुद्दे पर पार्टी को चिंता व्यक्त करने दीजिये.

प्रधानमंत्री: बड़ा झमेला है. तो क्या कोई मुद्दा नहीं है जिसपर मैं चिंता व्यक्त कर सकूँ?

सचिव: सर, एक मुद्दा है.

प्रधानमंत्री: कौन सा?

सचिव: आप अगर इजाज़त दें तो एक प्रेस नोट इशू कर दूँ?

प्रधानमंत्री: क्या रहेगा उसमें?

सचिव: सर, उसमें रहेगा कि; "पिछले क्वार्टर में सरकार के मंत्रियों ने पर्याप्त मात्रा में चिंता व्यक्त नहीं की. इस मसले को लेकर प्रधानमंत्री ने चिंता व्यक्त किया है."

16 comments:

  1. लो पी एम् के पास चिंता करने को भी कुछ नहीं बचा.. इसलिए शायद कल कोपनहेगन चले गए.. वहा चिंता व्यक्त कर आयेगें...

    ReplyDelete
  2. हम परधान मनतरी के इस बात से सोलहो आने सहमत हैं कि समय भी तो चाहिए न चिंता व्यक्त करने के लिए. यहां पोस्‍ट ठेलने के लिए टाईप करने का समय नहीं मिल रहा है और भाई लोग चिंता मत्रालय बनाने पे तुले हैं. हा हा.

    ReplyDelete
  3. लापतागंज के सीजन टू में होगा.. शिव कुमार मिश्रा की कहानियो का पता..

    ReplyDelete
  4. बहुत चिन्तनीय सोचनीयश्च पोस्ट!
    सरकार को चिन्तामणि होना चाहिये - जितनी चिन्ता उतनी मनी! :)

    ReplyDelete
  5. चिंता "करना" और "व्यक्त" करना में अंतर को इतने सुन्दर ढंग से विवेचित किया तुमने कि क्या कहूँ.....वाह.....
    तुम्हारे ये राजनितिक साक्षात्कार राजनीति शास्त्र की पाठ्य पुस्तक में समाहित होने चाहिए...इन्हें रहते वर्तमान राजनीति का इतिहास जानने के लिए और किसी पाठ्य सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ेगी..

    ReplyDelete
  6. चिंता करने के लिए छुट्टी का प्रावधान होना चाहिए. वर्ना कहाँ से फुर्सत मिलेगी ? बाकी बचा समय तो चिंता के चिंतन में ही निकल जाएगा.

    ReplyDelete
  7. आपसे शिकायत है, हम तो ऐतना चिंतित रहते हैं मन्त्री सन्त्री की चिन्ता में, आप हमारा नाम क्यों नहीं दिये इन चिन्तित लोगों में. हम भी प्रधान जी के साथ हूं चिन्ता व्यक्त करने में.

    ReplyDelete
  8. वाह! बढ़िया लिखा है।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  9. Sabse bada mudda is samay global warming ka hai,shayad isliye manmohan singh copenhagen mein is serious issue par chinta vyakt karne gaye hain!! The last line was the most humurous,GR8 job!!

    ReplyDelete
  10. स्थिति बहुत चिंताजनक है।

    ReplyDelete
  11. चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी:
    पता नहीं आपने हमारे लिए कमेंट बक्सा क्यों बंद कर रखा है, पर हम भी तो छोड़ने वाले नहीं :) "हर क्वार्टर का एक लिमिटेड रिव्यू हो जाएगा.... अच्छा हो कि हर मंत्री को बडे़ बंगले के बदले एक लिमिटेड क्वार्टर दिया जाए :)

    ReplyDelete
  12. प्रधान मंत्री कभी चिंता व्यक्त नहीं करेंगे क्यूँ की वो जानते हैं चिंता चिता सामान है...और अभी वो चिता को दूर रखना चाहते हैं...
    नीरज

    ReplyDelete
  13. सारी समस्याएँ ऐसे ही हल होंगी.
    सरकारी जानकारी लीक होकर मेरे पास आई है कि सरकार ऐसी व्यस्था करने वाली है कि संसद के हर सत्र में रोज सुबह पहले २ मिनिट चिंताएं व्यक्त कर ली जाएँ. और जहाँ जहाँ जन-गन-मन गाया जाये वहाँ भी भारत माता की जय बोलने के बाद २ मिनिट की चिंताए व्यक्त करना कम्पलसरी कर दिया जाये !!

    ReplyDelete
  14. पढ़कर हम भी चिंतामग्न हो गये।

    ReplyDelete
  15. पिछले हफ्ते किसी भी मंत्री का चिन्ता न व्यक्त करना तो हमें भी चिन्ता में डाले दे रहा है..फिर वो तो प्रधान मंत्री हैं और वो भी...... :)

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय