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Tuesday, June 7, 2011

'प्रजा' सो रही नींद में, बरसत लाठी-बेंत....


@mishrashiv I'm reading: 'प्रजा' सो रही नींद में, बरसत लाठी-बेंत....Tweet this (ट्वीट करें)!

आधे घंटे पहले कोई सवा सौ ग्राम तुकबंदी इकट्ठी हो गई. इकट्ठी हुई तो कुछ 'धोये' निकाल आये. अगर झेल सकते हैं तो झेलिये.


करता है आदर कभी, कभी बताये चोर
कभी कहे कौवा उन्हें, यूं सरकारी जोर

सब जिसको बाबा कहें, उनको कहता गून
सब समझें चीनी जिसे, वो बतलाये नून

इक बाबा तो मौन है, और एक चिल्लात
इक सोये जब रात में, दूजा मारे लात

'प्रजा'सो रही नींद में, बरसत लाठी-बेंत
लोकतंत्र मुर्दा यहाँ, उसका यह संकेत

दिल्ली लंका सदृश अब, रावण करे निवास
सब पे कब्ज़ा कर लिया, धरती और अकाश

जिनको समझे थे सभी, जनता की आवाज़
चारण बन सरकार के, लुटा रहे हैं लाज

सच्चरित्र कहते उसे, जो है राष्ट्र प्रधान
चूहा बन बिल में घुसा, प्रजा रहे हलकान

कठपुतली सारे यहाँ, रानी करती राज
दरबारी बनकर वही, रोज गिराते गाज

कहते सब राजा जिसे, दिखे वही शैतान
जिह्वा पर कंट्रोल नहि, भूंके कुकुर समान

गृहमंत्री शकुनी सदृश, चलता रहता चाल
मोड़े मुख कर्त्तव्य से, दोपहर,सांझ,सकाळ

चरण कमल धोकर सदा चरणामृत पी लेव
रानी के चारण सभी, होठों को सी लेव

धूर्त, क्रूर मंत्री सभी, लागें कंश समान
जनता का करते वही, रोज-रोज अपमान

दुर्योधन चुप ही रहे, यह कलिकाली चाल
कलियुग का जयद्रथ यहाँ, खूब बनाये माल

मन का मोहन मौन है, जलता जाए राष्ट्र
करे आचरण ज्यों किये, द्वापर में धृतराष्ट्र

जिनको समझें द्रोण हम, वह भी करें प्रपंच
गलत-सलत बोलें सदा, जब मिल जाए मंच

उधर दुशाला रच रही, एक बड़ा षड्यंत्र
समय देखि के वार हो,उसका है यह मन्त्र

प्रथम यज्ञ में डारि जल, दुर्योधन मदहोश
चारण भी हैं कर रहे, उसका ही जयघोष

किन्तु समय कब पलट ले,यह जाने ना कोय
कभी-कभी सम्राट भी जनता सम्मुख रोय

21 comments:

  1. सवा किलो नहीं, सवा कुन्टल बोझ है।

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  2. समय बहुत बलवान होता है... पुरुष बली नहिं होत है, समै होत बलवान... भिल्लन लूटी...

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  3. सुनने में आया है कि रामदेव जी ने प्रधानमंत्री जी को माफ़ कर दिया है :-/

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  4. वर्तमान स्थिति का बिलकुल सटीक चित्रण।

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  5. दोहे गज़ब के हैं, वैसे लोकतंत्र का समय खराब चल रहा है। जहाज़ टेढा है, कई चूहे दूसरे साफ जहाज़ में कूदने को तैयार बैठे हैं।

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  6. आपने दोहे को धोये क्‍यों लिखा है, पहले तो यह बताएं? क्‍या धोना है? सरकार तो जनता को धोने पर तुली है, उसने अपना लोकतंत्र का नकली मुखौटा उठाकर फेंक दिया है और वास्‍तविक रूप से आगयी है। याद करिए कि 1984 में इसी सरकार ने क्‍या किया था? अब सम्राट कब जनता के सम्‍मुख रोयेगा इसी का इंतजार है।

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  7. शिव भ‍इया के धोयरे लागे जस तेजाब।
    रानी राजा मंतरी पुनि-पुनि मांगे आब॥

    बाबा का चोला हुआ अनशन में बदरंग।
    मनमोहन साबित हुए सबसे बड़े दबंग॥

    आपका लेखन बड़ा प्रेरक है जी...

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  8. इन धोवंत धोवों के वजन और सुन्दरता की तो क्या कहूँ......
    एक शब्द नहीं दिख रहा ऐसा जो इसकी बराबरी में लाकर खड़ा कर सकूँ प्रशंसा स्वरुप....

    बस जियो....
    आत्मा प्रसन्न कर दिए...

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  9. गजब के धोए हैं आप तो!सबको धो दिया किसी को मैला नहीं छोड़ा.
    अब हमें प्रजा जी से शिकायत है. भई, वह खुले में नींद, में क्यों सोई थी? लुक छिप के सोना चाहिए था.कुछ लोग अपने लट्ठ बेंत चलाने का अभ्यास कर रहे थे. वहीं पर लोग सोए हुए थे. कुछ को यहाँ वहाँ जरा लग गए.मरहम लगा दिया गया है.
    घुघूती बासूती

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  10. बहुत ही सटीक दोहे है भाईसाहब....!!

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  11. हमारी सरकार..... चोर मचाए शोर :)

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  12. जिनको समझें द्रोण हम, वह भी करें प्रपंच
    गलत-सलत बोलें सदा, जब मिल जाए मंच
    वाह वाह क्या धोये बिना साबुन के और श्री शंकर त्रिपाठी जी के दोहे भी कमाल हैं आभार।

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  13. कहाँ थमे हैं आप शिव भैया? इधर तो अफ़सोस होने शुरू हो गये कि हरिद्वार में लाठीचार्च नहीं हो रहा, काहे से कि उधर अच्छी वाली सरकार नहीं है।

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  14. आपके ब्लॉग की पोस्ट "एक सशक्त ब्लॉग लेखन पर फुटकर विचार" की चर्चा हमारीवाणी ई-पत्रिका के कॉलम "ब्लॉग-राग" के अंतर्गत की गई है.

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  15. पोस्ट का लिंक है:

    http://news.hamarivani.com/archives/1737

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  16. वाह...वाह...वाह...क्या धोएं हैं...अहहहः...वावावावावाव...याने पूरा ही मैल निकाल दियें हैं कमबख्त...खींच खींच के निकाले हैं...ऐसी धुलाई न कभी देखि न सुनी रे भैय्या...आपतो धुलाई सम्राट हैं...पहले धोबी घाट पे काम किये थे क्या? धोते भी हैं और धोबी पछाड़ दाव भी लगाते हैं...
    क्या धोया है आपने सबको बीच बाज़ार
    हर्षित तो हर जन भया पर रोई सरकार
    सिया वर रामचंद्र की जय...पवन सुत हनुमान की जय.

    नीरज

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  17. वाह क्या धोएं हैं भाईसाहब.

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  18. क्या दोहे हैं... नहीं नही यूं कहें कि क्या धोये हैं!

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  19. जबरदस्त धुलाई करे हो साहब जी । लोकतंत्र के अजगर ने करवट तो ली है देखें कब किसको लेता है अपने लपेटे में ।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय