पत्रकारिता केवल वह नहीं होती जो टीवी न्यूज़ स्टूडियो में बैठकर की जाती है. पत्रकारिता वह भी होती है जो फील्ड में रहकर की जाती है. अब हमारे चंदू को ही ले लीजिये. उधर सुरेश कलमाडी जी को डिमेंसिया यानि भूलने की बीमारी की खबर आई और इधर चंदू को बेचैनी की बीमारी ने घेर लिया. बेचैन रहने लगा कि सुरेश कलमाडी जी का इंटरव्यू किसी भी तरह से लेकर आये. मैंने कहा; "वे जेल में बंद हैं. वहाँ इंटरव्यू नहीं लिया जा सकेगा"
वह बोला; "जेल से फिरौती का धंधा चल सकता है, जेल से राजनीति चल सकती है, कलमाडी जी जेल में रहकर अपने एमपी फंड से चेक काट सकते हैं तो फिर जेल में इंटरव्यू क्यों नहीं लिया जा सकता?"
मैंने कहा; "मेरी तो कोई जान-पहचान नहीं है कि मैं किसी को कहकर उनके इंटरव्यू का इंतज़ाम करवा सकूँ. तुम्हारी कोई जान-पहचान हो तो तुम जाओ."
चंदू बोला; "एक बार मैंने तिहाड़ में एक हवलदार की हेल्प से एक स्वामी जी का इंटरव्यू लिया था. उसी को फिर से पटाते हैं."
इतना कहकर चला गया. कल शाम को लौटा तो हाथ में कलमाडी का इंटरव्यू था. पेपर देते हुए बोला; "सुबहे ब्लॉग पर छाप दीजिये नहीं तो कोई न्यूज़ चैनल इसी को एक्सक्लूसिव बताकर दिखा देगा."
तो मैं चंदू द्वारा लिया गया कलमाडी जी का इंटरव्यू छाप रहा हूँ. आप बांचिये.
चंदू: कलमाडी जी, सुना है आप डिमेंसिया के शिकार हो गए हैं?
कलमाडी: ये डिमेंसिया क्या होता है?
चंदू: (धीरे से) लगता है सही में शिकार हो गए हैं.
कलमाडी : आपने कुछ कहा?
चंदू: नहीं-नहीं, मैंने कुछ कहा नहीं. मैं यह पूछ रहा था कि आपको कब लगा कि आपकी याददाश्त जा रही है?
कलमाडी: मुझे नहीं लगा. दस दिन पहले मेरे वकील ने बताया कि मेरी याददाश्त धीरे-धीरे चली जा रही है.
चंदू: लेकिन याददाश्त तो आपकी है. उन्हें कैसे पता चला?
कलमाडी: क्या कैसे पता चला?
चंदू: (धीरे से बुदबुदाते हुए) लगता है सही में गए...नहीं मैं पूछ रहा था कि याददाश्त तो आपकी पर्सनल है, आपके वकील को कैसे पता चला कि वो खो रही है.
कलमाडी: अच्छा, वो पूछ रहे हैं. वो हुआ ऐसा कि मैंने उनकी फीस का जो चेक दिया उसमें तारीख गलत लिख दी. उसे देखकर वे बोले कि मैं डिमेंसिया का शिकार हो गया हूँ.
चंदू: केवल तारीख गलत लिख देने से वे इस नतीजे पर पहुँच गए.
कलमाडी: कौन पहुँच गया?
चंदू: वही, आपके वकील साहब.
कलमाडी: कहाँ पहुँच गए?
चंदू: सर, आप मेरी बात समझ नहीं रहे हैं. आपकी बात सुनकर लग रहा है कि आप मेरा इंटरव्यू ले रहे हैं. मैं यह कह रहा था कि चेक पर केवल तारीख गलत लिख देने से वकील साहब मान गए कि आप डिमेंसिया के शिकार हो गए हैं?
कलमाडी: हाँ, ऐसा ही तो हुआ. वैसे भी वकील कुछ भी मान सकते हैं और कुछ भी मनवा सकते हैं.
चंदू: और कोई घटना ऐसी हुई क्या जिससे लगे कि आप डिमेंसिया के शिकार हो गए हैं?
कलमाडी: मैं तो नहीं मान रहा था लेकिन वकील साहब ने ही बताया कि एक घटना हाल में ही घटी जिससे मेरी याददाश्त के खो जाने की बात साबित होती है.
चंदू; कौन सी घटना?
कलमाडी: वकील साहब ने ही याद दिलाया कि मैं उस दिन जेलर के आफिस में बैठकर जो चाय, बिस्कुट और नमकीन उड़ा रहा था वह भी डिमेंसिया की वजह से ही हुआ होगा.
चंदू: वह कैसे?
कलमाडी: उनका मानना है कि डिमेंसिया के चलते ही मैं जेलर के आफिस को अपना घर समझ बैठा.
चंदू: लेकिन मैंने तो यह भी सुना है कि आप जेल में ही रहते हुए अपने एमपी फंड से खर्च भी कर रहे हैं.
कलमाडी: उसको लेकर भी वकील साहब ने साबित कर दिया कि एमपी फंड से खर्च करना इस बात को साबित करता है कि मैं सच में डिमेंसिया का शिकार हो गया हूँ.
चंदू: वह कैसे?
कलमाडी: एक दिन वकील साहब ने बताया कि मैं यह भूल गया हूँ कि मैं एमपी भी हूँ और मेरा एमपी फंड खर्च के लिए तरस रहा है. उनके याद दिलाने के बाद कि मैं एक एमपी हूँ, मैंने अपने फंड से खर्च करना शुरू किया.
चंदू: लेकिन मुझे तो लगता है कि डिमेंसिया आपका कानूनी दाव-पेंच है खुद को बचाने के लिए.
कलमाडी: मिस्टर अरनब गोस्वामी आप मेरे ऊपर ऐसे आरोप लगाकर गलती कर रहे हैं. मैं वार्निंग दे रहा हूँ कि अगर एक बार और आपने ऐसा आरोप लगाया तो मैं आपके खिलाफ और आपकी टाइम मैगजीन के खिलाफ आदालत में डिफेमेशन केस फाइल कर दूंगा.
चंदू: सर जी, मैं अरनब गोस्वामी नहीं हूँ. मैं चंदू चौरसिया हूँ. और बाइ द वे, अरनब गोस्वामी टाइम मैगजीन में काम नहीं करते वे टाइम्स नाउ चैनल के पत्रकार हैं.
कलमाडी: ओह, मैं तो भूल ही गया था. देखिये ये डिमेंसिया का ही असर होगा.
चंदू: आपके वकील साहब को क्या लगता है? क्या आपकी यह डिमेंसिया वाली बात सचमुच ठोस है?
कलमाडी: क्या ठोस है?
चंदू: मैं पूछ रहा था कि यह डिमेंसिया वाली बात क्या साबित कर पायेंगे आप और आपके वकील साहब?
कलमाडी: हाँ, बिलकुल कर पायेंगे. दरअसल मेरी खराब होती याददाश्त और अपनी तेज याददाश्त के सहारे मेरे वकील साहब फिर साल २००९-१० में गए. उन्होंने मुझे याद दिलाया कि गेम्स ओर्गेनाइजिन्ग कमिटी का चीफ होने के बावजूद मैंने समय पर तैयारी नहीं की. दरअसल मैं भूल जाता था कि मुझे तैयारी करनी है. फिर उन्होंने याद दिलाया कि मैंने इंडियन हाइ कमीशन के डोक्यूमेंट फोर्ज करने के बाद भी लोगों को बताया कि मैंने डोक्यूमेंट फोर्ज नहीं किया. यह डिमेंसिया की वजह से ही था. फिर उन्होंने याद दिलाया कि सारे फैसले मैंने लिए लेकिन याददाश्त ख़राब होने के कारण मैंने दरबारी, महेन्द्रू वगैरह को फँसा दिया. फिर उन्होंने बताया कि........सबसे अंत में उन्होंने बताया कि इन सारी बातों की वजह से मुझपर डिमेंसिया का केस तो बनता ही बनता है.
चंदू: मतलब आपकी तैयारी फूल-प्रूफ है.
कलमाडी: अपनी तरफ से तो तैयारी फूल-प्रूफ ही रहती है. अरनब गोस्वामी जी, चलिए अब इंटरव्यू ख़त्म कीजिए मुझे मूवी देखना है. वकील साहब ये सीडी दे गए थे. देखने के लिए कहा है. हाँ, आपकी टाइम मैगजीन के जिस एडिशन में यह इंटरव्यू छापेंगे उसकी एक कॉपी ज़रूर भेज दीजियेगा.
चंदू: सर जी, मैं अरनब गोस्वामी नहीं हूँ. बाइ द वे, अरनब गोस्वामी टाइम मैगजीन के नहीं बल्कि टाइम्स नाउ टीवी चैनल के पत्रकार हैं.
कलमाडी: वकील साहब ठीक ही कहते हैं. मैं सच में डिमेंसिया का शिकार हो गया हूँ. ठीक है, आप जाइए. मैं मूवी देखने जाता हूँ.
चंदू ने सीडी हाथ में लेकर देखा तो वह आमिर खान की फिल्म गजनी की सीडी थी. उधर कलमाडी जी गज़नी एन्जॉय करने गए और इधर चंदू जेल से बाहर.
मेरी भी पसंद:
काजू भुने पलेट में, ह्विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
---अदम गौंडवी
Wednesday, July 27, 2011
एक मुलाक़ात सुरेश कलमाडी के साथ
@mishrashiv I'm reading: एक मुलाक़ात सुरेश कलमाडी के साथTweet this (ट्वीट करें)!
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इंटरव्यू,
चंदू चौरसिया
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ग़जनी- भाग २ में लगता है अभिनेता (कलमाड़ी) सदमे है या फिर सठिया गिया है | शुक्र है चंदू भाई जल्दी ही निकल लिए वहा se ! :)
ReplyDeleteचंदू: केवल तारीख गलत लिख देने से वे इस नतीजे पर पहुँच गए.
ReplyDeleteकलमाडी: कौन पहुँच गया?
चंदू: वही, आपके वकील साहब.
कलमाडी: कहाँ पहुँच गए?
पहले हंस लूं फिर कमेन्ट करने आऊंगा...आपभी बंधू कमाल करते हैं...बोले तो अद्भुत पोस्ट ...
नीरज
वाह भैया वाह .... आनंद आ गया ... इस आलसी बंदे को भी टिप्पणी करने के लिए बाध्य कर दिया आपने ... वैसे डिमेंशिया बढिया बचाव् है ... हम भी सोच रहे हैं की एक केस फाइल बनवा लें ... भविष्य में काम आयेगा ... पुराना केस होने की वजह से किसी को शक नहीं होगा ...
ReplyDeleteशैलेश
डिमेंशिया का गजनी से कुछ रिश्ता लगता हैं , चूँकि मैंने गजनी नहीं देखि हैं कुछ मिस कर रहा हूँ.
ReplyDeleteजेल से और एक काम होता है पार्लियामेंट के बहस में भाग लेने का , माननीय मधु कोड़ा जी आ रहे
हैं |मौजूदा व्यवस्था पर करारा चोट किया है भैया ... भगवान् से प्रार्थना है कलमाड़ी जी का डिमेंशिया
जेल से रिहा होने तक बनाये रक्खे ...गिरीश
`उनका मानना है कि डिमेंसिया के चलते ही मैं जेलर के आफिस को अपना घर समझ बैठा.'
ReplyDeleteऔर यदि जेलर साहब को पत्नी समझ बैठते तो.......?!
डिमेंशिया के जबरदस्त सोशियो-पोलिटिको-इकनॉमिक लाभ हैं - यह इस पोस्ट को पढ़ कर पता चला! अब एक पुस्तक की तलाश है - How to have Dementia in 7 days and enjoy it fully.
ReplyDeleteपता है कहां मिलेगी?
लगता है मुझे भी डिमेंशिया हो गया है बिना कमेन्ट दिये ही जाने लगी तोचंदो ने कान से पकड लिया कमेन्ट लिखवा कर वो भी कान छोडना भूल गया। कैसी कैसी हालत होती है। ये कलमाडी जाने या मै। चलो मै भी चलती हूँ मूवी देखने।
ReplyDeleteपक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
बिलकुल सही कहा।
'कौन, कहाँ, कैसे' - सफलता के नए फंडामेंटल सूत्र लगते हैं.
ReplyDeleteपढ़ते वक्त कुछ कमेन्ट दिमाग में आया था, पर अब भूल गयी... लगता है इसे पढ़कर मुझे भी भूलने की बीमारी है :-/
ReplyDeleteपूरे कॉमनवेल्थ को खेल खिला दिया, कानून व्यवस्था क्या है?
ReplyDeleteआदरणीय मिश्रा जी, वाकई चंदू जी की तैयारी फूलप्रूफ
ReplyDeleteलगती है,मजा आ गया व्यंग पढ़ कर, बहुत ही बढ़िया अंदाज़ में तमाचे लगाए है साथ ही देश के क़ानून कि लाचारी और विवशता को भी पूरी जिम्मेदारी के साथ बड़े ही सुन्दर शब्दों में व्याक्त किया है आपने....
लगता है कलमाडी जी ने भी इसे बांच लिया और उनकी याददास्त लौट आयी। :)
ReplyDeletekafi vyangatmak chot kiya hai....
ReplyDeleteव्यंग्य और ग़ज़ल दोनों लाजवाब...वाह..वाह...
ReplyDeleteमजा आ गया पढ़कर । धन्यवाद ।
ReplyDelete"क्या कैसे पता चला?"
ReplyDelete"मिस्टर अर्नब गोस्वामी आप मेरे ऊपर ऐसे आरोप लगा कर गलती कर रहे हैं..."
"क्या ठोस है?"
जहाँ जहाँ कलमाड़ी जी फंसे हम वहीँ हँसे. और खूब हँसे.
क्या खूब हैं आपके चंदू जी. ऐसे ही बे-दिमाग बेचारे बीमारों के पास भेजते रहें, हमारा मनोरंजन होता रहेगा.
और अंत में जो आपने सुझाया है, अब वही एकमात्र तरीका बचा है इन समझदारों की बीमारी निकालने का.
अंत: यदि कलमाड़ी जी को यह पढने को दिया जाए, वो शायद पूछे - 'मैं क्यूँ पढु? ये कलमाड़ी कौन है?'
सर जी, मैं अरनब गोस्वामी नहीं हूँ. मैं चंदू चौरसिया हूँ is so so funny LOL
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