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Thursday, August 9, 2012

समुद्र-मंथन री-विजिटेड


@mishrashiv I'm reading: समुद्र-मंथन री-विजिटेडTweet this (ट्वीट करें)!

समुद्र मंथन हो रहा था. देवताओं और असुरों के बीच वासुकी की खींचा-तानी चल रही थी. मंदिराचल पर्वत समुद्र में ऊपर-नीचे हो रहा था. लाखों दर्शक देख रहे थे. न्यूज चैनल वाले रात-दिन रिपोर्टिंग करने में लगे थे. हर चैनल के संवाददाता मौजूद थे. इन संवाददाताओं को न तो दिन का चैन था और न ही रात का आराम. इधर ये घटना-स्थल से रिपोर्ट कर रहे थे तो उधर ऐंकर लोग़ अपने-अपने टीवी स्टूडियो में बैठे सयाने और बुद्धिजीवियों के साथ समुद्र-मंथन की एनालिसिस किये जा रहे थे. ज्यादातर सयाने इस बात से नाराज़ थे कि असुरों के साथ धोखा हो रहा है. कि उन्हें वासुकी के फन की तरफ वाला हिस्सा पकड़ने के लिए क्यों दिया गया?

एक-एक करके रत्न वगैरह निकाले जा रहे थे. कुछ न्यूज चैनलों ने गंभीरता के साथ सर्वे भी शुरू कर दिया था. कुछ ने जनता को इस बात के लिए ललकारना शुरू कर दिया था कि जनता एस एम एस भेजकर बताये कि आगला रत्न क्या निकलेगा? किसको मिलेगा? अंत में किसकी जीत होगी? वासुकी के फन से निकलने वाले विष से कितने असुर मरेंगे वगैरह वगैरह.

बढ़िया रत्नों को भगवान विष्णु के पास पहुंचाया जा रहा था. जब उनके पास शंख पहुंचाया गया तो उन्होंने उसे बजाकर देखा कि उसकी आवाज़ कहाँ तक पहुँच रही है. चन्द्र निकला तो उसे भगवान शिव के पास पहुँचाया गया और उन्होंने चन्द्र को अपने माथे पर रखकर पार्वती जी से पूछा कि वे देखने में कैसे लग रहे हैं? उनके माथे पर चन्द्र फब रहा है या नहीं? उधर ऐरावत पाकर इन्द्र फूले नहीं समा रहे थे.

जब हलाहल निकला तो टीवी न्यूज चैनल के संवाददाताओं ने अपनी आवाज़ की डेसिबल बढ़ाते हुए रिपोर्टिंग शुरू कर दी. सारे संवाददाता एक ही सवाल कर रहे थे कि अब हालाहल को कैसे संभाला जाय? कौन है वह जो इस हालाहल से इस विश्व की रक्षा करेगा? भगवान शिव ने जैसे ही हालाहल को लेकर अपने मुँह से लगाना चाहा एक न्यूज चैनल के कैमरामैन ने उनसे रिक्वेस्ट कर डाला कि; "हे भगवन, बस एक मिनट के लिए हालाहल से भरे पात्र को अपने मुँह के पास रोक देते तो फुटेज बढ़िया आता."

नंदी जी इस संवाददाता की बात सुन रहे थे. उन्होंने नाराज़ होकर उसे एक सींग दे मारा. संवाददाता वहीँ बेहोश हो गया. इसके बाद पूरी कवरेज का मुद्दा ही बदल गया. अब मुद्दा समुद्र-मंथन के कवरेज से निकल कर मीडिया के साथ होने वाली तथाकथित बदसलूकी पर आ गया. खैर, भगवान शिव ने हालाहल को मुँह से लगाया और पी गए. पार्वती जी ने उन्हें याद दिलाया कि वे कृपा करें और हालाहल को गले से नीचे न उतरने दें. भोले शंकर ने उन्हें अनुगृहीत किया तब वे जाकर शांत हुईं.

अबतक बाकी सबकुछ निकल चुका था. अब बारी थी अमृत के निकलने की. सभी इस बात की सम्भावना से खुश हो रहे थे कि बस थोड़ी ही देर में धनवंतरि जी हाथ में अमृत का घड़ा लिए निकलेंगे. जैसे-जैसे समय नज़दीक आता जा रहा था कि संवाददाताओं और कैमरा थामे लोग़ उत्साहित हुए जा रहे थे. एक टीवी स्टूडियो के ज्योतिषाचार्य ने यह भविष्यवाणी कर रखी थी कि कितने बजकर कितने मिनट पर आयुर्वेदाचार्य धनवंतरि अमृत कलश थामे निकलेंगे. सबकी साँसे रुकी हुई थी. क्या इस बार भी देवतागण कोई चाल चलकर अमृत हथिया सकेंगे? कहीं इस बार ऐसा तो नहीं होगा कि असुरों के राजा कोई चाल चल देंगे? क्या भगवान विष्णु इसबार भी अमृत देवताओं को दे सकेंगे? पूरा विश्व टीवी के सामने से नज़रें हटा नहीं पा रहा था.

मंथन होते-होते अचानक देवता और असुर देखते क्या हैं कि समुद्र से भगवान धनवंतारि की जगह मुकेश खन्ना निकले. उनके हाथ में डायबा-अमृत का एक पैकेट था. उन्हें देखते ही देवताओं और असुरों के चेहरे मुरझा गए. देवताओं ने मुकेश खन्ना से पूछा; "हे मनुष्य तुम कौन हो? और यहाँ क्या कर रहे हो? हमसब को तो भगवान धनवंतरि के अमृत-कलश के साथ निकलने की अपेक्षा थी परन्तु यह क्या?"

मुकेश खन्ना ने कहा; "देवताओं को मुकेश खन्ना का प्रणाम स्वीकार हो. हे देवों, अब तीनो लोक में अमृत के नाम पर डायबा-अमृत ही मिलता है. टीवी पर बिकने वाली सभी अयुर्वेदिक औषधियों की तरह यह भी दुर्लभ जड़ी-बूटियों से बना है."

उसके बाद वे देवराज इन्द्र से मुखातिब हुए और बोले; "हे देवराज, डायबा अमृत को बनानेवाले आयुर्वेदाचार्य भी भगवान धनवंतरि से ज़रा भी कम नहीं हैं. और हे देवराज, ये असुर तो इधर-उधर खुराफात करके हाथ-पाँव चलाते रहते हैं परन्तु हे देव, आप तो अपने महल से निकलते भी नहीं, केवल आराम करते रहते हैं. ऐसे में आपको..............."

मुकेश खन्ना डायबा-अमृत के गुण बताते जा रहे थे और देवता और असुर मुँह लटकाए सुने जा रहे थे.

9 comments:

  1. हे प्रभु , भैया की इन पंक्तियों का साक्षात दर्शन करा दें कृपया ... राम लीला मैदान में नंदी जी को ही भेज दें ....
    "नंदी जी इस संवाददाता की बात सुन रहे थे. उन्होंने नाराज़ होकर उसे एक सींग दे मारा. संवाददाता वहीँ बेहोश हो गया. इसके बाद पूरी कवरेज का मुद्दा ही बदल गया. अब मुद्दा समुद्र-मंथन के कवरेज से निकल कर मीडिया के साथ होने वाली तथाकथित बदसलूकी पर आ गया"

    वाह भैया ... "मंथन" की लाइव कमेंटरी पढकर मज़ा आ गया :)

    शैलेश

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  2. डायबा-अमृत पर कितने प्रतिशत की छूट मिल रही है? उसकी प्रतिद्वंदी कम्पनी तो ५० प्रतिशत छूट दे रही है. वैसे अमृत पीकर क्यों बच्चों का बुढापा खराब करें?
    घुघूतीबासूती

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  3. हा हा हा हा अमृत की जगह डायबा अमृत की कल्पना अनूठी है...कमाल करते हैं...किन किन प्रसंगों का इस्तेमाल अपनी पोस्ट के लिए करते हैं...आप भी मुझे लगता है अमृत मंथन में से निकले एक रत्न की तरह हैं जिसे न देवता समझ पाए और न असुर...सर हिंदी ब्लॉग ने आप को समझा परखा और हथिया लिया...हम ब्लोग्गर धन्य हो गए...अद्भुत पोस्ट है ये बंधू...जय हो


    नीरज .

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  4. अहा, क्या सुन्दर वर्णन किया है..हलाहल का फुटेज..

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  5. हाहाहा.... मज़ा आ गया ! :)

    ज़बरदस्त कल्पना... समुद्र-मंथन को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया; क्या गज़ब का कनेक्शन डाले हैं- मंथन, मीडिया, विष-अमृत और फिर 'मुकेश खन्ना और डायबा-अमृत(क्या नाम है)' :-)

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  6. ......
    ......

    narayan.....narayan......narayan


    pranam.
    .......

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  7. हा हा हा. नंदी जी ने जम के लतियाया होता तो बात बनती :) और डायबा-अमृत तो गजब :)

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  8. वाह बहुत खूब...व्यास जी ये लेख पड़ते तो राजा परिक्षित को आपका ही नाम सजेश्ट करते कि हे राजन आप कलियुग में पं.शिवकुमार मिश्र से कथा सुनेंगे तो तक्षक के काटने के पश्चात मोक्ष प्राप्त करोगे।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय