सिवाय गीतकार के बाकी सब के लिए फ़िल्मी गीत सुनने के लिए होते हैं. उधर गाना बजा इधर आवाज़ कान तक पहुंची और हमने सुन लिया. मन में आया तो गुनगुना लिया. अन्दर 'बाथरूमी' टैलेंट रहा तो गा लिया. अन्दर के टैलेंट को बाहर निकालने वाले मिल गए तो उनके सहयोग से उसे रियलिटी शो में निकाल बाहर किया. अपने लिए वोट डलवा लिया और जीत गए. लेकिन यह सब करते समय लोग़ फ़िल्मी गीतों के बारे में सवाल नहीं करते.
इतिहास बताता है कि किसी ने गुलशन बावरा से सवाल नहीं किया कि; "भाई साहब, किस देश की धरती सोना, हीरे-मोती नहीं उगलती? क्या केवल हमारे देश की ही धरती ऐसा करती है? आप क्या हमें यह बताना चाहते हैं कि पाकिस्तान में सोना आसमान से बरसता है? वहाँ भी तो धरती से ही निकलता होगा."
किसी ने साहिर साहब को इस बात के लिए नहीं कोसा कि उन्होंने "इस देश का यारों क्या कहना, ये देश है दुनियाँ का गहना" लिखकर भारत की ऐसी-तैसी करवा दी. उसके गाने का अर्थ अपने अंदाज़ में निकालते हुए दुनियाँ ने भारत को गहना समझ कर लूट लिया. इधर हम हम बजाते रहे "....यह देश है दुनियाँ का गहना" और उधर वे लूटते रहे. अब इतिहास बताता है कि हमें लुटने में मज़ा आता है लिहाजा हम लुटते हुए मज़े लेते रहे. कुछ कर नहीं सके.
अभी दो दिन हुए, टीवी पर एक गीत देख रहा था. फिल्म पाकीजा का; 'चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो...'
बड़ा सुन्दर दृश्य था. रात थी. चांदनी थी. झील थी. नाव थी. नाव पर पाल थी. नायिका थी. और एक अदद नायक था. इतने 'थी' के बीच एक 'था'. जैसे गोपियों के बीच बांके बिहारी.
ऐसा नहीं है कि पहले यह गीत नहीं देखा था. पहले भी देखा था और अच्छा भी लगा था लेकिन पता नहीं इस बार क्यों देखते-देखते एक सवाल मन में आया कि "यार, ये नायक बड़ा अजीब है. नायिका से कह रहा है कि चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो" और जब नायिका कह रही है कि "हम हैं तैयार चलो" तो फिर बात को टाल दे रहा है. नायिका के अग्रीमेंट वाली लाइन गाने के बाद चाँद के पार जाने पर कोई बात ही नहीं कर रहा. कोई प्रोग्राम नहीं बता रहा कि कैसे जाएगा? चाँद के कितने पार तक जाएगा? वहाँ जाकर क्या करेगा? कुल मिलाकर बात को टालने के चक्कर में है.
मैं कहता हूँ कि भैय्ये, जब नायिका को चाँद के पार ले जाने का लालच दे रहे हो तो उसे निभाओ भी. ये क्या बात हुई कि उधर नायिका बार-बार तैयार हो रही है और तुम हो कि उसके बाद उसे भाव नहीं दे रहे हो. मजे की बात यह कि ऐसा आज से चालीस साल पहले हो रहा था. पाकीजा सन इकहत्तर में बनी थी. जिन बुजुर्गों को आज के नौजवानों से शिकायत रहती है वे प्रेम में सीरियस नहीं रहते मैं उनसे कहता हूँ कि; "तब के नौजवानों की करतूत देखें. देखें कि तब के नौजवान प्रेम में कितना सीरियस रहते थे? देखें कि किस तरह से वे नायिका को झांसा देते थे. देखें कि नायिका को कितना मान देते थे."
मैंने सोचा कि इस मुद्दे पर लोगों से बात की जाय. फिर समस्या यह आई कि अपने देश में इतने तरह के लोग़ हैं. न जाने कितने समाज हैं. इन समाजों के न जाने कितने कितने महत्वपूर्ण प्रतिनिधि हैं. किनसे-किनसे बात करूंगा? फिर लॉटरी करके पाँच-छ लोगों का नाम निकलना पड़ा. देख रहे हैं न कि हम इस मुद्दे पर कितना सीरियस हैं? खैर, जिन लोगों की लॉटरी लगी मैंने उनसे इस गीत की बाबत सवाल पूछा. आप पढ़िए कि उन्होंने क्या कहा?
सबसे पहले पूछा श्री राम खेलावन मल्लाह से. जब नायक-नायिका यह गाना बड़े मीठे सुर में नाव पर बैठे गा रहे थे तब खेलावन ज़ी नाव खे रहे थे. पढ़िए कि उन्होंने क्या कहा?
राम खेलावन ज़ी; "देखिये, हीरो का नीयत पर त हमको भी शंका था. सही बताएं त कई बार मन में आया कि इनको टोंके कि भइया जब हीरोइन कह रही है कि ऊ चाँद के पार आपके साथ जाने के लिए तैयार है त आप इस मुद्दे पर अउर बात काहे नहीं कर रहे. आप अपना परपोजल बड़ा राग में गाकर ओनके सुनाये.कि; "चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो.." आपकी बात सुनकर ऊ आपसे भी बढ़िया राग में गाकर उसका जवाब दिए कि; "हम हैं तैयार चलो". उसके बाद आप चुप. हम कहते हैं एतना राग में अगर ऊ कोई रियलिटी शो में गाती त चैपियन हो जाती. अच्छा, बात खाली एहीं ख़तम नहीं होती है. ऊ आगे गाकर बताई कि; "आओ खो जायें सितारों में कहीं, छोड़ दें आज ये दुनियाँ ये ज़मीं..." इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि उनको आपके ऊपर एतना भरोसा है कि ऊ पूरा तरह से दुनियाँ अउर ज़मीन छोड़कर जाने के बास्ते तैयार हैं. लेकिन आप हैं कि आगे कुछ करते ही नहीं. अच्छा ई सुनिए, जब उनको लगा कि आप भाव नहीं दे रहे हैं त ऊ बोलीं कि; "हम नशे में हैं संभालो हमें तुम, नीद आती है जगा लो हमें तुम." मतलब कि हमारे उप्पर ध्यान दो तुम.
अउर ई सुनकर आप क्या किये? आप अउर राग में गाने लगे; "चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो..." हम आपसे पूछते हैं कि जब ऊ कह रही हैं कि उनको नींद आ रही है अउर आपसे खुद को जगाने का डिमांड कर रही हैं त आपका धरम बनता है कि आप उनको नींद से जगाएं अउर चाँद के पार ले जाने का अपना वादा निभाएं. बाकी आप क्या कर रहे हैं? आप अउर तान छेंड दे रहे हैं. आपको ख़याल नहीं है कि बढ़िया राग में गायेंगे तो उनको अउर नींद आएगी? .......अउर एही नहीं, आगे सुनिए. शंका त हमको ई बात पर भी हुई कि आप किसका भरोसे चाँद के पार जाने का बात कर रहे हैं? आपके पास न तो कौनो बिमान है. ना ही कौनो स्पेसशिप है. महराज आप बैठे हैं नाव में अउर चाँद के पार जाने का बात करते हैं? आज तक रेकाड है कि कोई भी आदमी नाव पर सवार होकर चाँद पर नहीं जा सका है. आपको एतना सिम्पुल बात नहीं बुझाया?...खाली एक लाइन पर अटके रहे. बार-बार एक ही बात; "चलो दिलदार चलो..चलो दिलदार चलो..." ऐसा कहीं होता है? जे हीरो अपना हीरोइन का बात पर ध्यान नहीं देगा ऊ लभ स्टोरी को कैसे आगे बढ़ाएगा?.....
उसके बाद मेरी बात हुई नेता गिरधारी लाल फोतेदार ज़ी से. इस गीत पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए उतावले थे. छूटते ही बोले; "आये दिन हमारे ऊपर आरोप लगता है कि हम अपना वादा नहीं निभाते. चुनाव के समय जनता से वादा करते हैं लेकिन भूल जाते हैं अउर नहीं निभाते. आज आप खुद ही सोचिये कि यह हमने कहाँ से सीखा है? जनता से वादा न निभाने का जो रोग आज हर राजनैतिक पार्टी में पनपा है वह हम नेताओं ने इस गीत को देखकर सीखा है. सच्चाई यह है कि पाकीजा आने से पहले तक हम नेता लोग़ जनता से किया गया वादा निभाते थे लेकिन जैसा कि आप जानते हैं एक फिल्म का नेताओं पर बहुत असर पड़ता है, इस फिल्म का भी हमारे ऊपर असर पड़ा. इतना गहरा असर कि हमने वादा वगैरह निभाने के बारे में सोचना बंद कर दिया. आप देखिये और मानिए कि केवल राजनीति फिल्मों को प्रभावित नहीं करती, फिल्में भी राजनीति को प्रभावित करती हैं. खुद ही सोचिये कि एक आदमी वन टू वन लेवल पर अपना वादा निभाने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में आप नेताओं से कैसे आशा कर सकते हैं कि वे जनता से किये गए वादे निभाएं? आपको नहीं लगता कि..... "
इसी मुद्दे पर समाजशास्त्री दीपांकर गुप्ता ने बात करते हुए कहा; "देखिये शोध बताता है कि सत्तर के दशक के शुरुआत में गीतों में नायकों ने सामाजिक स्तर पर एक-दूसरे को नीचा दिखाना शुरू कर दिया था. इस गीत को ही लीजिये. नायक अपनी नायिका को चाँद के पार ले जाना चाहता है. आप अगर ध्यान देंगे तो इसके पहले तक फ़िल्मी गीतों में नायक अपनी नायिका से चाँद, तारे, ग्रह, उपग्रह वगैरह को तोड़ लाने की बात करता था. मुझे लगता है कि शायद दूसरे नायकों के आगे यह नायक खुद को हीन भावना से ग्रस्त पाता होगा. यही कारण होगा कि अपने गीत में उसने नायिका से सीधे चाँद के पार जाने का वादा कर लिया. इस गीत को अगर हम सोसियो-इकॉनोमिक-पोलिटिकल ऐंगल से देखें तो पायेंगे कि कभी-कभी आदमी ऐसा कुछ कहता है जो वह कर नहीं सकता. और ऐसा नहीं कि उसे इस बात का भान नहीं है कि वह कर नहीं सकता. उसे यह बात पता है लेकिन समाज से इतना सताया हुआ रहता है कि एक तरह जिद उसके अन्दर घर कर जाती है. आप अगर उस समय की घटनाएं देखें तो पायेंगे कि यह वह समय था जब भारतीय समाज एक विकट परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा था. इस गीत का सोशल और ह्यूमन आस्पेक्ट अगर ध्यान से देखें तो हम पायेंगे कि......"
इसी मुद्दे पर अपने मनोहर भइया यानि महान समाजवादी राम मनोहर ज़ी बोले; "शिव, मेरा ऐसा मानना है कि यह गीत अपने आप में एक ऐतिहासिक गीत है. यह गीत एक तरह से हमारे अन्दर आशा का संचार करता है. यह हमें बताता है कि हम काव्य के सहारे किस तरह से साम्राज्यवादी अमेरिका पर चोट कर सकते हैं. यह गीत साम्राज्यवाद के मुँह पर एक तमाचा है. मुझे मालूम है कि तुम सोच रहे हो कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? चलो तुम्हें बता ही देता हूँ. घटनाओं को देखो तो तुम्हें याद पड़ेगा कि सन १९६९ में अमेरिका ने यान भेजकर अपने दो अंतरिक्ष यात्रियों को चाँद पर उतारा था. अब अगर इस गीत में नायक यह कहता कि वो नायिका को चाँद पर ले जाना चाहता है तो नायिका को लगता कि चाँद पर जाना कौन सी बड़ी बात है? अभी दो साल पहले ही अमेरिका के दो लोग़ चाँद पर गए थे. इसीलिए कैफ साहब ने ऐसा लिखा कि चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो, माने यह कि भले ही नायक आम भारतीय है लेकिन सोच में वह किसी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री से कम नहीं है. अगर अमेरिका वाले चाँद पर जा सकते हैं तो एक आम भारतीय चाँद के पार तक जा सकता है. वैसे भी कैफ भोपाली साहब की गिनती इंकलाबी शायरों में होती है. तुम मानों या न मानो, यह गीत हिंदुस्तान के लिए एक धरोहर है. एक ऐसा धरोहर जिसने अमेरिकी साम्राज्यवाद के मुँह पर करार तमाचा जड़ा था...."
जब मैंने प्रसिद्द अंतरिक्ष वैज्ञानिक एस वेंकटेसन नायर से इसके बारे में बात करनी चाही तो वे बोले; "दिस्स यिज याल रब्बिस. अई मीन हाऊ कुड यि हैव गान बियांड मून, दैट टू, सिटिंग यिन या याच? यैंड यिवेन यिफ्फ़ ई ऐड या प्लान, ई शुड हैव यिस्पेसिफाइड यिट. अई मीन नेम याफ दा प्लानेट, ई वांटेड टू ल्यैंड यपान. दिस्स सांग यिज टोटली यन-साइंटिफिक. वन्न शुड नाट यिस्पिक यबाउट समथिंग विच यि कैन नॉट डू यैंड विच इज्ज नॉट सपोर्टेड बाइ साइंस..."
Monday, May 2, 2011
चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो.....
@mishrashiv I'm reading: चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो.....Tweet this (ट्वीट करें)!
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उफ़...क्या कहूँ ?????
ReplyDeleteतुम्हारा दिमागी घोडा कहाँ कहाँ तक जाता है और क्या क्या देख आता है...देख रही हूँ...
जबरदस्त...लाजवाब ...
`. इतने 'थी' के बीच एक 'था'.'
ReplyDeleteअरे भैया, गीत भी था और राम खेलावन भी था। ये ‘थी’ थोडे ही थे :)
हम है तैयार चलो।
ReplyDeleteइतने 'थी' के बीच एक 'था' ..
ReplyDeleteइतनी पैनी नज़र से केवल आप ही देख सकते हैं.
इस बार पोस्ट पढने के लिए लंच-टाइम चुना था ताकि कोई हस्ते-हस्ते रोते देख पगलाया न समझ ले.
पढ़ते हुए लगा पहले गीत के बोल चेक कर लेने चाहिए वरना हर जोक समझ नहीं आएगा. फिर सवाल पूछे जायेंगे और नयी पोस्ट का बहाना मिल जायेगा (मजाक! मजाक!)
और क्या पकड़ा है आपने. इसमें तो सच में नायक को केवल उन् दो लाइनों के अलावा और कुछ नहीं दिया गया है..
आपका पूरा रेसेअर्च सेंत-परसेंट कोर्रेक्ट है.
यानी लडको का "के" कहलाया जाना कोई नयी बात नहीं है.
वेंकटेसन नायर जी के अलावा सबके विचार सही लगे. नायर जी को तो किसी भी बात में लोजिक नहीं मिलता है.
सप्ताह की बढ़िया शुरुवात!
धन्यवाद गुरुदेव!
:) ;) :D :P
ReplyDeleteजब पहली बार पिक्चर हॉल में इस गीत को सुना था तो चलो दिलदार की जगह हमने तो गिरनार सुन लिया था। बस हँसी के मारे आगे का सुन ही नहीं पाए कि चाँद पर जा रहा है या सूरज पर। हम यह कहकर हँस रहे थे कि गिरनार तो जैन तीर्थ हैं, वहाँ जाकर यह क्या करेगा?
ReplyDeleteआपको महान व्यंग लेखक मानने में जो थोडा बहुत संदेह था वो इस पोस्ट को पढ़ कर जाता रहा. आप कमाल कर दिए हैं.
ReplyDelete"चलो दिल दार चलो...." कोई व्यक्ति इस गीत पर ऐसा विलक्षण लेख कैसे लिख सकता है ये सोच कर हैरानी होती है. आपने सोचा कैसे के इस गीत पर इस तरह से कुछ लिखें...अद्भुत...आपने लेखन की नयी परंपरा का शुभारम्भ कर दिया है अब देखिएगा कल को सभी ऐरे गिरे नथ्थू खैरे नुमा इंसान अपने अपने ब्लॉग पर आपकी तरह हिंदी गीतों की इसी तरह किरकरी किया करेंगे...ऐसे फ़िल्मी गीतों की हिंदी सिनेमा में कोई कमी तो है नहीं...एक से एक भरे पड़े हैं...बस लोग समझ नहीं पा रहे थे के उनपर अलग सा कैसे लिख सकते हैं...आप ऐसे ऐसे लेखकों के लिए पथ प्रदर्शक बन गए हैं.
कुल मिला कर मुझे ये कहते हुए गर्व हो रहा है के "आप महान हैं"
श्री राम खेलावन जी तो एकदमे गजबे ढा दिए हैं. एक और कमाल की पोस्ट. अरे नहीं-नहीं उ बात नहीं है. पोस्ट तो आपकी ही है, पर है कमाल की. अब कमाल आके ये न कह दे पोस्ट उसकी है :)
ReplyDeleteसही में कमाल साहब का लिखा लेख लग रहा है। आपको तो कमाल का ब्लागर का इनाम मिलना चाहिये। क्या उसे किसी और को थमा दिया गया।
ReplyDeleteहमको तो मनोहर भैया समाजवादी का बयान सही लगता है।
वैसे लगता है कि प्रेमी योजना आयोग में काम करता होगा। उसका काम केवल मसौदा बनाना होगा। अमल में लाना दूसरों का काम होगा। :)
फुरसतिया सुकुल जी ने जो बताया है उस लाइन पर रिसर्च आगे बढ़ाई जा सकती है. लेकिन हमको इसमें एक और संभावना देखलाई देता है. अरे भाई यहू त हो सकता है कि पहले नायक जी चांद के पार जा के कौनो प्रोजेक्ट मिलने क उम्मीद रहा हो और बाद में ऊ प्रोजेक्ट जल्दी में पूरा कराने के लिए किसी और को दे दिया गया हो- चार-पाच सौ गुना ज़्यादा की लागत पर. तब ई जा के करते का? एहीलिए रुक गए होंगे. सोचे होंगे चलो, धरती पर भी एक ठू कामनबेल्थ होन ही वाला है 2010 में, का उहां जाएं!
ReplyDeleteआदरणीय,
ReplyDeleteआप जो भी लिखते हो कलम तोड़ लिखते हो,
हर एक विषय का निचोड़ लिखते हो,
मै तो आप से बहुत सिख रहा हूँ,
एक नई कविता नित लिख रहा हूँ,
चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो,
मेरा मन कहता है "आदरणीय" बार बार चलो,
बहुत उत्क्रष्ट लेख, इतना मार्मिक लेख पढ़ने का अवसर आपने मुझे प्रदान
किया, इसके लिए आपको बहुत धन्यवाद..
नीरज भाई ने एकदम दुरुस्त कहा है - आप महान हैं !! अपनी बात कहने के लिए कोई भी विषय पकड़ लेते हैं और कह जाते हैं . लोग विषय खोजते हैं और रही बात , वो तो खैर पढ़ने वाले खोज पाएँ तो भी गंगा नहाना हो जाए.
ReplyDeleteBilkul sateek xwyakhya gazab kar diya bhai ji
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