अस्सी और नब्बे के दशक तक दूध वाला घर पर दूध दे जाता था. गाय का 'प्योर' दूध. बेचारा कभी-कभी पानी मिलाना भूल जाता था. जिस दिन पानी मिलाना भूल जाता था, हम सब को दूध के प्योर होने पर शंका होने लगती थी. उस दिन कहना नहीं भूलते थे कि; "आज दूध कुछ ठीक नहीं लग रहा."
दूसरे दिन जब उससे कहते कि कल का दूध ठीक नहीं लगा तो हंसते हुए बोलता; " कल पानी मिलाना भूल गए थे."
दूध वाले से हमेशा शिकायत ही रहती थी. उसके सामने तो कुछ नहीं कहते थे लेकिन उसके जाने के बाद शुरू हो जाते थे; "इसकी बदमाशी बढ़ गई है. पहले केवल पानी मिलाता था, आजकल मूंगफली पीस कर दूध में मिला देता है जिससे दूध गाढा दिखे. इसे अब छुड़ाना ही पडेगा."
लेकिन दूसरे दिन फिर पानी वाला दूध पीकर संतोष कर लेते थे.
आजकल दूध वाले को गाली देना बंद हो गया है. आज तो उस दूध वाले को याद करके आँखों में आंसू आ जाते हैं. यह कहते हुए ठंडी सांस लेते हैं कि; "अब कहाँ मिलेंगे ऐसे ईमानदार दूधवाले? कितना ईमानदार था बेचारा. दूध में केवल पानी और मूंगफली मिलाता था."
सच में. अगर ऐसे दूध वाले मिल जाते तो पूरा मोहल्ला मिलकर राष्ट्रपति को एक ज्ञापन दे डालता कि; "इस ईमानदार दूधवाले को गोल्ड मेडल दिलवाईये क्योंकि यह दूध में केवल पानी और मूंगफली मिलाता है."
आखिर ऐसा क्यों न हो?
अब बाजार से पैकेट वाला दूध आता है. सालों तक ये कहकर पीते रहे कि "दूध ताजा तो नहीं रहता लेकिन प्योर रहता है."
लेकिन यह क्या? टीवी न्यूज चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन करके बताया कि दूध में यूरिया, डिटर्जेंट, शैंपू वगैरह मिलाया जाता है. कहते हैं यूरिया मिलाने से दूध ज्यादा गाढा और सफ़ेद लगता है. उसके प्योर दिखने में कोई शक नहीं रहता.
जब से पता चला है, गिलास में रखे दूध को शक की निगाह से देखते हैं. खुद से मन ही मन 'लाऊडली' सवाल पूछ लेते हैं; "दूध पी रहे हो कि यूरिया?"
सरकार के लोगों के अलावा टीवी पर दूध कंपनी के कर्मचारियों को देखा. एक मंत्री बता रहे थे कि किसी को छोडेंगे नहीं. अब इसपर क्या कहा जाय? राजू श्रीवास्तव की तरह खीसें निपोरते हुए पूछ लें कि; " भैया छोड़ने की बात तो तब आएगी जब पहले पकड़ोगे."
मिलावटी मामलों पर सरकार के एक अफसर को टीवी पर बोलते हुए देखा. उन्होंने समझाया कि किस तरह से खाने की चीजों में मिलावट रोक पाना आसान नहीं है. कह रहे थे "देखिये, हमारे देश में कानून ढीला है. सालों से बदलाव नहीं हुआ है. फ़ूड इंसपेक्टर कम हैं. नगर निगम ध्यान नहीं देता. ये मिलावट करने वाले एक्सपर्ट होते हैं. पुलिस भी इनसे मिली हुई है. फिर भी हम कोशिश तो कर ही रहे हैं."
मैं अपने आपसे बहुत नाराज हुआ. मन में अपने आपको धिक्कारा. मैंने सोचा "एक ये हैं जिन्हें देश में होने वाले हर वाकये की जानकारी है और एक मैं हूँ जिसे कुछ नहीं पता. कम से इतना तो पता कर सकता हूँ कि मिलावट करने वाले बड़े एक्सपर्ट होते हैं. देश का कानून पुराना और ढीला है."
टीवी वाले बता रहे थे कि लगभग पूरे उत्तर भारत में बिकने वाला दूध इसी तरह का है.
मतलब यह कि पूरी तरह से आर्गेनाइज्ड ऑपरेशन है. यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में कुछ ऐसा देखने को मिलेगा.
टीवी पर दूध में मिलावट करने वाले गिरोह के लोग शिकायत भरे लहजे में कह रहे हैं; "अब इस मिलावट के धंधे में भी ज्यादा कुछ प्राफिट नहीं रहा अब. पानी के अलावा बाकी सब कुछ मंहगा है. सरकार ने यूरिया पर से जब से सब्सिडी घटाई
है, हमारा तो धंधा ही चौपट हो गया. डिटर्जेंट पर एक्साईज ड्यूटी इतनी बढ़ गयी है कि अब दूध के मिलावट वाले धंधे में मुनाफा कमाना बहुत कठिन हो गया है. "
मानवाधिकार वाले कहेंगे; " क्या कर रही है सरकार? समाज के किसी वर्ग को तो मंहगाई की मार से बचाए. इन लोगों के लिए कम से कम यूरिया और डिटरजेंट तो सस्ता करवा सकती है."
भाई लोग यह भी कह सकते हैं कि; "धंधा करने के लिए पुलिस से लेकर इलाके के नेता को पैसा देना पड़ता है. कम से कम नेताओं और पुलिस वालों से तो कह सकती है कि भैया, इन लोगों का ख़याल रखो. इनके लिए अपनी 'फीस' में से कुछ छोड़कर इन्हें राहत दो."
बजट आ रहा है. प्रणब बाबू जल्द ही बजट पेश कर देंगे. अभी दो दिन पहले ही उद्योगपतियों का एक दल गिरोह बनाकर वित्त मंत्री से मिल चुका है. ये भाई लोग अपने-अपने उद्योगों के लिए कस्टम और एक्साईज में कटौती की मांग वांग तैयार कर चुके होंगे.
ऐसे में मैं तो इस बात के पक्ष में हूँ कि मिलावट उद्योग के लोगों को भी वित्तमंत्री से मिलना चाहिए. दूध में मिलावट करने वाले कम से कम यूरिया पर मिलने वाली सब्सिडी को बढ़ाने की मांग कर ही सकते हैं. साथ में डिटरजेंट और बाकी के 'रा मैटीरियल' पर सेल्स टैक्स, कस्टम, एक्साईज वगैरह कम करने की मांग भी जरूर करें. भाई, सरकार को भी इनकी मांगें माननी चाहिए.
क्या पता? आज ये लोग यूरिया, डिटर्जेंट, शैंपू मिला रहे हैं. हो सकता है कल को इनका कोई प्राइवेट वैज्ञानिक यह खोज कर ले कि दूध में एसिड मिलाने से दूध न सिर्फ सुन्दर दीखता है बल्कि स्वादिष्ट भी हो जाता है.
सोचिये, तब क्या होगा?
Friday, June 5, 2009
साहेब, यूरिया पर सब्सिडी बढा देते तो......
@mishrashiv I'm reading: साहेब, यूरिया पर सब्सिडी बढा देते तो......Tweet this (ट्वीट करें)!
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और कितना अच्छा होता जो आने वाले दिनों में "मिलावट मंत्रालय" विभाग बनाकर मंत्री नियुक्त कर दिये जाय ताकि मिलावट के नये नये प्रयोग करने में आसानी हो।
ReplyDeleteलाजबाब पोस्ट।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आईडिया किंग मि.शिव कुमार मिश्रा-इस अवार्ड के लिए मैडेम को लिख दिये हैं. और तो क्या कहें इस आलेख पर टिप्पणी में. :)
ReplyDeleteयह भारतवासी भी कमाल का जीव है, सब कुछ हजम कर जाता है, रंग, यूरिया, साबुन, शैम्पू....
ReplyDeleteमैंने भी आजतक पर यह कार्यक्रम देखा था, अंदर तक सिहर गया। पर किया भी क्या जा सकता है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आप कुछ भी क्यों न लिखे.
ReplyDeleteभाई मिलावट का पैमाना बहुत सटीक होता है, और इसमें ईमानदारी भी बहुत है. क्या मजाल की इसके पैमाने पर थोडा भी हेरा फेरी हो. चाहे आप दूध लें या फिर और कुछ ..... आपको ईमानदारी शत-प्रतिशत मिलेगी.
मैं तो श्यामल सुमन जी से एक दम सहमत है. मंत्रालय, कार्यालय, कानून नए नियुक्ति इसमें सभी की जरूरत है ताकि मिलावट का धंधा ईमानदारी से हो सके. रही बात बढती हुई महंगाई की तो जनाब मेरे समझ से इसके लिए भी शंखियंकी विभाग को भी आगे आना पड़ेगा जो की मंत्रालय को सही डाटा दे सके और इसका सही इम्पैक्ट प्रोडक्ट पर, जी डी पी पर, समाज आदि पर सही दे सके. खैर देखते है, यह सरकार इस पर क्या करती है.
वाकी आपका और आपके लेखनी जबाब नहीं हैं
सही अवसर पर सही स्थान पर चोट करने से आप नहीं चूकते।
ReplyDeleteआपके विचारो से सहमत हूँ . प्यूरिफ़ाइड करने के नाम से दूध से क्रीम भी निकल लेते है . जबलपुर में दूध माफियाओं के खिलाफ सघन आन्दोलन चल रहा है.
ReplyDeleteसही बात है,गायों को पालने और दूध निकालने से ज्यादा प्रोफिटेबल है गायों को बूचड़खाने में बेचना....
ReplyDeleteदूध का क्या है...यूरिया शैंपू डिटर्जेंट और पता नहीं क्या क्या तो हैं ही...इनसे भी सस्ते विकल्पों की रोज खोज और ईजाद हो ही रहे हैं...
हमारे भी देश में सरकार चाहती है लोग गायों में दिलचस्पी दूध पीने में नहीं उसे भोजन में खाने के रूप में ले...इसलिए निश्चिंत है......
खुश हो जाओ भाई ...बहुत जल्दी हम उन पश्चिमी देशों की बराबरी कर लेंगे जहाँ हट्टी कट्टी गायें फसलों की तरह मांस के रूप में खाए जाने के लिए तैयार की जाती हैं....
हमारे यहाँ हट्टी कट्टी न सही,गायों की कोई कमी नहीं....यकीन नहीं.....जाकर देख आओ बूचड़खाने में ????
खरगपुर वाले रस्ते में अक्सर ही मुर्गियों की तरह ट्रक में ठूंसे हुए गायों को सरहद पार ले जाने के क्रम में देखा है....
जय हे गौ मैया...ढेर तेरे खवैया पर कोऊ न रखवैया......
यूरिया में दूध भी मिलाना होता है कि विशुद्ध ही मिलता है आजकल ?
ReplyDeleteबड़ी समस्या है !
अजी असली पी लिया तो अपच हो जायेगी.. अब तो जो आता है आने दो..
ReplyDeleteआप पोस्ट के अंत में कहते हैं:
ReplyDelete"सोचिये तब क्या होगा?
कैसा सवाल है बंधू...?? होना क्या है...??पहले ठीक हो जाया करती थी अब ढूध पी के एसीडीटी हो जाया करेगी...सीधा जवाब है...आप ढूध के पीछे पड़े हैं मुझे ये बताईये की मिलावट कहाँ नहीं है... और तो और मैंने पंकज जी से मिल कर शायरी तक में मिलावट कर डाली है...
बंधू समझा करो ये जो ढूध वाला तब कर रहा था और अब कर रहा है ये मिलावट नहीं है...प्रयोग है...
गांधी जी की तरह हो सकता है वो भी कभी एक किताब लिख मारे..."माई एक्सपेरिमेंट्स विद मिल्क"
इंतज़ार करें.
नीरज
सच कहूँ तो ऐसे अपराधो पर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए ताकि लोग दूसरे की जान से खिलवाड़ न कर सके ...
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=tYpafipJyDE&feature=related
ReplyDeleteअपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देकर हमें लगता है कि हमने अपने दायित्वों को अच्छे से निभाया है । क्योंकि शिक्षा उन्हे अच्छा भविष्य व संस्कार उन्हे सही गलत का निर्णय करने की क्षमता देता है । अब सभी अपने दायित्वों में अपने बच्चों को शुद्ध आहार सुनिश्चित करने का उपक्रम भी जोड़ लें । यदि आपका बच्चा ’मिलावटी तिलिस्म’ से सकुशल निकलकर स्वस्थ रहा तो शिक्षा और संस्कार दोनों ही काम आयेंगे, नहीं तो सब निरर्थक है ।
ReplyDeleteहमारा समस्त ’एण्टी मिलावटी तन्त्र’ कहाँ है जी ? क्या इनके भी संस्कारों और विचारों मे मिलावट हो गयी है । इनके दिमाग का यूरिया कौन धोयेगा ?
हमने तो दूध पीना बहुत पहले ही छोड़ दिया था।वैसे जब से यूरीया वाला दूध बाजार में आया है तब से आज तक सरकार इस के बारे मे क्या कर रही है किसी को शायद ही पता हो।कि उसने इसे रोकने के लिए क्या किया है?सिर्फ बातों के सिवा...
ReplyDeleteजब कक्षा ५-६ में पढ़्ते थे तो सुबह बरनी ले दुध लेने जाया करते थे.. और जिद होती की हमारे सामने दुहो... फिर भी ग्वालन कुछ पानी तो मिला ही देती.. आपने सही कहा शुक्र है वि केवल पानी होता था.. अब तो न जाने क्या क्या..
ReplyDeleteमिलावट वालों कुछ तो रहम करो.. कोई तो चिज छोड़ तो..
खाद से जब पौधे जल्दी बढ जाते है तो बच्चे क्यों नहीं? आखिर देश को जल्दी परगति देना है कि नै!:)
ReplyDeleteदुनिया में सब कुछ पांच तत्वों से मिलकर बना है। क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा/पंच तत्व यह रचा शरीरा। इसलिये चिंता नको करो जी! मस्त ऐसेइच लिखते रहो।
ReplyDeleteदुनिया में सब कुछ पांच तत्वों से मिलकर बना है। क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा/पंच तत्व यह रचा शरीरा। इसलिये चिंता नको करो जी! मस्त ऐसेइच लिखते रहो।
ReplyDeleteबढिया व्यंग पर इससे हमारी सरकार के कान पर जूँ तक नही रेंगेगी । पहले भी तो एक बार दूध मे डिटरजेन्ट मिलाने का हंगामा हो चुका है ।
ReplyDeleteमिश्र जी कोलकता में ऐसिड डाल कर दूध फाड़ा जाता है और इस प्रकार तैयार हुए छेने के हमलोग रसगुल्ले बड़़े मजे ले ले कर खाते हैं ।
ReplyDeleteइस पोस्ट ने तो दूधवालों के ट्रेड सीक्रेट खोल कर रख दिये । मुझे पूरा यकीन है कि आपका दूध वाला इस पोस्ट को पढ कर आपसे नाराज जरूर हो जायेगा और दूध का भाव भी बढा देगा ।
uttar bharat mein? kya dakshin bharat me aisa nahin hota? yahan doodh hi sabse sasta hai, to ham khushi khushi pi rahe the, kheer kha rhae the...post padhne ke bad soch rahe hain ki wo jo tetrapack me refined ho ke germproof wastu laaye hain ham, kahin itni khatarnaak to nahin ki usmein germ paida hi na ho sakein?
ReplyDeletechintajanak post!
मानव शरीर ईश्वर की बनाई हुई मशीन है कोई PWD का पुल नहीं जी .अपने आप एडजस्ट कर लेगी . सब ऑटोमैटिक चलेगा !
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