बिजनेसमैन हैं. एनजीओ के धंधे में कई सालों से हैं. सामजिक कार्यों की शुरुआत रक्तदान शिविर के आयोजन से हुई. बाद में मामला रक्तदान से कुछ आगे जाकर मुहल्ले के लिए 'लाईब्रेरी' और क्लब खोलने तक पहुंचा. करीब दस साल हुए, सत्ताधारी पार्टी के लिए जब पहली बार बूथ दखल का काम किया. बदले में राज्य सरकार से ग्रांट वगैरह का हिसाब बैठा दिया. मामला और आगे चल निकला. दूसरी बार बूथ दखल किया तो बदले में जमीन मिली. अब धंधा जोरों पर है. चन्दा इकठ्ठा करने काम काम काबिल हाथों में है, सो चिंता की बात नहीं है. पहले मुहल्ले में घूम कर ख़ुद चन्दा इकठ्ठा करते थे. अब 'लडके' हैं. अब चन्दा की बात पर कहते हैं; "समय के हिसाब से आदमी को बदल जाना चाहिए. अब तो मैं केवल बड़े लोगों के पास ही चन्दा लेने जाता हूँ."
मुझसे थोडी जान-पहचान है. कुछ दिन पहले ही फ़ोन पर एक काम करने के लिए आदेश दिया था उन्होंने. एक नया एनजीओ बनाया है, उसके लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट से सर्टीफिकेट चाहिए. ऊपर से ये पहले ही बता चुके थे कि; "पैसा नहीं दूँगा मैं. अरे सामाजिक कार्य में तो फीस लेना ही नहीं चाहिए."
आज आफिस में आ धमके. आते ही जो सबसे पहला काम किया वो था जैकेट को निकाल कर कुर्सी पर फेंकना. जैकेट फेंकते हुए बोले; "क्या समय आ गया है. देखिये आज जनवरी की १२ तारीख है और ऐसी गरमी. अब तो लगता है कि दस साल में जाड़ा का मौसम रहेगा ही नहीं. केवल दो मौसम रह जायेंगे, गरमी और बरसात."
मेरे एक मित्र आफिस में बैठे थे. उनकी बात सुनकर मित्र के मुंह से निकल गया; "क्या करेंगे जी, सबकुछ इस ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रहा है."
ग्लोबल वार्मिंग की बात सुनते ही उनके कान खड़े हो गए. मित्र से तुरंत पूछ बैठे; "ये ग्लोबल वार्मिंग क्या है? कई बार लोगों के मुंह से सुना है. वैसे ये है क्या?"
मित्र ने बताना शुरू किया; "देखिये, होता क्या है कि पेड़ वगैरह कटने से गरमी बढ़ गई है. दुनिया में जहाँ-जहाँ बर्फ जमी हुई है, वह पिघल रही है. उसके साथ में एसी, फ्रिज वगैरह चलाने से गैस निकलती है. मोटर गाडी का धुआं है सो अलग. इतना पलूशन की वजह से दुनिया में एक दिन बरफ का भण्डार ही खत्म हो जायेगा."
"समझ गया, समझ गया. ऊपर से ये टाटा की गाड़ी इतनी सस्ती आ रही है. तब तो और झमेला होगा. और बरफ पिघलेगा. नहीं? अरे जब सबके पास गाड़ी होगी, तब तो समस्या और बड़ी हो जायेगी"; उन्होंने चिंता जाहिर किया.
"हाँ. आपका अनुमान एक दम सही है"; मेरे मित्र ने कहा.
उन्होंने तुरंत किसी को फ़ोन लगाया. फ़ोन मिलते ही कहना शुरू किया; "सुनो, आज शाम को ही एक ठो रैली करनी है. बिशराम को बुला लो. मैं अभी आ रहा हूँ. बिशराम से कहना दो-तीन कारीगर लेकर आए. कम से डेढ़ सौ बैनर बनवाना है. मैं आकर बताता हूँ क्या लिखना है. और हाँ, धानुका और केडिया को फ़ोन कर के बोलो भइया पैसा मांगे हैं. बोलना ग्लोबल वार्मिंग पर सेमिनार आयोजित करना है."
इतना कहकर वे उठ खड़े हुए. बोले; "मैं अभी तो चलता हूँ. अब ये आयोजन करना है. आप मेरा वो सर्टीफिकेट वाला काम करवा दीजिये. मैं सोमवार को आऊँगा.
Saturday, January 12, 2008
अच्छा, ये ग्लोबल वार्मिंग है क्या?
@mishrashiv I'm reading: अच्छा, ये ग्लोबल वार्मिंग है क्या?Tweet this (ट्वीट करें)!
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ऐसे ही सचेतक (अ) सामाजिक कार्यकर्ताओं कि आज हमे जरुरत है. जो समस्या देखते ही तुरंत उसपर पिल पड़ते है और कुछ ही दिनों मे समस्या का ? बंटाधार.
ReplyDeleteअब हम सब निश्चित हो सकते है कि ग्लोबल वार्मिंग कुछ दिनों की ही मेहमान है.
हमारी तरफ़ से ढेरों बधाईयाँ.
ये ल्लो, हो गया न लोचा!!
ReplyDeleteइत्ते दिन से मैं पुराणिक जी से पूछे जा रहा हूं कि प्रभो ये एन जी ओ, एन जी ओ कैसे खेलते हैं बता दो हम भी कमा लें थोड़ा बहुत। पन उन्होने नई बताया! अब देखो, उन्होने बता दिया होता तो आपके इन परिचित की जगह अपन इस मुद्दे पे कमा लेते थोड़ा बहुत। बू हू हू……
क्या वार्मिन्ग है! क्या गरमाहट है! क्या सुकून। पड़ोसी की मड़ई जले तो हाथ तापने को तो मिले!
ReplyDeleteये आपके रैलिहा और सेमिनारहा सज्जन तो तपती रेत से तेल निकाल रहे हैं।
वैसे ऐसी प्रतिभाओं से देश अंटा पड़ा है! यहां डुप्लीकेट सामान बनाने का हुनर में भी एक प्रकार की प्रतिभा मिलेगी।
हमारे यहाँ मौक़ापरस्त धंधे बाजो क़ी कमी नही है जो मौका पाकर कमाई मे ड ट जाते है भलाई उन्हे कुछ न आता हो . एसे लोगो क़ी करतूत को आपने कलम से अच्छी तरह से उकेरा है .बधाई मिश्र जी
ReplyDeleteएक एनजीओ व्यंग्यकार सहायता कोष टाइप बना लीजिये। व्यंग्यकार ब्लागजगत में माइनोरिटी में हैं।
ReplyDeleteमाइनोरिटी के नाम पर कुछ जोड़ बटोर लीजिये। आप महासचिव बन जाइये मैं अध्यक्ष रहूंगा,आजीवन।कुछ चंदा चिट्टा हो जायो, तो पचास पचास फीसदी ले लेंगे। जो कैश ना दे पाये,उससे काइंड ही ले लेंगे।
चलिए ज्ञानजी से रेल का एक डिब्बा ही मांग लीजिये। सुना है, डिब्बों का लेन देन वही कर करते हैं।
लाजवाब. आपके लिखने में कलकत्तियों सा पुट है.
ReplyDeleteBandhu
ReplyDeleteRoman men comment kar rahe hain kyun ki iski alag kahani hai, filhaal Jaipur aaye hue hain ghar lekin aap ki post padhne ka mauka nahin chod rahe.
Bahut badhiya likhe hain bandhu hamare pass bhi aap ki mafik prashansha ke liye shabdon ka akaal pad gaya hai...wo aap ne kaha tha na..wohi...potli khaali ho gayii hai. Nano ke peeche dunia padhi hui hai ab un men aap ke mitra bhi sahi...
Neeraj
Bhai,
ReplyDeleteaanand aa gaya,lekh aur pratikriyayen padhkar...
sukhi rahen,prakhar se prakhartam ho lekhan.
आपने बहुत देर बाद लिखा और हमने भी बहुत देर से पढा वरना बन जाते हम भी अशासकीय समाज सेवी कहाँ इस ब्लोगिंग में हाथ ठोक रहे हैं और लोग पढ़ते हुए खा रहे हैं भाजी पाव . बहुत बढिया व्यंग्य.
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
बहोत बढ़िया विश्लेषण है - 'नेनो गाड़ी आने से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी'. तर्क तो सही है, सस्ती कार ज्यादा खरीदे जाएगी.. वगेरह वगेरह..
ReplyDeleteपरन्तु और बढ़िया बात ये है की उन्होंने तर्क कितनी जल्दी पकड़ लिया.
पांच मिनट पहले ग्लोबल वोर्मींग का 'ग' भी नहीं पता था, और दुसरे ही क्षण पूरा सेमीनार भी तैयार हो गया.
स्कूल वाले लालाजी के बिछड़े भाई लगते हैं. या शायद ऐसे लोगों की कमी नहीं.
आपके मित्र को भी ज्ञान बढ़ने के लिए धन्यवाद दीजियेगा, और पढवाने के लिए आपको धन्यवाद!