गृहमंत्री जी परेशान हैं. नक्सलियों ने बड़ा हड़कंप मचा रखा है. जब चाहते हैं किसी को मार देते हैं. पुलिस से वही हथियार छीन लेते हैं जो पुलिस को आत्मरक्षा और जनता की सुरक्षा के लिए मिला है. रेल लाइन उड़ा देते हैं. रेलवे स्टेशन जला देते हैं. इतना सब करने से मन नहीं भरता तो इलाके में बंद भी कर डालते हैं. मंत्री जी ने कई बार इन नक्सलियों को बताया; "तुम हमारे अपने ही तो हो. मुख्यधारा में लौट आओ. तुमको केवल इसी बात की शिकायत है न कि हमने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया? चलो एक काम करते हैं. हम और तुम मिलकर राष्ट्र-निर्माण का कार्यक्रम चलायेंगे. दोनों के चलाने से कार्यक्रम की सफलता पर कोई संदेह नहीं रहेगा."
नक्सली जी को लगता है मंत्री जी की बात में दम तो है लेकिन अगर वे भी सरकार में बैठ जायेंगे तो उनके बाकी कर्मों और कमिटमेंट का क्या होगा. इसलिए वे मंत्री जी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. उल्टे दूसरे दिन ही दो-चार और घटनाएं कर डालते हैं. मंत्री जी परेशान हैं. पिछले दो-तीन सालों में बड़ी मेहनत की लेकिन नक्सली जी के ऊपर कोई असर नहीं हुआ. तमाम जुगत लगाई गई लेकिन सब फेल हो गईं. टीवी पर पैनल डिस्कशन कराये गए, देश के महानगरों में सेमिनार कराये गए, गाँधी जयंती पर अपील की गई लेकिन मामला जमा नहीं. आजकल मंत्री जी की परेशानी का सबब प्रधानमंत्री का बयान है. दो महीने पहले प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम में नक्सली हिंसा पर चिंता जाहिर करते हुए कह डाला; "हम नक्सली हिंसा को काबू में नहीं कर पा रहे." अब प्रधानमंत्री ऐसा कहेंगे तो मंत्री जी तो परेशान होंगे ही. आज परेशानी इतनी बढ़ गई कि सचिव से रपट मंगा ली है. सचिव जी ढेर सारी फाईलें लिए खड़े हैं.
"माननीय प्रधानमंत्री ने जब से कहा है कि हम नक्सली हिंसा रोकने में कामयाब नहीं हुए हैं, तब से नक्सली हिंसा रोकने के लिए क्या-क्या हुआ है, उसकी पूरी जानकारी दीजिये. सबसे पहले मुझे महानगरों में आयोजित सेमिनारों का डिटेल दीजिये"; मंत्री जी ने सचिव जी से कहा.
"जी सर. देखिये सर, कलकत्ते में मार्च महीने में सेमिनार आयोजित किया गया था. मोशन का शीर्षक था, " नक्सली समस्या का कारण समुचित विकास का न होना है." सर इसमें गृह राज्यमंत्री ने भी अपने विचार व्यक्त किए थे. सर उनके अलावा विपक्ष के एक नेता थे. अखबारों के तीन सम्पादक थे जिसमें से दो कलकत्ते के और एक चेन्नई के थे. इनके अलावा एक रिटायर्ड अफसर थे जो कभी गृह सचिव रह चुके हैं. हाँ सर, इस सेमिनार में विज्ञापन जगत की एक मशहूर हस्ती और नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले एक कवि भी थे"; सचिव ने जानकारी दी.
"कलकत्ते में सेमिनार के अलावा और कहाँ-कहाँ सेमिनार आयोजित हुए?"; मंत्री जी ने जानना चाहा.
सचिव को सवाल शायद ठीक नहीं लगा. शायद उन्हें लगा कि मंत्री जी के इस कवायद का कोई मतलब नहीं है. इसलिए उन्होंने मुंह विचकाते हुए एक और फाइल उठा ली. फाइल देखते हुए उन्होंने बोलना शुरू किया; "सर, मुम्बई में एक सेमिनार अप्रिल महीने के पहले सप्ताह में हुआ था. वहाँ से पब्लिश होने वाले एक अखबार के प्रकाशकों ने करवाया था. उसमें एक रिटायर्ड आई जी, विपक्ष के एक नेता, दो सम्पादक, एक फ़िल्म प्रोड्यूसर और वही कवि थे जो कलकत्ते के सेमिनार में भी थे. यहाँ मोशन का शीर्षक था, "नक्सलवाद सामाजिक अन्याय की परिणति है". इसके अलावा सर, एक सेमिनार हैदराबाद में, एक दिल्ली और एक पटना में आयोजित किया गया."
मंत्री जी सचिव की बात बहुत ध्यान से सुन रहे थे. उन्होंने सामने रखे पैड पर अपनी पेंसिल से कुछ लिखा. लिखने के बाद सचिव से फिर सवाल किया; "और टीवी पर पैनल डिस्कशन का क्या हाल है? कौन-कौन से चैनल पर पैनल डिस्कशन हुए? उसका डिटेल है आपके पास?"
"जी सर. पूरा डिटेल है हमारे पास. मैंने सारे पैनल डिस्कशन की वीडियो रेकॉर्डिंग भी रखी है. आप देखेंगे?"; सचिव ने अपनी कार्य कुशलता का परिचय देते हुए पूछा.
"नहीं नहीं, वो सब देखने का समय नहीं है. आप केवल ये बताईये कि कौन-कौन से चैनल पर क्या पैनल डिस्कशन हुआ"; मंत्री जी की बात से लगा जैसे सचिव की वीडियो रेकॉर्डिंग देखने वाली बात उन्हें ठीक नहीं लगी.
"सॉरी सर. देखिये सर, सीसी टीवी पर एक पैनल डिस्कशन हुआ सर. इस आयोजन में एंकर थे सर, प्रमोद मालपुआ. उनके अलावा सर फ़िल्म प्रोड्यूसर सुरेश भट्ट, यूपी के पूर्व आईजी विकास सिंह, ओवरलुक पत्रिका के सम्पादक मनोज मेहता थे. सर, इस डिस्कशन में नेपाल से भी एक माओवादी नेता ने भाग लिया था सर. इनके अलावा नुक्कड़ नाटक करने वाले एक अभिनेता थे सर. चैनल ने एसएमएस पोल भी करवाया था सर. सवाल था, "नक्सलवाद की समस्या को सरकार क्या गंभीरता से ले रही है?" सर आपको जानकर खुशी होगी कि इस बार सैंतीस प्रतिशत लोगों ने जवाब दिया कि सरकार समस्या को गंभीरता से ले रही है"; सचिव ने पूरी तरह से जानकारी देते हुए कहा.
"केवल सैंतीस प्रतिशत लोगों ने हमारी गंभीरता को समझा! और आप इसपर मुझे खुश होने के लिए कह रहे हैं?"; मंत्री जी ने खीज के साथ सवाल किया. शायद उन्हें सचिव द्वारा कही गई खुश होने की बात ठीक नहीं लगी.
"नहीं सर, बात वो नहीं है. मेरे कहने का मतलब है सर कि पिछली बार इसी तरह के एक सवाल पर केवल बत्तीस प्रतिशत लोगों ने सरकार के प्रयासों को गंभीर प्रयास बताया था"; सचिव ने सफाई देते हुए कहा.
"अच्छा अच्छा, कोई बात नहीं. और बताईये, और किस चैनल पर डिस्कशन हुआ?"; मंत्री जी ने और जानकारी चाही.
"सर इसके अलावा एक पैनल डिस्कशन सर्वश्रेष्ठ चैनल अभी तक पर, एक डिस्कशन हाईम्स नाऊ पर और एक डीएनएन बीएनएन पर हुआ. सर, लगभग सारे पैनल डिस्कशन में घूम-फिर कर वही सब ज्ञानी थे. लेकिन सर, एक बात कहना चाहूंगा. अगर आपकी इजाजत हो तो अर्ज करूं"; सचिव जी ने मंत्री से कहा.
"हाँ-हाँ बोलिए. जरूर बोलिए. आप भी तो सरकार का हिस्सा हैं. कोई सुझाव हो तो बोलिए"; मंत्री जी ने सचिव को लगभग आजादी देते हुए बताया.
मंत्री जी की बात से सचिव का उत्साह जग गया. उन्होंने बोलना शुरू किया; "देखिये सर, सेमिनार और पैनल डिस्कशन वाली बात तो अपनी जगह ठीक है. लेकिन सर, हमें प्रशासनिक स्तर पर भी कोई कार्यवाई करनी चाहिए. सर, लोगों का मानना है कि पुलिस की ट्रेनिंग और उनके लिए आधुनिक हथियार वगैरह मुहैया कराने से पुलिस अपने काम में और सक्षम होगी. हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए."
"देखिये, पुलिस को आधुनिक हथियार मुहैया कराने वाली बात मैं सालों से सुन रहा हूँ. लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसा करने से कोई फर्क पड़ेगा. देखिये, अगर हम पुलिस को आधुनिक हथियारों से लैस कर देंगे तो खून-खराबा बढ़ने के चांस हैं. गाँधी जी जैसे शान्ति के मसीहा के देश में इस तरह का खून-खराबा होगा तो पूरी दुनिया में हमारी साख गिरेगी. वैसे भी महात्मा के देश में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है"; मंत्री जी ने समझाते हुए कहा.
मंत्री जी की बात सुनकर सचिव जी को हँसी आ गई. लेकिन बहुत कोशिश करके उन्होंने अपनी हँसी रोक ली. उन्हें एक बार तो लगा कि मंत्री जी से कह दें कि; "सर दो मिनट का समय दे दें तो मैं बाहर जाकर हंस लूँ"; लेकिन मंत्री के सामने ऐसा करने की गुस्ताखी नहीं कर सके. उन्होंने एक मिनट की चुप्पी के बाद कहना शुरू किया; "सर, कुछ लोगों का मानना है कि नक्सली हिंसा की समस्या कानून-व्यवस्था की समस्या है."
"अरे ऐसे लोगों की बात पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है. मैंने कम से कम दो बार देश भर के बुद्धिजीवियों के साथ बैठक की है. सारे बुद्धिजीवी इस बात पर सहमत थे कि नक्सली समस्या कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्या है"; मंत्री जी ने अपनी सोच का खुलासा करते हुए बताया.
"तब तो ठीक है सर. फिर तो कोई समस्या ही नहीं है. जब बुद्धिजीवियों ने इसे कानून-व्यवस्था की समस्या मानने से इनकार कर दिया है फिर आम जनता की बात सुनकर क्या आनी-जानी है. वैसे भी आम जनता के पास इतनी बुद्धि नहीं है कि वो इस तरह की जटिल समस्याओं के बारे ठीक से विचार कर सके"; सचिव ने मंत्री की हाँ से हाँ मिलाई.
"बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप. वैसे एक बात बताईये. ये नक्सली हिंसा की समस्या को लेकर और मंत्रालयों में क्या बात हो रही है? अरे भाई, आप भी तो बाकी मंत्रालयों के सचिव वगैरह से मिलते ही होंगे. मेरे कहने का मतलब है कि बाकी के मंत्री और सचिव क्या सोचते हैं हमारे मंत्रालय के बारे में?"; मंत्री जी ने सचिव के कान के पास धीरे से पूछा.
मंत्री जी की बात सुनकर सचिव जी मुस्कुराने लगे. उन्होंने इधर-उधर देखते हुए कहना शुरू किया; "सर, देखा जाय तो बाकी के मंत्रालय हमारे मंत्रालय के प्रयासों के बारे में कुछ अच्छा नहीं सोचते. वो परसों झारखंड में नक्सलियों ने रेलवे लाइन उड़ा डी न. उसी को लेकर कल कैंटीन में चर्चा हो रही थी. मैं, रक्षा मंत्रालय के सचिव और प्रधानमंत्री कार्यालय के सहायक सचिव थे. झारखण्ड वाली घटना पर रक्षा मंत्रालय के सचिव ने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर यही हाल रहा तो अगले दो-तीन साल के अन्दर सेना को पाकिस्तान, बंगलादेश और चीन के बॉर्डर से हटाकर उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, आँध्रप्रदेश और बिहार के बॉर्डर पर लगाना पड़ेगा."
सचिव की बात सुनकर मंत्री जी को बहुत बुरा लगा. उन्हें पूरा विश्वास हो चला कि रक्षा सचिव के अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय का सहायक सचिव भी था तो उसने भी जरूर कुछ न कुछ कहा ही होगा. यही सोचते-सोचते वे पूछ बैठे; "और वो माथुर साहब क्या कह रहे थे? पी एम कार्यालय के सचिव भी तो कुछ बोले होंगे."
मंत्री जी का सवाल ही ऐसा था कि सचिव ने तुरंत बोलना शुरू कर दिया; "सर, प्रधानमंत्री कार्यालय भी हमारे प्रयासों को ज्यादा तवज्जो नहीं देता. माथुर साहब कह रहे थे कि माननीय प्रधानमंत्री के चिंता जाहिर करने के बावजूद हमारे मंत्रालय की तरफ़ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. उन्हें तो सर इस बात से भी शिकायत है कि पीएम साहब के बयान के बाद गृहमंत्री महोदय ने एक बार संवाददाता सम्मेलन बुलाकर चिंता तक नहीं जताई."
सचिव की बात सुनकर मंत्री महोदय चुप हो गए. चेहरे पर कठोर भाव उमड़ पड़े. सोचने लगे; "देखो. प्रधानमंत्री कार्यालय का सचिव भी ऐसी बात करता है. फिर भी प्रधानमंत्री कार्यालय की बात थी. सो कुछ सोचते हुए उन्होंने सचिव से कहा; "कल से हमें इस समस्या के बारे युद्ध स्तर पर काम शुरू करने की जरूरत है. आप एक काम कीजिये. कल ही एक संवाददाता सम्मेलन बुलाईये. मुझे नक्सली हिंसा की समस्या पर चिंता व्यक्त करनी है. आगे की कार्यवाई के बारे में आप सारी डिटेल इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद दूँगा."
इतना कहकर मंत्री जी उठ खड़े हुए. उन्होंने अपनी शेरवानी की जेब से दो पन्नों का एक कागज़ निकाला और पढने लगे. उन्हें आज ही इंडिया हैबिटैट सेंटर में एक सेमिनार में कुछ बोलना था. सेमिनार में डिस्कशन का मुद्दा था; 'लोकतंत्र और हम'.
Saturday, May 10, 2008
इस बार मंत्री जी युद्ध स्तर पर काम करेंगे
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बंधू
ReplyDeleteइतनी सारगर्भित और रोचक पोस्ट लिखी है आप ने की हमें भी कुछ कुछ समझ में आ गयी...सच कहें तो "एस मिनिस्टर" नमक सीरियल की याद आ गयी जिसे बाद में "जी मंत्री जी " के नाम से हिन्दी में भी बनाया गया था.आप की राजनीती की जानकारी देख कर हम दंग हैं.
नीरज
नक्सलवाद की समस्या हो या कोई अन्य, वह तभी हल हो सकती है, जब आर्मचेयर बुद्धिजीवियों को दरकिनार किया जाये। इस ब्लॉगजगत में भी अनेक मीडियॉटिक और सतही बुद्धिजीवी हैं जो बहस खूब चला लेते हैं, पर समाधान के ब्यू-प्रिण्ट की बात पूछने पर जलेबी बनाने लगते हैं।
ReplyDelete-------
मन्त्री जी नक्सल समस्या के समाधान के लिये एक ब्लॉग क्यों नहीं बना लेते! और उस ब्लॉग में अनुर्वर पर लिख्खाड़ ब्लॉगरों को एसोशियेट ऑथरशिप दे दें। एक दिन में दस बार मुखारी कर २०-२५ पोस्टें ठेलेंगे वे लोग तो समस्या उड़न छू हो जायेगी! :D
"yes minister "एक सीरियल आता था ,आपकी कहानी सी पढ़कर लगा कही आप उसके मूल लेखक तो नही थे ,बाद मे भारत मे उसी तर्ज पर एक सीरियल शुरू किया गया था ....उसका नाम अभी याद नही आ रहा..पर वो भी मजेदार था.....
ReplyDeleteलगता है आपने नक्सलवाद पर काफी शोध किया है इतनी बारीकी से सबकी कलई खोल कर रख दी है अब कुछ कहते ही नही बन रहा है आप ठहरे शोध विशेषज्ञ दादा आपसे डर लगने लगा है पोस्ट बढ़िया लगी ..धन्यवाद
ReplyDeleteतब तो समस्या का समाधान तय समझो.
ReplyDeleteपढ़कर लग रहा है जैसे स्टिंग ऑपरेशन करने बैठे थे वहाँ.
बढ़िया है.
मंत्री जी ने इस बार इस मामले पर पश्चिम बंगाल सरकार से बात कर झारखंड मे होने वाली सभी सेमीनारो मे सरकार की तरफ़ से आपको नामाकिंत कर दिया है.अब झेलियेगा :)
ReplyDeleteह्म्म, सटीक लिखे पे ज्ञान दद्दा ने सटीक कमेंट किया उसके बाद बचता ही नई कुछ कहने को!
ReplyDeleteमतलब साफ है कि नक्सलवाद की समस्या का कोई समाधान कहीं से भी आने वाला नहीं है। हमारे ब्लॉगर बंधु भी मंत्री जी की चिंता से अपना मनोरंजन करके अगली पोस्ट पर क्लिक कर गये। जैसे मंत्री जी नक्सलवाद के बाद लोकतंत्र पर शिफ़्ट कर गये।
ReplyDeleteज्ञान जी ने सही फरमाया कि ‘नक्सलवाद की समस्या हो या कोई अन्य, वह तभी हल हो सकती है, जब आर्मचेयर बुद्धिजीवियों को दरकिनार किया जाये। इस ब्लॉगजगत में भी अनेक मीडियॉटिक और सतही बुद्धिजीवी हैं जो बहस खूब चला लेते हैं, पर समाधान के ब्ल्यू-प्रिण्ट की बात पूछने पर जलेबी बनाने लगते हैं।…’
कभी-कभी मीडियॉटिक को ‘ईडियॉटिक’ (नया स्लैंग!) होता देखकर हँसी ही आती है। अरे, कोई है? जो मंत्री जी को उन क्षेत्रों तक ले जाने का जुगाड़ बना दे!
शिवकुमार जी को उनके जीवंत ‘स्टिंग’ की सफलता के लिये बधाई…।
जय श्री गुरुवे नमःसोचो जिसने तुम्हें सुंदर सृष्टि दी , जो किसी भी प्रकार से स्वर्ग से कम नहीं है , आश्चर्य ! वहां नर्क (Hell) भी है । क्यों ? नर्क हमारी कृतियों का प्रतिफलन है । हमारी स्वार्थ भरी क्रियाओं मैं नर्क को जन्म दिया है । हमने अवांछित कार्यों के द्वारा अपने लिए अभिशाप की स्थिति उत्पन्न की है । स्पष्ट है कि नर्क जब हमारी उपज है , तोइसे मिटाना भी हमें ही पड़ेगा । सुनो कलियुग में पाप की मात्रा पुण्य से अधिक है जबकि अन्य युगों में पाप तो था किंतु सत्य इतना व्यापक था कि पापी भी उत्तमतरंगों को आत्मसात करने की स्थिति में थे । अतः नर्क कलियुग के पहले केवल विचार रूप में था , बीज रूप में था । कलियुग में यह वैचारिक नर्क के बीजों को अनुकूल और आदर्श परिस्थितियां आज के मानव में प्रदान कीं। शनै : शनैः जैसे - जैसे पाप का बोल-बालहोता गया ,नर्क का क्षेत्र विस्तारित होता गया । देखो । आज धरती पर क्या हो रहा है ? आधुनिक मनुष्यों वैचारिक प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि हुयी है । हमारे दूषित विचार से उत्पन्न दूषित ऊर्जा ( destructive energy ) , पाप - वृत्तियों की वृद्धि एवं इसके फलस्वरूप आत्मा के संकुचन द्वारा उत्त्पन्न संपीडन से अवमुक्त ऊर्जा , जो निरंतर शून्य (space) में जा रही है , यही ऊर्जा नर्क का सृजन कर रही है , जिससे हम असहाय होकर स्वयं भी झुलस रहे हैं और दूसरो को भी झुलसा रहे हें । ज्ञान की अनुपस्थिति मैं विज्ञान के प्रसार से , सृष्टि और प्रकृति की बहुत छति मनुष्य कर चुका है । उससे पहले की प्रकृति छति पूर्ति के लिए उद्यत हो जाए हमें अपने- आपको बदलना होगा । उत्तम कर्मों के द्वारा आत्मा के संकुचन को रोकना होगा , विचारों में पवित्रता का समावेश करना होगा । आत्मा की उर्जा जो आत्मा के संपीडन के द्वारा नष्ट होकर नर्क विकसित कर रही है उसको सही दिशा देने का गुरुतर कर्तव्य तुम्हारे समक्ष है ताकि यह ऊर्जा विकास मैं सहयोगी सिद्ध हो सके । आत्मा की सृजनात्मक ऊर्जा को जनहित के लिए प्रयोग करो । कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा । नर्क की उष्मा मद्धिम पड़ेगी और व्याकुल सृष्टि को त्राण हासिल होगा । आत्म - दर्शन (स्वयं का ज्ञान ) और आत्मा के प्रकाश द्वारा अपना रास्ता निर्धारित करना होगा । आसान नहीं है यह सब लेकिन सृष्टि ने क्या तुम्हें आसन कार्यों के लिए सृजित किया है ? सरीर की जय के साथ - साथ आत्मा की जयजयकार गुंजायमान करो । सफलता मिलेगी । सृष्टि और सृष्टि कर्ता सदैव तुम्हारे साथ है । प्रकृति का आशीर्वाद तुम्हारे ऊपर बरसेगा । *****************जय शरीर । जय आत्मा । । ******************
ReplyDeleteBahut hi badhiya likha bhaiKisi bhi samvedansheel samasya ko kitni gambheerta se ye dhesh ke karndhaar lete hain,kya khoob chitra kheencha hai tumne,par yah adhoori chitra hi hai.Yah naksalwaad ho ya is tarah ke koi bhi waad aur waadi sangathan,inhi loksevakon ki shah par palte aur falte foolte hain.Najdeek jakar dekhoge to iska vibhatsa roop dekh dang rah jaoge.
ReplyDeleteकाश ये पोस्ट हमारे प्रधान मंत्री जी पड़ लेते तो नक्साल्वाद के नाम पर होने वाले सेमिनार...इत्यादी ..खर्चे से देश को कुछ राहत मिल जाती, क्योंकि उनको इतनी समझ में तो आती की मिश्रा जी की ब्लॉग पड़ने वाले को ये सब पता है........
ReplyDeleteशुक्र है नाखून नहीं हैं !!! - सर खुजा रहा हूँ !!! - हंसूं या रोऊँ ? - अभी खड़े होकर हाथ उठा देता हूँ - ये ही तो है व्यंग्य बंधू / त्रासदी त्रासदी
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