एक दिन वामपंथी हिसाब लगाने बैठे. इस बात का नहीं कि नंदीग्राम में उन्होंने क्या किया बल्कि हिसाब इस बात का कि उन्होंने साल २००७ में कितनी बार कांग्रेस और केन्द्र सरकार को धमकी दी. हिसाब लगाकर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि साल २००७ में बड़े नेता, छोटे नेता, महत्वपूर्ण नेता, बेकार नेता सभी नेताओं की धमकी को मिलाकर कुल तीन हजार सात सौ सत्ताईस धमकियाँ दी गईं. वामपंथियों ने अपने प्रदर्शन पर संतोष जाहिर किया. वे अपने प्रदर्शन पर प्रस्ताव पारित करने ही वाले थे कि एक नेता पूछ बैठा; "हमारी इन धमकियों का सरकार के ऊपर क्या असर हुआ?"
एक वरिष्ठ नेता ने बताया; "असर की देखें, तो कोई असर नहीं हुआ. और फिर हमारी धमकियों से कोई असर हो, ये जरूरी नहीं. धमकी देने से हमें जो फायदा हुआ, केवल उसके बारे में सोचना चाहिए."
"लेकिन हमने इस बात का हिसाब नहीं लगाया कि हमें इन धमकियों से क्या फायदा हुआ"; पहले नेता ने कहा.
फिर क्या था. एक कमिटी बना दी गई. उसे कहा गया कि वो इस बात का पता लगाए कि वामपंथियों को धमकियों से क्या फायदा हुआ. दो दिन बाद कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया;
हमने हमारे नेताओं द्वारा दी गई धमकियों की समग्र जांच की. अपनी जांच से हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हमने जो धमकियाँ दी थी उससे हमें सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि धमकी देने की हमारी प्रैक्टिस होती रही. कुछ और फायदे हैं लेकिन कमिटी का मानना है कि उन फायदों को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. कमिटी अपने सुझाव के तौर पर ये भी कहना चाहती है कि बदलाव के लिए हम कुछ दिनों के लिए सरकार को धमकी देना बंद कर दें.
कमिटी के सुझाव को मान लिया गया. दूसरे दिन ही वामपंथियों ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि वे नए प्रयोग के तहत अब से सरकार को धमकी नहीं देंगे. वामपंथियों की इस घोषणा से सरकार खुश हो गई. कांग्रेस पार्टी ने भी वामपंथियों की सराहना की. सरकार और पार्टी दोनों को विश्वास हो गया कि अब सरकार अपना काम शांति-पूर्वक करेगी.
अभी कुछ दिन ही बीते थे कि सरकार के कई मंत्रियों ने वामपंथियों की शिकायत करनी शुरू कर दी. एक मंत्री ने संवाददाता सम्मेलन में कहा; " पिछले पूरे एक साल से हमें वामपंथियों के धमकियों की आदत सी लग गई थी. उनकी धमकियों के बीच सरकार चलाने का अपना मज़ा था. जब भी वे धमकी देते थे तो हमें लगता था कि हम वाकई काबिल हैं जो उनकी धमकियों के बावजूद सरकार चला रहे हैं. लेकिन वामपंथियों ने धमकियों को बंद कर हमारे साथ अच्छा नहीं किया."
पत्रकार मंत्री जी के ऐसे बयान सुनकर दंग रह गए. उन्हें लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि धमकी बंद होने की वजह से भी सरकार को परेशानी हो. एक पत्रकार ने मंत्री जी से पूछा; "लेकिन आपको तो खुश होना चाहिए कि वामपंथियों ने धमकी देना बंद कर दिया. अब तो आप चैन के साथ अपना काम कर सकते हैं."
मंत्री जी ने अपनी बात का खुलासा करते हुए कहा; "असल में वामपंथी जब धमकी देते थे तो हमें जनता से बहुत सहानुभूति मिलती थी. लोग ये सोचकर संतोष कर लेते थे कि दबाव के चलते सरकार अपना काम नहीं कर पा रही है. लेकिन जब से इनलोगों ने धमकी देना बंद कर दिया है, जनता आए दिन सवाल करती है कि अब आप अपना काम क्यों नहीं करते? अब तो वामपंथियों ने धमकी बंद कर दी है. अब जनता को पता चल गया है कि हम अपना काम नहीं नहीं कर सकते, वामपंथी धमकी दें या न दें."
पत्रकारों को अबतक मंत्री जी की बात समझ में आ गई थी.
सुनने में आया है कि सरकार ने वामपंथियों को धमकी देना शुरू कर दिया है. कुछ लोगों का मानना है कि सरकार ने वामपंथियों को धमकी दी है कि; 'आपलोग सरकार को धमकी देना फिर से शुरू कर दें नहीं तो हम आपका समर्थन आपको वापस दे देंगे.'
नोट: यह पोस्ट मैंने २८ दिसंबर २००७ को लिखी थी. आज जब आफिस में यह बात हो रही थी कि पहले तो हमारी सरकार के मंत्री यह बहाना बनाते थे कि हर मामले में लेफ्ट वालों की धमकियों की वजह से वे काम नहीं कर पा रहे. लेकिन जब लेफ्ट समर्थन नहीं दे रहा और धमकियों का कहीं सवाल ही नहीं उठता तब भी हमारे मंत्री काम नहीं कर पा रहे. मुझे यह पोस्ट याद आ गई और मैंने एक बार फिर से पब्लिश कर दिया है. जिन्होंने नहीं बांचा होगा वे बांच लेंगे. नहीं बांचेंगे तो भी कोई बात नहीं.
Wednesday, February 9, 2011
धमकी पुराण
@mishrashiv I'm reading: धमकी पुराणTweet this (ट्वीट करें)!
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आप भी बड़े गुरू निकले। आखिरी पैरा शुरू में ही लिखते तो न...। पूरा पढ़वाने के बाद समर्थन वापस कर देने की बात :)
ReplyDeleteअपने पात्रों से प्रभावित। :)
na post hota to koi baat nahi .....
ReplyDeletelekin jab post ho gaya to 'banchana'
aniwarya hai.....akhir, dhamkipuran
ki baat hai....
pranam.
har do saal par agle chalees baar bhi ise duhra kar post karoge ...to sthitiyan wahin ki wahin khadi milengi..
ReplyDeletelekh kee prasangikta kabhi samapt nahi ho payegi..
चलो, पहले नहीं पढ़ा था ... हमारे जैसों का ख़याल रखा आपने :)
ReplyDeleteधमकी देते रहने से लोकतन्त्र चलता हुआ सा लगता है।
ReplyDeleteजय हो धमकी दिलवाने वालों की
ReplyDeleteसरकार:धमकी धमकी देदे...धमकी दे दे धमकी धमकी
ReplyDeleteवामपंथी: धमकी धमकी ना दूं...धमकी धमकी ना दूं तुझे...
सरकार : धमकी का रोज किया तूने था वादा..वादे को तोड़ दिया क्या है इरादा...
धमकी धमकी देदे...धमकी दे दे धमकी धमकी
धमकी धमकी धमकी धमकी...
वामपंथी: धमकी धमकी ना दूं...धमकी धमकी ना दूं तुझे...
दोनों पार्टियों का ये वृन्द गान चलता रहा था चलता रहा है चलता रहेगा....
जनता पहले भी इसे सुन कर झूमती है अब भी झूम रही है और आगे भी झूमती रहेगी...
नीरज
जब तक दूसरे धमकी देते है अपने एकजुट रहते है लेकिन जैसे ही दूसरे धमकी देना बन्द कर देते हैं अपने ही शुरू हो जाते हैं। अब देखिए ना हमारे राजस्थान के मंत्री ने तो सारी ही पोल खोल दी।
ReplyDeleteतीन साल से ऊपर होने पर भी इस पोस्ट की धमक शेष है।
ReplyDeleteऔर हिन्दी ब्लॉगजगत में कालजयी ब्लॉगरों की पोस्टें हफ्ते भर में कराह देती हैं! :)
गजब मिश्र जी । पोस्ट भले ही 2007 की हो पर 2011 की सरकार की भरपूर छवि पेश करती है । वाकई इनको न तो काम करना था और न ही ये करेंगे क्योंकि उससे भी बड़ा भारी काम सन 2004 से सिर पर लादे घूम रहे हैं भ्रष्टाचार का रिकार्ड बनाने का । आभार ।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगजगत में कालजयी ब्लॉगरों की पोस्टें हफ्ते भर में कराह देती हैं! :)
ReplyDelete.
मिश्र जी इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि आपको कालजयी व्यंगकार हरिशंकर परसाई के लेवल का होने के लिये कांग्रेस ने अपनी फजीहत खुद अपने हाथों की है ।