कई महीनों से उनसे आग्रह कर रहा था कि वे मेरे ब्लॉग के लिए एक इंटरव्यू दें. वे राजी तो हो जाते लेकिन फिर दुखी होकर ना कह देते. आप कह सकते हैं कि इंटरव्यू के लिए दुखी होकर ना कहने वाली बात समझ में नहीं आई. तो मेरा जवाब यह है कि सारी समस्या दुःख की ही है. आपको बता दूँ कि आज उनकी गिनती टॉप के दुखियारों में होती है. वे जब-तब दुखी हो लेते हैं. दुखी होने के लिए उन्हें किसी कारण की ज़रुरत नहीं पड़ती. हालाँकि उनके ऊपर आरोप भी लगते रहते हैं. कि उनका दुःख प्रायोजित होता है. कि वे बिना मतलब के दुखी रहते हैं. कि उनका दुःख दिखावा है. कि वे इसलिए दुखी रहते हैं क्योंकि दुःख को आसानी से भजाया जा सकता है. कि....
खैर, आज पता नहीं क्या हुआ कि जब मैंने उन्हें इंटरव्यू के उनके वादे की याद दिलाई तो दुखी होते हुए तैयार हो गए. बोले; "देखो जो भी कहूँ या करूँगा वह बिना दुःख के तो हो नहीं सकता. पहले दुखी होकर इंटरव्यू के लिए मना कर देता था लेकिन आज दुखी होकर इंटरव्यू के लिए तैयार हो गया हूँ. तो इससे पहले कि मुझपर दुःख का एक नया दौरा पड़े, आज ले ही लो मेरा इंटरव्यू."
तो पेश है उनका इंटरव्यू. आप बांचिये.
शिव: नमस्कार दुखीराम जी. इंटरव्यू के लिए धन्यवाद. ये बताइए कि कैसा लग रहा है?
दुखीराम जी: दुखी हूँ. इस बात पर दुखी हूँ कि लोग़ एक इंटरव्यू के लिए इतना हलकान किये रहते हैं. ज़रूरी है कि किसी को इंटरव्यू के लिए इतना परेशान किया जाय कि वह दुखी होकर इंटरव्यू देने के लिए हाँ कर दे?
शिव: नहीं ज़रूरी तो नहीं है लेकिन चूंकि आपने वादा किया था इसलिए....वैसे मेरा सवाल यह है कि कितने साल हो गए आपको दुखी रहते? मेरा मतलब आप पहली बार दुखी कब हुए?
दुखीराम जी: ये मैं कैसे बताऊँ? अब देखिये कोई हिसाब रखकर तो दुखी होता नहीं है? दुःख का कोई लॉगबुक होता है क्या? नहीं न? ऐसा तो है नहीं कि आदमी किसी सरकारी कोटे के तहत दुखी होगा. कि भइया सरकार ने मुझे दिन में केवल ढाई घंटे का दुःख-कोटा अलॉट किया है इसलिए मुझे केवल ढाई घंटे दुखी रहना है. उससे ज्यादा दुखी हुए तो सरकार दुःख का कोटा जब्त कर लेगी..... देखा जाय तो दुःख अपने आप में इतना बड़ा होता है कि मनुष्य को यह सुध-बुध नहीं रहती कि वह दुखी है. ऐसे में इस तरह का सवाल बेमानी है. वैसे अगर मुझे इसका उत्तर देना ही पड़े तो मैं कहूँगा कि करीब छियालीस वर्षों से मैं दुखी रहता आया हूँ. दो-चार महीने इधर-उधर हो सकते हैं लेकिन....
शिव: अच्छा ये बताइए कि पहली बार कब दुखी हुए?
दुखीराम ज़ी: वैसे कुछ ठीक से याद नहीं लेकिन मुझे लगता है कि पहली बार मैं नौ साल की उमर में दुखी हुआ था जब दादाजी ने मुझे गधा कहा था. उसके बाद मुझे याद है कि मेरे भाई साहब ने जब सबके सामने मुझे अच्छा बच्चा बताया था तब मैं दुखी हुआ था. लेकिन हाँ, पहली बार दुखी होने का सारा श्रेय मैं दादाजी को ही दूंगा.
शिव: भाई साहब ने आपको अच्छा बच्चा बताया उसके लिए आप दुखी हो गए?
दुखीराम जी: यह दुखी होने की बात ही है. अगर किसी बच्चे को अच्छा बता दिया जाय तो उसके साथ उससे बुरा और क्या हो सकता है? इतने लोगों के सामने अच्छा बता देने से उसके ऊपर परफ़ॉर्म करने का प्रेशर बन जाता है. मेरे ऊपर अच्छा दिखने, अच्छा करने, अच्छा कहने का प्रेशर आया तो मैं दुखी रहने लगा.
शिव: फिर?
दुखीराम ज़ी: फिर क्या? धीरे-धीरे दुखी रहने की आदत पड़ गई.
शिव: वैसे यह बताइए कि दुखी रहने के लिए प्रैक्टिस करना कितना ज़रूरी है?
दुखीराम जी: देखिये वह तो आपके ऊपर डिपेंड करता है कि आप कितने जल्दी दुःख को अपने अन्दर समो लेते हैं. जैसे पहले-पहल मुझे सुबह-शाम कम से कम दो घंटे दुःख दुखी होने की प्रैक्टिस करनी पड़ती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब मैं कहीं भी कभी भी दुखी हो सकता हूँ.
शिव: अच्छा यह बताइए कि आप दुखी रहने की प्रैक्टिस कैसे करते थे?
दुखीराम ज़ी: दुखी होने की प्रैक्टिस के लिए तमाम इक्विपमेंट्स टाइप मुद्दे हैं जिनका इस्तेमाल करके आदमी एक दुखियारे का अपना जीवन शुरू कर सकता है. जैसे मैं शुरू-शुरू में यह कहकर दुखी होता था कि ज़माना बड़ा खराब है. फिर यह कहकर दुखी रहने लगा कि हमारा ज़माना बड़ा अच्छा था. बाद में यह कहकर रहने लगा कि जो ज़माना चला गया वह दोबारा लौट कर नहीं आएगा. फिर बेटों की दशा और दिशा को लेकर दुखी रहने लगा. जीवन आगे बढ़ा तो पोतों के चाल-चलन पर दुखी रहने लगा. कुल मिलाकर भगवान के आशीर्वाद से दुखी होने के लिए कम से कम मुझे तो मुद्दों की कमी कभी नहीं रही. आज जब मैं उम्र के इस पड़ाव पर खड़ा हूँ तो गर्व से कह सकता हूँ कि दुखी होने के लिए अब मुझे किसी बहाने की ज़रुरत नहीं रहती. दुःख के मामले में मैं अब आत्मनिर्भर हो गया हूँ.
शिव: आपसे मेरा एक सवाल यह है कि जो दुखियारा बनना चाहते हैं उनके लिए आप और क्या-क्या मुद्दे सजेस्ट कर सकते हैं जिसका इस्तेमाल करके दुखी होने की प्रैक्टिस की जा सकती है? मेरे कहने का मतलब यह है कि सभी आप जैसे भाग्यशाली तो नहीं हैं. सभी के बड़े भाई साहब नहीं होंगे जो उन्हें अच्छा बच्चा बता दें. या कह सकते हैं कि सभी के बेटे-बेटियां नहीं हो सकती या फिर सभी के पोते नहीं हो सकते जिनके सहारे वह दुःख की प्रैक्टिस करते रहें. आज जैसे...
दुखीराम ज़ी: समझ गया. समझ गया. मैं आपकी बात पूरी तरह से समझ गया हूँ. आप को सच बताऊँ तो दुखी होने के लिए मुद्दों की कमी कभी नहीं रही. आज भी नहीं है. आप छोटे से छोटे और बड़े से बड़े मुद्दे के सहारे दुखी हो सकते हैं. जैसे एक तरफ दुखी होने के लिए आप भ्रष्टाचार का सहारा ले सकते हैं तो दूसरी तरफ आप इस बात से दुखी हो सकते हैं कि आप इस देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सके. आप इस बात से दुखी हो सकते हैं कि मसालों में मिलावट बढ़ गई. मिलावट का बहाना बड़ा व्यापक है. जैसे आप मिलावटी दूध, मिठाई, दाल, सब्जी, मसाला, हल्दी, धनियाँ वगैरह की बात करके दुखी हो सकते हैं. आपकी इच्छा हो तो आप इन्ही चीजों के मंहगे होने की बात करके दुखी हो सकते हैं. आप चाहें तो यह कहकर दुखी हो लें कि एक तरफ तो चीजें मिलावटी हैं और दूसरी तरफ इतनी दामी भी हैं....... जो बड़े दुखियारे होते हैं उनके लिए विषय और बड़े हो सकते हैं. जैसे आप इजराइल और फिलिस्तीन या चीन और तिब्बत के झगड़े को लेकर दुखी हो सकते हैं. जापान के ऊपर चीन की दादागीरी को लेकर दुखी हो सकते हैं. ईराक और अफगानिस्तान पर अमेरिकी दादागीरी एक बहुत बड़ा मुद्दा हो सकता है. साहित्य वाले भाषा की गिरावट को लेकर दुखी हो सकते हैं. आज से सत्तर साल बाद भाषा का स्वरुप अच्छा नहीं रहेगा, यह बात अपार दुःख का विस्तार कर सकती है. चूंकि दुःख जो है वह एक साधन है...
शिव: मैं समझ गया. आपकी बात मैं समझ गया. लेकिन ये बताइए कि सामाजिक बदलाव दुखी होने में कितना मदद करता है?
दुखीराम ज़ी: गुड क्वेश्चन. देखिये सामाजिक बदलाव के सहारे भारी मात्रा में दुःख पैदा किया जा सकता है. सामाजिक बदलाव का सहारा लेकर युवाओं की बात करके दुखी हो सकते हैं. भरी जवानी में अपने बुढापे के खराब होने की बात पर दुखी होने की प्रैक्टिस की जा सकती है. आपको मैं यह बताना ज़रूरी समझता हूँ कि जब जवानी में बुढापे के खराब होने की बात की जाती है तब सैकड़ों लोग़ धीरज बंधाते हैं. यह प्रोसेस अपार दुःख का संचार करता है. धार्मिक अनेकता की बात करके दुखी हुआ जा सकता है. अब तो ब्लॉग वगैरह लिखकर भी लोग़ दुखी हो लेते हैं. कवितायें लिख कर भी दुखी हुआ जा सकता है. कविता का तो यह समझिये कि आचार्यों के अनुसार पुराने जमाने से ही कविता दुःख से उपजती आयी है. लेकिन असली दुखियारा वह है जो अपनी काबिलियत दिखाते हुए कविता से दुःख निकाल लें. जैसे आप यह कहकर दुखी हो सकते हैं कि हाय मैं कविता लिखना बंद कर दूंगा तो अच्छी कवितायें कहाँ मिलेंगी?....... कुल मिलाकर यह समझिये कि दुखी होने के लिए मुद्दे तैयार करने पड़ते हैं. आपको अपने कान, आँख, नाक वगैरह का सहारा लेते रहना पड़ेगा. हमेशा तैनात रहना पड़ेगा. दुखी होने का मुद्दा आपको कहीं से भी मिल सकता है. इसके लिए बस आपको...
शिव: समझ गया. जैसा कि आपने बताया अब आपको दुखी होने के लिए प्रैक्टिस करने की ज़रुरत नहीं पड़ती. इसके क्या कारण हैं?
दुखीराम जी: देखिये यह तो परिपक्वता से हुआ है. अब दुखी होने के लिए मुझे किसी आउट-साइड सपोर्ट की ज़रुरत नहीं पड़ती. अब मैं बिना प्रैक्टिस के दुखी हो लेता हूँ. दुखी होने के मामले में अब मैं आत्मनिर्भर हो गया हूँ. और आपको सच बताऊँ तो अब मैं पाँच मिनट तक की शॉर्ट नोटिस पर दुखी हो सकता हूँ. एक दुखी आदमी के जीवन में यह स्टेज बड़ी मुश्किल से आता है. आपको यह बताते हुए मुझे अपार दुःख हो रहा है कि आज इस स्टेज पर पहुँचने वाले देश में कुछ गिने-चुने लोग़ ही हैं. पिछले वर्ष की रैंकिंग के हिसाब से मेरा नाम देश के टॉप टेन दुखी लोगों में शुमार है.
शिव: सर, आपने कविता की बात करके मुझे एक बात याद दिलाई. अच्छा ये बताइए कि आप अपनी कविताओं के सहारे भी काफी दुखी होते रहे हैं. कुछ लोगों का आरोप है कि आप ताज़ा लिखी दुःख वाली कविताओं को वर्षों पुरानी बताते हैं. क्या यह सही है? और अगर सही है तो इन कविताओं को पुरानी बताने से क्या दुःख की मात्रा में बढ़ोतरी होती है?
दुखीराम जी: यह सवाल पूछकर आपने अच्छा किया. देखिये इस सवाल के जवाब में भावी दुखियारों के के लिए एक गाइड-लाइन छिपी हुई है. होता क्या है? समझिये आपने कोई दुखी कर देने वाली कविता कल ही लिखी है. अगर आप यह बताते हैं कि आपने वह कविता कल ही लिखी है तो जो लोग़ उसे पढेंगे वे उसपर थोड़ा दुखी होंगे. यह सोचकर थोड़ा दुखी होंगे कि मैं कल से याने कविता की उम्र से दुखी हूँ. लेकिन उसी जगह अगर आप यह बता देते हैं कि मैंने यह कविता आज से बाईस साल पहले लिखी थी तो उससे उपजने वाला दुःख कई गुना बढ़ जाती है. कारण क्या है? कारण यह है कि पाठक समझता है कि अगर मैंने यह कविता बाईस साल पहले लिखी थी तो इसका मतलब यह है कि मैं पूरे बाईस साल से दुखी हूँ. दरअसल इसे ही दुःख की दुनिया में डोमिनो पिज्जा... सॉरी सॉरी डोमिनो इफेक्ट कहते हैं. तो इससे आप समझ ही....
शिव: यह आपने बहुत अच्छी बात बताई. वैसे दुखी होने का ऐसा और कोई साधन जिसकी चर्चा अभी तक इस इंटरव्यू में नहीं हो सकी?
दुखीराम ज़ी: हाँ, हैं न. बिलकुल है. आप सोच रहे होंगे कि वह क्या है? तो मेरा जवाब है कि जहाँ भी दो-चार ही-ही, ठी-ठी करने वाले इकट्ठे होते हों वहाँ एक दुखियारे को ज़रूर जाना चाहिए. वहाँ जाने का असर यह होता है कि दुखी आदमी और दुखी हो सकता है. ऊपर से अगर वहाँ जाकर उसने अपने दुःख की अभिव्यक्ति कर दी तो समझिये कि उसके दुःख का ईमेज बड़ा धाँसू होकर उभरता है. इसलिए दुखी होने के इच्छुक लोगों को ही-ही, ठी-ठी करने वालों 'उजड्डों' के बीच अवश्य जाना चाहिए. यह एक ऐसी सीख है जो मैंने दुखी होने एक हज़ार तरीके नामक किताब में पढ़ी थी इसलिए सोचा कि.....
शिव: कुछ लोगों का कहना है कि आपके ऊपर दुखी होने के दौरे पड़ते हैं. क्या यह सच है?
दुखीराम जी: अब नहीं पड़ते. अब आपसे क्या छिपाना. करीब बारह साल पहले तक पड़ते थे लेकिन अब मैं दुःख के ऐसे शिखर पर जा पहुँचा हूँ कि मुझे दुखी होने के लिए दौरों की ज़रुरत नहीं पड़ती.
शिव: कुछ लोगों का मानना है कि आपका दुःख प्रायोजित दुःख है. आप इससे कितना सहमत हैं?
दुखीराम ज़ी: देखिये इसका जवाब मैं क्या दूँ? अब देखा जाय तो आज के ज़माने में कौन सी बात प्रायोजित नहीं है? वैसे दुःख प्रायोजित हो ही सकता है. इसका बाज़ार बहुत बड़ा है. वैसे सच कहूँ तो अब ज्यादातर मेरे दुःख आयोजित ही होते हैं. अब दुःख और दुःख मिलाकर ऐसा वातारवरण बना है कि प्रायोजित होने का कोई केस ही नहीं बनता.
शिव: कोई संदेश जो आप भावी दुखियारों को देना चाहते हों?
दुखीराम जी: यही कि दुखी होने की प्रैक्टिस करते रहें. दुःख के बाज़ार को कभी छोटा न समझें. दुखी होने में बड़ी बरक्कत है. एक और बात यह कि आप हमेशा अपना दुःख बाँटते रहिये. मतलब सार्वजनिक तौर पर दुःख की नुमाइश का असर यह होता है कि दुःख बढ़ता जाता है. एक दुखियारे के लिए यह ज़रूरी है कि वह अपनी जमात में में नए-नए लोगों को शामिल करता जाए. देखिये सुख आता है तो फट से चला जाता है. क्यों? क्योंकि वह एक और बड़े सुख की तमन्ना लिए रहता है. लेकिन दुःख के साथ ऐसा नहीं है. छोटा दुःख कभी भी बड़े दुख की तमन्ना नहीं रखा. दर्शनशास्त्र के अनुसार.....
शिव: समझ गया. समझ गया. सर, आज आपने मेरी वर्षों की तमन्ना पूरी कर दी. आपने अपने बहुमूल्य समय से कुछ क्षण निकाले और यह इंटरव्यू दिया. इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.
दुखीराम ज़ी: वह सब तो ठीक है. आप तो आभारी हो गए लेकिन जितनी देर इंटरव्यू लेते रहे उतनी देर के लिए तो दुखी होने का मौका मेरे हाथ से जाता रहा. आज शाम को कुल बावन मिनट एक्स्ट्रा दुखी होना पड़ेगा.
तो यह था दुखीराम ज़ी का इंटरव्यू. आज चंदू चौरसिया के छुट्टी पर जाने की वजह से मुझे ही दुखीराम ज़ी का इंटरव्यू लेना पड़ा. लेकिन मैं दुखी नहीं हूँ.
Thursday, April 28, 2011
दुखीराम ज़ी का इंटरव्यू
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दुःख का बाज़ार सचमुच बड़ा विराट है...यही फ्यूचर बिजनेस है..जो इसमे अभी से लग गया समझो तर गया..
ReplyDelete"कुल मिलाकर दुखी होने के लिए भगवान के आशीर्वाद से कम से कम मुझे तो मुद्दों की कमी कभी नहीं रही. और आज जब मैं उम्र के इस पड़ाव पर खड़ा हूँ तो आप कह सकते हैं कि मुझे दुखी होने के लिए किसी बहाने की ज़रुरत नहीं रहती अब. अब दुःख के मामले में मैं आत्मनिर्भर हो गया हूँ. "
ओह ...सुखी कर दिया...
लाजवाब व्यंग्य...
दुखी राम का साक्षात्कार वाकई बहुत मज़ेदार है.......
ReplyDeleteआप भी न, लोगों को ढंग से दुखी भी नहीं होने देंगे :) सुबह सुबह मूड खुश हो गया. बताइए तो ये भी कोई तरीका है !
ReplyDeleteदुखीराम जी का इन्टरव्य़ू हंसा रहा है. ये ठीक नहीं है. हम देख रहे हैं और हम देखेंगे कि कब दुखीराम सबको दुखी करने वाला इन्टरव्यू कब आता है..
ReplyDelete‘इस बात पर दुखी हूँ कि लोग़ एक इंटरव्यू के लिए इतना हलकान किये रहते हैं.’
ReplyDeleteये दुखीराम के इंटरव्यू में हलकान जी कहां से आ गए?
इंटरव्यू पढ़कर मुक्तिबोध की कविता की पंक्ति याद आ गयी:
ReplyDeleteदुखों के दागों को तमगों सा पहना!
जय हो!
आजकल तो ऐसे दुखियारों की बाढ़ आई है, कम्बख्त जब तब दुखी होने के नाम पर कवित्त ठेलते रहते हैं, और जनता है कि उसके दुख को देख खुद भी दुखी हो लेने का मौका नहीं छोड़ना चाहती।
ReplyDeleteउपर से उन कविताओं में जिस अंदाज में कवि अपने को निकृष्ट और गिरा हुआ समर्पित 'पद-दंहजित' दर्शाता है उसे पढ़कर आश्चर्य होता है कि इंसान इतना गिरा और 'लतियाया' होने पर भी अब तक कविता कैसे कर पा रहा है ।
एक दुखियारे से साक्षात्कार कराकर आपने तो राप्चिक मन मस्त कर दिया । मस्त राप्चिकात्मक पोस्ट।
अभी स्कूल के दिनों की पढ़ी ये पंक्तियां याद आयीं-
ReplyDelete" अवर स्वीटेस्ट सांग्स आर दोज व्हिच टेल अस द सैडेस्ट थाट्स!
दुखीराम जी इसी से प्रेरणा लेते होंगे।
दुखी होने की लत तो महिलाओं में सर्वाधिक पायी जाती है। घर-भर में राज करती हैं लेकिन कविता लिखेंगी कि इनके जितना कोई दुखियारा नहीं और शोषित नहीं। इसलिए किसी महिला का भी साक्षात्कार ले ही लीजिए।
ReplyDeleteआपके दर्शन पाकर कोई दुखी-राम दुखि नहीं रह सकता.
ReplyDeleteदुखि-राम के दुःख की ऐसे छुट्टी कर दी की अब उन्हें कुछ नए दुखियो से मिलके नोर्मल होना पढ़ेगा.
ऐसे दुखियो से मित्रता बढ़ी भारी पढ़ती है. लाख उपाय कर लो, दुनिया की हर अच्छी बुरी बात समझा दो, उसमे से भी दुःख निकाल लेते हैं.
कुछ हमारे पल्ले भी पढ़े हुए हैं. अब दोस्ती की है तो निभानी तो पढेगी.. पर कोशिश करके ये दुखि-राम जी का interview उन्हें दिखायेंगे. क्या पता हंस पढ़े! कहीं और इंस्पायर हो गए तो लेने के देने पढ़ जायेंगे..
जैसी प्रभु की इच्छा!
बढ़िया है!
वाह, आनंद ही आनंद!यदि दुखीराम के इंटरव्यू में इतना आनंद है तो सुखीलाल के में क्या होगा?
ReplyDeleteघुघूती बासूती
दुख में रमने में जिसे आनन्द आ रहा हो, वह दुखीराम। एक से निकले, दूसरे में कूद लिये।
ReplyDeleteदुखीराम जी को chocolate की सख्त ज़रूरत है, मगर फिर मैं सोचता हूँ कि कहीं chocolate खा कर वह सुखी न हो जाएं| अब मैं दुखी हूँ|
ReplyDelete