एक था लोकतंत्र. अब लोकतंत्र है तो जाहिर सी बात है कि प्रधानमंत्री भी होंगे ही. अक्सर देखा गया है कि प्रधानमंत्री में लोकतंत्र हो या न हो, लोकतंत्र में प्रधानमंत्री होते ही हैं. यह बात तो पाकिस्तान के केस में भी सच होते दीखती है. खैर, प्रधानमंत्री होंगे तो मंत्री भी होंगे. दोनों होंगे तो मीटिंग भी होगी. ज्यादातर लोकतंत्र मीटिंग प्रधान होते हैं. बिना मीटिंग के लोकतंत्र की सफलता पर ग्रहण लग सकता है. लोकतंत्र आज एक बार फिर से सफल हो रहा था.
कहने का मतलब यह कि मीटिंग हो रही थी.
प्रधानमंत्री ने मंत्री जी से पूछा; "आप क्या कहते हैं? जनता में किसकी क्रेडिबिलिटी ज्यादा है? सिविल सोसाइटी की या हमारी?"
मंत्री जी बोले; "ऑफकोर्स वी एन्जॉय बेटर क्रेडिबिलिटी...आई हैव स्पेसिफिक इंटेलिजेंस इनपुट्स दैट वी एन्जॉय बेटर क्रेडिबिलिटी दैन सिविल सोसाइटी. आर जर्नलिस्ट्स हैव आल्सो टोल्ड मी दैट पीपुल ट्रस्ट अस मोर दैन दोज...लुक, वी कैन आल्सो वेरीफाई दोज इंटेलिजेंस इनपुट्स बाइ टैपिंग सम कनवर्सेशंस ऑफ आर सिटीजंस अंडर नेशनल सिक्यूरिटी ...वी कैन आल्सो बग सिटीजंस टू कम टू अ कन्क्लूजन... "
उनकी बात सुनकर पास बैठे एक और मंत्री बोले; "नो नो..इयु डोंट नीड टू डू आल दोज थींग्स. आई नो, हुवाट हैपेन्स हुवेन सामबोडी ईज इस्पाइड . आई नो ईट, सीन्स माई आफिस वाज इस्पाइड..."
प्रधानमंत्री जी बोले; "नहीं-नहीं. वो सब करने की जरूरत नहीं है. आपके इंटेलिजेंस इनपुट्स पर मुझे पूरा भरोसा है. आजतक आपके इनपुट्स कभी गलत साबित नहीं हुए हैं. आप तो मुझे यह बताएं कि सिविल सोसाइटी को कैसे कंट्रोल किया जाय? ये लोग़ मीडिया में बड़ा हो-हल्ला मचा रहे हैं."
उनकी बात सुनकर मंत्री जी बोले; "फॉर दैट, आई नीड समटाइम. सी, आई ऐम बिजी फॉर नेक्स्ट टू डेज ऐज आई हैव टू मैनेज लीकिंग सम स्टोरी अगेंस्ट कलावती जी इन सरताज कोरिडोर केस टू आर जर्नलिस्ट्स. आई विल सर्टेनली कमअप विद अ सजेशन, डे आफ्टर टूमारो."
दो दिन बाद मंत्री जी ने अपने ब्रेनवेव के सहारे यह तरीका निकाला कि सिविल सोसाइटी को इस लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग कमिटी से निकालने का एक ही तरीका है कि लोकपाल बिल ही न बनाया जाय. उनकी बात सुनकर प्रधानमंत्री ने शंका जाहिर की. बोले; "अगर लोकपाल बिल नहीं बना तो जनता नाराज़ हो जायेगी. सोचेगी कि बिना लोकपाल के भ्रष्टाचार फैलता ही जाएगा."
प्रधानमंत्री की बात सुनकर मंत्री जी बोले; "सी, वी विल नॉट हैव टू अप्वाइंट अ लोकपाल. दैट मीन्स, वी विल नॉट हैव टू पास लोकपाल बिल. आल वी हैव टू डू इज टू मैनुफैक्चर लोकपाल पिल. ऐज वी नो, आर साइंटिस्ट्स आर वर्ल्ड क्लास एंड ऑन द डाइरेक्शन ऑफ एच आर डी मिनिस्ट्री, दे हैव कमअप विद अ ड्रग फॉरर्मुलेशन व्हिच विल हेल्प अस वाइप आउट करप्शन फ्रॉम कंट्री. लेट अस पास अ रिजोल्यूशन एंड पब्लिश दैट इन गैजेट, स्टेटिंग दैट गवर्नमेंट विल मैनुफैक्चर लोकपाल पिल व्हिच विल बी गिवेन टू द सिटिजेन्स जस्ट लाइक पोलिओ वैक्सीन ड्राप्स ऑन सिक्स कांजीक्यूटिव संडेज. ट्व्लेव पिल्स पर सिटिज़न एंड वी विल वाइप आउट करप्शन फ्रॉम कंट्री."
प्रधानमंत्री ने अपने मंत्री की ओर तारीफ भरी नज़रों से देखा. बोले; "वाह! इसिलए मैं कहता हूँ कि आप मेरी सरकार के खेवनहार हैं. आप जो कर सकते हैं वह कोई नहीं कर सकता. मैं आज आपसे वादा करता हूँ कि मैं आपको देशरत्न का सम्मान दिलाकर ही प्रधानमंत्री का पद छोडूंगा."
मंत्री जी प्रधानमंत्री को ऐसे देखा जैसे कह रहे हों; "यू डोंट हैव टू वरी फॉर माई देशरत्न. आई विल अवार्ड माईसेल्फ विद देशरत्न, द डे आई बिकम प्राइम मिनिस्टर."
पंद्रह दिन बाद सरकारी गैजेट में सरकारी फैसला छप गया. देशवासी खुश हो गए. जनता इस बात से खुश थी कि अब देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा. भ्रष्टाचारी इस बात से दुखी थे कि अब देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा. कुछ लोग़ ऐसे भी थे जिन्हें समझ नहीं आ रहा था कि खुश हुआ जाय या दुखी? लोकतंत्र में खुद के ऊपर डाउट करने वाले लोगों का रहना बहुत ज़रूरी है. अगर वे नहीं रहें तो लोकतंत्र लोकतंत्र न लगकर राजतंत्र लगे.
गैजेट से पता चला कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस लोकपाल पिल की मैनुफैक्चरिंग से लेकर छ रविवार तक उसे जनता को खिलाने तक पूरा काम देखेगा.
अब पढ़िए कि उसके बाद कैसे-कैसे वार्तालाप हुए;
०१. स्वास्थ्य मंत्री और सुकेश केशवानी के बीच एक वार्तालाप;
सुकेश जी; "नमस्कार. हे हे हे..बहुत दिनों बाद बात हो रही है. सुना है देश से भ्रष्टाचार हटाने का काम आपका मंत्रालय कर रहा है?"
मंत्री जी; "हे हे हे...अब तो देखिये, यह बात तो है."
सुकेश जी; "मतलब अब भ्रष्टाचार हटा के ही मानेंगे...हा हा हा.. वैसे कितने का प्रोजेक्ट है?"
मंत्री जी; "अरे प्रोजेक्ट का क्या है? जितने का कहें, उतने का बनवा दें."
सुकेश जी; "अरे मेरे कहने का फायदा भी क्या? हमें तो कुछ मिलना है नहीं."
मंत्री जी; "क्यों? क्यों नहीं मिलना है?"
सुकेश जी; "इस प्रोजेक्ट के लिए तो केवल फार्मा कम्पनियाँ बिड कर सकती हैं."
मंत्री जी; "केवल फार्मा ही क्यों? ड्रग फौर्मुलेशन के केमिकल्स बनाने वाली कंपनी भी तो बिड कर सकती हैं."
सुकेश जी; "अब हम तो इस फील्ड में हैं नहीं. इसलिए..."
मंत्री जी; "अरे तो आप भी तो केमिकल्स का काम करते ही हैं. भले ही पेट्रोकेमिकल्स का है तो क्या हुआ?"
सुकेश जी; "मतलब कुछ किया जा सकता है?"
मंत्री जी; "क्यों नहीं. टेंडर पेपर चेंज करवा देता हूँ. बिडर का डिफिनेशन ही तो चेंज करना है. अरे केवल लिखवाना ही तो है कि "बिडर इन्क्लूड्स कंपनीज व्हिच हैव लाइसेंस टू मैनुफैक्चर ड्रग्स, केमिकल्स इन्क्लूडिंग पेट्रोकेमिकल्स....."
सुकेश जी; "अच्छा वो नेटवर्थ रिक्वायरमेंट बढ़ा दीजिये. बढ़ाकर साठ हज़ार करोड़ कर दीजिये. ऐसा कीजिए कि और कोई टेंडर कंडीशन पूरा ही न कर सके..."
मंत्री जी; "कल आप आइये तो सही....चलिए फिर कल बारह बजे मिलते हैं..."
०२. एक करप्शन एरैडीकेशन बूथ पर;
-- अबे ये क्या किया?
-- क्यों क्या हुआ?
-- अबे रिकार्ड गलत लिख दिया है.
-- क्या गलत है?
-- अबे आज की रिपोर्ट में लिखा हुआ है कि इस बूथ पर १७५६० लोगों को लोकपाल पिल खिलाई गई.
-- ज्यादा लिख दिया क्या?
-- अबे बेवकूफ इस पूरे इलाके की जनसँख्या ही केवल चार हज़ार सात सौ इक्कीस है.
--क्या करना है अब?
--छोड़ अब लिख ही दिया है तो रिपोर्ट सबमिट करते हुए वहाँ मामला सेटिल कर लेंगे. खर्चा लगेगा तो क्या हुआ? बिल भी चार गुना बनेगा.
०३. ड्रग केमिकल्स सप्लायर और मैन्यूफैक्चरर के बीच बातचीत
-- सर, मेरा बिल पास नहीं हो रहा है. आप जरा ऑर्डर डे दीजिये न तो बिल पास हो जाए.
-- ऐसे ही बिल पास करवाना चाहते हैं?
-- नहीं सर, ऐसे ही क्यों? आपका जो बनता है वो तो आपको मिलेगा ही.
-- और वो जो एक्सपायर्ड क्रोसीन का चूरा बनाकर भेज दिया था लोकपाल पिल बनाने के लिए, वो?
-- क्या बात करते हैं सर?
-- बात तो करेंगे ही. क्या समझते हैं कि हमें पता नहीं है?
०४. प्रधानमन्त्री और सम्पादक की बातचीत;
-- अब देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाएगा?
-- नहीं ख़त्म होगा, यह मानने का कोई कारण नहीं है.
-- आपको लगता है कि लोकपाल पिल काम करेगा?
-- पिल काम नहीं करेगा, यह मानने का मेरे पास कोई कारण नहीं है.
-- आपने भी भ्रष्टाचार की पिल ली है?
-- नहीं, हमने नहीं ली. मैं तो लेना चाहता था लेकिन हमारे मंत्रियों ने लेने से मना कर दिया.
-- आपके मंत्रियों ने ली?
-- नहीं उन्होंने भी नहीं ली.
-- क्यों नहीं ली?
-- मैंने उनसे पूछा कि क्या वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं? उन्होंने बताया कि नहीं वे लिप्त नहीं हैं. इसलिए मैंने कहा कि जब वे लिप्त नहीं हैं तो फिर पिल लेने की उन्हें ज़रुरत नहीं.पिल का साइड इफेक्ट्स भी तो हो सकता है.
-- अब अगर कोई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा तो?
-- हमें चिंता नहीं है. कोलीशन धर्म है न.
Monday, July 18, 2011
लोकपाल पिल
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achha likha hai
ReplyDeleteभयंकर पोस्ट है... दिमाग घूम रहा है शिव भाई ...
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें अपने देश के लिए !
"अबे आज की रिपोर्ट में लिखा हुआ है कि इस बूथ पर १७५६० लोगों को लोकपाल पिल खिलाई गई.
ReplyDelete-- ज्यादा लिख दिया क्या?
-- अबे बेवकूफ इस पूरे इलाके की जनसँख्या ही केवल चार हज़ार सात सौ इक्कीस है."
हा.हा.हा. देश की जनसँख्या की जनगणाना भी कुछ ऐसे ही है...
कौन कौन सा शब्द और वाक्य उठाकर रिकोट करूँ ?????
ReplyDeleteबस ,जबरदस्त ...जबरदस्त ...जबरदस्त !!!
संजय जी की दिव्य दृष्टि लगता है तुमको ही ट्रांसफर हो गयी है...सबकुछ देख लेते हो....एकदम सटीक खांका खींचा है भविष्य का.
संविधान के अगले संसोधन के साथ भारत में रहने की पहली शर्त होगी इस लोकपाल पिल का रेगुलर सेवन...हाँ, मंत्री और संतरी को इसकी छूत से भी दूर रखा जायेगा..
ट्विट्टर पर किसी ने लिखा की ओसमाजी की आत्मा दिग्गी में घुस गयी है
ReplyDeleteयह पोस्ट पड़ कर ऐसा प्रतीत हो रहा हैं लेखकः ने सारे किरदारों में भ्रष्ट्राचारियो
की आत्मा घुसा दिया है | लोकपाल पिल यह कल्पना सिर्फ और सिर्फ शिव भैया
कर सकते है ..एकदम धासु पोस्ट ....हस हस कर पेट दुःख रहा है कोई पिल भेजिए..
गिरीश
lajawab
ReplyDeletei liked the imagined conversations - weera
ReplyDeleteअच्छा तो चार गुना बड़ा बिल ये वाला था?
ReplyDeleteबढ़िया.
बहुत ही स्वादिष्ट, जायकेदार, मजेदार, लजीज, लाजवाब, लगी आपकी "लोकपाल पिल" बेहतरीन व्यंग.
ReplyDeleteepic, as usual.
ReplyDeleteयही हकीकत है, इसी प्रकार से भ्रष्टाचार दूर हो सकेगा. एक ही तरीका है खत्म करने का कि इतना करो कि और किसी के करने के लिये बचे ही न...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गुरुदेव,
ReplyDeleteइतने दिनों का अंतराल पूरी रीसर्च में लगाया आपने. ऊपर से नीचे सबको जान लिया.
कहीं आपकी ये पोस्ट पढ़कर पिल का निर्माण शुरू ही न हो गया हो. पूरा इंतज़ाम कर दिया सबके लिए, क्या डीसाइड किया जायेगा, कैसे टेंडर भरेगा, बूथ के घपले.
आपने ने अपने हाथो खुद ही 'आ-बैल-मुझे-मार' कर लिया. देखिये शायद जल्दी मिनिस्ट्री से आपका बुलावा आता होगा.
और कई तरह की पिल बनवायेंगे आपसे.
इस रोचक और भविष्य-घोषक पोस्ट के लिए आपको बधाई.
पढवाने के लिए धन्यवाद!
लोकबाल पिल :-) मजेदार लिखा है!! मगर ये मंत्री लोग अग्रेजी में बतिया कर हिंदी पढने का आनंद कम कर दे रहे हैं!
ReplyDeleteवाह, पिलपिले लोकतंत्र की जबरदस्त पिलपिलाहट!
ReplyDeleteउम्मीद है कि लोकतंत्र के पिल्ले इस पोस्ट (लोकतंत्र का पिल) को पढेंगे और उनकी आँख खुलेगी.
ReplyDeletefullamfull tapchik post..........
ReplyDeletepranam.
यू डोंट हैव टू वरी फॉर माई देशरत्न. आई विल अवार्ड माईसेल्फ विद viदेशरत्न !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
कमाल की लेखनी है आपकी। ऐसी धार और कहाँ...!!!
ReplyDeleteलोकपाल पिल क्या खूब खिलाया है । वाह जी वाह ।
ReplyDeleteज़ोर दार दमदार पोस्ट। धन्यवाद।
ReplyDeleteलोकतंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसके सुरक्षाचक्र का पिल ७२ घंटे नहीं पांच वर्ष तक सुरक्षित रखता है। उसे पिल के बाद लोकपाल का पिल भी पिलाया जाय तो भी संसद का गर्भपात नहीं होता :)
ReplyDelete'A-Pill' a day, keeps corruption at bay ! :-)
ReplyDeletebehtareen likha hai sir. 'JI MANTRI JI' serial ki yaad aa gayee, different conversations mein. :)