जिन्हें यह शिकायत है कि नए साल का जश्न मनाने का काम हमारी संस्कृति के खिलाफ है उन्हें यह जानने की ज़रुरत है कि नए साल का जश्न हमारी संस्कृति में हज़ारों सालों से मनाया जा रहा है. क्या कहा? विश्वास नहीं होता? पता था यही कहेंगे. इसीलिए तो मैं दुर्योधन की डायरी का वह पेज छाप रहा हूँ जिसमें युवराज नए साल का जश्न मनाने की तैयारी के बारे में लिखते हैं;
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नया साल आने को है. नया साल आने के लिए ही होता है. जाने का काम तो पुराने के जिम्मे है. काश कि ये बात पितामह और चाचा बिदुर जैसे लोग समझ पाते. सालों से जमे हुए हैं. हटने का नाम ही नहीं लेते. कम से कम आते-जाते सालों से ही कुछ सीख लेते. सीख लेते तो दरबार में बैठकर हर काम में टांग नहीं अड़ाते.
रोज नीतिवचन ठेलते रहते हैं. ये करना उचित रहेगा. वो करना अनुचित रहेगा. कदाचित ऐसा करना नीति के विरुद्ध रहेगा. कान पक गए हैं इनलोगों की बातें सुनकर. और इन्हें भी समझने की ज़रूरत है कि अब इनके दिन बायोग्राफी लिखने के हैं. दरबार में बैठकर हर काम में टांग अड़ाने के नहीं.
मैं तो कहता हूँ कि ये लोग पब्लिशर्स खोजें और अपनी-अपनी बायोग्राफी लिखकर मौज लें. पब्लिशर्स नहीं मिलते तो मुझसे कहें. मैं एक पब्लिशिंग हाउस खोल दूँगा. बस ये लोग राज-काज के कामों में दखल देना बंद कर दें. बायोग्राफी लिखने के दिन हैं इनके. ये उन कार्यों में अपना समय दें न. ये बात अलग है कि उनकी बायोग्राफी की वजह से तमाम लोगों की बखिया उधड़ जायेगी.
खैर, ये आने-जाने वाले सालों से कुछ नहीं सीखते तो हम कर भी क्या सकते हैं?
हमें तो नए साल का बेसब्री से इंतजार रहता है. आख़िर नया साल न आए और पुराना न जाए तो पता ही न चले कि पांडवों को अभी कितने वर्ष वनवास में रहना है? पड़े होंगे कहीं भाग्य को रोते. और फिर रोयेंगे क्यों नहीं? किसने कहा था जुआ खेलने के लिए?
जुआ खेला इसलिए वनवास की हवा खानी पडी. जुआ की जगह क्रिकेट खेलते तो ये नौबत नहीं आती. बढ़िया खेलते तो इंडोर्समेंट कंट्रेक्ट्स ऊपर से मिलते. लेकिन फिर सोचता हूँ कि वे तो क्रिकेट खेल लेते लेकिन हम कैसे खेलते? हम तो खेल ही नहीं पाते. आख़िर क्रिकेट इज अ जेंटिलमैन्स गेम.
दुशासन नए साल की तैयारियों में व्यस्त है. व्यस्त तो क्या है, व्यस्तता दिखा रहा है. कभी इधर तो कभी उधर. मदिरा का इंतजाम हुआ कि नहीं? नर्तकियों की लिस्ट फाईनल हुई कि नहीं? काकटेल पार्टी में कौन सी मदिरा का इस्तेमाल होगा? चमकीले कागज़ कहाँ-कहाँ लगने हैं? अतिथियों की लिस्ट रोज माडीफाई हो रही है. नर्तकियों का रोज आडीशन हो रहा है. इसकी तत्परता और मैनेजेरियल स्किल्स देखकर लगता है जैसे गुरु द्रोण ने इसे पार्टी आयोजन पर पी एचडी की डिग्री अपने हाथों से दी थी.
वैसे दुशासन को देखकर आश्वस्त भी हो जाता हूँ कि ये भविष्य में होटल इंडस्ट्री में हाथ आजमा सकता है.
कल उज़बेकिस्तान से पधारी दो नर्तकियों को लेकर आया. कह रहा था ये दोनों वहां की सबसे कुशल नर्तकियां हैं. पोल डांस में माहिर. उनकी फीस के बारे में पूछा तो पता चला कि बहुत पैसा मांगती हैं. कह रही थीं सारा पेमेंट टैक्स फ्री होना चाहिए. उनकी डिमांड सुनकर महाराज भरत की याद आ गई. एक समय था जब उज़बेकिस्तान भी महाराज भरत के राज्य का हिस्सा था. आज रहता तो इन नर्तकियों की हिम्मत नहीं होती इस तरह की डिमांड करने की. लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं?
वैसे इन नर्तकियों की नृत्य प्रतिभा देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई. अब तो मैंने दृढ़ निश्चय किया है कि जब मैं राजा बनूँगा और अपने राज्य का विस्तार एक बार फ़िर से उज़बेकिस्तान तक केवल इसलिए करूंगा क्योंकि वहां की नर्तकियां बहुत कुशल होती हैं.
शाम को कर्ण आकर गया. मैंने नए साल की तैयारियों के बारे में जानकारी देने की कोशिश की तो उसने कोई उत्सुकता ही नहीं दिखाई. पता नहीं कैसा बोर आदमी है. न तो मदिरापान में रूचि है और न ही नाच-गाने में. इसे देखकर तो नया साल भी बोर हो जाता होगा. मैंने रुकने के लिए कहा तो ये कहकर टाल गया कि सुबह-सुबह पिताश्री के दर्शन करने जाना है. रात को पार्टी में देर तक रहेगा तो सुबह आँख नहीं खुलेगी.
खैर, और कर भी क्या सकते है. कभी-कभी तो लगता है कि कितना अच्छा होता अगर कर्ण इन्द्र का पुत्र होता. इन्द्र के गुण इसके अन्दर रहते और इसके साथ नया साल मनाने का मज़ा ही आ जाता.
जयद्रथ भी बहुत खुश है. शाम से ही केश- सज्जा में लगा हुआ है. दर्पण के सामने से हट ही नहीं रहा है. कभी मुकुट को बाईं तरफ़ से देखता है तो कभी दाईं तरफ़ से. शाम से अब तक मोतियों की सत्रह मालाएं बदल चुका है. चार तो आफ्टरसेव ट्राई कर चुका है. उसे देखकर लग रहा है जैसे उसने आज ऐसा नहीं किया तो नया साल आने से मना कर देगा.
दुशासन ने अवन्ती से मशहूर डीजे केतु को बुलाया है. आने के बाद ये डीजे फिल्मी गानों की सीडी परख रहा है. कौन से गाने के बाद कौन सा गाना चलेगा. दुशासन और जयद्रथ ने अपनी-अपनी फरमाईश इसे थमा दी है. आख़िर एक सप्ताह से ये दोनों डांस की प्रक्टिस करते हलकान हुए जा रहे हैं.
कवियों ने भी नए साल के स्वागत में कवितायें लिखनी शुरू कर दी है. इन कवियों को भी लगता है कि ये कविता नहीं लिखेंगे तो नया साल आएगा ही नहीं. ऐसे क्लिष्ट शब्दों का इस्तेमाल करते हैं कि उनके अर्थ खोजने के लिए शब्दकोष की आवश्यकता पड़ती है. नए साल को नव वर्ष कहते हैं. एक कवि ने नए साल के दिनों को नव-कोपल तक बता डाला.
पता नहीं कब तक इन शब्दों और उपमाओं को ढोते रहेंगे? वो भी तब जब परसों ही हस्तिनापुर के सबसे वयोवृद्ध साहित्यकार ने घोषणा कर दी कि इस तरह की उपमाएं और साहित्य अब अजायबघर में रखने की चीजें हो गईं हैं. लेकिन इन कवियों और साहित्यकारों की आंखों पर तो काला चश्मा पड़ा हुआ है.
खैर, हमें क्या? कौन सा हमें कविताओं पर डांस करना है? हमारे लिए अवन्ती का डीजे फिल्मी गाने चुनने में सुबह से ही लगा हुआ है.
हम भी चलते हैं अब. जरा केश-सज्जा वगैरह कर ली जाय. दुशासन आज ही नया बॉडी-शैम्पू लाया है. देखें तो कैसा है?
पुनश्च: अच्छा हुआ आज शाम को सात बजे ही डायरी लिख ली. सोने से पहले लिखने की सोचता तो शायद आज का पेज लिख ही नहीं पाता. आख़िर आज तो सोने का दिन ही नहीं है. आज तो सारी रात जागना है.
Wednesday, December 29, 2010
दुर्योधन की डायरी - पेज २०८०
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज २०८०Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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brilliant one !!
ReplyDeleteइतनी विस्तृत तैयारी तो राष्ट्रमण्डल खेलों की भी नहीं हुयी थी, और एक हम हैं, अपने पूर्वजों से कुछ सीखते ही नहीं।
ReplyDeleteसही है दुर्योधन भाई...
ReplyDeleteखूब मस्ती कर रेला है तू तो..
अपुन को भी इनवाईट कर ना यार....
मजा आया जी..
हमारा मन तो बिना डीजे और बाजा के इस पोस्ट पर ही नाच उठा है....
ReplyDeleteक्या उधेड़ी है...वाह...वाह...वाह...
जियो,जियो,जियो....
`युवराज नए साल का जश्न मनाने की तैयारी ...'
ReplyDeleteये युवराज आज के ज़माने के हैं या महाभारत के:)
क्लासिक, क्लासिक ही होता है. और दुर्योधन की डायरी क्लासिक है. बहुत दिनों के बाद शानदार पन्ने खुले.
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ReplyDeleteदुर्योधन की तैयारी देख कर आनंद आ गया ..इनको लेकर एक सीरियल बनवा लो शिव भैया ...हिट जाएगा !
हार्दिक शुभकामनायें
यु हू ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ युडलई युडलई हू....
ReplyDeleteहैप्पी न्यू यर..... हा हा ही ही
राहत की साँस... नया साल रूका नहीं आ ही गया..
व्यंग्य ने आगे बढ़ते बढ़ते रंग जमा दिया.
नृतकियों के चयन के लिए एक रियालिटी शो का आयोजन करवाना चाहिए था, राजकुमार को. बस यही कमी रह गई थी. कलेंडर वगेरे नहीं छपवा रहे अपने खास मित्रों के लिए, खास प्रकार के?
dev duryodhan ki dairy par ...pitamah/gurudron/kripacharya/karn/evam sakuni ke kya comments rahe honge....chandu chourasiya ko laga kar pata kari jaye........
ReplyDeletejhakkass.....
pranam.
परम आदरणीय दुर्योधन भाई साहब की डायरी में क्रिकेट, काकटेल,पी.एच.डी., होटल इंडस्ट्री, पोल डांस,आफ्टर शेव, डी.जे और बोडी शेम्पू जैसे शब्द पढ़ कर अपने आधुनिक होने का भान दिमाग से जाता रहा...आज से ढाई हजार साल पहले हम जितने आधुनिक थे उतने ही आधुनिक हम आज हैं...इसीलिए कहते हैं "मेरा भारत महान" जो पश्चिम वाले आज कर के इत्र रहे हैं वो हम ढाई हज़ार सालों से कर रहे हैं...जय हो दुर्योधन भाई हम हमारे ज्ञान चक्षु खोलने के लिए आपकी बारम्बार जय जय कार करते हैं.
ReplyDeleteइस डायरी का अनुवाद विश्व की हर भाषा में किया जाए ताकि दुनिया को पता चले के हम और हमारा देश विगत ढाई हज़ार सालों से जहां था आज भी वहीं है. हुर्रे...
नीरज
दुशासन के चारित्रिक विशेता तो इतनी अच्छी से महाभारत में भी नहीं देखने को मिली ..दुशासन भाई तुसी ग्रेट हो..ऐसे जिलाए ही रखो इस कलयुग को |
ReplyDeleteसुबह-सुबह इसे पढ़कर मन खुश हो गया। क्लासिक क्लासिक ही होता है। मजा आ गया। आपकी कल्पनाशीलता और समसामयिक घटनाओं का गठबंधन बेजोड़ है। अद्भुत।
ReplyDeleteFantastic ! bahut hi sateek prastuti.
ReplyDeleteही ही ही
ReplyDeleteआज भी दुर्योधन, दुशासन पार्टियां कर रहे हैं..
पांडवों को और कुछ मिलता या नहीं, विज्ञापन खूब मिलते, फिर वे आसानी से नया राज्य बसा सकते थे, अंगल में ही :)
ReplyDeleteऔर ये जयद्रथ दु:शला की मालाएं उठा लाया क्या?
कमाल की पोस्ट, महाभारत के बहाने.
कर्ण के बारे में दुर्योधन की सूचना पर मामूली संशोधन -
ReplyDeleteकर्ण को इसलिये घर भेजा गया था कि वह तड़के सुबह चार बजे पार्टी वेन्यू पर आकर दुशासन और दुर्योधन को कंधे पर उठाकर घर ले जाये, जयद्रथ यदि उल्टियाँ करे तो उसके लिये क्रोसिन-डिस्प्रीन की व्यवस्था करे…। ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों की उपेक्षा ठीक नहीं श्रीमन… :)
हमारे भी ग्यान चक्षु खोल दिये इस डायरी ने। अपको भी सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteहमेशा की तरह लाजवाब
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेख। दुर्योधन के सुकोमल मन की एक झलक।
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