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Friday, March 13, 2009

वोट निंद्य है शर्मराज.....


@mishrashiv I'm reading: वोट निंद्य है शर्मराज.....Tweet this (ट्वीट करें)!

आज बहुत दिनों बाद एक बार फिर से तुकबंदी इकठ्ठा करने की कोशिश की. करीब ढाई सौ ग्राम तुकबंदी इकठ्ठा हो गई. उसे ही ठेल रहा हूँ. आप झेलिये.

यह चुनाव कथा का प्रथम सर्ग है. कोशिश करूंगा कि द्वितीय सर्ग के लिए भी तुकबंदी इकठ्ठा हो.


वोट निंद्य है शर्मराज, पर,
कहो नीति अब क्या हो
कैसे वोटर लुभे आज फिर
पाँव तले तकिया हो

कैसे मिले हमें शासन का
पेडा, लड्डू, बरफी
किस रस्ते पर चलकर लूटें
चाँदी और अशर्फी

क्या-क्या रच डालें कि;
जनता खुश हो जाए हमसे
दे दे वोट हमें ही ज्यादा
हम फिर नाचें जम के

अगर कहो तो सेकुलर बन, हम
फिर महान हो जाएँ
नहीं अगर जंचता ये रस्ता
राम नाम हम गायें

अगर कहो तो गाँधीगीरी कर
त्यागी कहलायें
शासन के बाहर ही बैठे
जमकर हलवा खाएं

तुम कह दो तो गठबंधन कर
दें जनता को धोखा
तरह तरह के स्वांग रचें हम
मारें पेटी खोखा

कल तक जो थे साथ, कहो तो
साथ छोड़ दें उनका
नहीं समर्थन मिले हमें तो
हाथ तोड़ दें उनका

तुम कह दो तो एक कमीशन
बैठाकर फंसवा दें
अगर कहो तो खड़े-खड़े ही
पुलिस भेज कसवा दें

नीति-वीति की बात करे जो
उसका मुंह कर काला
भरी सड़क पर उसे बजा दें
हो जाए घोटाला

बाहुबली की कमी नहीं
गर बोलो तो ले आयें
उन्हें टिकट दे खड़ा करें, और
नीतिवचन दोहरायें

दलितों की बातें करनी हो
गला फाड़ कर लेंगे
बात करेंगे चावल की, पर
उन्हें माड़ हम देंगे

तुम कह दो तो कर्ज माफ़ कर
हितचिन्तक बन जाएँ
मिले वोट तो भूलें उनको
उनपे ही तन जाएँ

गठबंधन का धर्म निभाकर
पॉँच साल टिक जाएँ
आज जिन्हें लें साथ, उन्ही को
ठेंगा कल दिखलायें

किसे बनाएं मुद्दा हम, बस
एक बार बतला दो
जो बोलोगे वही करेंगे
तुम तो बस जतला दो

अगर कहो तो बिजली को ही
फिर मुद्दा बनवा दें
अगर नहीं तो सड़कों पर ही
पानी हम फिरवा दें

शर्मराज जो भी बोलोगे
हम तो वही करेंगे
शासन में रह मजे करेंगे
अपना घर भर लेंगे

27 comments:

  1. वोट के लिए तो कुछ भी करेगा ... गद्दी बची तो लाखो पाए ... अगले सर्ग का भी इंतजार रहेगा।

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  2. वाह,
    शर्मराज परिहास खोजना कायरता है मन की।
    है सच्चा मनुजत्व कैप्चरिंग शत-प्रतिशत बूथन की! :)

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  3. दिनकर जी यदि वर्तमान राजनितिक परिदृश्य पर लिखते तो बिलकुल यही और ऐसा ही लिखते.....इसे कुछ ग्राम की तुकबंदी कह इसकी तौहीन न करो.....

    कितना हर्ष हुआ यह पढ़कर बता नहीं सकती...
    सटीक तो तुम हमेशा ही लिखते हो,पर कवितामयी अभिव्यक्ति ने सोने पर सुहागा सा काम किया...

    बहुत बहुत अच्छा....ऐसे ही लिखते रहो.....अनंत शुभकामनाये...

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  4. बहुत अच्छा भाई। कविता की दुनियाँ में आपका स्वागत है। राँची में किए गए वादे को आपने आखिर पूरा किया। कहते हैं कि-

    अभी जमीर मत बेचो कीमत बहुत है कम।
    चुनाव आने पर भारी उछाल आएगा।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. वाह! वाह! वाह!
    पव्वा जब इतना ज़ोरदार है
    तो बोतल तो जाने क्या होगा?
    उम्मीद यही है
    आप चुआने में लगे होंगे
    कल ब्लॉग पर अद्धा होगा.

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  6. बहुत अच्छे अब कविता से भी व्यँग्य ! वाह जी वाह !!
    - लावण्या

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  7. मस्‍त है, मस्‍ती से लबालब्‍ब है।

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  8. आप ने सहज ही यथार्थ को उकेर दिया है। महत्वपूर्ण रचना है।

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  9. सही है.. आपके ब्लोग पर होली के बाद अब चुनावी मौसम चढ़ रहा है..:)

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  10. यह एक विशिष्ट रचना है-खबरदार जो इसे तुकबन्दी कहा (यह खबरदारी रंजना जी के साथ समर्थन में)

    आनन्द आ गया भाई पढ़्कर..चुनावी रंग चढ़ने लगा है-अगला पार्ट लाओ.

    बधाई.

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  11. समसामयिक, सटीक, सार्थक...बेशर्मों के लिए नहीं, मतदाताओं के लिए.

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  12. मिश्रा जी, पांडेय जी
    मनीष की तरह मेरी भी इस रचना पर लार टपक रही है, अनुमति दें तो इसे अपनी साप्ताहिक मैग्जीन में छाप लूं आपके चित्र के साथ?

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  13. जानदार! शानदार! अगला सर्ग कब लिखा जायेगा?

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  14. शर्मराज कुछ शरमाए फ़िर
    तीव्र स्वरों में बोले
    "नेताजी अम्बर फ़ट जाए
    चाहे पृथ्वी डोले

    चाहे ऐण्टीक्लॉक दिशा में
    सुइयाँ चलें घडी़ की
    चाहे छोटी मछली बेशक
    ले ले मौज बडी़ की

    किन्तु सुनहरा अवसर यह
    ना निकल जाए हाथों से
    लेकिन मुझे आप पर शक सा
    होता इन बातों से

    छोटी छोटी बातें क्या तुम
    हमको पूछ रहे हो
    अब तक क्या सीखा इतने दिन
    हमरे साथ रहे हो

    हमें चाहिए बस रिजल्ट
    जो करो तुम्हारी मर्जी
    अपनी अकल लगाओ सोचो
    नया आइडिया सर जी"

    नेता हुए शर्म से पानी
    आत्मग्लानि से भरके
    लेकिन मौका ताड़ लिए
    चुपचाप वहाँ से सरके

    दिवस दूसरे ही दल बदला
    चोला नया पहन के
    शर्मराज नम्बर दो के घर
    पहुंच गए फ़िर तन के

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  15. ढाई सौ ग्राम बोलके माल एक किलो का दे दिया.. ये तो सरासर धोखा है.. इसके लिए हम उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराएँगे.. जागो ग्राहक जागो

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  16. वाह,यह उनका अधर्मगान आपके हाथ कैसे लग गया? गजब का लिखा है आपने।
    घुघूती बासूती

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  17. बहुतै जोर लिख दिए हो.

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  18. बहुत सही है मालिक.. तो ऊ कोरी धमकी नहीं रही ?.... और मेरे कम्पूटर महाराज के जंतुओं से भी दो ही घंटों में छुटकारा दिलवा दिया ... बहुत अच्छे ....

    द्वितीय सर्ग में कुछ महारथियों का बंटाधार हो कविवर !

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  19. जियेगा मरेगा , करेगा भरेगा ...कुर्सी के लिए साला कुछ भी करेगा

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  20. बहुत जोर लिखे हैं बंधू...कल जब आपका एस एम् एस मिला तो हम समझे मजाक कर रहे हैं...लेकिन आज देखे तो हैरान रह गए...आप में कवि बनने की अपार संभावनाएं हैं...आप को ये गीत गाने की कौनो जरूरत नहीं है...." मैं कहीं कवि न बन जाऊँ.." क्यूँ की अगर गाया तो वो कविता...सरिता...सविता...जो भी हैं समझेंगी की हमें बेवकूफ बना रहा है...ये तो आल रेडी कवि है....
    बहुत आनंद आया इस कविता को पढ़ कर...अब कितना आया ये तो क्या बताएं...लेकिन इतना आया की " आँचल ही ना समाय तो क्या कीजे..." टाईप गाना गा रहे हैं.
    नीरज

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  21. शर्म राज की बतकही, ‘शिवकुमार’ सुनवाय।
    कवि विवेक भी आ गये, कविता जुड़ती जाय॥

    कविता जुड़ती जाय, बानगी ले दिनकर की।
    है चुनाव चर्चा चालू, चौचक घर-घर की॥

    चकित हुए सिद्धार्थ,देख जो विकट हो गया धर्म।
    धोयी, पोंछी, फेंक दी, नेता जी ने शर्म॥

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  22. हमें तो इ तुकबंदी तोलने वाले तराजू में बड़ा इंटेरेस्ट आ रहा है...कहाँ से पाए? एक ठो हमको भी भिजवा दीजिये...लेकिन ठीक करवा कर. इ कविता का सही आकलन नहीं कर पाता है...या फिर आपकी कविता में इतना वजन था कि तराजू टें बोल गया.
    होली माहौल उतरने के बाद चुनाव माहौल गरमा रहा है...बढ़िया चुनावी कविता.

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  23. आपकी पाव किलो तुकबन्दी के साथ विवेक जी की छटाक हकबन्दी और सिद्धार्थ जी की विकटबंदी तो हज़म कर ली। अब और पाव किलो का इंतेज़ार रहेगा।

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  24. सेना में इन बुड्ढों को, जौहर दिखलाना भायेगा।

    युवकों के दिन बीत गये, बुड्ढों का जमाना आयेगा।।

    २५० ग्राम नही माल पूरा सवा किलो है. मजा आया. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  25. वाह वाह!!!
    बहुत खूब!
    एक आग्रह है - आपने मेरे ब्लॊग पर जो "चतुर पन्क्तियां" लिखी है उनमे डॊ अनुराग का जिक्र किया है, क्या आप उनके ब्लॊग की लिन्क दे देंगे? मैने कोशिश की ल्केइन मै खोज नही पाई.
    बहुत धन्यवाद उन पन्क्तियों के लिये! :)
    रचना. (www.rachanabajaj.wordpress.com)

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय