कर्नाटक में एक बार फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. लोग देवेगौडा जी को दोष दे रहे हैं. कह रहे हैं कि वे पलट गए. लेकिन मुझे लगता है कि उनका दोष नहीं है. जिस राज्य की बात हो रही है उसका नाम ही है 'करनाटक'. अब आप ही बताईये, इसमें बेचारे देवेगौडा जी का क्या दोष. वे तो केवल राज्य के नाम को चरितार्थ कर रहे हैं, माने नाटक कर रहे हैं. वैसे भी ये राज्य काम करने वालों के लिए जाना जाता है. इतनी व्यस्तता में जो लोग अपना काम कर रहे हैं, उन्हें मनोरंजन भी तो चाहिए. सो वे भी पर्याप्त मात्रा में मनोरंजन पाकर खुश हो रहे हैं.
बीजेपी के शासन करने की बारी आई तो देवेगौडा जी को याद आया कि बीजेपी वाले तो कम्यूनल हैं. एक कम्यूनल पार्टी सत्ता से बाहर रहकर समर्थन दे, ये बात उन्हें गंवारा है लेकिन सत्ता के अन्दर रहे, ये बात देवेगौडा जी को कैसे पचेगी. सो उन्होंने समर्थन देने से मना कर दिया. पिछले कई महीनों से सेक्यूलर नाम के बुखार से त्रस्त है बेचारे. बीजेपी वाले जब भी मनाने गए तो उन्हें बुखार नहीं था. लेकिन जब सदन में वोट देने की बात आई तो बुखार वापस आ गया. मलेरिया टाइप होता होगा ये बुखार जो कुछ दिनों के अंतराल पर आता है.
देवेगौडा जी ने कांग्रेस के साथ भी कुछ समीकरण बैठाने की कोशिश की लेकिन वो हो नहीं सका. कांग्रेस तो ख़ुद अपने आपको महा सेक्यूलर पार्टी मानती आई है. अगर ये लोग देवेगौडा जी की पार्टी के साथ कुछ करने के मूड में होंगे भी तो देवेगौडा साहब की पार्टी का नाम देखकर डर गए होंगे. उनकी तो पार्टी के नाम के साथ भी सेक्यूलर लगा हुआ है. जाहिर सी बात है, कांग्रेस वाले डर गए होंगे कि कहीं देवेगौडा जी सेक्यूलेरिस्म की पूरी हवा समेट कर अपने पास न रख लें. ऐसे में कांग्रेस से भी बड़ा सेक्यूलर पैदा हो जायेगा.
देवेगौडा जी के कारनामे पर लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं. कोई इसे लोकतंत्र के इतिहास में काला अध्याय बता रहा है तो कोई लोकतंत्र का कत्ल. हाँ और ना बोलने के नए-नए रेकॉर्ड्स बन रहे हैं. सुन रहे थे देश के राष्ट्रपति ने भी एक तरह का नया रेकॉर्ड बनाया है. इतने कम समय में दो बार एक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का.
हम सभी सुनते आए हैं कि लोकतंत्र तरह-तरह के रेकॉर्ड्स से चलता है. वोटर का रेकॉर्ड्स, नेता का रेकॉर्ड्स, शासन का रेकॉर्ड्स. इन रेकॉर्ड्स में कुछ और नए रेकॉर्ड्स और जुड़ जायेंगे.
वसीम बरेलवी साहब का शेर है. लिखते हैं;
हमारा अज्म-ऐ-सफर कब किधर का हो जाए
ये वो नहीं जो किसी रहगुजर का हो जाए
उसी को जीने का हक़ है जो इस जमाने में
इधर का दिखता रहे और उधर का हो जाए
Wednesday, November 21, 2007
देवेगौडा जी क्या करें, राज्य का नाम ही है कर-नाटक
@mishrashiv I'm reading: देवेगौडा जी क्या करें, राज्य का नाम ही है कर-नाटकTweet this (ट्वीट करें)!
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क्या बात है! बिलकुल ठीक फरमाया.
ReplyDeleteसही है जी.
ReplyDeleteमिश्राजी
ReplyDeleteहमारे देश के नेता रिकार्ड बनाने मे किसी से कम नही है .प्रजातंत्र मे कुर्सी पर लंबे समय तक चिपके रहने का रिकार्ड बनाने के लिए नेतागण तरह तरह के हथकंडे भी अपनाने लगे है आगे आगे होता है क्या यह आने वाला समय बताएगा |
हमारे यहाँ तो अखबारों की हेडिंग पिछले कई दिनों से यही रहती है कर नाटक !
ReplyDelete॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
आपने हमारा टाईटल ले लिया, खैर जाने दीजिए हम दूसरा रख लेगें। :)
ReplyDelete'कर-नाटक' वाह! क्या 'वर्ड प्ले' है . बहुत व्यंजक शीर्षक . पर इससे देवगौड़ा परिवार की धूर्तता हाशिए पर नहीं जानी चाहिए .
ReplyDelete"कर नाटक" वाह क्या शब्द सुझा है. मजा आया पढ़ कर.
ReplyDelete@ प्रियंकर भैया,
ReplyDeleteभैया, जब तक धूर्त हाशिये पर नहीं जाते, धूर्तता कैसे जा सकती है.
सटीक लपेटा है!!
ReplyDeleteमहाशक्ति> आपने हमारा टाईटल ले लिया, खैर जाने दीजिए हम दूसरा रख लेगें।
ReplyDeleteसमझा नहीं मैं! महाशक्ति ब्लॉग का टाइटल देवगौड़ा था या कर-नाटक?
मक्कारी की हद है..
ReplyDeleteवह क्या राजनीति है :)
ReplyDeleteवाह भाई कर-नाटक का तो जवाब नही. और साहब अपने इन सेकुलिरिस्म के ठेकेदारों की भी अच्छी खबर ली. बोले तो कस के दिया. पर महाशक्ति का प्रश्न भी जायज है. पर आपने उनकी टाईटल (देवगौड़ा या कर-नाटक?) ली कैसे. ये गुथ्ती जल्द ही सुलझाएं.
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteशब्द भेधी दृष्टि और वसीम के शेर ने आप की इस पोस्ट को लाजवाब की श्रेणी में ला दिया है. बधाई
नीरज