पहले वर्षों की बात होती थी. शायद इसलिए कि तब पंचवर्षीय योजनाओं का बोलबाला था. अब नहीं है. आम जनता के बीच पंचवर्षीय योजनाओं की भद्द पिट गई. वैसे तब के और अब के भारत देश में अंतर बहुत बढ़ गया है. पहले नेता जी लोग एक बार सरकार बना लेते थे तो प्लान हमेशा पांच वर्ष के महत्वपूर्ण समय पर केन्द्रित रहता था. बाद में समय बदला तो पता चला कि बनी हुई सरकार पांच वर्षों से पहले भी विदा हो सकती है.
जब यह सीक्रेट लीक हुआ तो पंचवर्षीय का मतलब पूरी तरह से बदल गया. तब पंचवर्षीय का मतलब यह निकाला जाने लगा कि सपोर्ट देने वाले दल एक वर्ष में सरकार को कितना पंच मारते हैं.
सपोर्ट देने वाले दलों के 'पंच' का असर यह हुआ कि सरकार बनानेवाले दल अब वर्षों की बात नहीं करते. अब वर्षों की बात करने का कोई फायदा भी नहीं है. अब तो सरकार न बनानेवाले भी चुनावों में कहते फिरते हैं; "अगर हमारी सरकार बन गयी तो विदेशी बैंकों में जमा किये गए काले धन को सौ दिन के अन्दर देश में ला पटकेंगे."
ऐसे में जो सरकार बनाएगा वो तो बोलेगा ही कि देश की सारी समस्याओं का हल सौ दिन के भित्तर कर डालेंगे. जनता भले ही कहे कि; "हे आलमपनाह, हमने आप को पूरे पांच साल के लिए चुन लिया है. ऐसे में आप समस्याओं का हल पांच साल में ही निकालिए. सौ दिन में सारी समस्याएं साल्व करने की कोई जल्दी नहीं है. लेकिन हल निकालिएगा ज़रूर."
लेकिन सरकार है कि जिद पर अड़ी है कि; "नहीं, हम तो सौ दिन में सारी समस्याओं को साल्व कर देंगे. तुमको अगर हमारी बात बुरी लगती है तो हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते. तुम चाहो तो किसी और देश में जाकर बस जाओ. हम तो सारी समस्याओं का खात्मा सौ दिन में ही करेंगे."
बेचारी जनता कर भी क्या सकती है? कहाँ जाकर बसेगी? ऑस्ट्रेलिया में अपने देश वालों की कुटाई चल रही है. बाकी दुनियाँ में और जगह बची कहाँ है जो वहां जाकर बस जाए? ऐसे में और कोई चारा नहीं है. सिवाय इसके कि सरकारी भलमनसाहत को झेले. इसलिए यह सोचकर संतोष कर रही है कि; "जब तुम सौ दिन में ही सबकुछ करने पर उतारू हो तो हम कर ही क्या सकते हैं? वैसे भी जनता की सुनते ही कब हो?"
इस सौ दिन के कार्यक्रम का जायजा भी लिया जाता होगा. पिछले दिनों में मंत्रियों ने जिस तरह से काम करना शुरू किया है उसे देखकर लगता है कि शायद ऐसा कुछ होता होगा;
एकदिन प्रधानमंत्री ने अपने निजी सचिव से पूछा; "भाई, सौ दिनों में सारी समस्याओं का हल निकालने की दिशा में क्या-क्या हुआ है, इसकी जानकारी के लिए मंत्रीगणों की एक मीटिंग बुलाई जाय."
उनकी बात सुनकर सचिव जी बोले; "ठीक कह रहे हैं सर. मार्च महीने के बाद से एक भी मीटिंग नहीं हुई है. सब बहुत उदास हैं. मीटिंग-वीटिंग होती रहती हैं तो मन लगा रहता है."
प्रधानमंत्री जी ने कहा; "तो कल ही एक मीटिंग बुलवाइए. देखें तो कि मंत्रीगण क्या कर रहे हैं सौ दिवसीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए."
मीटिंग बुलाई गई. सारे मंत्रीगण आये.
प्रधानमंत्री ने सबसे पहले मानव संसाधन विकास मंत्री से पूछा; "और क्या हाल है जी? सौ दिवसीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आपने क्या किया?"
मंत्री जी बोले; "मिस्टर प्राइममिनिस्टर सर, मैंने घोषणा कर दी है कि हम दसवीं की परीक्षा स्क्रैप करने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहे हैं. हमारा मंत्रालय काम कर रहा है इसे साबित करने के लिए इससे बढ़िया और क्या हो सकता है?"
प्रधानमंत्री जी बोले; "सही है. लेकिन आपकी इस घोषणा के ऊपर रिएक्शन कैसा रहा?"
वे बोले; "लगभग सारे न्यूज चैनल पर हंगामा हो गया. सभी चैनल ने पैनल डिस्कशन का आयोजन किया. हमने तो सारे कार्यक्रम की सीडी देखी. मुझे बहुत अच्छा लगा."
प्रधानमंत्री बोले; "आपके मंत्रालय पर हमें नाज है. सौ दिनों में इससे बढ़िया काम और कुछ हो भी नहीं सकता."
उसके बाद वे पेट्रोलियम मिनिस्टर से मुखातिब हुए. बोले; " और जी, क्या हाल हैं? आपके मंत्रालय में क्या हुआ?"
पेट्रोलियम मिनिस्टर बोले; "हाल बढ़िया है सर. हम युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं."
प्रधानमंत्री ने पूछा; "क्या-क्या किया आपके मंत्रालय ने?"
पेट्रोलियम मिन्स्टर बोले; "हमने तो एक दिन कह दिया कि हम पेट्रोलियम प्राइस को डी-रेगुलेट कर देंगे."
प्रधानमंत्री बोले; "एक दिन कुछ कह देने से क्या होगा?"
पेट्रोलियम मिनिस्टर बोले; "पूरी बात तो सुनिए सर. हम दूसरे दिन ही बोल दिए कि हम प्राइस डी-रेगुलेट नहीं कर सकते."
उनकी बात सुनकर प्रधानमंत्री बहुत प्रभावित हुए. बोले; "यह होता है परफॉर्मेंस. सीखिए आपलोग. पेट्रोलियम मिनिस्टर
से सीखिए कुछ. और क्या-क्या करने का सोचा है आपने?"
पेट्रोलियम मिनिस्टर अब तक खुश हो लिए थे. बोले; "अब केवल एक ही काम बाकी रह गया है सर. डीजल और पेट्रोल का दाम बढ़ाना."
प्रधानमंत्री बोले; "अरे तो बाकी क्यों छोड़ना? शुभ कार्य में देरी कैसी?"
पेट्रोलियम मिनिस्टर बोले ; "बस, अब मीटिंग से जाते ही एक प्रेस कांफ्रेंस करता हूँ और दाम बढा देता हूँ."
पेट्रोलियम मिनिस्टर से नज़र हटी तो होम मिनिस्टर दिखाई दिए. प्रधानमंत्री उन्हें देखकर खुश हो गए. खुश होने का कारण था कि होम मिनिस्टर अब फाइनेंस मिनिस्टर नहीं हैं. प्रधानमंत्री ने उनसे पूछा; "और जी होम मिनिस्टर साहब, क्या हाल हैं आपके डिपार्टमेंट के? कैसा चल रहा है सबकुछ?"
होम मिनिस्टर बोले; " हमारी पूरी एनर्जी सौ दिवसीय कार्यक्रम पर लगी है सर. हम अभी उद्घाटन में बिजी हैं. एन एस जी की यूनिटें खोल रहे हैं. मुंबई में उद्घाटन कर चुके है. चेन्नई जाना है. फिर बाकी की जगहें."
प्रधानमन्त्री जी बोले; "लेकिन केवल उद्घाटन करने से क्या होगा? और भी कुछ कीजिये."
होम मिनिस्टर बोले; "और भी तो कर ही रहा हूँ न सर. जहाँ भी उद्घाटन करता हूँ वहीँ पर प्रेस कांफ्रेंस करके तुंरत बता डालता हूँ कि आई बी की रिपोर्ट है कि देश के शहरों पर हमले हो सकते हैं."
उनकी बात सुनकर प्रधानमंत्री बहुत खुश हुए. उनके मन में आया कि इन्हें उसी समय भारत रत्न पुरस्कार दे दें लेकिन वहां पर पुरस्कार देने का माहौल सही नहीं था. प्रोटोकाल गड़बड़ा जाता इसलिए वे मन मारकर रह गए. इधर-उधर देखा तो हेल्थ मिनिस्टर दिखाई दिए. प्रधानमंत्री ने उनसे पूछा; "और जी, आपके मिनिस्ट्री के क्या हाल हैं?"
हेल्थ मिनिस्टर खुश हो गए. उन्होंने कहा; "हम भी वार लेवल पर काम कर रहे हैं."
प्रधानमंत्री ने हेल्थ मिनिस्टर की ख़ुशी का जवाब खुश होकर दिया. उन्होंने खुश होते हुए पूछा; "आपने भी कुछ बयान वगैरह दिया या नहीं अभी तक?"
हेल्थ मिनिस्टर को लगा कि अपने कर्मों का हिसाब तुंरत दिया जाय. वे बोले; "मैंने भी बयान दे दिया है सर."
प्रधानमन्त्री ने पूछा; "क्या बयान दिया आपने?"
हेल्थ मिनिस्टर बोले; "हमने तो कह दिया कि सिनेमा के परदे पर सिगरेट पीते हुए सीन बंद करना ही है तो सबसे पहले बलात्कार के सीन बंद किये जाएँ."
प्रधानमंत्री को लगा कि अब सिनेमा का पर्दा स्वच्छ होकर रहेगा. वे बोले; "वैरी वेल डन. कीप इट अप. हमें अपना पूरा ध्यान सौ दिवसीय कार्यक्रम पर रखना है. हमें दिशाहीन नहीं होना है."
प्रधानमंत्री और हेल्थ मिनिस्टर की बात को दो वेटर सुन नहीं पा रहे थे. एक ने दूसरे से पूछा; "प्राइम मिनिस्टर साहब क्या कह रहे होंगे हेल्थ मिनिस्टर से?"
दूसरा बोला; "अरे हेल्थ मिनिस्टर से और क्या कहेंगे? पूछ रहे होंगे कि नकली दवाईयों की बिक्री कैसे रोकी जा सकती है."
दोनों वेटर ने एक-दूसरे को देखा और हंसने लगे.
उसके बाद रेलमंत्री, खेलमंत्री, शिक्षा मंत्री, सड़क मंत्री, कृषि मंत्री वगैरह मिले. अब तक पूरा वातावरण बन चुका था. प्रधानमंत्री जी के सामने अंतिम पेशी हुई पर्यावरण मंत्री की. प्रधानमंत्री ने उनसे पूछा; "और जी, क्या हाल हैं पर्यावरण के? आपने क्या किया इस प्रोग्राम को सफल बनाने के लिए?"
पर्यावरण मंत्री बोले; "सर, मैंने नॉएडा में बनने वाले मायावती जी के स्टेच्यू प्रोजेक्ट पर नोटिस भेज दिया है."
प्रधानमंत्री जी बोले; "लेकिन अब नोटिस क्यों भेजा गया? ये प्रोजेक्ट तो काफी समय से चल रहा है."
पर्यावरण मंत्री बोले; "वो तो मुझे देखना पड़ेगा सर कि नोटिस अभी क्यों भेजा गया. लेकिन मुझे लग रहा है कि पहले नोटिस इसलिए नहीं भेजा गया क्योंकि जब प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, उनदिनों मायावती जी सरकार को समर्थन दे रही थीं."
प्रधानमंत्री बोले; "छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी. अब नोटिस भेजकर प्रोजेक्ट रोकवा दीजिये. अब तो हमारे पास बहुमत है."
मीटिंग ख़तम हो गई. जब सारे मंत्री वगैरह चले गए तो वही दो वेटर मीटिंग को लेकर बातें करने लगे. एक बोला; "अच्छा, मंहगाई को लेकर क्या बात हुई? प्राइम मिनिस्टर साहब ने किसी से कुछ पूछा या नहीं?"
दूसरा बोला; "किससे बात करते? अभी तक मंहगाई मंत्री कौन होगा, यह तय नहीं हुआ है."
नकली दवाइयों की बिक्री और मंहगाई को रोकने का काम भी जल्द ही होना चाहिए. शायद अगली मीटिंग में कुछ फैसला हो जाए.
Thursday, July 2, 2009
सौ दिन शासन के...
@mishrashiv I'm reading: सौ दिन शासन के...Tweet this (ट्वीट करें)!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
:)
ReplyDeleteशानदार पोस्ट। पेट्रोलियम के दाम मन्त्री जी ने बाहर आते ही बढ़ा भी दिए।
ReplyDeleteक्या वहाँ लगा सीसीटीवी कैमरा आपको रिपोर्ट करता है? बिल्कुल उल्टा लटका दिया आपने इन कमबख्तों को।
जमाना २०-२० का है.. अब ५ साल का क्या भरोसा.. यहाँ सरकार का एक सत्र से दुसरे सत्र का पता नहीं रहता...
ReplyDeleteहास्य कहें या व्यंग्य।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सटीक व्यंग्य है....महाराज जी .
ReplyDeleteभाई
ReplyDeleteसामायिक मुद्दों पर सरकार की पहल को आपने अच्छी खिचाई की है.
व्यंग अच्छा लगा और सौ दिन के सरकार वाले ओपसन पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है--- विषय को लेकर उच्च स्तरीय बैठक बुलाना भी चाहिए
तो क्या हर सौ दिन पूरे होने पे मीटिंग तय है.....अगली मीटिंग पे वेटर को जरा अच्छी टिप दीजियेगा ..कुछ गरमा गरम भी बता देगा .
ReplyDeleteडाक्टर साहब से सहमत हूँ......कुछ और खबर निकालो अन्दर से....
ReplyDeleteबहार से तो मरना ही आम आदमी की नियति है ,कम से कम अन्दर की बातें (vyangy)ही मनोरंजन करें....
बहुते लाजवाब लिखे हो....
:)
ReplyDeleteइन सब मे पेट्रोलियम मंत्री सबसे ज्यादा काबिल लगे हाम्को तो. बाहर निकलने से पहले ही दाम बढा दिये और दुसरे मंत्रियों को भी उनका अनुसरण करना चाहिये.:)
ReplyDeleteरामराम.
यथा प्रजा, तथा राजा! जनता क्विकी मांगती है तो सरकार झुकी रहेगी सौ दिन/घण्टे/मिनट के लॉलीपाप ठेलने में।
ReplyDeleteधैर्य और संयम तो इस युग के प्रतीक हैं ही नहीं।
दूसरे, सरकार को मीडिया स्पेस क्रिकेट/राखी सावन्त/माइकल जै किशन/भूत/चुड़ैल आदि से अपनी ओर खींचना है। उसके लिये सौ दिन छाप करना/कहना ही होगा।
mai bhi apna sau dini karyakram nikalta hoon. aapne achchha yaad dila diya.
ReplyDelete"पहले नोटिस इसलिए नहीं भेजा गया क्योंकि जब प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, उनदिनों मायावती जी सरकार को समर्थन दे रही थीं."
ReplyDelete"अब नोटिस भेजकर प्रोजेक्ट रोकवा दीजिये. अब तो हमारे पास बहुमत है."
बिल्कुल स्वाभाविक ढंग से गजब का लेखन है .. बहुत बहुत बधाई।
Shiv G Law minister ke Haal Chaal Nahi bataye apne. Wo to 100 din ke ander hi pure Bharat ko lesbian banane par tule hue hein, Section 377 IPC mein ammendment kar ke.
ReplyDeleteउम्दा व्यंग्य।
ReplyDeleteजमाना टेस्ट से ५०-५० होते हुए २०-२० तक आगया और अब १०-१० की तैयारी है और ये अभी भी १०० तक ही पहुंचे हैं ? रहेंगे पिछड़े ही !
ReplyDeleteहमारे चाचा पंचवर्षीय योजना वाले हैं और उन्होंने हाई स्कूल पांच सालों में पास किया था. और अब क्विक्नेस देखिये परीक्षा ही ख़त्म ! शानदार पोस्ट.
ReplyDeleteअगली मीटिंग का इन्तजार लग गया है अब तो!! :)
ReplyDeleteकरारा झटका!
’शतदिवसीय विकास प्रयोजनों’ से सभी विभागों में कुछ कुछ करने का उत्साह जाग उठा है । सौ दिन हो जाने दीजिये । अभी किसी को डिस्टर्ब न करिये, नहीं तो आपके ऊपर निरुत्साहित करने का मुकदमा चल सकता है ।
ReplyDelete’शतदिवसीय विकास प्रयोजनों’ से सभी विभागों में कुछ कुछ करने का उत्साह जाग उठा है । सौ दिन हो जाने दीजिये । अभी किसी को डिस्टर्ब न करिये, नहीं तो आपके ऊपर निरुत्साहित करने का मुकदमा चल सकता है ।
ReplyDeleteपढ़ कर लगा, हम नाहक टेंशन ले रहे थे. सरकार बहुत ज्यादा ही हाथ पाँव मार रही है. बहुत थका देने वाला काम है, जनता की भलाई. वह भी सौ दिन में...लगे रहो...जय हो...
ReplyDeleteआपके जासूस तो कोने कोने में फैले हुए लगते है... आफ्टर ऑल आपको अंग्रेजो के जमाने के ब्लोगर का रोल युही थोड़े ही दिया था...
ReplyDeleteसौ दिन शासन के और एक हथौडा सरदार का:)
ReplyDelete