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Tuesday, June 30, 2009

भेज रहा हूँ नेह-निमंत्रण प्रियवर तुम्हें पढ़ाने को


@mishrashiv I'm reading: भेज रहा हूँ नेह-निमंत्रण प्रियवर तुम्हें पढ़ाने कोTweet this (ट्वीट करें)!

ब्लागिंग करते हैं. एक जगह बैठे-बैठे लिख लेते हैं. वहीँ बैठे-बैठे छाप देते हैं. न तो प्रकाशक के आफिस के चक्कर लगाने की ज़रुरत है और न ही लेख के वापस लौट आने की आशंका. झमेला केवल पाठक ढूढ़ने का है. वो भी करने के लिए कहीं जाने की ज़रुरत नहीं है. मेल में ढेर सारा नाम भरा और सेंड नामक बटन क्लिकिया दिया. कुछ-कुछ वैसा कि;

भेज रहा हूँ नेह-निमंत्रण प्रियवर तुम्हें पढ़ाने को
हे मानस के राजहंस तुम आ जाना टिपियाने को

लेकिन कई महीने से चल रहा मेरा यह प्लान आज सुबह-सुबह मुझे भारी पड़ गया. आज बड़े दिनों बाद लालमुकुंद पधारे. आफिस में आये तो मैं धन्य हो लिया. पाठक अगर ब्लॉगर से मिलने खुद आये तो ब्लॉगर धन्य-गति को प्राप्त होगा ही. मैं भी प्राप्त हुआ. उनके बैठते ही पानी मंगवाया. साथ ही कोल्डड्रिंक्स लाने की व्यवस्था में जुट गया. लेकिन एक बात का आभास हो रहा था. लालमुकुंद मेरी इस व्यवस्था से खीझे जा रहे थे.

कुछ समय के लिए तो उन्होंने खुद को संभाला लेकिन अचानक ज्वालामुखी की तरह फट पड़े. बोले; "तुम कैसे आदमी हो? ठीक है, ब्लागिंग करते हो लेकिन जितनी बार पोस्ट लिखते हो, पढने के लिए मेल क्यों ठेल देते हो?"

उनकी बात सुनकर मुझे कुछ अजीब सा लगा. पता नहीं क्यों लग रहा था कि वे कुछ नाराज हैं. सामने वाला अगर नाराज हो जाए तो तुंरत गंभीर हो जाना श्रेयस्कर रहता रहता है. लिहाजा मैंने भी गंभीरता की मोटी चादर से मुख को ढांपते हुए कहा; " वो तो देखो, एक एक्सरसाइज टाइप है. मुझे लगता है कि तुम मेरे लेखों को बड़ी गंभीरता से पढ़ते हो. टिप्पणी नहीं देते वो एक अलग बात है लेकिन मुझे भरोसा है कि तुम मुझे सुझाव दोगे कि लेख में क्या कमी है. इसी बात के चलते मैं तुम्हें मेल भेज देता हूँ."

यह कहते हुए मेरे मुख पर हल्की सी मुस्कान आ गई. बस, वे तो और बिफर पड़े. बोले; "मैं मजाक के मूड में नहीं हूँ. आज इस तरफ आया था तो सोचा कि तुमसे मिलूँ और इस मुद्दे पर बात करूं. तुम्हें मालूम है, अपनी पोस्ट पढ़वाने के लिए जो मेल भेजते हो, उसका क्या करता हूँ मैं?"

मैंने कहा; "जाहिर है, उस लिंक को क्लिक करके मेरे लेख पढ़ते होगे. आखिर मैं मेल इसीलिए भेजता हूँ कि तुम मेरे लेख पढ़ सको."

मेरी बात सुनकर और बिफर पड़े. बोले; "सीधा डिलीट करता हूँ मैं. तुंरत. पिछले न जाने कितने महीनों से तुमने परेशान करके रखा है मुझे. और केवल तुम्ही नहीं हो. न जाने और कितने भाई-बन्धु हैं तुम्हारे जो ऐसा करते हैं . तुमलोगों को क्या लगता है, तुम्हारे लेख इस तरह से लोग पढेंगे? अगर ऐसा ही है तो क्या ज़रुरत है ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत की?"

मैंने कहा; "ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत की अपनी भूमिका है. लेकिन मेल की भी अपनी भूमिका है. आज ज़रुरत है नेट पर हिंदी को आगे बढाने की. हम हिंदी की सेवा कर रहे हैं. सेवा बिना कष्ट के तो असंभव है."

मेरी बात सुनकर मन ही मन कुछ बुदबुदाए. लगा जैसे कह रहे हों; "हिंदी की सेवा! माय फुट."

मैंने कहा; "लेकिन मेरे लेख तो और लोग पढ़ते हैं. कुछ तो टिप्पणी भी देते हैं. बहुत लोग पसंद करते हैं. ब्लॉगवाणी पर मेरे लेख को ऊपर पहुंचा देते हैं."

मेरी बात सुनकर उन्होंने माथे पर हाथ रख लिया. बोले; "तुमको क्या लगता है? लोग तुम्हारे लेख पर टिप्पणियां देते हैं इसका मतलब क्या निकालते हो तुम?"

मैंने कहा; "इसका मतलब और क्या हो सकता है? लोग मेरे लेख, मेरी कवितायें बहुत पसंद करते हैं. और क्या मतलब हो सकता है इसका?"

वे बोले; "अरे मूढ़मति. दुनियाँ का कुछ पता भी तुम्हें? कौन क्या सोचता है तुम्हारे लेखों के बारे में? जो भी चैट पर मिलता है वो तुम्हारा नाम लेकर यही कहता है कि तुमने उन सब को कितना परेशान कर रखा है. अनूप जी परसों चैट पर मिल गए. बोले शिव कुमार मिश्र ने मेल भेज-भेज कर हालत खराब कर दी है. पोस्ट पब्लिश किये नहीं कि तुंरत मेल भेज दिया. पागल कर दिया है इन्होने."

मैंने कहा; "लेकिन उनकी टिप्पणियों से तो ऐसा नहीं लगता. मेरी एक पोस्ट पर तो उन्होंने "जय हो" भी लिखा था."

वे बोले; "हे भगवान. कुछ नहीं समझाया जा सकता इस आदमी को. तुम्हें मालूम है उन्होंने "जय हो" क्यों लिखा था? इसका कुछ आईडिया है तुम्हें?"

मैंने कहा; "इसका मतलब तो यही होता है कि उन्हें वो लेख बम्फाट लगा होगा."

बोले; "ऐसा कुछ नहीं है. वे तो चाहते थे कि वे "क्षय हो" लिख दें लेकिन "क्षय हो" लिखने लिए टाइम लगता इसलिए उन्होंने "जय हो" लिख डाला. "जय" टाइप करने के लिए केवल तीन 'की' यूज करने की ज़रुरत होती है. वहीँ "क्षय" टाइप करने के लिए पूरे पांच 'की' यूज करना पड़ता है. अब कौन झमेला करे. ऐसे में उन्होंने सोचा होगा कि "जय हो" लिख दो. इसका भी मन रह जाएगा. नहीं तो ऐसा न हो कि ये टंकी पर चढ़ जाए."

मैंने कहा; "लेकिन मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं हो रहा. मैं इसे सही नहीं मानता."

मेरी बात सुनकर बोले; "तुमको जो मानना है वो मानो. लेकिन सच तो यही है कि लोग तुमसे परेशान है. समीर जी से चैट पर बात हो रही थी. वे भी तुमसे परेशान हैं. कह रहे थे कि पता नहीं मुझे भी क्यों मेल भेज देते हैं. मैं तो बिना मेल मिले ही टिप्पणियां करता हूँ. फिर ऐसे में मेल भेजकर परेशान क्यों करते हैं?"

मैंने कहा; "लेकिन समीर भाई से तो मैं कलकत्ते में जब मिला तो उन्होंने तो मुझे इस बात की शिकायत नहीं की."

वे बोले; "ये उनका बड़प्पन है, जिसे तुम अपने लिए शाबासी मान रहे हो. कोई भला आदमी सबकुछ सामने कहकर तुम्हें लताड़े तब तुम्हें समझ में आएगा क्या?"

मैंने कहा; "तो क्या किया जाय? अब से मेल भेजना बंद कर दूँ क्या?"

मेरी बात सुनकर मुझे ऐसी नज़रों से देखा जैसे मेरे अन्दर की बेवकूफी को मीटर टेप लेकर नाप रहे हों. बोले; "तो क्या तब बंद करोगे जब लोग पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखाना शुरू करेंगे? नहीं, बोलो तुम कब बंद करना चाहते हो? तुम्हें पता है, आजकल चिट्ठाकार कौन सा गाना गाते रहते हैं?"

मैंने कहा; "नहीं मालूम. कौन सा गाना गा रहे हैं आजकल चिट्ठाकारगण"

वे बोले; "सब तुम्हारे और तुम्हारे साथियों के मेल से इतना डरने लगे हैं कि सारे एक ही गाना गा रहे हैं; 'ज़रा सी आहट सी होती है तो दिल पूछता है, कहीं ये वो तो नहीं.' सब इतना डरे हुए हैं तुम्हारे मेल देखकर."

समझ में नहीं आया कि क्या कहूँ? मैं सोच ही रहा था कि कुछ कहूँ तब तक वे बोले पड़े; "और बाकी को तो जाने दो. ज्ञान जी ने एक दिन मुझसे कहा कि तुम उन्हें भी मेल भेज देते हो. जब उनका कमेन्ट ब्लाग पर नहीं मिलता तो एस एम एस देकर फिर से बताते हो ताकि वे तुंरत कमेन्ट करें. मुझसे कोई कह रहा था कि तुम ताऊ जी को भी फोन कर देते हो कि एक पोस्ट डाली है, देखिएगा. तुम्हें क्या लगता है? ताऊ जी भी स्टॉक मार्केट वाले हैं तो तुंरत आकर तुम्हें कमेन्ट देंगे? तंग रहते हैं वे भी तुमसे."

लालमुकुंद जी ने इतनी खरी-खोटी सुनाई कि क्या कहूँ? सबकुछ लिखने जाऊँगा तो पोस्ट पंद्रह पेज की हो जायेगी.

इसलिए, मेरी तरह मेल भेजकर पढ़वाने और टिपियाने की एक्सरसाइज करने वाले मित्रों, चलो आज से ही वचन लें कि हम किसी को अब से मेल लिखकर अपनी कविताओं और अपने लेख का लिंक नहीं देंगे. अगर हमारे भाग्य में लिखा ही होगा कि हम परसाई, अज्ञेय, गालिब और दिनकर बनें तो हमें ये सब बनने से कोई नहीं रोक पायेगा. हम बनकर रहेंगे. मेल भेजें या न भेजें.

47 comments:

  1. इस दर्द का कोई न जाने कहाँ है अंत .
    ब्लॉगर कहे कथा और दिखाए मेल से पंथ :)

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  2. अच्छा आईडिया दिया है आपने 'ठेल मेल'. अब मैं भी नाक में दम कर दूंगा :-)

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  3. मेल देना पर्याप्त नहीं है। आपको अगर परसाई, अज्ञेय, गालिब और दिनकर बनना है तो आपको मेल के साथ एसएमएस भी करना चाहिये। और दो एस.एम.एस. के बाद फोन करना चाहिये।
    आप सेंत-मेत में महान बनना चाहते हैं! :)

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  4. तो अब राज समझ आया ....ज्ञान जी के पास दो दो फोन ओर हमें एक मेल भी नहीं...देखिये फिर भी हम चौथे नंबर पे टिपिया रहे है .ठीक उनके बाद

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  5. मुकुन्द भाई नादान है, नहीं समझते कि हिन्दी की सेवा ऐसे ही होती है. भगवान इन्हे माफ करे..इन्हे नहीं पता ये क्या करने से मना कर रहें है. आप तो मेरी तरह एडवांस में मेल भेजा करो कि भाई कल ठीक ग्यारह बजे हम एक क्रांतिकारी कविता पोस्ट करने वाले है. दुनिया हिल जाएगी...अतः समय रहते पढ़ लेना, नहीं तो कम से कम टिप्पणी तो कर देना. टाइप न कर सको तो ये रहे ऑपशन, कट पेस्ट कर देना.

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  6. री-विजिट:
    फिर मेल क्यों कर दिया? मैं टिप्पणी तो कर चुका था!
    वैसे परसाई, अज्ञेय, गालिब और दिनकर क्यों बनना चाहते हैं आप। शिवकुमार मिश्र बने रहने में क्या कष्ट है!

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  7. मेरी तरह मेल भेजकर पढ़वाने और टिपियाने की एक्सरसाइज करने वाले मित्रों, चलो आज से ही वचन लें कि हम किसी को अब से मेल लिखकर अपनी कविताओं और अपने लेख का लिंक नहीं देंगे. अगर हमारे भाग्य में लिखा ही होगा कि हम परसाई, अज्ञेय, गालिब और दिनकर बनें तो हमें ये सब बनने से कोई नहीं रोक पायेगा. हम बनकर रहेंगे. मेल भेजें या न भेजें...
    एकदम सही सुझाव है सर जी .

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  8. बिना मेहनत किये पाठक नही मिलते... वैसे इमेल से मिलते है इसमें भी संदेह है..:) आपने बहुत अच्छा व्यंग्य लिखा.. बहुत समसामयिक...

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  9. कहीं ऐसा तो नहीं कि आप ब्लॉगिंग छोड़ रहे हों !

    वे लोग ब्लॉग नहीं लिखते थे ना :)

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  10. सब इतना डरे हुए हैं तुम्हारे मेल देखकर."---'ज़रा सी आहट सी होती है तो दिल पूछता है, कहीं ये वो तो नहीं.'--

    bahut hi mazedaar!

    [spam ka -delete ka option hai na mail box mein!]

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  11. हम तो बिना मेल के ही टिपिया रहे हैँ पता नहीं था कि जब तक मेल ना आये तो टिपियाना किसी काम का नहीं मगर आज जितनी भी पोस्ट पढी हैं सब से बडिया लगी दिमाग एक दम तरोताज़ा हो गया अकेली को हंम्सते देख पतिदेव भी आ गये -ये किसके साथ हँस रही हो? अब आप ही सोचिये क्या बताओओंम कि हमे ब्लोग जगत मे कैसे टिप्पणी मिलती है मै तो अपना पोल खुलने के डर से आपका ब्लोग झट से बण्द कर दिया मगर मै टिप्पणी के लिये मेल नहीं करती हूँ्

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  12. मिसर जी, इस मेल -फीमेल की चर्चा तो पहले भी बहुत बार हुई..अजी लट्ठम लट्ठ हो चुकी है..बालमुकुन्द जी को अब जाकर ऐतराज हुआ ..बहुते सहनशील हैं और हाँ ..ई का बात है हमको तो आप एको बार नहीं किये ..और हाँएगो मेल हो केदूसरा मेल भेज रहे हैं ..का मोयली साहब वाला कानून्वा मनवा के मानियेगा...एक ता ई ससुरा मेल मेल का बहुते खराब चक्कर है ....

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  13. जय हो!!!!!!!!

    अजी! घबराइये नहीं, ये सच्ची मुच्ची वाला जय है!!!!!!!

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  14. झकास ....बोले तो बिंदास

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  15. अभी अभी आपके एस एम् एस को पढ़कर यहाँ आया हूँ.. क्या धांसू लिखा है आपने.. "जय हो"

    वईसे हमारे यहाँ फिल्टर बने हुए है जिनमे ऐसी मेल्स छन जाती है..

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  16. री-री विजिट:
    ताऊ नहीं आये अब तक। जरा फिर से मेल भेजो! फोन नम्बर भी तो है - एसएमएस कर दो!

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  17. ई लाल्मुकुन्द जी भी न .....कितना रिक्वेस्ट किया था की अपना समझ कर अपना दुःख दर्द आपको कह रहे हैं,किसी से कहियेगा नहीं...चाय समोसा के साथ जिलेबी भी खिलाये थे,की मुंह बंद रखें....पर बक ही आये तुम्हारे पास....

    कोई बात नहीं भाई.....वो तो बस ऐसे ही कह दिए....तुम आराम से मेल भेजा करो...और तुम ही क्या बाकी सब जने भी भेजा करें....हिन्दी की सेवा में निकले हैं,तो पढेंगे नहीं.....जरूर पढेंगे....बस भेजिए..पढ़कर ही मरेंगे....सारे काम छोड़कर पढेंगे....मरते दम तक पढेंगे...

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  18. बहुत अच्छा लगा.. फिर से चला आया... आपने नहीं बुलाया इसलिये दुबारा आया..:)

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  19. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  20. 'री-री विजिट:' देखकर तो कुछ इस टाइप का लगता है: फिरि फिरि चितव राम कीं ओरा. मेल ठेल कर एक अदद टिपण्णी पायी जा सकती है ऐसे पाठक नहीं.

    वैसे हमारा दर्द आप तक कैसे पहुच गया :) जीमेल तक तो ठीक था ऑफिस की आईडी पर ईमेल आता है तब तो कितनी गालियाँ निकलती है मत पूछिए. सच्ची बोल रहा हूँ.

    आपने वो टिपण्णी में लिंक समेत 'हमारे ब्लॉग पर भी आये' ब्रांड वाली टिपण्णी का जिक्र नहीं किया ! अरे उनको बताइए की लैंडलाइन का ज़माना गया. मिस्ड कॉल से अब पता चल जाता है की कहाँ कॉल बैक करना है :) और शालीनता का ज़माना अभी भी है. पाठक प्रचार से नहीं मिलते... भागते ही हैं. भगवान से विनती है कि आखिरी पैराग्राफ तक वो पढें जो मुझे मेल भेजते हैं !

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  21. ऐसा है बंधू की हम ठहरे महान टाईप के लेखक अब ये कैसे बर्दास्त करें की लोग हमारे लेख / कविता बिना पढ़े रह जाएँ...नुक्सान किसका है ? पाठकों का ही ना...कल को कोई आपसे पूछे की आपने फलां साहेब के ब्लॉग पर लेख/कविता पढ़ी की नहीं और आप कहें नहीं तो इज्ज़त किसकी खाक में मिलेगी.???आप की ही ना...जो हम चाहते नहीं...इसलिए हम इ-मेल और एस एम् एस करके बता देते हैं की हम आ गए हैं मैदान में अपना अद्वितीय लेख/कविता ले कर आप भी दूसरों की तरह इसे पढ़ कर अपना जीवन धन्य कर लें...ये समाज सेवा है बंधू जिसे आप नहीं न समझ पाएंगे...हमें परसाई, अज्ञेय, गालिब और दिनकर नहीं बनना है, वो तो हमसे पहले ही भगवान् ने बना कर धरती पे भेज दिए और उठा भी लिए...हम तो हम ही बनेंगे....

    हम तो ई-मेल भी करेंगे और एस एम् एस भी और तो और फोन भी करेंगे...कोई रोक सके तो रोक ले...

    नीरज

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  22. अब तो यही कहना पड़ेगा -लालमुकुन्द की जय हो!

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  23. ऐसे सीधे मेल भेजना बंद नहीं करते नादान बालक.पहले लेखन से अल्प विराम की घोषणा तो करो. फिर मान मनुव्वल चलेगी, फिर भले ही मेल बंद कर देना और तब ऑरकुट और फेस बुक से बताना.

    -और भी हजार रास्ते हैं,
    मुई मेल के सिवा..

    -शायर बेनाम

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  24. mahaanta ki disha me kadam badhhwaane ke liye dhanyavaad. ab main bhi swaymbhoo mahan blogger (hi-hi-ha-ha) banne ki koshish karoonga.

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  25. वाह ..क्या कहने :-)

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  26. अजी अब इस मेल का जमाना गया, अब लठ्ठ ले कर पहुच जाओ एक एक के पास ओर बोलो पढ वे नही तो ताऊ छाप लठ्ठ, सलाह इस लिये दे रहा हुं कि मै तो आप की पहुच से दुर हू, फ़िर अगर आप आ भी गये तो एयए लाईन वाले ऎसी प्यारी चीजे साथ नही लेजाने देते.
    मजा आ गया आप का लेख पढ कर, ओर बहुत जुछ कह दिया आप ने इस लेख मै.

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  27. हे भगवान! यह शिवभाई को क्या हो गया ? मेल तो नेट-ससार का आवश्यक अवयव है। आपके इस सन्देश मे कुछ छुपी हुई बात है जो बताना चाहते है,और हम समझना नही चाहते।

    अम्मा यार! आप बडे-बडे ब्लोगर्स कि जगह हम नये नवेले नोसिखियो को पोस्ट की सुचना मेल से भेजना शुरु करे । फिर देखे हम आपके मेल को कैसे सम्भाल कर सेवा पुजा करते है। जैसे महात्मा गान्घी के खतो को सम्भाला जाता है वैसे फसल पकने तक आपके मेलो को सुरक्षित खजाने मे सजाकर रखेगे। ताकी कुछ वर्षो बाद निलामी से लाखो नही तो हजारो तो मिल ही जाएगे।

    लाल-पिले शेरो का बुद्धु बक्सा (मेल बोक्स) ठन-ठन गोपाला रहेगा तब खिचिया जाऐगे।

    मेलसुन्दरकाण्ड की अच्छी प्रस्तुति के लिऐ धन्यवाद.


    आभार/मगलकामनओ के साथ
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

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  28. लेख में मजाक-मजाक में आपने बहुत झूठ बोला है वो सब माफ़ है क्योंकि आप किसी का दिल नहीं दुखाना चाहते हैं। ऐसा हम इसलिये कह रहे हैं कि आजतक आपने हमें कोई मेल नहीं भेजा पोस्ट की सूचना देने के लिये। यह भी सही है हमने आजतक वो कोई पोस्ट नहीं पढ़ी जिसकी सूचना हमें मेल से मिली। और तो सब ठीक लेकिन आपसे एक गलती हुई। आपने मजाक-मजाक में समीरलालजी को भला आदमी बता दिया। इससे भावुक हृदय व्यक्ति हैं। वे इससे दुखी हो सकते हैं और इससे भले आदमी भी नाराजगी जाहिर कर सकते हैं। समीरजी ने खुद को हमेशा ’अदना सा ब्लागर’ कहा ’ हिन्दी का सेवक’ कहा लेकिन भला आदमी कभी नहीं कहा। आज भी उन्हॊंने अपने को शायर बेनाम ही कहा। इससे साफ़ पता चलता है वे कैसा महसूस कर रहे होंगे। बाकी ज्ञानजी की हालत भी आप देख ही रहे हैं। विजिट-रिविजिट कर रहे हैं। बकिया चकाचक है। :)

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  29. मैं भी अपने मेल बक्से पार लाल-पीला होने लगा था। जब देखो तब आप महाशय लुकारा लेकर खड़े मिलते यहाँ पर। भाई साहब, कुछ तो रहम करो...। भला हो लालमुकुन्द जी का जो उन्होंने आपकी इस छिछोरी हरकत पर लगाम लगाने का साहस किया। हम तो शराफ़त में कुछ कह ही नहीं पा रहे थे।

    शिव भैया, यह मैने आपको नहीं कहा...। शुक्रिया।

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  30. 'ज़रा सी आहट सी होती है तो दिल पूछता है, कहीं ये वो तो नहीं.'
    ये गीत को याद करवाने के लिये शुक्रिया आपका ~~
    बाकी तो क्या कहेँ :)
    - लावण्या

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  31. आजकल तो सारे मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर ’पुश नोटीफिकेशन’ का सहारा ले रहे हैं । ज्ञानदत्त जी का विचार बिल्कुल ठीक है । एक फ्री एसएमएस कम्पनी को अपनी साइट पर प्रचार के अधिकार दे दीजिये और बदले में सारे पाठकों को एसएमएस करने की सेवायें लीजिये ।
    एसएमएस का लाभ यह है कि पाठक को तुरन्त ही पता लग जायेगा कि पोस्ट ठेली जा चुकी है जब कि मेल तो इण्टरनेट खोलने पर पता चलेगी । यदि एक निश्चित समय तक टिप्पणी न आये तो प्रोग्राम द्वारा पुनः ’रिमाइन्डर एसएमएस’ भेजा जाये । यह प्रक्रिया तब तक चले जब तक टिप्पणी न निचोड़ ली जाये । सच है, हिन्दी उत्थान के लिये इतना परिश्रम और हठधर्मिता तो करनी पड़ेगी ।

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  32. चलो आज से ही वचन लें कि हम किसी को अब से मेल लिखकर अपनी कविताओं और अपने लेख का लिंक नहीं देंगे.

    आपने ये वादा करके हमको छोडकर सबको मेल/sms भेजा और सिर्फ़ हमें ही भेजना भूल गये. इसीलिये हम सबसे आखिर मे आयें हैं. अब क्या करें? आपने mail/sms और फ़ोन की आदत जो लगा दी है.:)

    रामराम.

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  33. देखिये हम आपकी बिना मेल भी टिपिया रहा हूं जबकि बाजार होने मे सिर्फ़ ६ मिनट रह गये हैं.:)

    रामराम.

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  34. देखिये हम आपकी बिना मेल भी टिपिया रहा हूं जबकि बाजार शुरु में होने मे सिर्फ़ ६ मिनट रह गये हैं.:)

    रामराम.

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  35. आजकल तो सारे मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर ’पुश नोटीफिकेशन’ का सहारा ले रहे हैं । ज्ञानदत्त जी का विचार बिल्कुल ठीक है । एक फ्री एसएमएस कम्पनी को अपनी साइट पर प्रचार के अधिकार दे दीजिये और बदले में सारे पाठकों को एसएमएस करने की सेवायें लीजिये ।

    एसएमएस का लाभ यह है कि पाठक को तुरन्त ही पता लग जायेगा कि पोस्ट ठेली जा चुकी है जब कि मेल तो इण्टरनेट खोलने पर पता चलेगी । यदि एक निश्चित समय तक टिप्पणी न आये तो प्रोग्राम द्वारा पुनः ’रिमाइन्डर एसएमएस’ भेजा जाये । यह प्रक्रिया तब तक चले जब तक टिप्पणी न निचोड़ ली जाये । सच है, हिन्दी उत्थान के लिये इतना परिश्रम और हठधर्मिता तो करनी पड़ेगी ।

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  36. और हमे तो अब धमकी भी मिल गयी हैं
    की अगर दलित { इस ज़माने मे ये बात ?? } की
    ईमेल को स्पैम कहा तो हमको दलितों पर
    अत्याचार के जुर्म का भागीदार समझा जयेगा
    काश वो मेल डिलीट ना की होती हमने .
    ख़ैर राम भरोसे हैं अब सब हिंदी ब्लॉगर

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  37. शिव जी, सिर्फ मेल ही काफी नहीं है। उसके साथ भावुक अपील भी अटैच कर दें कि इस मेल को आगे तेरह सौं लोगो को फारवर्ड करेंगें तो जल्द ही आपकी भैंस तीन गुना दूध देनी लगेगी, एसी का बिल कम आयेगा, कामवाली छुट्टियां कम करेगी और आपका नालायक बेटा जिसका इस बार फेल होना तय है, शायद ऐसा करने से पास हो जाए...

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  38. अच्छा! तो आप ब्लाग लिखने के बाद मेल करते हैं!!!!!! यार-लोग तो बिना ब्लाग लिखे मेल ठेल देते हैं:)

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  39. भाई
    मैं सोच रहा था अपन लिखने के बाद क्यों लिखने के पहले भी विषय-वस्तु पाठको को मेल, एस म एस, या फोनिया देना चाहिए क्योंकि इससे पाठको को बेहतर सेवा मिलेगा. आखिर हम ब्लॉगर सेवा ही तो कर रहें हैं.

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  40. फुरसतिया जी सही कह रहे हैं..भला आदमी काट कर भोला आदमी कर दिजिये. :)

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  41. देखिये शिवजी हम कह रहे थे न कि समीरजी को भला आदमी कहलाना पसंद नहीं है। लेकिन आपको यह भी बता दें कि वे भोले आदमी भी नहीं हैं। उनके भले की जगह भोला करने का अनुरोध इस पुष्टि करता है। आप ही समझिये भले में कुछ तीन मात्रायें हैं। भोला लिखने में चार मात्रायें लगानी पड़ेंगी। यह तो ऐसा ही है कि कोई कहे शिवजी चलिये हमको वित्त मंत्री न बनाइये, प्रधानमंत्री बना दीजिये। आप इस झांसे में मत आइये वर्ना बाद में अफ़सोस करेंगे। :)

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  42. मैं भी शुरू-शुरू में मेल ठेला करता था । एक दिन एक भाई ने करबद्ध हो कर निवेदन किया कि कृपया उसको माफ कर दें और आइन्दा मेल न भेजा करें, भेजा खराब हो जाता है । मैंने उसकी दिक्कत पर गौर किया और आगे से मेल बाजी बन्द कर दी ।

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  43. भेज रहा हूँ नेह-निमंत्रण प्रियवर तुम्हें पढ़ाने को
    हे मानस के राजहंस तुम आ जाना टिपियाने को

    इसमें एक मामूली सा संशोधन है:

    भेज रहा हूं मेल निमंत्रण प्रियवर पोस्ट पढ़ाने को

    हे मानस के कागलंठ रेप्लिया न देना पढ़वाने को :)

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  44. Very well written Sir. Do not mind LalMukund Etc. Those who want to read will read it and comment on it. I have found your TLine from friends TLine and read your many blogs. Of course I am retired and have a lot of time to read in Hindi & English, it is worth reading. Go on and write blogs specially Mahabharat/Ramayan linked are the best. Laughter is best medicine for long life. Thanks and keep it up Sir.

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  45. बहुत सुंदर... वाह

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय