साहित्यकार ब्लॉगर से नाराज हैं. ब्लॉगर साहित्यकार से नाराज हैं. ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर से नाराज हैं. ब्लॉगर कमेंट करने वाले से नाराज हैं. हालत बड़ी ख़राब है. एक दूसरे के ऊपर व्यक्तिगत आक्षेप लगाने की होड़ लगी हुई है. दोस्त दुश्मन बन गए हैं. दुश्मन दोस्त बन रहे हैं. दो कौड़ी का ईगो लिए लोग एक दूसरे के ख़िलाफ़ पोस्ट और टिपण्णी लिख रहे हैं. जिसके पास सोलह आने का ईगो है उसके तो क्या कहने.
(यहाँ मैं ईगो की बात इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि मैं ख़ुद इस ईगो की वजह से पहले इस तरह की स्तिथि से गुजर चुका हूँ.)
कुछ टिप्पणियां तो इतनी ख़राब हैं कि सोचने पर विवश कर दिया है कि टिकें या नहीं? स्तिथि बिल्कुल नियंत्रण में नहीं है. इसलिए ख़तरा टलने की बात करें भी तो कैसे.
हमें एक बार सोचना चाहिए. लिखने वाले ने ये दो शेर आज शाम को तो नहीं लिखे?
नक्शा उठाकर कोई नया शहर ढूढिये
इस शहर में तो सबसे मुलाकात हो गई
या फिर;
जिसको भी देखना हो कई बार देखना
हर आदमी में बंद हैं दस-बीस आदमी
बड़ी अजीब बात लग रही है मुझे. आजतक कभी रात के इस समय पोस्ट नहीं लिखी. वैसे ये पोस्ट है भी नहीं. लेकिन पिछले दो दिनों से कुछ मुसीबत की वजह से आज करीब आधा घंटा पहले ही ब्लाग्स देखने का समय मिला. नतीजा? ये 'पोस्ट' है.
Sunday, May 25, 2008
नक्शा उठाकर कोई नया शहर ढूढिये
@mishrashiv I'm reading: नक्शा उठाकर कोई नया शहर ढूढियेTweet this (ट्वीट करें)!
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शिव जी
ReplyDeleteआप इस तरह हतोत्साहित होंगे यह उम्मीद आपसे हम नहीं करते.
नक्शे में जितने भी शहर हैं, सबके यही हाल हैं. इसी शहर में रहते हैं, कम से कम रास्ते जाने पहचाने से हो गये हैं तो समझ में आ जाता है किस रास्ते पर टहलें और किस पर नहीं. फिर साथी भी हैं जो आगाह करते चलते हैं साथ साथ.
नये शहर, फिर नये सिरे से पहचानने की कसरत, फिर अंत में एक और नये शहर की तलाश-फिर तो बंजारों सी हालात हो लेगी. क्या फायदा होगा?
बड़े शहरों (ब्लॉग से कम्पेयर करियेगा यानि ब्लॉग को छोटा शाहर मान रहा हूँ) के हालात तो देख ही रहे हैं आप.
अच्छा बुरा, खुशी गम हर शहर में हैं. अच्छा शहर बसने के लिए वही है जहाँ मुसीबत में चार साथी हाथ बंटाने चले आयें.
कभी मजबूरी में शहर बदलना पड़ा, जैसे मानिये फिल्म में काम करना हो तो बम्बई जाना ही पड़ेगा वाली स्थिति आयेगी, तब की तब देखेंगे. :)
मेरी शुभकामनायें हमेशा की तरह आपके साथ हैं.
शिव जी। आप के विचार मेरे विचारों से मेल नहीं खाते, ज्ञान जी, समीरलाल जी, अरुण जी, अनिता जी, रचना जी और अनेक अन्य लोगों से भी। लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं कि मैदान छोड़ दिया जाए।
ReplyDeleteयह एक तरह की खीज है, और टीआरपी नु्स्खा भी।
देखिएगा सभी यहाँ रहेंगे। जैसा देवता होगा वैसी ही पूजा भी होगी।
आप तो लिखते रहिए। आप का काम लिखना है। ब्लाग किसी की जागीर नहीं है। जो जैसा होगा वैसी पहचान बना जाएगा।
और हम लोग लिखते रहें, यही इन बातों का जवाब है। और कोई जरुरी नहीं सबका जवाब दिया ही जाए। जवाब उसी का दिया जाएगा जो इस के काबिल होगा। शहर में सब तरह के लोग रहते हैं। हम सब से रिश्ता तो नहीं रखते।
शांत संशोधन-दुर्जोधन पुजारी, बेमतलबिया अर्थ-अनर्थ की राह पर भटकल पुजारी, शांत.
ReplyDeleteका भवा? ऐसे त रोज चलत रहा। जे जस रहेँ तस रहिहीँ। आपन नैसर्गिक सुभाव कैसे बगल देइहीं?
ReplyDeleteआपने शायद दुर्योधन की डायरी का पेज 1280 नहीं पढ़ा. फिर से पढिये. लिखा है.
ReplyDelete====
आज हस्तिनापुर की घटनाओं से मन बड़ा बैचेन है.दो दिन से आखेट के चक्कर में क्या रहा, कर्ण और शल्य ही आपस में भिड़ गये और पब्लिक के सामने कैसे एक दूसरे की अंतरंग बातों को बता रहे हैं. ऐसा रहा था तो पब्लिक तो हम सभी को मूर्ख समझेगी.हम हैं या नहीं यह बड़ी बात नहीं पर पब्लिक की नजर में तो नहीं बनना चाहते हैं. तब तो हमारा इतिहास बहुत ही दागदार हो जायेगा और कलियुग में हम पर सीरियल लिखने वालों को भी हम जैसा ही होना पड़ेगा...
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सोचता हूँ हस्तिनापुर छोड़ ही दूँ.
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सही है मामा श्री.जहाँ भी जायेंगे यह लड़ाई झगड़ा तो लगा ही रहेगा.तो फिर क्या फायदा. बिना लड़ाई के भी जीने से बोरियत ही होगी ना.
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कुछ अंश मैने काट दिये हैं क्योंकि कॉपीराइट आपके पास है ना. :-)
हम्म ।
ReplyDeleteबस मिलाकर हाथ अपनी उंगलियां गिन लीजिए
आपको इस शहर में रहने का फन आ जायेगा ।
या रब मेरे दोस्त हों सही सलामत
आजकल घर पर पत्थर नहीं आ रहे हैं ।
क्या सरजी..
ReplyDeleteआप भी किस चक्कर में पर गये हैं.. मैं तो अब किसी भी विवाद को बस एक ही नजरिये से देखता हूं, पढता हूं.. मगर भाग नहीं लेता हूं.. खैर आप बहुत अनुभवी हैं और मुझे उम्मीद है जल्द ही दुर्योधन कि डायरी के अगले पृष्ठों को कॉपी करने में जुट जायेंगे.. :)
मेरे भाई जहा चार बरतन होगे खडकेगे भी.इसे आप यू समझिये बेमौसम बरसात हो रही है ,और आपजानते है कि बरसात मे बाद वातावरण मे इलेक्ट्रोन्स कम हो जाते है जिसकी वजह से आदमी थोडा सा परेशान और बैचेन ( कुवंर बेचैन नही) बस इसी बेचैनी की हालत मे कुछ ऊंट पटांग हरकते कर जाता है जी . टेंशन ना ले
ReplyDeleteयूनूस जी @ इस महगाई के दौर मे पत्थर भी महंगे हो गये है , अगर अपने उपर फ़िकवा कर टि आर पी बढाना चाहते है तो खुद ही खरीदकर फ़िकवाने पडेगे. :)
नक्शा उठाकर देखने से कोई फायदा ना होगा.
ReplyDeleteसारे के सारे शहर येसेही हैं।
करीब जाकर छोटे लगे
ReplyDeleteवो लोग जो आसमान थे
सभी लोगो ने सब कुछ लिख दिया है मैं अब क्या लिखूं ? शिव जी ,आप अपनी कलम जारी रखिये....बस इतना ही कह सकता हूँ.....आप ही नही हम सब लोग भी आहत है....
तुम्हारे जैसे लोगों के कारन ही ब्लोग्गिंग बदनाम हो रही है.
ReplyDeleteअच्छी बातों के भी ऐसी तस्वीर बनाओगे की बुरी नज़र आने लगे.
अरे भाई ये झगडे, झमेले ये विवाद भी तों ब्लोग्गिंग की जान है.
तुमने ज्ञान भइया का वो लिखा पढ़ है की नही कि
"विवाद भी विकास के वाहक होते हैं."
फ़िर कभी ऐसी नादानी कि बातें मत करना.
शिवजी, कहीं जाने की जरूरत नहीं हैं. नक्शे को एक तरफ़ रख दीजिये. यह सब तो ऐसे ही चलता रहेगा. आप तो जानते ही हैं कि मुंडे-मुंडे मतिर्भीन्नः. .
ReplyDeleteदोनों शेर निदा साहब के हैं. दूसरा वाला कुछ-कुछ यूँ है कि-
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना.
ई का भी आप सेंटिया गए हो? हमारे होते हुए...ये बहुत ग़लत बात है..कुछ हमारी लाज ही रख ली होती...और कौन है ससुरा जो आप को परेशां किए है...तनिक बताईये ना..आप तो जानते ही हैं की अपनी डॉन से सांट गांठ है...भूल गए उसका ब्लॉग लिखने का काम हम किए थे...(हमारी पुरानी पोस्ट देखो भईया). देखिये जैसे साँप अपना चोला उतार के असली रूप में आ जाता है वैसे ही अगर आप चाहेंगे तो हम भी अपने रंग में आ जायेंगे...बस आप हमें जरा समझा दो की लफडा क्या है...हमारी समझ जरा कमजोर टाइप की है...अरे सठिया जो रहे हैं हम
ReplyDeleteनीरज
विचारों में स्वतंत्रता और विविधता के पक्षधर ???? - कल बात होगी
ReplyDeleteअरे वाह, क्या क्यूट अदा दिखा गये जी आप। हम इत्ता देर से देख पाये!
ReplyDeleteकुछ कहने की इच्छा नही है, अब ब्लाग की दुनिया अपने सबसे दुगर्ति के दिनों से गुजर रही है।
ReplyDeleteमैं तो बस इतना ही कहूँगा कि 'रात ही रात नहीं रहती, हर रात के बाद सुबह होती है।' निराश होने की कतइ जरूरत नहीं है।
ReplyDeleteदिनेश भाई से सवा सोलह आने सहमत
ReplyDeleteये हो क्या रहा है..................आप भी ???
ReplyDeleteअपन तो आपसे पहले भी एक ही बात कहते रहे हैं और आज भी वही कहेंगे,
ReplyDeleteटेंशन नई लेने का, बस जो लिखने का और लिख के टेंशन देने का, बस लेने का नई!
;)
नक्शा उठाके चाहे जहाँ भी जाइये ,कुछ टूटे हुए बादल छा ही जायेंगे!
ReplyDeleteमयखाना अगर स्वर्ग मे भी हो तो , कुछ टूटे हुए जाम पा ही जायेंगे !
बस लिखते रहिये अपनी अदा से निंदक तो सरमा ही जायेंगे......