आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ बताते हैं कि अमेरिका में आए आर्थिक संकट का बुरा असर हमारे देश के उद्योग और धंधों पर पड़ेगा. जिन-जिन उद्योगों पर असर दिखने वाला है, उनकी लिस्ट तैयार की जा रही है. साथ ही ऐसे उद्योगों और धंधों की लिस्ट भी तैयार हो रही है, जिनपर कोई असर नहीं पड़ेगा. इन लिस्टों के सहारे आनेवाले समय में सेमिनारों और टीवी के पैनल डिस्कशन में ज्ञान की नदी बहाई जायेगी. सैकड़ों घंटे के टीवी प्रोग्राम बनेंगे. लेकिन यहाँ विशेषज्ञों से एक चूक हो गई. जिस धंधे पर अमेरिका में आए आर्थिक संकट का असर बिल्कुल नहीं पड़ेगा, उसका जिक्र इस लिस्ट में कहीं नहीं है. मैं धर्म के धंधे की बात कर रहा हूँ.
मेरे मन यह ख़याल कल शाम को मजुमदार साहब से मिलने के बाद आया. मजुमदार साहब के बारे में बता दूँ. ये साहब मेरे मुहल्ले में ही रहते हैं. धर्म के धंधे में पिछले बीस सालों से हैं. साथ में कुछ 'साइड बिजनेस' भी करते हैं. किराना की दो दुकाने हैं इनकी, लेकिन ज्यादा समय अपने 'मेन धंधे' में ही लगाते हैं. हर साल दिसम्बर महीने में धर्म का शोरूम मुहल्ले के पास वाले मैदान में स्थापित कर लेते हैं. ये शोरूम पूरे महीने भर खुला रहता है. कई सारे डिपार्टमेन्ट रहते हैं. भजन-कीर्तन का डिपार्टमेन्ट सबसे बड़ा होता है. अगले जनम को ठीक करने वाला डिपार्टमेन्ट अलग रहता है. करीब दस 'विजिटिंग साधु' हर साल आते हैं. साथ में करीब सात-आठ दुकानों से सज्जित एक मेला लगता है. पूरे दिन लाऊडस्पीकर पर भजन करके अगला जनम ठीक कराने और मोक्ष प्राप्त करने का इंतजाम पूरी तन्मयता के साथ चलता है. लाऊडस्पीकर रात के तीन बजे तक बजता है. शायद मोक्ष प्राप्त करने की साधना रात में ज्यादा फल देती है.
मजुमदार साहब ने अपने इस बिजनेस को चलाने के लिए इंतजाम पक्के कर रखे हैं. मुहल्ले के तथाकथिक जिम्मेदार लड़कों की बड़ी फौज है उनके पास. ये लड़के धंधे के लिए अर्थ की व्यवस्था में नवम्बर महीने से ही लग जाते हैं. मुहल्ले के हर घर से 'अनुचित मात्रा' में चन्दा उगाहने की जिम्मेदारी इनके पास है. कुछ लोगों का अनुमान है कि इकठ्ठा किए गए चंदे में से इन लड़कों को तीस प्रतिशत मिलता है. पता नहीं बात सच है या नहीं, लेकिन ये लड़के हर साल चंदे की रकम बढाते जाते हैं.
एक शामियाना सड़क के ठीक बीचों-बीच लगता है. इस शामियाने की वजह से रास्ता पूरे महीने भर बंद रहता है. शामियाने में सामने की तरफ़ रखे तख्त पर एक दान-पेटी रहती है. करीब पाँच साल पहले तक ये दान-पेटी काठ की बनी होती थी, लेकिन बाद में इस दान-पेटी में सामने की तरफ़ शीशा लगा दिया गया. शायद इसलिए कि बक्शे में रखा दान भक्तों को दिखाई दे. वैसे कुछ लोग ये भी कहते सुने जाते हैं कि सुबह-सुबह ख़ुद आयोजक इस दान-पेटी में पैसा रखते हैं जिससे बाद में आनेवाले भक्तों को दान देने के लिए उकसाया जा सके.
लगभग हर साल मेले में लगने वाली आठ-दस दुकानों से मजुमदार साहब के लोग 'लाईसेन्स फीस' की वसूली करते हैं. मुझे याद है, पिछले साल इनके लड़कों ने एक फुचका वाले का खोमचा पलट दिया था. कारण केवल इतना था कि इस फुचका वाले ने आयोजकों को 'लाईसेन्स फीस' के रूप में पचास रुपये कम दिए थे. दुकानदारों के साथ आयोजकों का लगभग हर साल झगड़ा होता है. वैसे मैंने सुना है कि आयोजक ऐसे किसी झगड़े को कार्यक्रम के लिए शुभ मानते हैं. ऐसे झगड़े से कार्यक्रम की सफलता को लेकर रही-सही शंका मिट जाती है.
मजुमदार साहब से कल मिलते ही मैंने हाल-चाल पूछा. काफ़ी खुश थे. बोले; "नेक्स्ट ईयर और बड़ा आयोजन करेंगे. हरिद्वार से साधु और ज्ञानी मंगवायेंगे. जो खर्च होगा, उसकी फ़िक्र नहीं है. लेकिन मुहल्ले के लोगों को सत्संग का लाभ मिलना चाहिए."
मैंने पूछा; "और घर में सब कैसे हैं?"
बोले; "बाकी तो सब ठीक है, पिताजी का पाँव टूट गया."
मैंने कहा; "अरे, ये तो बहुत बुरा हुआ. वैसे ये हुआ कैसे?"
मजुमदार साहब ने बताया; "अब आपको क्या बतायें. अस्सी साल उम्र हो गई. दिखाई तो देता नहीं. बाज़ार से सब्जी लाने गए थे. सड़क पर रिक्शे से टकरा गए. पाँव टूट गया. अब कम से कम तीन महीने तक घरवालों को परेशान रखेंगे."
मैं उनसे मिलकर चला आया. ये सोचते हुए कि रहीम होते तो शायद कुछ ऐसा लिखते;
रहिमन धंधा धर्म का कभी न मंदा होय
ये धंधा फूले-फले जब बाकी धंधे रोय
Friday, December 21, 2007
रहिमन धंधा धर्म का कभी न मंदा होय
@mishrashiv I'm reading: रहिमन धंधा धर्म का कभी न मंदा होयTweet this (ट्वीट करें)!
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सर मामला तो तगड़ा है
ReplyDelete"शायद मोक्ष प्राप्त करने की साधना रात में ज्यादा फल देती है."
ReplyDeleteबहुत सही लिखा बन्धुवर. मुझे आपके इस लेख ने काफी प्रेरित कर दिया है.
कल इसी विषय पर त्यागी जी प्रेरित किया था. शायद अब कुछ कर पाऊं. और कुछ नही कम से कम एक ब्लाग तो अगले ५-७ दिनों मे जरुर ही बना लूँगा.
शिव, मजूमदार साहब से पटरी बिठा कर रखो। अगले सीजन मेँ मैं निरपेक्ष गीता (क्या बला है यह!) पर 10 व्याख्यानोँ की एक शृंखला दे सकता हूं, अगर कमाई ठीकठाक हो सके तो।
ReplyDeleteकंफर्म करो तो पावरप्वाइण्ट स्लाइड बनाना शुरू कर दूं?!
ज्ञानजी आउटडेटे़ड आइडिये ठेल रहे हैं। निरपेक्ष गीता सापेक्ष गीता कोई ना सुन रहा है। अब तो रससिक्त प्रवचन मंगता। बोले तो सिर्फ बाबाओं से नहीं बाबियों का भी रोल होना मंगता।
ReplyDeleteआप कहें, तो राखी सावंत आन गीता-प्रवचन का चक्कर चलाऊं और स्लाइड तैयार करुं।
ये ज्ञान जी के चक्कर मे मर पडना जी ..मेरे साथ पार्टनर शिप करने के बारे मे क्या ख्याल है जी न ना जल्दी बाजी नही सोच कर जवाब देना..मै तो कब से कह रहा हू सबसे अच्छा धंधा यही है जी..कहो तो कल से ब्लोग पर पाडकास्ट मे ट्रायल शुरू करदे...?
ReplyDeleteएक इहै धंधे मा अपन ना पड़े अभी तक, ना बोलने के, ना सुनने के। बोलना आता नई, सुनने की बारी आती है तो कल्टी हो लेते हैं। अभी हमार कौनो प्रवचन सुने का उमर है का भाई?
ReplyDelete@आलोक पुराणिक जी, राखी सावंत वाला प्रवचन कब और किधर है? ;)
बहुत सही
ReplyDeleteसही है। आपने धर्म को धंधे से जोड़ना शुरू भी कर दिया। ज्ञानजी और आलोकजी अपनी -अपनी स्लाइडें बना के दिखायें ताकि फ़ाइनल की जा सकें।
ReplyDeleteदेखिये यदि कोई राइट इश्यु निकाल रहे हों तो थोङा इधर भी....
ReplyDeleteयकीनन. इससे बढ़िया धंधा हो भी नहीं सकता. कायदे से तो इसका आई पी ओ ले आया जाना चाहिए. हाथों-हाथ बिकेगा.
ReplyDeleteशिव जी हम तो ये आइडिया बहुत पहले ले उड़े हैं ज्ञान जी और आलोक जी तो स्लाइड बनाने की मेहनत करने की सोच रहे हैं। हमरा प्लान तो ये है जी अपुन रिटायर होने के बाद बम्बई के बाहार कहीं एक छोटी से पहाड़ी पर आश्रम खोल लेगें, भक्तगण आयेगें, भक्तों का जुगाड़ करने वालों की कमिशन पक्की है। अब हमने तो पूरी जिन्दगी कोई गीता रामायण पढ़े नाहीं , बुढ़ापे में कौन माथा पच्ची करे तो अपुन तो मौनी बाबा हो जायेगें। क्या कहा पार्टनर बनना है?
ReplyDeleteवाह,शिव जी ! क्या लिखा है...........मन प्रसन्न हो गया पढ़कर.ईश्वर आपकी नज़रों को ऐसी ही पैनी और व्यंग्य को धारदार,असरदार सीधे मन तक पहुँचने वाली प्रभावशाली बनायें.
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