काकेश जी हिन्दी ब्लॉग जगत के 'ब्लॉगर-विभूषण' हैं।उन्होंने दुःख का उत्पादन कर के सुख खोजने की कला पर दो निबंध लिखे - दुखी होने के फायदे और दुखिया दास कबीर है.करीब एक सप्ताह तक यह निबंध केवल ब्लॉग जगत के लोग पढ़ते थे और अपने-अपने तरीके से दुःख का उत्पादन कर सुख की आस लगाए बैठे थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनके इन निबंधों ने राजनीति के गलियारों में हलचल मचा दी है. प्रस्तुत है राजनीति के गलियारों में दुःख का सहारा लेकर सुख पाने की कवायद पर एक रिपोर्ट.
सत्तासीन कांग्रेस पार्टी की वर्किंग कमिटी की मीटिंग चल रही थी (बांयी ओर का चित्र 'द हिन्दू' के एक नेट पेज का है)। मीटिंग में भाग लेने वाले सारे नेताओं को मीटिंग का एजेंडा दिया जा चुका था. लगभग सारे नेता एजेंडे वाला कागज़ पढ़ रहे थे. केवल प्रधानमंत्री कुछ और पढ़ रहे थे. बाकी नेताओं को बहुत आश्चर्य हुआ कि एजेंडे के बारे में न पढ़कर प्रधानमंत्री ये क्या पढ़ रहे हैं. लेकिन किसी ने उन्हें नहीं टोका. बाद में कांग्रेस अध्यक्षा ने ही प्रधानमंत्री से पूछा. प्रधानमंत्री ने जवाब देते हुए कहा; "देखिये मेरे हाथ एक प्रसिद्ध चिट्ठाकार के लिखे गए दो बहुमूल्य निबंध लगे है. इसमें उचित मात्रा में दुःख का उत्पादन करके सुख प्राप्त करने के तरीके बताये गए हैं. मुझे लगता है कि हमें अपनी पार्टी के नेताओं को इन निबंधों की एक-एक प्रति देनी चाहिए. साढ़े तीन साल के सत्ता सुख ने उन्हें दुःख से कोसों दूर कर दिया है. लेकिन अब समय आ गया है कि उन्हें दुःख का सहारा लेना चाहिए. ये बात और भी जरूरी इसलिए हो गयी है कि मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं."
कांग्रेस अध्यक्षा ने उन्हें बड़े आश्चर्य से देखते हुए कहा; "दुःख का सहारा लेकर सुख की प्राप्ति.ये तो बिल्कुल ही नया ज्ञान है. ज़रा हमें भी दिखाईये."
प्रधानमंत्री ने झट से निबंध उनकी तरफ़ बढाते हुए कहा; "मैडम आप इन निबंधों को पढिये तब जाकर आपको पता चलेगा कि मैं कितने दूर की कौडी लाया हूँ।"
कांग्रेस अध्यक्षा ने निबंध लेते हुए जैसे ही उसे पढ़ने के लिए चश्मा लगाया, वे नाराज हो गईं. उन्होंने कहा; "किस तरह का मजाक है आपका? ये तो हिन्दी में लिखा गया है. आपको मालूम है मैं केवल 'रोमन हिन्दी' पढती हूँ."
प्रधानमंत्री को अपनी भूल का एहसास हुआ. माफ़ी माँगते हुए कहा; "मैडम उम्र का तकाजा है.वैसे भी लेफ्ट वालों ने जिस तरह से परेशान कर रखा है, मेरी मानसिक स्थिति कई दिनों से ठीक नहीं है. आप ये निबंध मुझे दीजिये, मैं पढ़कर सुनाता हूँ."
कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा; "कोई बात नहीं। मैं अपने 'गुरु' जनार्दन द्विवेदी जी को दे रही हूँ. वे हिन्दी के प्रकांड विद्वान् हैं. उन्होंने मुझे हिन्दी सिखाई थी, वे इस निबंध को पढ़कर हमें सुनायेंगे."
द्विवेदी जी ने दोनों निबंधों का बड़ी तन्मयता से पाठ किया. कमिटी की मीटिंग में आए हर कांग्रेसी के चेहरे खिल गए. सबने प्रधानमंत्री की भूरि-भूरि प्रशंसा की. सभी ने इस बात को स्वीकार किया कि वाकई प्रधानमंत्री दूर की कौडी ले आए हैं. सभी इस निबंध के ज्ञान से संतुष्ट थे. सभी को विश्वास था कि आनेवाले मध्यावधि चुनावों में इस निबंध में लिखी गई बातों पर चलकर वे पर्याप्त दुःख का उत्पादन कर सत्ता-सुख भोगेंगे. वर्किंग कमिटी में प्रस्ताव पारित किया गया:
"कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस वर्किंग कमिटी प्रधानमंत्री के प्रति अपना आभार प्रकट करती है कि उन्होंने बिल्कुल ही अनूठे तरीके से पार्टी को आनेवाले चुनावों में जीत का रास्ता दिखाया है. हम आभार प्रकट करते हैं उन चिट्ठाकार का, जिन्होंने ये निबंध लिखकर न केवल हमें नया रास्ता दिखाया, अपितु पूरे देश को एक नया इतिहास लिखने के लिए प्रेरित किया है। वर्किंग कमिटी ने फैसला किया है कि इन निबंधों की करीब बीस लाख प्रतियाँ छपवा करके देश के कोने-कोने में बसने वाले कांग्रेसियों को भेजी जाय जिससे वे उचित मात्रा में दुःख पैदा कर पार्टी को जीत की राह पर आगे ले जाएँ."फिर क्या था, इन निबंधों में लिखे गए ज्ञान का प्रयोग कांग्रेसी नेताओं ने अपने-अपने स्तर पर शुरू कर दिया। इसका सबसे पहला उपयोग प्रधानमंत्री ने किया. नियम से रोज सुबह दो घंटा का समय दुःख पैदा करने में लगाने लगे. एक दिन उन्हें लगा कि अब समय आ गया है कि इन निबंधों से प्राप्त हुए ज्ञान को व्यावहारिकता की कसौटी पर कसना चाहिए. उन्होंने एक अखबार समूह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दुखी होते हुए कहा; "अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर हमारे साथी दल हमारा विरोध कर रहे हैं. हम तो चाहते हैं कि परमाणु समझौता हो. लेकिन हम क्या कर सकते हैं. जनता ने ही हमें पर्याप्त मैनडेट नहीं दिया. हमें फ्रैक्चार्ड मैनडेट मिला है. बहुत कुछ चाहते हुए भी हम कुछ नहीं कर पा रहे."
वहाँ बैठे लोगों ने प्रधानमंत्री के साथ हमदर्दी जताई। सभी ने उनके दुःख को समझा और ये कहा कि वाकई प्रधानमंत्री तो चाहते हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त मैनडेट जनता ने ही नहीं दिया. प्रधानमंत्री ने लोगों की प्रतिक्रिया पर खुशी जाहिर की. उन्हें विश्वास हो गया कि निबंधों में लिखा गया ज्ञान काम करता है. पार्टी आश्वस्त हो गई कि आने वाले चुनावों में अगर वे उचित मात्रा में दुःख का उत्पादन कर सके तो जीत तय है
लेफ्ट और समाजवादी पार्टी के नेताओं को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अचानक प्रधानमंत्री के प्रति लोगों की हमदर्दी इतनी कैसे बढ़ गई। प्रधानमंत्री कार्यालय में आने-जाने वाले एक पत्रकार को लेफ्ट वालों ने पटा लिया और प्रधानमंत्री के प्रति लोगों की हमदर्दी का कारण पता करना चाहा. उस पत्रकार ने उन्हें बताया कि किस तरह से किसी चिट्ठाकार द्वारा लिखे गए निबंधों के बूते पर प्रधानमंत्री को भर-भर कर सहानुभूति मिल रही है. फिर क्या था इन लोगों ने एक छुटभैये कांग्रेसी नेता को आने वाले चुनावों में संसदीय सीट के लिए टिकट देने का लालच देकर इन निबंधों की कॉपी हथिया ली. निबंध पढ़ने के बाद ये लोग भी निबंध में लिखी गई बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके.
लेफ्ट और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी निबंधों की प्रतियाँ बनवा लीं। इन लोगों ने तथाकथित थर्ड फ्रांट में शामिल होने वाले सभी दलों के नेताओं को इन निबंधों की एक-एक कॉपी दी और उन्हें भी दुःख पैदा करने के तरीकों पर अपने-अपने तरह से काम करने को कहा. चौटाला जी को जब इस निबंध की कॉपी मिली तो उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या करें सो उन्होंने अपने पोतों को बोर्डिंग स्कूल से १५ दिनों की छुट्ठी लेने को कहा जिससे वे घर आकर चौटाला जी के सामने न केवल उन निबंधों का पाठ करें बल्कि उन्हें निबंध में लिखी गई बातों के बारे में समझायें. नायडू हिन्दी में लिखे गए निबंधों को देखकर दुखी हो गए. उन्हें हिन्दी पढ़नी नहीं आती. उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए आनन फानन में हैदराबाद की एक सोफ्टवेयर कम्पनी से इस निबंध को हिन्दी से तेलुगु में अनुवाद करने के लिए सोफ्टवेयर बनाने का अनुबन्ध किया.
थर्ड फ्रंट में शामिल दलों के नेताओं के घरों पर कई दिनों तक इन निबंधों का सामूहिक पाठ चलता रहा। जब इन पार्टियों के नेता काफ़ी मात्रा में दुःख की पैदावार को लेकर आश्वस्त हो गए तब ये एक दिन मीडिया के सामने आए. सभी के चेहरों पर पर्याप्त मात्रा में दुःख दिखाई दे रहा था. थर्ड फ्रंट की तरफ़ से अमर सिंह जी ने मीडिया को बताया; "पहले सरकार के कामों से केवल हम दुखी रहते थे. हमारे साथियों पर इन्कम टैक्स की रेड हो या फिर हमारे बड़े भैया के जमीन का मामला हो, सरकार केवल हमारे पीछे पड़ी रहती थी. लेकिन अब तो हमारे कामरेड साथी भी दुखी हैं. हम दोनों ने अपने-अपने दुखों का विलय करके अपार दुःख की उत्पत्ति कर ली है. हमारे दुखों के साथ अगर आप नायडू और चौटाला जी के दुखों को जोड़ दें, तो हमारे पास इतना दुःख हो गया है कि हम चुनाव लड़ सकें."
एक पत्रकार ने पूछा; "लेकिन आपको नहीं लगता कि आपको अपने दुखों में जयललिता जी के दुखों को शामिल कर लेना चाहिए?"
अमर सिंह जी ने जवाब में कहा; "देखिये हमारे दुखों के साथ चूंकि हमारे कामरेड साथियों के दुखों का विलय हो चुका है इसलिए अब जयललिता जी का दुःख हमारे लिए किसी काम का नहीं रहा। आप इस बात पर ध्यान दें कि हमारा दुःख बड़ा एक्सक्लूसिव तरीके का है. उसके साथ केवल स्पेशल दुखों का ही विलय हो सकता है. इसलिए जयललिता जी का दुखों का ग्रुप हमारे सम्मिलित दुखों के ग्रुप से मैच नहीं करता."
"तो अब आपको लगता है कि आपको पर्याप्त दुःख की प्राप्ति हो चुकी है?", पत्रकार ने पूछा।
"नहीं, अभी हम इसमें जनता का दुःख मिलायेंगे। किसान जनता, दलित जनता, बेरोजगार जनता वगैरह का दुःख हमें मिल जाने की पूरी संभावना है. हम इसपर काम कर रहे हैं"; अमर सिंह ने समझाते हुए कहा.
अबतक लगभग सभी राजनैतिक पार्टियां दुःख शास्त्र का समग्र अध्ययन कर चुकी थीं। भाजपा को किसी ने सलाह दी कि वे लोग भी इस दुःख शास्त्र का सहारा लेकर सुख की प्राप्ति का रास्ता खोजें. जवाब में अरुण जेटली जी ने बताया; "हम पहले से ही काफ़ी दुखी हैं. हम अब सुख और दुःख के रोलिंग प्लान के लायक नहीं रहे. हमारी समस्या ये है कि हमारी पार्टी में लोगों को सुख भोगने की ऐसी आदत लग गई थी कि हम कितनी भी प्रैक्टिस कर लें, सपने में भी इतना दुःख नहीं पैदा कर सकते जिससे इलेक्शन जीता जा सके."
दुःख का सहारा लेकर सारी पार्टियां चुनाव मैदान में उतरने वाली हैं. सबसे अच्छी बात ये है कि सभी ने अबतक काकेश जी को उनके 'दुःख शास्त्र' लेखन के लिए सार्वजनिक तौर पर धन्यवाद दे डाला है. मुझे आशा है कि आने वाले चुनावों में सरकार चाहे जिसकी बने, भारतीय राजनीति में योगदान के लिए काकेश जी को पद्मश्री का सम्मान पक्का है.
हम दुखी होने का प्रयास कर रहे हैं।
ReplyDeleteहमें दुख है कि हमें केवल पद्मश्री ही मिल रहा है. इन निबंधों को लिखते समय से हम भारत रत्न की उम्मीद लगाये बैठे थे खैर...और एक और दुख की बात है देखिये कैसे सरे आम लोग हमारे कॉपीराइट का उल्लंघन कर रहे हैं.लाखों प्रतियां छ्पवा दी गयीं और हमें कोई रायल्टी भी नहीं मिली..इस देश की इन्ही अव्यवस्थाओं के कारण बहुत दुख होता है.
ReplyDeleteअब जो भी पार्टी जीतेगी हम उन से कहेंगे कि हमारे दुख को कम करने के लिये कम से कम हमें मिनिस्टर पद तो दिया ही जाय.ताकि हम और दुखी हो सकें कितने सारे काम करने पड़ेंगे ना देश के लिये.
कांग्रेस अध्यक्षा ने निबंध लेते हुए जैसे ही उसे पढ़ने के लिए चश्मा लगाया, वे नाराज हो गईं. उन्होंने कहा; "किस तरह का मजाक है आपका? ये तो हिन्दी में लिखा गया है. आपको मालूम है मैं केवल 'रोमन हिन्दी' पढती हूँ.""
ReplyDeleteओह यह बात आपने कुछ दिन पहले याद दिला दी होती तो एग्रीगेटरों द्वारा लिप्यंतरण सुविधा के कुछ और उपयोग मिल जाते।
भई रोमन हिंदी का जवाब नहीं है।
ReplyDeleteदुखों में ब्लागरों के दुख भी तो हैं।
थोड़े से हिट पाय के ठंडा पानी पीव
देख पराये हिटन को मत ललचाये जीव
कुछ ब्लागरों के दुख पर तो हो।
कबीर दुख के अतरौ ब्लॉगर सौं दुख नाहीं
ReplyDeleteज्यादा हिट हाहा करैंकम पर रोवैं हाही...
मस्त करनेवाली पोस्ट
मस्त है!1
ReplyDeleteमाननीय महोदय आप का दुःख पुराण पढ़ कर अत्यन्त ही सुख की अनुभूति हो रही है. आपने ये जो दुःख को माध्यम बनाकर सुख और सफलता अर्जित करने का रास्ता दिखलाया है उसके लिए हम आजीवन आभारी रहेंगे. किंतु मेरी कुछ सुहानुभुती काकेश भाई के साथ भी है क्योंकि इतने बड़े दुःख का उत्पादन करने के बावजूद उन्हें सिर्फ़ पद्मश्री से संतुष्ट होना पड़ रहा है. अब मेरी भी इच्छा हो रही है की दुःख को आमंत्रण दे डालूं. इसलिए पेश है:-
ReplyDelete"घरां घरां मत जा रे दुखडा घनो पछ्तावोगा
म्हारो घर तो खुलो पडो है कब आवोगा."
और भी है.
"रे दुःख तु इतना हैरान इतना परेशान क्यों है.
मेरे दिल के होते खोजता फिरता दूसरा मकान क्यों है."
तो महोदय मेरी पुकार पर भी कुछ ध्यान देकर कुछ दुःख पार्सल करने की कृपा करें.
बहुत दुखी हूँ.
ReplyDeleteवैसे तो मैडम को काकेश के लिंक के साथ भौमियो का लिंक भी दे देते तो खुद ही रोमन मेम पढ़ लेतीं.
हा हा हा …।बड़िया है शिव भाई, अब तक हमने काकेश जी का लेख नही पढ़ा था, अब प्ढ़ने जा रहे है, ये दुख कुछ् काम की चीज लगती है शायद हमें भी फ़ायदा हो जाये। हमारी टिप्प्णी पढ़ कर थोड़ा दुखी हो ले तभी सुख की प्राप्ती होगी।
ReplyDeleteशिव कुमार जी हम सब हिन्दी में तोह लिख लेते है , ऐसे इस स्क्रोल कर रहा था की देखा अपने एक अंग्रेजी वेब काउंटर का इस्तेमाल किया है | हाल में मैंने यह नया टूल देखा एक हिन्दी वेब काउंटर - http://gostats.in
ReplyDeleteमें सोचता इस अगर हम हिन्दी - देवनागरी में लिख रहे है तोह टूल्स भी सब हिन्दी इस्तेमाल करे , नहीं क्या |
हर हिन्दुस्तानी का यह फ़र्ज़ बँटा है की वह हिन्दी को बढावा दे |