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Tuesday, May 5, 2009

सेंट मोला मेमोरियल स्कूल - भाग १


@mishrashiv I'm reading: सेंट मोला मेमोरियल स्कूल - भाग १Tweet this (ट्वीट करें)!

नाम : राम अवतार.
पिता का नाम : मोहन लाल.
फर्म का नाम : राम अवतार मोहन लाल.

एक घर, दो तेल-मिल, तीन दूकान, एक पत्नी, दो बच्चे और साठ कर्मचारियों के मालिक.

इनकी मानें तो दुनियाँ में दो प्रकार के लोग रहते हैं. पहले प्रकार के लोगों को नौकर कहते हैं और दूसरे प्रकार के लोगों को मालिक. धंधे से टाइम मिलने पर जब घर जाते हैं तो घर के मालिक बन जाते हैं. जब तक धंधे पर हैं तो दूकान, तेल-मिल और कर्मचारियों के मालिक.

घर पहुँचने पर अगर किसी दिन पता चले कि घर के किसी सदस्य ने अपने मन से कोई काम कर दिया है तो उसे फटकारते हुए एक ही सवाल पूछते हैं; " हमसे पूछा क्यों नहीं? मालिक कौन है, तुम कि मैं."

इनकी यह बात घर में भी इनके मालिक होने का एहसास दिलाती रहती.

तेल के व्यापारी हैं. सरसों का तेल बेचते हैं. कच्ची घानी वाला सरसों का 'आगमार्का' शुद्ध तेल. बेंचते तो और भी कई प्रकार के तेल हैं, लेकिन चूंकि मिलावट के चलते बाकी के तेल सरसों के तेल में गायब हो जाते हैं, लिहाजा बाकी के तेलों की सूची बनाने का भारी-भरकम काम करने की ज़रुरत नहीं पड़ती.

'आगमार्का' की सैंकटिटी भी बनी रहती है.

कई बार मज़ाक करते हुए कहते हैं; "मिलावट न करें तो ग्राहक शंका ज़ाहिर करते हुए पूछता है, क्या बात है, इस बार का तेल देखकर लगा रहा है जैसे प्योर नहीं है?"

बी कॉम तक की पढ़ाई की है. जब पढ़ते थे उन्ही दिनों इनके पिताश्री ने इन्हें दुनियाँ का सबसे बड़ा रहस्य समझा दिया था. उन्होंने बताया था; "किसी से दोस्ती मत करना."

यह बताते हुए पिताश्री ने इस रहस्य की व्याख्या करते हुए कहा था; "दोस्ती में क्या आनी-जानी है? तुम्हें तो धंधा करना है. वैसे भी दोस्ती करने से पैसे और समय, दोनों की बरबादी है."

इन्होने अपने पूज्य पिताजी की बात गाँठ बंधकर रख ली थी. इन्होने किसी से दोस्ती नहीं की. इन्हें कोई दोस्त नहीं मिला. मिले तो सिर्फ व्यापारी.

कक्षा आठ में जब पढ़ते थे, तभी से पिताजी के धंधे की सारी बारीकियां सीख गए थे. सरसों के तेल में कितनी मात्रा में कौन सा तेल मिलाया जाता है? किसे कितने दिन के उधार पर माल देना है? रेपसीड आयल कितनी मात्रा से ज्यादा नहीं मिलाना चाहिए? ज्यादा से ज्यादा कितना तक रेपसीड आयल मिलाया जा सकता है जिससे खाने वाले को लकवा मारने का चांस नहीं रहता...वगैरह..वगैरह.

बी कॉम की पढ़ाई के वक्त सहपाठियों को उठते-बैठते एक ही बात बताते. कहते; "पैसा कैसे कमाया जाता है, कभी मेरी दूकान पर आकर देखो. उड़ता है पैसा वहां. बस पकड़ने वाला चाहिए."

सहपाठी उनकी बात सुनकर आश्वस्त थे कि वे बी कॉम करने के बाद और नहीं पढेंगे.

दस बरस पहले तक का रिकार्ड देखें तो पता चलेगा कि राम अवतार जी शायद ही कभी किसी से प्रभावित होते बरामद हुए हों. गाहे-बगाहे उन लोगों से प्राभावित हो लेते जो उनके व्यापारी थे. जिन्हें वे तेल सप्लाई करते थे.

अब आप पूछेंगे कि व्यापारियों से प्रभावित क्यों होंगे भला? और अगर आप यह सोच रहे हैं कि शायद उन व्यापारियों से प्रभावित होते होंगे जो उनसे भारी मात्रा में माल खरीदते होंगे तो लगे हाथ आपको बता दूँ कि ऐसी कोई बात नहीं. वे तेल के उन व्यापारियों से प्रभावित होते थे जो उनका पैसा कई दिनों तक बकाया रखते थे.

जो व्यापारी उनका पैसा वक्त पर नहीं देता वे उससे यह सोचते हुए प्रभावित हो लेते थे कि;; "मान गए इसे. है कलेजे वाला आदमी. इससे सीखना चाहिए कि पैसा बकाया कैसे रखा जाता है."

अपने इन उधार-खाऊ व्यापारियों के अलावा पहली बार किसी से प्रभावित हुए तो वे हैं एक प्रसिद्द उद्योगपति.

करीब पांच बरस पहले बेटे का एडमिशन कराने इन उद्योगपति द्बारा राष्ट्रसेवा में चलाये जा रहे स्कूल में गए थे. वहीँ जाकर पता चला कि लगभग सभी बड़े उद्योगपति स्कूल के धंधे में हैं. बस, तभी से ये हर उस उद्योगपति से प्रभावित होते रहे जो स्कूल के धंधे में हैं.

बेटे के एडमिशन के लिए अगर एक दिन के लिए दूकान छोड़कर नहीं जाते तो उन्हें पता ही नहीं चलता कि तेल बेचने के अलावा भी कोई धंधा है जिससे पैसा पैदा किया जा सकता है. बहुत मन मारकर उस दिन दूकान को अपने मौसी के बेटे और कुछ कर्मचारियों के हवाले कर गए थे.

जाते समय पढाई-लिखाई को तो गाली दी ही, साथ में ही उन स्कूल वालों को भर पेट गरियाया था जो बेटे का नहीं बल्कि उनका इंटरव्यू लेना चाहते थे.

उसके पहले तो वे यह मानने के लिए भी तैयार नहीं थे कि तेल बेचने के अलावा भी दुनियाँ में कोई धंधा है जिससे पैसा कमाया जा सकता है. बेटे का एडमिशन हो गया. बेटे के एडमिशन के लिए दिए गए डोनेशन के पैसे ने उनके अन्दर यह विश्वास भर दिया कि स्कूल का धंधा तेल बेचने के धंधे से ज्यादा लाभदायक है.

...जारी रहेगा.

21 comments:

  1. भाई वाह! मान गए गुरु. लेकिन यह सूचना तो आपको दस-बीस साल पहले देनी चाहिए थी न! यही कर लेते. हर छोटी-बड़ी बात के लिए कम-अज़-कम लगाना तो नहीं पड़ता. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.

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  2. बहुत ही शानदार व्यंग्य बन पड़ा है. बी.कॉम तक बेफालतू पढ़ कर समय व पैसे बरबाद किये, बेचना तो तेल ही था. :)


    स्कूलों के बढ़ी फीस ने हाथ-पैर फूला दिये है. :(

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  3. बहुत रोचक है.. आगे का इंतजार रहेगा..

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  4. पढ़े फारसी बेचे तेल....लेकिन राम अवतार जी बी.काम करके तेल बेच रहे हैं...बिना फारसी पढ़े...गज़ब. हम भी सोचे थे किसी ज़माने में की एक थो स्कूल खोल लिया जाये...घर के अधिकांश लोग इसी क्षेत्र के थे...लेकिन पुरखों की रिवायतों ने जो सिखलाती थीं की शिक्षा बेचने की चीज़ नहीं,ये सदकाम न करने दिया, अगर करने दिया होता तो आज हमारा ब्लॉग हम नहीं, अमिताभ की तरह, हमारे भी चमचे लिख रहे होते...
    बहुत रोचक शैली है कथा में ताजगी है...हास्य और व्यंग का मिश्रण है...और क्या कहें...आगे की कथा का इंतज़ार है...
    नीरज

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  5. या मौला! यह शिवकुमार मिश्र की पोस्ट है या "रिच डैड - पूअर डैड" का भारतीय संस्करण!

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  6. मुझे लगता है कि इस कथा के अन्त में राम अवतार जी का धन्धा आगे बढ़ेगा और वे स्कूल खोल लेंगे। तेल की दुकान स्कूल के गेट पर पहले नम्बर पर चला करेगी। कई दूसरे टाइप के तेल भी बिका करेंगे।

    कथा पढ़कर लगा जैसे इनको पहले से जानता हूँ।

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  7. बहुतों की हालत तो "पढ़े फारसी बेचे तेल" जैसी है, लेकिन तेल बेचना भी काफी फायदे का सौदा है. हर दो-चार जिलों में इस प्रकार के "शुद्ध" तेल वाले करोड़-पति मिल जायेंगे.

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  8. Bahut bahut rochak.....aage ka besabri se intjaar hai....jaldi agli khep post karo..

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  9. मिश्रजी, हमको लगता है ये रामावतार जी हमारे जान पहचान के हैं.:)

    वैसे आपने एक बात ब्डी मार्के की कही कि जब तक दूसरे के धंधे की मलाई का अंदाजा नही हो तब तक अपने धंधे से अच्छा कोई दूसरा धंधा नही लगता.

    अब आपको हमको ही देख लिजिये. पर इससे तगडा धंधा आपने सरसों तेल बेचने का बता दिया और उससे तगडा स्कूल खोलने का.

    अब कौन सा करें? पहले और जांच लिजिये कोई इन से भी उंचा मलाईदार हो तो डाईरेक्ट वही शुरु करते हैं. क्योंकि अब और बदलने का समय हमारे पास नही है, बुढापे की दस्तक लग चुकी है :)

    रामराम.

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  10. आगे सेंट और पीछे पब्लिक लग गया तो फिर स्कूल तो चलेगा ही इसकी गारंटी ! और बाकी राम अवतारजी तो होशियार हैं ही :-)

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  11. अभी तक तो मेरे एक मुवक्किल की सत्यकथा लग रही है। पर पूरा उपन्यास लिख सकते हो। विषय अच्छा है।

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  12. सब ओर धंधा है मिश्रा जी......तेल वाले तो बेचारे घाटे में है.....

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  13. हमें ये राम अवतार जी बड़े अवतारी पुरुष लगे और भले भी। देखिए मिलावट करते हुए भी लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं।
    घुघूती बासूती

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  14. first time visited your blog and found encouraging.achchha laga.you may find me on iyatta.blogspot.com.
    hari shanker rarhi

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  15. रामअवतार की इस दिलचस्प "तेल-चित्र" की अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार है

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  16. आज की तारीख मेंस्‍कूल सबसे लाभदायक धन्‍धा है।

    -----------
    SBAI TSALIIM

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  17. तेल बेचने के धंधे से तेल निकालने तक के धंधे का विचार बढ़िया है और पोस्ट उससे भी।

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  18. बढ़िया है। स्कूल खुलने का इंतजार है। ये सिद्धार्थ त्रिपाठीजी को न हो गोपनीय सूचना लीक करने के प्रयास में आरोपित कर दिया जाये!

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  19. गली गली में खुलते नई नई ड्रेस वाले स्कूल कमाई के बहुत बढ़िया साधन हैं

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  20. भाई मुन्ना
    आपके "ब्यापार की समझ: और उस पर "ब्यापारी मन" की पकड़ को पढ़ कर bahutte अच्छा लगा.
    भाई, ऐसा है यह ब्यापारी barg हैं, इन्हे ब्यापार और बस केबल ब्यापार आता हैं, इन्हें यही पडद्या और सिखाया जाता है, इन्हें बस इतना ही battya जाता है की जिंदगी का सार पैसा है और कुछ भी नहीं है -
    "baap बड़ा न भैया सबसे बड़ा रूपैया" . इन्हें यह बतया जाता की आपको अपने बाप से भी पैसे की बात हो तो ब्यापार करना होगा नहीं तो आपकी सिक्षा पूरी नहीं होती और आप पूर्ण ब्यापारी नहीं बनते.
    भाई जब इनकी सिक्षा का अंत या यों कहिये इनका पोस्ट ग्राद्दुअते डिग्री इतनी कटिन परीक्षा के बाद मिलता हैं, जिसमे सभी रिश्ते को नजर अंदाज करना परता हो, तो कहाँ तक हम उनसे "दोस्ती" जैसी तुछ रिश्ते की उमीद कर सकते हैं, और हमें करना भी नहीं चाइए.
    रही बात ब्यापार छेत्र की तो सच मानिये यह एजूकेशन हीं क्यों यह हर उस छेत्र जहाँ तक आपकी "सचे मन" की सोच नहीं पहुँच पाती हो, बो पहुँच जाते हैं और यह भी सच हैं की बो उसमे भी बहुते अच्हा "ब्यापार" कर लेतें हैं.

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय