आलोक पुराणिक जी ने आज अपनी पोस्ट में मेरे पेशे के बारे में राज की बात बताई है -
जो समझ जाते हैं, वो नोट कमाते हैं। जो नोट नहीं कमा पाते हैं, वो शेयर बाजार एक्सपर्ट हो जाते हैं, और टीवी वगैरह पर बताने लगते हैं कि अईसे कमाओ या वैसे कमाओ।यह पोस्ट पढ़ कर मैने वहां दन्न से तुकबन्दी में एक लम्बी टिप्पणी ठेल दी है। मुझे मालुम है कि तुकबन्दी अपनी तरंग जाहिर करने की सटीक विधा है। उस तरंग को आप इस पोस्ट में भी ग्रहण करें/झेलें:
एक ब्रोकर और एक एनालिस्ट
साथ गए रेस कोर्स
एनालिस्ट था बुझा-बुझा
ब्रोकर में था गजब का फोर्स
रेस कोर्स पंहुचते ही
दस नम्बर के घोडे पर
ब्रोकर ने लगा दिया पैसा
एनालिस्ट से पूँछ बैठा;
तुम नहीं लगाओगे
एनालिस्ट बोला
हम तो पहले स्टडी करेंगे कि;
घोडे का पास्ट रेकॉर्ड्स है कैसा
ब्रोकर झल्लाया
एनालिस्ट को सुनाया
तुम बहुत कैलकुलेट करते हो
उसी के बेस पर
एनालिस्ट होने का दम भरते हो
रेस हुई
रिजल्ट आया
ब्रोकर का घोडा जीत गया
ब्रोकर ने बहुत पैसा कमाया
एनालिस्ट हैरान
ब्रोकर को देखकर परेशान
ब्रोकर से पूछ बैठा
अच्छा ये बताओ
इतने सारे घोडे थे
कुछ तो शक्तिमान दिखते थे
कुछ शक्ति में थोड़े थे
लेकिन ऐसा क्यों कि;
तुमने दस नम्बर के घोडे पर ही
पैसा लगाया
ये आईडिया कहाँ से आया
ब्रोकर बोला
मेरे दो बेटे हैं
एक छ साल का और
दूसरा तीन साल का
मैंने दोनों की उम्र को मिलाया
जो भी फिगर आया
उसी नंबर के घोडे पर
पैसा लगाया
तुम ख़ुद ही देख सकते हो
मैंने कितना माल कमाया
पूरी तरह से रीझ गया
लेकिन मन ही मन
थोड़ा सा खीझ गया
बोला;
कैसी ख़राब गणित है तुम्हारी
छ और तीन तो नौ होते हैं
ये किस तरह से प्लस करते हो
ब्रोकर बोला
मैंने पहले ही कहा था
तुम कैलकुलेट बहुत करते हो
वाह! वाह! वाह! जवाब नही आपका. सर क्या कमाल की कैलाकुल्तेद पोस्ट सरकाई है. लेकिन मुझे तो शक हो रहा है की ये आपकी ही पोस्ट है. कंही महाशक्ति का क्लेम ना आजाये.
ReplyDeleteसरजी आपकी इस पोस्टनुमा टिपण्णी अथवा टिपण्णीनुमा पोस्ट पर आलोकजी के ब्लॉग पर भी टिपण्णी कर चुका हूँ. मज़ेदार है.
ReplyDeleteझक्कास है जी। नोट कमाने के लिए कैलकुलेशन नहीं थोड़ी बेवकूफी मिश्रित हिम्मत की जरुरत होती है। ज्यादा पढ़े-लिखे एनालिस्ट हो जाते हैं, कम पढ़े-लिखे नोट कमा जाते हैं।
ReplyDeleteशेयर सूक्तियां-
नोटों और अपने बीच ज्ञान को ना आने दें।
नोटों के रास्ते में ज्ञान ही रोड़ा है।
आलोक पुराणिक>
ReplyDeleteनोटों और अपने बीच ज्ञान को ना आने दें।
नोटों के रास्ते में ज्ञान ही रोड़ा है।
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आई ऑब्जेट योर ऑनर! ये पर्सनल आक्षेप है! :-)
हा हा!! क्या शानदार पकड़ा है!!
ReplyDelete@ज्ञान दद्दा, ये आलोक पुराणिक जी तो मेरे और नोटों के बीच आपको ही रोड़ा बता रहे हैं, आप तो ऐसे न थे!! ;)
वैसे पुराणिक जी एक्दमै सही कह रहे हैं!!
खतरनाक है जी.
ReplyDeleteइस ब्लॉग में भी ज्ञान है जो नोटों की राह में रोड़ा हो सकता है. इसलिये ऎसी ज्ञान युक्त मानसिक हलचल से बचते रहें. :-)
थोड़े में बहुत कुछ कह दिया
ReplyDeleteआपने तो बिना कैल्कुलेट किए
सो काल्ड एनालिसटों को फ़्लैट कर दिया
आप्का ब्लाग पहली बार पढा
बार बार पढेगे
डिसाइड क्र लिया
सही है। शानदार है। :)
ReplyDeleteदो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
ReplyDeleteसोच समझ वालों को थोडी नादानी दे मौला
नादाँ लोग ही नोट छापते हैं और समझदार सिर्फ़ ब्लोक बनाते रह जाते हैं. ज्ञान भाई का ओब्जेक्शन जायज है.
नीरज