कल से बप्पी दा का 'गान' याद आ रहा है; "आना-जाना लगा रहेगा, 'दूख' जाएगा, 'सूख' आएगा...."
दुःख को 'दूख' लिखकर मैं बताना चाहता था कि बाप्पी दा का गाया 'गान' पढ़ने के लिए नहीं बल्कि सुनने के लिए है. आज तक उन्होंने दुःख का उच्चारण दुःख कहकर नहीं किया, हमेशा दूख कहकर ही किया है. इसके पीछे शायद यह कारण भी हो सकता है कि वे दुःख से कभी दुखी न हुए हों. देखा जाय तो उनके दुखी होने का कारण भी नहीं है. बल्कि खुश होने का सबसे बड़ा कारण है सोने के भाव में विकट उछाल. दुनियाँ भर के कमोडिटी एक्सपर्ट्स का मानना है कि पिछले डेढ़-दो साल में सोने के भाव में जो उछाल आया है उसका सबसे बड़ा फायदा उन्हें ही पहुँचा है.
बात चली है तो लगे हाथ बता दूँ कि मैं उनका बहुत बड़ा फैन हूँ. बाथरूम में नहा रहा होता हूँ तो मुँह से अनायास ही फूट पड़ता है; "कहाँ हाम कहाँ तूम हुए तूम कहाँ गूम, आ भी जा आ भी जा एक्के बार..." जब दोस्तों की मीटिंग होती है तो कई मित्र मुझसे बप्पी दा का 'गान' गाने के लिए कहते हैं. मैं गा देता हूँ. वे हँस लेते हैं. बात यह कहते हुए ख़त्म कर दी जाती है कि - तुम ब्लॉगर नहीं होते तो बप्पी दा के सबसे बड़े डुप्लीकेट होते. चेहरे-मोहरे की बात नहीं हो रही. बाप्पी दा के शब्दों में कहें तो "यहा 'सूर' का बात हो रहा है."
मैं क्या करूं? वे यहाँ को 'यहा' और सुर को 'सूर' कहते नहीं थकते.
लीजिये, कहाँ से कहाँ पहुँच गए? बात गाने से शुरू हुई थी और दो-चार गलियों से होते हुए देखिये कैसे शेम-लेस सेल्फ प्रमोशन तक पहुँच गई. केवल ब्लॉगर कहला कर संतोष नहीं है इसलिए समय-समय पर और कुछ बन जाने की इच्छा उछल कर बाहर आ ही जाती है. आदमी कहाँ-कहाँ कंट्रोल करेगा?
हाँ, तो आना-जाना लगा रहेगा नामक गाने की बात हो रही है. दरअसल विक्रम अपने तीन दिन के चेन्नई विजिट के बाद सोमवार को कोलकाता पहुँचा. उसकी चेन्नई और गाँव विजिट पर काफी देर तक बातें हुईं. तमाम जानकारियाँ मिलीं जो इलाके को नज़दीक से देखने वाला ही दे सकता है. इन तमाम बातों की एक पोस्ट लिख दे रहा हूँ. आप भी पढ़िए. चेन्नई विजिट की कहानी विक्रम की जुबानी....
...अरे सर, स्टालिन है लेकिन कमाल का बन्दा. फ्लाईओवर ही फ्लाईओवर बना डाले हैं भाई ने. अगर कहीं एक बस के आने-जाने की भी जगह है तो उसने यह गारंटी दे दी है कि वह बस फ्लाईओवर के ऊपर से ही जायेगी. वैसे भी फ्लाईओवर पर आने-जाने वाली गाड़ियाँ बड़ी क्यूट लगती है. नीचे से देखने पर कई तो एरोप्लेन की फीलिंग देती हैं. कई इस रफ़्तार से भागती हैं जिसे देखकर लगता है जैसे अभी टेक-ऑफ कर जायेंगी. ऊपर से फ्लाईओवर विकास का द्योतक भी होता है........... अगर आप चेन्नई से बाहर भी जा रहे हैं और बीच में कोई टाऊन पड़ गया तो आपको ट्रैफिक जाम से घबराने की ज़रुरत नहीं है. वहाँ आपके लिए फ्लाईओवर रेडी है. अगर आप उस टाऊन में कोई सौदा नहीं करना चाहते तो आप वाया फ्लाईओवर निकल लीजिये. उस टाऊन के लोगों से आपका न उधो का लेना और न माधो का देना...
आप देखिएगा एक दिन ऐसा आएगा जब भारतवर्ष की तमाम राज्य सरकारें स्टालिन को अपने शहरों के लिए बनने वाले फ्लाईओवर की कंसल्टेंसी के लिए बुलाएंगी. वे दिन भी दूर नहीं जब इंजीनियरिंग कालेजों में सिविल इंजीनियरिंग के कोर्स में स्टालिन के ऊपर एक चैप्टर होगा जिसमें फ्लाईओवर क्षेत्र में दिए गए उनके योगदान के ऊपर सबकुछ लिखा हुआ मिलेगा......एक दिन ऐसा भी आएगा जब...
.... जैसे अपने यहाँ क्या है? एयरकंडीशनर चलाने के लिए आपने स्विच और एम सी बी लगा रखा है. आपने इधर स्विच दबाया और उधर एसी ने अपना काम करना शुरू किया. थोड़ी देर में रूम ठंडा हो जाता है. लेकिन चेन्नई में ऐसा नहीं है. वहाँ मैं जितने घर में भी गया वहाँ यह देखा कि हर एसी का कनेक्शन स्टेबिलाइजर से ज़रूर है. एसी चलाने के लिए पहले स्टेबिलाइजर चलाना पड़ता है. स्टेबिलाइजर का स्विच दबाते ही उसमें करीब दस मिनट तक तरह-तरह की आवाजें आती हैं. कई आवाजें सुनकर लगता है जैसे यह स्टेबिलाइजर किसी मिमिक्री आर्टिस्ट की नक़ल कर रहा है. कई बार कुछ देर तक आने वाली आवाज़ अचानक किसी और आवाज़ में कन्वर्ट हो जाती है जिसे सुनकर लगता है जैसे यह स्टेबिलाइजर अपनी जगह बैठे-बैठे ही टेक-ऑफ कर जाएगा...... चार-चार घंटे चलने के बाद भी कमरा ठंडा नहीं होता है. देखकर लगता है जैसे एसी अपने रोल को लेकर कन्फ्यूज्ड है. जैसे कई बैट्समैन कई-कई बार यह सोचते हुए कन्फ्यूज्ड हो जाते हैं कि उन्हें स्ट्रोक खेलना चाहिए या डिफेंड करना चाहिए.....चेन्नई के एसी को वहाँ की बिजली की ऐसी आदत पड़ चुकी है जिसे देखकर लगता है कि आप वहाँ के एसी को अगर कुछ रिश्वत वगैरह भी दे देंगे तो भी वह चेन्नई की बिजली को छोड़कर कहीं नहीं जाएगा.....
बाद में सड़क पर लगे ट्रांसफॉर्मर देखा तो बात समझ में आई. आप देख लेंगे तो अपना माथा पीट लेंगे. देखकर लगता है जैसे एक्सपेरिमेंट के बाद दुनियाँ में ट्रांसफॉर्मर के कॉमर्शियल प्रोडक्शन की जो पहली खेप थी वह चेन्नई शहर में ही लगी थी और अभी तक चल रही है. कई ट्रांसफॉर्मर के ऊपर कुछ ऐसे आड़े-तिरछे लोहे-लक्कड़ और इक्विपमेंट्स नज़र आये जिन्हें देखकर लगा कि ये माल-असबाब इसलिए लगाये गए ताकि अंतरिक्ष में सैर कर रहे तमाम भारतीय सैटलाइट्स को कंट्रोल किया जा सके...
......लोग़ अस्पताल में खूब भर्ती होते हैं. एक पार्टी में रिश्तेदारों से मिला. उनकी बातें सुनकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यहाँ उपस्थित लोगों में से फिफ्टी परसेंट तो पिछले एक-दो महीने में किसी न किसी बीमारी के बहाने अस्पताल में रह आये हैं. मेरे एक रिश्तेदार वृहस्पतिवार तक अस्पताल में भर्ती थे और शनिवार को पार्टी अटेंड कर रहे थे. देखकर लगा कि ये टीवी और पत्र-पत्रिकाओं में भारत को जो मेडिकल टूरिज्म का महान डेस्टिनेशन बताया जा रहा है उसका पहला प्रयोग लोकल लोगों पर किया जाता है. कई तो बुखार से पीड़ित होकर अस्पताल में भर्ती हो लेते हैं.....
हाल यह है कि तमाम डाक्टर्स अपने रोगियों को अपने दोस्त, भाई, चचा, ताऊ जैसे ट्रीट करते हैं. मतलब यह कि उन्हें लूटने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते.
...... बात इलेक्शन की शुरू हुई तो तमाम बातें सुनने को मिलीं. जीजाजी ने बताया कि वोट का रेट इस बार पाँच हज़ार रुपया पर फॅमिली का चल रहा है. पार्टी वाले एडवांस देने पर राजी हैं. नोट लो और वोट दो. वोट का रेट इस बार पर फॅमिली शायद इसलिए बांधा गया क्योंकि करूणानिधि इज अ फॅमिलीमैन...मिक्सर, टीवी, लैपटॉप की बातें पुरानी हो गईं हैं. चावल तो और पुराना हो गया है.... इस बार ३५ किलो पर फॅमिली पर मंथ पर सौदा पक्का हुआ है....चावल की बात पर मुझे ए राजा की याद आ गई. एक इंटरव्यू में टू-ज़ी और थ्री-ज़ी के अंतर को समझाते हुए उन्होंने बताया था कि "त्री ज़ी यिज्ज लइक बासमती रईस येंड टू ज़ी यिज लइक यार्डिनरी रईस." .......
.......जब सभा में पीकर भाषण देने की बात उठी तो विजयकान्त ने सीधा कह दिया कि इस गर्मी में पीयेंगे नहीं तो चुनाव प्रचार कैसे करेंगे?..एक सभा में भाषण दे रहे थे. किसी विरोधी के बारे में मुँह से कुछ उल्टा-सीधा निकल आया. पास खड़े चमचे ने कान में कुछ कहकर उनका ध्यान खीचने की कोशिश की. उन्होंने अपने चमचे को वहीँ धुनक कर धर दिया. जब विरोधी दल वालों ने अपने टीवी चैनलों पर इस मामले को उछाला तो सीधा कह दिया; "मैंने आजतक जिसे भी पीटा वह एम एल ए बन गया. मैंने जिसे पीटा जब उसे कोई प्रॉब्लम नहीं है तो तुम्हारे बाप का क्या जाता है? वह इसलिए पिटना चाहता था ताकि उसका एम एल ए बनना पक्का हो जाए."
......पार्टी में कुछ नेताओं की वल्दियत को लेकर भी बातचीत हुई. एक नेता के बारे में यह कहा गया कि वे उनके (मतलब एक बड़े नेता जिन्हें उनका बाप माना जाता है) पुत्र नहीं हैं. दरअसल ये उनके (मतलब एक नेता जो पहले थे लेकिन अब नहीं हैं) के पुत्र हैं. ध्यान से चेहरा देखो तो पता चलेगा...बाद में यह कहकर बात ख़त्म की गई कि चेहरा कम्पेयर करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है क्योंकि उनका (मतलब एक नेता जो पहले थे लेकिन अब नहीं हैं) आधा चेहरा काले चश्में में छिपा रहता था...
.....हमारे गाँव में सभी ने अपनी खेती-बाड़ी वाली करीब सौ एकड़ ज़मीन बड़े आराम से ज़मीन के किसी व्यापारी को बेंच दी. उस व्यापारी ने उनके इन जमीनों के कई प्लाट बनवा कर "एक बंगला बने न्यारा" गाने वाले कई खरीददारों को चेंप दिया. बाद में जब ज़मीन के कन्वर्जन के लिए अप्लिकेशन दिया गया तो स्टेट गवर्नमेंट ने यह कहकर सब गुड गोबर कर दिया कि एग्रीकल्चरल लैंड को किसी भी हालत में ......
Wednesday, April 13, 2011
विक्रम की चेन्नई विजिट
@mishrashiv I'm reading: विक्रम की चेन्नई विजिटTweet this (ट्वीट करें)!
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विक्रम के साथ बेताल नहीं गया था क्या? उसी ने पूछने थे ना ये सारे प्रश्न।
ReplyDelete'करूणानिधि इज अ फॅमिलीमैन'वाले व्यक्तित्व जैसे नेता हमारे बंगाल में होते तो हमें भी शायद एक 'लैपटॉप' का फायदा हो सकता था :)
ReplyDeleteऐसा है सर, जब दुख ज़रा लम्बा खिंच जाता है और सर से ऊपर चला जाता है तो दूख होता ही है; वैसे ही जैसे सूर का गीत कोई गाता है उसे सुर में गाना कहेंगे ना:)
ReplyDeleteपड़ोस के चुनाव से न जाने कितना कुछ सुनने में आ रहा है। लिखा जायेगा।
ReplyDeleterahasymai.......report.....
ReplyDeletepranam.
Very funny! "मैंने आजतक जिसे भी पीटा वह एम एल ए बन गया." enjoyed reading it :-)
ReplyDeleteबाप्पी दा से स्टालिन तक. फ्लाईओवर से एसी तक. ट्रांसफार्मर से काले चश्मे तक. एकदम भोकाल पोस्ट है. :) चेनई में होते तो कुछ इलेक्शन का फायदा होता. हमारे गाँव में तो भोट में कुछों नहीं मिलता है. सुने हैं परधानी के भोट में दारु चला है इस बार.
ReplyDeleteहमारे भैया जी के मन में एक ठो कोश्चन था: नेताजी बहुत जोर से पीटते हैं का?
ReplyDeleteआप से मिलना पड़ेगा, सूर में गान जो सूनना है..
ReplyDeleteबप्पी दा पर लाजवाब बात.
ReplyDeleteपिटने के लिये पहले आओ पहले पिटो की नीति अपनानी चाहिये! पहले पिटा पहले एम.एल.ए. बना। :)
ReplyDeleteverrrryyy entertaining sir!! :)
ReplyDeletebappi daa se leke chennai vivran tak.
achhe humor ke sath ek pradesh ki political or social vyavasttha ka bhi gyaan mila.
aise hi alag-alag pardesho ke mitro se milte rahiye aur hamara fun-poorvak manoranjan karte rahiye.
Aapko aaj se hi Guru maante hue, Pranaam!!
ये नए बंगले जो बने है वो फ्लाईओवर के ऊपर है या नीचे..???
ReplyDeleteएक महीने अंतराल के बाद मिला यह जायका अभूतपूर्व लग रहा है....
ReplyDeleteIt was pleasure to read. Thank You :)
ReplyDeleteVery funny and to the point
ReplyDeleteआज की राजनीति और हालात पर करारी चोट.....मगर उनको लगी कि नहीं इसका कोई दस्तावेजी सबूत ना है !
ReplyDeleteक्या बात है भप्पी दा से लेकर तामिलनाडू के विकास की कहानी और चुनाव तक सब कुछ । जोरदार पोस्ट ।
ReplyDeleteबिना लाग लपेट के इतना सच नहीं लिखना चाहिए था. वरना हमारे देश के स्वार्थी राजनीतिक आपको "देशद्रोह" के केस में फंसा देंगे. व्यंग शैली में सार्थक लेख की शुभकामनायें.
ReplyDeleteआप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे (http://sirfiraa.blogspot.com, http://rksirfiraa.blogspot.com, http://shakuntalapress.blogspot.comhttp://mubarakbad.blogspot.com, http://aapkomubarakho.blogspot.com,http://aap-ki-shayari.blogspot.com http://sachchadost.blogspot.com, http://sach-ka-saamana.blogspot.com http://corruption-fighters.blogspot.com )ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें.आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं # निष्पक्ष,निडर,अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक,मुद्रक,संपादक,स्वतंत्र पत्रकार,कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com,
मजेदार पोस्ट.....
ReplyDeleteसटीक, हनकदार व्यंग....
north ho ya south...every politician has mouth...to eat whatever he/she can eat...hind desh ke nivasi sabhijan ek hain...veshbhusha, desh bhasha chahe anek hain...ye to chennai ka haal bayan kiya hai...
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