आपने देखा - हिन्दी के लिये एक ही फॉण्ट है - मंगल। उसी का साइज बड़ा कर लो, इटैलिक्स कर लो, बोल्ड बना लो। बस। उसका प्रयोग कर इण्टरनेट पर हिन्दी ब्लॉगिंग अब तक अच्छी लगी। हिन्दी में अभिव्यक्त करने की आजादी प्रदान कर रही थी। पर अब एक ही फॉण्ट (मंगल) से थक गया हूं! बोरियत होती है। अंग्रेजी जो विविधता है अक्षरों के बनावट की, वह मोहित करती है।
हिन्दी में केवल मंगल है।
मंगल बोर है।
मंगल बोर है।
मंगल बोर है।
मंगल बोर है।
मंगल बोर है।
मंगल बोर है।
मंगल बोर है।
मुझे मालूम है - लोग यह पढ़ कर खिसिया कर चल देंगे। ज्यादातर लोग बोरियत की सीमा तक नहीं पंहुचे हैं। कुछ लोग जो इस दिशा में जद्दोजहद कर चुके हैं, हाई-टेक समाधान बतायेंगे। शायद ढेरों फॉण्ट बतायें। पर फलाना फॉण्ट ढिमाके ब्राउजर पर नहीं चलेगा। उसके लिये तिमाके वाला ऐड-ऑन चाहिये। फिर भी कीड़े नजर आयेंगे यदा-कदा-सर्वदा!
अगर हिन्दी ब्लॉगरी में और लोग जुड़ने है, तो विविधता तो लानी होगी। कमसे कम 4-5 फॉण्ट तो और होने चाहियें। कोई कुछ कर रहा है?
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शिवकुमार मिश्र काकेश की संगत कर दुख शास्त्र का प्रतिपादन कर रहे हैं। दुखी होने में हमें सहभागी नहीं बनाया। यह भी बोरियत का कारण है। आज हम बोर-शास्त्र ही ठेलेंगे। फिर कुछ नहीं करेंगे। न पढ़ेंगे, न टिपेरेंगे। घास भी नहीं छीलेंगे।
अपने साथ ही समझें. बोर बोर टाईप. देखों, क्या कहते हैं विद्वान. :)
ReplyDeleteआज मंगलवार है शायद इसीलिये मंगल की बुराइयां हो रहीं है
ReplyDeleteहमें भी पर्याप्त मात्रा में बोर माना जाय.आपसे सहमति है.
ReplyDeleteनहीं, आफिस 2007 में मंगल परिवार के और भी कई सारे सदस्य हैं। कई सारे। ट्राई करें, यह अलग बात है कि सारे कि सारे बोर हैं।
ReplyDeleteहमारा समय तो कैसे भी नहीं कट पा रहा है, चिट्ठे पढकर भी रोज १ घंटा ही कटता है । फ़िर कचौडी/जलेबी/समोसा/मिठाई भी खा खा कर बोर हो गये हैं ।
ReplyDeleteकाम करने का मन नहीं कर रहा है, पुराने मित्र नये ठिकानों पर जा बैठे हैं, टी.वी. पर देखने को कुछ मिल नहीं रहा है ।
अब करें तो क्या करें, मंगला फ़ोन्ट को ही अलग अलग तरीके से लिख कर देखते हैं अथवा एक झिलाऊ पोस्ट लिखते हैं :-)
सुना है अमेरिका ने 'मंगल' पर कोई यान-वान भेजा है.ये यान 'मंगल' को दूर से, नजदीक से, ऊपर से, नीचे से खंगालेगा....अगर इस यान को कोई और फांट-वांट मिला तो बात शायद बन जाए...केवल दो बातें नया फांट लेने में आदे आ सकती हैं....अमेरिका पेटेंट करा के कुछ रायल्टी मांग सकता है और हमारे वामपंथी इस नए फांट को भारत आने पर रोक सकते हैं.....
ReplyDeleteतब तक बोर हो लेंगे..........:-)
शिव भाई
ReplyDeleteमंगल के पीछे काहे पड़े हैं....
बेचारा कमसे कम काम तो चला रहा है.....
बोर तो मैं भी हूँ....पर।
ज्ञान भाई
ReplyDeleteमैंने इस पोस्ट को शिव जी का मान कर लिखा ...
क्षमादान करें.....
माना.. बोर है..
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteमेरी सोच को आपने जामा पहना दिया ।
है कोई, जो मदद कर सके!
संजय गुलाटी मुसाफिर
मंगल के साथ समतुल्य 160 संख्यक देवनागरी ओपेन टाइप फोंट उपलब्ध हैं। यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं--http://www.ildc.in/htm/otfonts.htm
ReplyDeletehttp://devanaagarii.net/fonts - बड़े दिनों से इस सूची को झाड़ा नहीं है, पर फिर भी यहाँ काफ़ी हैं।
ReplyDeleteआलोक
@ हरिराम और आलोक जी - मेरी बोरियत आपने दूर नहीं की। फॉण्ट तो मेरे पास भी खांची भर हैं। पर मैं हिन्दी तो ट्रांसलिटरेशन से लिखता हूं - बरहा या इण्डिक आईएमई के जरीये। वहाँ तो मंगल ग्रह जी का राज है। फिर मेरा पाठक तो यूनीफाइड कोड वाला है। किसी दूसरे फॉण्ट में लिखे होने पर उसे कीड़े ही दीखेंगे।
ReplyDelete@ Gyandutt Pandey "किसी दूसरे फॉण्ट में लिखे होने पर उसे कीड़े ही दीखेंगे"
ReplyDeleteये सारे 160 युनिकोडित ओपेन टाइप फोंट ही हैं, प्रयोग करके तो देखें। बिल्कुल सही सुन्दर हिन्दी(देवनागरी) दिखेगी। पुराने 8-बिट अमानकीकृत फोंट्स की तरह फोंट बदलने पर कोड नहीं बदलेंगे।
सही लिखा आपने!!
ReplyDelete@ हरिराम - हरिराम जी की जै! सही में - ये यूनीकोडित हैं। हो सकता है आलोक 9+2+11 जी ने भी यही (यूनीकोडित) बताये हों।
ReplyDeleteफिलहाल बोरियत को विदाई!
बंधू
ReplyDeleteआप हमारी दुखती रग पे हाथ रख दिए हैं. बहुत सम सामयिक प्रशन उठाएं हैं आप. एक पत्नी से गुजारा करना तो इंसान की मजबूरी है , लेकिन एक ही फॉण्ट से....gabbar singh की भाषा मैं "बहुत ना-insaafii है thakur..." असल मैं हिन्दी वाले बड़े बिचारे किस्म के प्राणी होते हैं जिसे कहते हैं न "santoshi जीव " . इश्वर को धन्यवाद देते की चलो एक फॉण्ट तो है वो भी न होता तो क्या कर लेते? रोमन मैं लिखने से तो अच्छा ही है, याने कुवारें रहने से अच्छा है एक बीबी तो मिली.
जब तक कोई दूसरा जुगाड़ नहीं होता चलो इसी से काम चलाते हैं.
नीरज
मंगल से बोर मत होइए. यहाँ पर कोई दर्जन भर फॉन्ट हैं जिनके चेहरे भी दिखते हैं -
ReplyDeletehttp://www.wazu.jp/gallery/Fonts_Devanagari.html
परंतु फ़िर, यदि आपके पाठक, जैसे कि "मैं " के पास दूसरे फ़ॉन्ट नहीं होंगे तो उसे तो मंगल ही मंगल नजर आएगा, और आप उसकी बोरियत नहीं भगा सकते!
बोरियत का भी अभ्यास होना चाहिये।
ReplyDeleteसही मे विविधता जरूरी है। उम्मीद करे हमारे विद्वान कुछ कर रहे होंगे। तब तक मंगल ही से दंगल करना होगा।
ReplyDeleteभैया हमने तो अभी अभी हिन्दी में लिखना सीखा है इस लिए हम तो अभी तक नहीं ऊबे, कल का पता नहीं
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