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Saturday, December 29, 2007

ब्लॉग महिमा


@mishrashiv I'm reading: ब्लॉग महिमाTweet this (ट्वीट करें)!

इन्द्र परेशान बैठे थे. माथे पर 'तिरशूल' के जैसे तीन-तीन बल पड़े हुए थे. बहुत कोशिश करने के बाद भी विश्वामित्र की तपस्या इस बार भंग नहीं हो रही थी. मेनका लगातार बहत्तर घंटे डांस करके अब तक गिनीज बुक में नाम भी दर्ज करवा चुकी थी लेकिन विश्वामित्र टस से मस नहीं हुए. मेनका के हार जाने के बाद उर्वशी ने भी ट्राई मारा लेकिन विश्वामित्र तपस्या में ठीक वैसे ही जमे रहे जैसे राहुल द्रविड़ बिना रन बनाए पिच पर जमे रहते हैं. उधर मेनका और उर्वशी से खार खाई रम्भा खुश थी.

इन्द्र को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाय. दरबारियों और चापलूसों की मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग बहुत देर तक चली. बीच में लंच ब्रेक भी हुआ. आधे से ज्यादा दरबारी केवल सोचने की एक्टिंग करते रहे जिससे लगे कि वे सचमुच इन्द्र के लिए बहुत चिंतित हैं. काफी बात-चीत के बाद एक बात पर सहमति हुई कि इन्द्र को उनके मजबूत पहलू को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए. दरबारियों ने सुझाव दिया कि चूंकि इन्द्र का मजबूत पहलू डांस है सो एक बार फिर से डांस का सहारा लेना ही उचित होगा. डांस परफार्मेंस के लिए इस बार रम्भा को चुना गया. मेनका और उर्वशी इस चुनाव से जल-भुन गई. लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था. रम्भा ने तरह तरह के शास्त्रीय और पश्चिमी डांस किए लेकिन विश्वामित्र जमे रहे. उन्होंने रम्भा की तरफ़ देखा भी नहीं. हीन भावना में डूबी रम्भा ने एक लास्ट ट्राई मारा. मशहूर डांसर पाखी सावंत का रूप धारण किया और तीन दिनों तक फिल्मी गानों पर डांस करती रही लेकिन नतीजा वही, धाक के तीन पात. रम्भा को वापस लौटना पडा. रो-रो कर उसका बुरा हाल था. उसे अपनी असफलता का उतना दुख नहीं था जितना इस बात का था कि उर्वशी और मेनका अब उठते-बैठते उसे ताने देंगी.

प्लान फेल होने से इन्द्र दुखी रहने लग गए. सप्ताह में तीन चार दिन तो दारू चलती ही थी, अब सुबह-शाम धुत रहने लगे. लेकिन उनके प्रमुख सलाहकार को अभी तक नशे की लत नहीं लगी थी. काफी सोच-विचार के बाद वो एक दिन चंद्र देवता के पास गया. वहाँ पहुँच कर उसने पूरी कहानी सुनाई और साथ में चंद्र देवता से सहायता की मांग की. चंद्र देवता की गिनती वैसे ही इन्द्र के पुराने साथियों में होती थी. सभी जानते थे कि चन्द्र देवता इन्द्र के कहने पर एक बार मुर्गा तक बन चुके थे. वे इन्द्र के लिए एक बार फिर से पाप करने पर राजी हो गए.

चंद्र देवता रात की ड्यूटी करते-करते परेशान रहते थे, सो वे बाकी का समय सोने में बिताते थे. लेकिन इन्द्र की सहायता की जिम्मेदारी जो कन्धों पर पड़ी तो नीद और चैन जाते रहे. दिन में भी बैठ कर सोचते रहते थे कि 'इस विश्वामित्र का क्या किया जाय. इन्द्र के सलाहकार को वचन दे चुका हूँ. इन्द्र को भी दारू से छुटकारा दिलाना है नहीं तो आने वाले दिनों में पार्टियों का आयोजन ही बंद हो जायेगा.' एक दिन बेहद गंभीर मुद्रा में चिंतन करते चंद्र देवता को 'नारद' ने देख लिया. देखते ही नारद ने अपना विश्व प्रसिद्ध डायलाग दे मारा; "नारायण नारायण, किस सोच में डूबे हैं देव?"

"अरे ऋषिवर, बड़ी गंभीर समस्या है. वही इन्द्र और विश्वामित्र वाला मामला है. इसी सोच में डूबा हूँ कि इन्द्र की मदद कैसे की जाए. वैसे, ऋषिवर आप से तो देवलोक, पृथ्वीलोक, ये लोक, वो लोक सब जगह घूमते रहते हैं. आप ही कोई रास्ता सुझायें. इस विश्वामित्र की क्या कोई कमजोरी नहीं है?"; चंद्र देवता ने लगभग गिडगिडाते हुए पूछा.

"नारायण नारायण. ऐसा कौन है जिसकी कोई कमजोरी नहीं है. वैसे आप तो रात भर जागते हैं, लेकिन आप भी नहीं देख सके, जो मैंने देखा"; नारद ने चंद्र देवता से पूछा.

"हो सकता है, आपने जो देखा वो मुझे इतनी दूर से न दिखाई दिया हो. वैसे भी आजकल जागते-जागते आँख लग जाती है. लेकिन ऋषिवर आपने क्या देखा जो मुझे दिखाई नहीं दिया?"; चंद्र देवता ने पूछा.
"मैंने जो देखा वो बताकर इन्द्र की समस्या का समाधान कर मैं ख़ुद क्रेडिट ले सकता हूँ. लेकिन फिर भी आपको एक चांस देता हूँ. आज रात को ध्यान से देखियेगा, ये विश्वामित्र एक से तीन के बीच में क्या करते हैं"; नारद ने चंद्र देवता को बताया.

रात को ड्यूटी देते-देते चंद्र देवता विश्वामित्र की कुटिया के पास आकर ध्यान से देखने लगे. उन्हें जो दिखाई दिया उसे देखकर दंग रह गए. उन्होंने देखा कि विश्वामित्र अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिख रहे हैं. पोस्ट पब्लिश करके वे और ब्लॉग पर कमेंट देने में मशगूल हो गए. चंद्र देवता को समझ में आ गया कि नारद का इशारा क्या था.

दूसरे ही दिन इन्द्र के सलाहकार ने इन्द्र का एक ब्लॉग बनाया. ब्लॉग पर पहले ही दिन विश्वामित्र की निंदा करते हुए इन्द्र ने एक पोस्ट लिखी. साथ में विश्वामित्र के ब्लॉग पोस्ट पर उन्हें गाली देते हुए कमेंट भी लिखा. कमेंट और पोस्ट का ये सिलसिला शुरू हुआ तो विश्वामित्र का सारा समय अब पोस्ट लिखने, इन्द्र के गाली भरे कमेंट का जवाब देने और इन्द्र के ब्लॉग पर गाली देते हुए कमेंट लिखने में जाता रहा. उनके पास तपस्या के लिए समय ही नहीं बचा.

विश्वामित्र की तपस्या भंग हो चुकी थी. इन्द्र खुश रहने लगे.

13 comments:

  1. कहीं आप विश्वामित्र और इंद्र तो नहीं बनने जा रहे ?
    हम गाली तो नहीं लिख सकते लेकिन हाँ आपकी तपस्या भी कमेंट के रूप में भंग करते रहेंगे.

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  2. क्या कहें भैय्या। खुद ही सारी पोलपट्टी खोल डाली ।अब इतना तो बता दीजिये ज्ञान दद्दा क्या है ?विश्वामित्र या..........

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  3. बहुत सुन्दर पोस्ट - मैं अत्रि के पुत्र चन्द्र के गोत्र में हूं। चान्द्रात्र। अब देखिये मेरे पूर्वज चन्द्र ने ब्लॉग को देवलोक में स्थान दिलाया
    ब्लॉग का यह महात्म्य मेरे पूर्वज के शोध का परिणाम है - इससे ज्यादा मस्त और क्या बात होगी। :-)

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  4. धांसू!! हिला डाला!
    कितना हिलाओगे ऐसे ही सबको भइया!

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  5. क्या ज्ञान भैया आप मुफ्त में संजय तिवारी से क्यों पंगा ले रहे हैं? उनको पता चल गया की आपने ब्लोग के संबंध में कोई दावा किया है टू यकीन मानें विस्फोट कर देंगे.

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  6. बेचारे विश्वामित्र को भी इस ब्लॉगिंग ने कहीं का न छोड़ा ! बहुत मजेदार लेख ।
    घुघूती बासूती

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  7. बंधू
    "माथे पर 'तिरशूल' के जैसे तीन-तीन बल पड़े हुए थे"
    पोस्ट की शुरुआत आप को फिल्मी गाने ( फ़िल्म ओमकारा ) की नक़ल कर के करनी पढ़ रही है...क्या दिन आ गए हैं.
    मैं बहुत दिनों बाद खुल के हंसा हूँ...मेरा मतलब ये नहीं की मैं खुल के इनदिनों हंसा नहीं हूँ मेरा मतलब ये है की आप की पोस्ट पढ़ के खूब खुल के हंसा हूँ. शुरू से अंत तक एक साँस में पठनिये हास्य और व्यंग का मिश्रण लिए ये ऐसी पोस्ट है जिसको लिख कर किसी भी लेखक को अपनी लेखनी पर अभिमान हो सकता है. भाई वाह वाह वाह करते मुंह थक गया है लेकिन ससुरा दिल अभी तक नहीं भरा वाह..वाह...वाह...
    नीरज

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  8. विश्वामित्र कई वृद्धों के आदर्श हैं।
    जिस उम्र में आम तौर पर लोग नकली दांत लगाते हैं, उस उम्र में विश्वामित्र दिल लगा रहे हैं, यह देश कितना ऊर्जावान रहा है, इस बात की पुष्टि इससे होती है। ये क्लिंटन, फ्रांस के सारकोजी, कित्ते पीछे हैं हमसे।

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  9. वाह। क्या बात है? ब्लॉगिंग ने मेनका, उर्वशी और रम्भा को पछाड़ डाला। यानी अब ब्लॉगरों की भी रेटिंग शुरू हो जानी चाहिए।

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  10. लाजवाब,बहुत बहुत बढ़िया.स्वर्गलोक से मर्त्यलोक तक सबको लपेट कर पटखनी देना कोई आपसे सीखे.लगे रहिये .किसीको छोडिये गा नही.

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  11. पढ़ने में बढि़या लगी, हमारा पेट भी बोल गया नारायण नारायण :)

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  12. एकदम धांसू…तो आप का नये साल का रिसोल्यूशन ये है कि रोज पोस्ट लिखेगें बड़िया ।

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  13. मजा आ गया भईया
    व्यंग्य बना है बढ़िया

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय