भारत सिडनी टेस्ट मैच हार गया. रेकॉर्ड बुक के हिसाब से हार गया. वैसे ये बात रेकॉर्ड बुक में नहीं लिखी जायेगी कि ऑस्ट्रेलिया केवल खिलाडियों के अच्छे खेल से नहीं जीता. ये बात तो केवल हमारे जेहन में लिखी जायेगी.
उक्त ख़बर पर हर चिट्ठाकार अलग-अलग तरीके से पोस्ट लिखेगा. उन पोस्ट में से अगर अंश निकाला जाए तो शायद कुछ ऐसा निकले:
अलोक पुराणिक जी
ऑस्ट्रेलिया तो सिडनी मैच घणा ही जीत लिया जी. अपन तो वैसे भी टेस्ट मैच नहीं देखते. देखें भी क्यों, उसमें चीयरलीडरनियाँ नहीं होतीं. बिना चीयरलीडरनियों के क्रिकेट का मज़ा ही क्या. मैंने बकनर से पूछा 'आपने तो बहुत गलतियाँ कर दीं.' बोले 'मेरा दोष नहीं है. मैच में चीयरलीडरनियाँ नहीं थी. सो मेरा ध्यान अम्पायरिंग में नहीं लगा.'
मैंने कहा आपने इतने ग़लत फैसले दिए. ऐसा कैसे हुआ. बोले 'मैं बार-बार चीयरलीडरनियाँ खोजने में लगा था. नहीं मिलने पर दुखी हो लिया. पहला ग़लत फैसला मैंने इसी वजह से दिया. बाद में दीपिका पादुकोन को देखा तो ध्यान उधर चला गया. दूसरा ग़लत फैसला इस लिए हो गया. मैंने बकनर से कहा कि पाकिस्तान में आपकी बहुत डिमांड होगी. आप वहाँ चले जाइये. वहाँ इलेक्शन है. आप वहाँ इलेक्शन के आब्जर्वर बन जाइये. बोले 'वहाँ की सरकार ने मुझे आज ही पूछा है. मैं वहाँ जाने पर विचार भी कर रहा हूँ.
मैंने एक लेफ्ट के लीडर से पूछा कि भारत को ऑस्ट्रेलिया में हरा दिया गया, आपका क्या कहना है? लीडर ने कहा; 'हमने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है. सरकार टीम को वापस नहीं बुलाती तो हम सपोर्ट वापस ले लेंगे.' एक कांग्रेसी नेता मिल गए. मैंने उनसे पूछा तो बोले अच्छा हुआ जो टीम हार गई. नहीं तो पिछले एक महीने से हार की बात हमें ही निशाना बनाया जाता था. वैसे भारत की हार को हम क्रिकेटीय लोकतंत्र में काला दिन की तरह देखते हैं.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी विपक्षी टीम का मनोबल गिरा देते हैं. एकाग्रता भंग करने के लिए गाली देते हैं. मैंने शरद पवार से पूछा कि इस बात के लिए हमारे पास क्या काट है. बोले 'अगली बार बोर्ड टीम के साथ राखी सावंत को भी भेजेगा. नए कोच ने सुझाव दिया है कि राखी सावंत वहाँ जाकर ऐसे ऐसे ड्रामे करेंगी और गालियाँ देंगी कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाडियों की एकाग्रता भंग हो जायेगी और भारत मैच जीत जायेगा.' तमाम भूत-प्रेत चैनल भी अब केवल क्रिकेट की न्यूज़ दिखा रहे हैं. मतलब इनलोगों को क्रिकेट में भूत-प्रेत को फिट करने के लिए कोई तरकीब निकालनी चाहिए.
नीरज भैया (नीरज गोस्वामी जी)
विपक्षी टीम को दिल से भी जो सम्मान देते हैं
उन्हें ही जीत का तोहफा स्वयं भगवान् देते हैं
है लानत भेजती दुनिया सदा ही ऐसे लोगों पर
जो खातिर जीत की, सच का सदा बलिदान देते हैं
भुला दे रंज-ओ-गम, और दे खुशी, ऐसा फलक ढूंढें
जमी पर रहने वाले मौत का सामान देते हैं
खुदा की गाज गिरती है सदा ऐसे ही लोगों पर
दुखाकर दिल किसी का जो उन्हें नुकसान देते हैं
भला इस जीत से भी क्या मिलेगा सोच लो 'नीरज'
जिसे पाकर खिलाड़ी झूठी एक पहचान देते हैं
ज्ञान भैया (ज्ञानदत्त पाण्डेय)
भरत लाल की क्रिकेट में रूचि की वजह से ही मुझे पता चला की भारत ऑस्ट्रेलिया से टेस्ट मैच हार गया. क्रिकेट और फिल्मों के बारे में मेरी जानकारी सीमित या कह सकते हैं कि न के बराबर है. फिर भी इतना जरूर कह सकता हूँ कि खेल के बारे में बुनियादी बात है दोनों दलों का खेल भावना से खेलना. खेल भावना ही सर्वोपरि है. जीत-हार उसके बाद. जहाँ तक ऑस्ट्रेलियाई टीम की बात है, तो मेरा मानना है नर्सीसिज्म और संकुचित विचार उनके खेल पर हावी है. हर स्थिति में जीत जाने की मनोदशा न तो व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है और न ही खेल भावना के विकास में.
वैसे तो मुझे तो लगता है मित्रों कि अलग-अलग संस्कृति में पलने और बढ़ने वाले लोगों की सोच एक जैसी नहीं हो सकती. ऐसी स्थिति में दो दलों का दो अलग-अलग ध्रुवों पर खड़े रहना संस्कृति की इस भिन्नता की परिणति है. एक दल जहाँ जीत को ही अपनी बौद्धिकता और कार्य क्षमता की पराकाष्ठा मानता है वहीं दूसरा दल प्रतियोगिता में शामिल होने को ही खेल भावना मानता है. मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि सच्चाई कहीं इन दो ध्रुवों के बीच है. वैश्वीकरण के इस युग में हमें मध्यमान खोजने की जरूरत है.
फुरसतिया सुकुल (अनूप जी)
चिठेरा: कैसे बेईमान लोग हैं ये ऑस्ट्रेलिया वाले भी. बताओ, भारत को बेईमानी से हरा दिया.
चिठेरी: क्या दो दिन से एक ही बात की रट लगाए रो रहा है. वैसे भी तू कौन सा ईमानदार है? जब देखो तिरछी नज़रों से ताकता रहता है मुझे.
चिठेरा: अरे शुकर कर कि मैं तुझे ताकता तो हूँ. और फिर इसमें कैसी बेईमानी. बेईमानी तो तब होती जब किसी और को ताकता. मेरे अन्दर चोर नहीं है. मैं बकनर की तरह ग़लत फैसला देकर दूसरी तरफ़ नहीं ताकता.
चिठेरी: ये क्रिकेट का बुखार तुझे ऐसा चढा है कि सबकुछ भूल गया है. पन्द्रह दिन हो गए एक पोस्ट नहीं लिखी.
चिठेरा: पोस्ट को मार गोली. वैसे भी किसने पोस्ट लिखी पिछले पन्द्रह दिन में. पोस्ट लिखकर भी क्या आनी-जानी है. उड़न तश्तरी जब से उड़कर भारत पहुँची है तब से कमेंट के लाले पड़ गए हैं. अभय तिवारी से लेकर बोधिसत्व तक, सब नया साल मना रहे हैं. वो भी क्रिकेट देखकर. फुरसतिया सुकुल न जाने कहाँ गायब हैं.
चिठेरी: सुकुल तो इंडिया की हार से परेशान पुराणिक मास्टर के साथ चिट्ठाकार सम्मेलन अटेंड कर रहे होंगे कहीं. जबरिया लिखने की बात तो छोड़ अब तो कहने से भी नहीं लिखते. इंडिया की क्रिकेट टीम की तरह अड़ गए हैं.
चिठेरा: इसीलिए तो मैं भी अड़ा हुआ हूँ. अब जबतक भारत क्रिकेट में जीतेगा नहीं, मैं कोई पोस्ट नहीं लिखने वाला.
चिठेरी: अरे क्रिकेट में तो हार-जीत लगी ही रहती है. दो खेलेंगे तो एक तो हारेगा ही. देखता नहीं दो ब्लॉगर कहा-सुनी करते हैं तो लास्ट में एक तो चुप हो ही जाता है.
चिठेरा: तू भी रह गई चिठेरी की चिठेरी. बात हारने की नहीं हो रही. बात बेईमानी की हो रही है. ऊपर से भज्जी को रेसिस्ट बोल दिया ऑस्ट्रेलिया वालों ने.
चिठेरी: बड़ा अंग्रेजी झाड़ रहा है. ये रेसिस्ट कहाँ से सीखा.
चिठेरा: अरे ये शब्द तो मुझे भी नहीं मालूम था. न ये भज्जी उस साईमंड को बन्दर कहता और न ये शब्द सुनने को मिलता.
चिठेरी: अच्छा. तो तू मानता है कि भज्जी ने उसको बन्दर कहा?
चिठेरा: अब पता नहीं कहा या नहीं. लेकिन कहा भी होगा तो क्या फरक पड़ता है. तू ही बोल, उस साईमंड को देखकर और क्या कहेगा कोई?
चिठेरी: देख अब तू बात को घुमा रहा है. इसका मतलब साईमंड ठीक ही कहता है कि भज्जी ने उसे बन्दर कहा.
चिठेरा: कहा तो कहा. साईमंड कौन सा दूध का धुला है?
चिठेरी: ये देख ये देख. सही बात आ गई न सामने.
चिठेरा: सही बात कैसी. सही बात तो यही है कि इंडिया की टीम को बेईमानी से हरा दिया गया.
चिठेरी: ठीक है ठीक है. अब तो तेरी टीम अड़ गई है कि जब तक हरभजन के ऊपर से बैन नहीं उठता, नहीं खेलेगी.
चिठेरा: यही तो बात है न. ऐसा ही होना चाहिए. कभी न कभी तो ये होना ही था. मैंने कहा न अब तो मैं भी अड़ गया हूँ. जब तक हरभजन के ऊपर से बैन नहीं हटता, मैं भी कोई पोस्ट नहीं लिखूंगा.
चिठेरी: ठीक है ठीक है. जो तेरे दिल में आए कर. मैं तो जा रही हूँ.
चिठेरा: अरी सुन तो. मेरी बात तो सुन.
चिठेरी: सुना. क्या बोलता है?
चिठेरा: कब मिलेगी अब?
चिठेरी: मैं भी अड़ गई हूँ. अब जबतक तू कोई पोस्ट नहीं लिखता, मैं मिलने ना आऊँगी तुझसे. पहले एक पोस्ट लिख और मेरी पोस्ट पर कमेंट कर तब मिलने आऊँगी तुझसे.
मेरी पसंद
उड़ान वालों, उड़ानों पे वक्त भारी है
परों की अब के नहीं, हौसलों की बारी है
मैं कतरा हो के तूफानों से जंग लड़ता हूँ
मुझे बचाना समंदर की जिम्मेदारी है
कोई बताये ये उसके गुरूर-ए-बेजा को
वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये एक चराग कई आँधियों पे भारी है
--वसीम बरेलवी
और अंत में...
ये तो रही चिट्ठाकारों की बात. लेकिन क्रिकेट के बारे में किसी क्रिकेटर को भी तो बोलना चाहिए. किसी ने सिद्धू साहब से पूछ लिया. हरभजन के ऊपर बैन लगा दिया गया है. आप का क्या कहना है?...
सुनिए, सिद्धू साहब ने क्या कहा.. "देखिये, गन्ने में फूल नहीं होता. राजा दीर्घजीवी नहीं होता. पहाड़ ऊंचा होता है. समंदर गहरा होता है. चिडिया आसमान में उड़ती है. आदमी जमीन पर चलता है. आया है सो जायेगा राजा, रंक, फकीर. कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कभी जमी तो कभी आसमा नहीं मिलता. देखिये, हरभजन सिंह वो हीरा है जिसकी चमक वैसे ही है जैसे फूल की सुगंध हवाओं में चारों तरफ़ फ़ैली रहती है और पूरे संसार को एक जहीन सुगंध देती है. हरभजन भारत माँ का एक ऐसा लाल है..............................(सुनने वाले सो चुके थे.)
एकदम मस्त !!
ReplyDeleteपर आश्चर्य कि सिद्धू बोलें और उन्हें सुनने वाले सो जाएँ। :)
झक्कास च बिंदास
ReplyDeleteछा गए!!!!!!!
ReplyDeleteशानदार, एक-एक की लेखनी सटीक पकड़ी है!!
वैसे इसे तो और बढ़ाया जा सकता है और भी ब्लॉगर्स की लेखनी शामिल करके!
मालिक छा गए हो. लगे रहो !!!
ReplyDeleteबाहर निकल कर उछाल के छह ( गिन लें)क्या clone किया है - सर, आपके चरण कहाँ हैं [अगले पोस्ट में उनकी फोटू लगाएं, ताकि प्रशंसक वंदन कर सकें :-) ] - rgds - मनीष
ReplyDeleteरेलगाड़ी में बहुत स्कोप होता है। मुझे क्यों भूल गए जी।
ReplyDeleteनीचे दिया गया लिंक भी चटकाएं ः
http://wahmoney.blogspot.com/
सिडनी में बेईमानी की ठंड
बेकसूर को मिल रहा दंड है
सिडनी में बेईमानी की ठंड है
करतूतों की घुट रही भंग है
देख क्रिकेट प्रेमी विश्व दंग है
बकनर के नाम में ही राज छिपा है
नर जो बक रहा बना नहीं बकरा है
भज्जी को कर दिया देखो हलाल है
क्रिकेट के प्रेमियों को रहा मलाल है
बेनसन बेईमान है सिडनी बना पहलवान है
निन्दा कर रहे सब बेईमान की खुलेआम हैं
घड़ा पापी का फूटना तो भारत की जीत है
दिलों में जीत है मन में सबके बढ़ी प्रीत है
नीचे दिया गया लिंक भी चटकाएं ः
ReplyDeletehttp://nukkadh.blogspot.com/
लगता है हम ब्लॉग का नाम बदल कर आईना रख दें - क्या धांसूं आईना दिखाया है!
ReplyDeleteमुझे तो छोड़ दिया होता!
धांसू आइडिया बाप!!
ReplyDeleteफुल्टू आइटम लगा अपन को तो.
अब जब ये मार्के की पोस्टां आयेंगी तो काय को कोई फोकट में चिट्ठा-चर्चा जैसा पोस्ट पढेगा ?
नईं मांगता अलग अलग चिट्ठे, अपन को बस येहीच मांगता.
बंधू
ReplyDeleteआप की पोस्ट पढ़ के मुझे यकीन हो गया की आप दुनिया के सबसे बड़े ब्लॉग रीडर हैं, आप ने जिस कुशलता से चंद ब्लॉग लेखकों की स्टाईल में लिखा है, या नक़ल की है,वो काबिले तारीफ़ है. लेकिन ये पोस्ट लिख कर आप ने समझिए की मधुमख्खी के छते में हाथ डाल दिया है. जिन ब्लोगेर्स का आपने जिक्र नहीं किया वो तो आप को काटेंगे ही. आज ही बालकिशन मोबाइल पर हमें गा कर सुना रहे थे..." हो हो हो...अपने हुए पराये...." फ़िर सुर बदल के गुहार लगाई..."मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे...." और अंत में रुआंसे हो कर भरे गले से गाये की "हमसे का भूल हुई जो ये सज़ा हमका मिली...."
आप को चाहिए ये था की पोस्ट के अंत में लिख देते की "बाकि का अगली पोस्ट में"....या "आगे कल..." इससे क्या है की जिनका नाम नहीं आया उनको आस बंधी रहती.
आगे ख्याल रखियेगा... जान है तो ब्लॉग है....
नीरज
यही दस्तूर है दुनिया का.
ReplyDeleteअपने सबसे पहले भुलाए जाते है.
बहुत दुःख से कमेन्ट कर रहा हूँ. इस उम्मीद के साथ कि शायद इस पोस्ट का कोई दूसरा भाग प्राकशित हो और उसमे हमारा नाम हो.
हाँ पोस्ट बहुत अच्छी बनी है.
ReplyDeleteसच्चा आदमी हूँ इसलिए जो मन कि बात थी सो लिख दी.
Bhai,hansakar jaan le lee.kuch kahne layak nahi choda.
ReplyDeletechiranjeevi bhav.....