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Saturday, November 3, 2007

राजनीति माने - वामपंथ दो काज


@mishrashiv I'm reading: राजनीति माने - वामपंथ दो काजTweet this (ट्वीट करें)!


वामपंथी नाराज हैं. कोई नई बात नहीं है. पूरी विचारधारा ही नाराजगी पर टिकी है. बेचारे महीने भर नाराज न रहें तो उदास हो जाते हैं. जीवन व्यर्थ सा लगता है. इस बार सरकार से नाराज हैं. बता रहे थे, 'सरकार अमेरिका के आगे झुकी जा रही है, इसलिए हम नाराज हैं.' इनकी सबसे प्यारी अदा तब दिखाई देती है जब ये कहते हैं कि 'हम इन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जायेंगे.' जनता बेचारी भौचक्की. सोचती है 'हमारे बीच क्यों आओगे. हमसे पूछकर सरकार को समर्थन दिया था क्या.'

इन पार्टियों के नेताओं ने पता लगाया कि उनकी जनता कहाँ-कहाँ है. पता चला पश्चिम बंगाल और केरल में इनकी जनता प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. फिर क्या था,इन पार्टियों के बड़े नेताओं ने कह डाला कि वे न्यूक्लीयर डील के मुद्दे को लेकर जनता के पास जायेंगे. स्थानीय नेताओं को इस आशय का आर्डर भी दे डाला कि जनता के बीच जाओ और उन्हें बताओ कि हम नाराज हैं. उन्हें बताना कि अमेरिका के साथ सम्बन्ध हमारे देश को बहुत नुकसान पहुँचायेगा.

बड़े नेताओं के कहने पर पश्चिम बंगाल के एक स्थानीय नेता ने 'जनता' के बीच जाने का कार्यक्रम बनाया. जनता को सूचना दे दी, 'हम आपके बीच आना चाहते हैं लेकिन आपके बीच जाने में हमें दिक्कत होती है, इसलिए आपलोग कहीं पर इकट्ठे मिलें तो हम आपके बीच पहुंचें.' नेताओं ने स्थान तय किया. जनता वहाँ इकट्ठी हुई.नेता भी पहुंचे. जहाँ जनता ने आने के लिए मना किया, वहाँ खाने-पीने का लालच दिया गया. जहाँ लालच ने काम नहीं किया, वहाँ धमकी का सहारा लिया गया. नेता अपने साथियों और पुलिस वालों को लेकर वहाँ जा पहुंचे जहाँ जनता इकट्ठी हुई थी.

अभी वहाँ पहुंचे ही थे कि कुछ लोगों को देखकर उनका माथा ठनका. लगा कि जनता के बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनकी शक्ल जनता से नहीं मिलती. उन्होंने अपने शक पर काम करते हुए उनलोगों से कहा; "हम आए तो थे जनता के बीच, लेकिन मुझे लग रहा है कि आपलोग जनता नहीं हैं. कौन हैं आपलोग?"

उनलोगों ने जवाब दिया; "आपने ठीक पहचाना, हम जनता नहीं हैं, हम पत्रकार हैं."

नेताजी ने कहा; "लेकिन अभी तो हम जनता के बीच आए हैं.जो कुछ कहना है, जनता से ही कहेंगे. आप लोग यहाँ क्यों आए हैं?"

"आप नेता लोग आसानी से तो दिखाई नहीं देते. जनता के बीच तो वैसे भी कभी-कभी ही आते हैं. हमने सोचा आपसे कुछ बातें कर लेंगे. इन्टरव्यू वगैरह ले लेंगे"; पत्रकारों ने समझाते हुए कहा.

नेताओं ने आपस में सलाह किया. एक नेता ने कहा;"इनको इन्टरव्यू देने में ख़तरा है. अगर पत्रकार इंटेलिजेंट निकल गया तो हमें प्राब्लम हो सकती है."

एक और नेता ने सलाह दी; "हमें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए. पचास पत्रकारों के समूह में दो से ज्यादा पत्रकार इंटेलिजेंट मिलेंगे, इसकी आशा बहुत कम है. मैं तो सलाह दूँगा कि इन्टरव्यू दे देना चाहिए. अखबारों और न्यूज़ चैनल में भी तो हमारी बात पहुचनी चाहिए."

नेताओं के बीच फैसला हो गया. इन्टरव्यू दे सकते हैं. स्थानीय नेताओं के बीच से एक बड़े नेता को सामने लाया गया. पत्रकारों को सवाल पूछने के लिए कहा गया. पत्रकार भी कैमरा लेकर तैयार हो गए.

एक पत्रकार ने सवाल किया; "सुना है आप सरकार से नाराज हैं?"

नेता ने जवाब दिया; "हाँ हम सरकार से नाराज है. बहुत नाराज हैं."

नाराजगी की वजह पूछने पर नेता ने बताया; "तीन साल से ज्यादा हो गया हमें सरकार को समर्थन देते. इन तीन सालों में हमने उन्हें समर्थन दिया क्योंकि हम उन्हें समर्थ समझते थे. लेकिन तीन साल लगातार समर्थन देकर हम बोर हो गए थे. बोरियत दूर करने तरीका हमें नहीं मिला, सिवाय इसके कि हम सरकार से नाराज हो जाएँ."

पत्रकार ने कहा; "मतलब आप अपनी बोरियत दूर कर रहे थे. सरकार से नाराज नहीं हैं?"

"ये सब राजनीति की बातें हैं. पत्रकारों को समझ में नहीं आएँगी"; नेता ने जवाब दिया.

"नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है.हमें आपकी बातें समझ में आ जायेंगी. हम लोग ख़ुद बड़ी राजनीति करते रहते हैं. आपको दिखाई नहीं देता, किस तरह से हम लोग एक दूसरे की न्यूज का मजाक उड़ाते हैं. एक दूसरे के न्यूज़ रीडर तोड़ लेते हैं."; पत्रकार ने सफाई देते हुए बताया.

नेता बोला; "तो समझ लीजिये कि हम सरकार से नाराज हैं."

पत्रकार ने फिर सवाल किया; "लेकिन आप अगर सरकार से नाराज हैं तो समर्थन वापस क्यों नहीं ले लेते?"

"यही तो राजनीति है. इसी को कहते हैं 'वामपंथ, दो काज'. वह मुहावरा सुना है न आपने, 'एक पंथ दो काज'. हमने उसको बदल दिया है. अब लोगों ने भी कहना शुरू कर दिया है; 'वामपंथ दो काज'. हम सरकार को समर्थन दे भी रहे हैं और नहीं भी"; नेता ने समझाया.

एक दूसरे पत्रकार ने सवाल दागा; "वैसे तो आप जनता की बीच न्यूक्लीयर डील की बात करने आए हैं, लेकिन अगर जनता ने स्थानीय समस्याओं के बारे में पूछ लिया तो?"

"हमारे राज्य में कोई समस्या है ही नहीं. आप कौन सी समस्या की बात कर रहे हैं?", नेता को शायद पत्रकार का सवाल अच्छा नहीं लगा.

"देखिये, समस्या तो है. नंदीग्राम की समस्या है. आए दिन वहाँ गोलियां चलती हैं. कई जिलों में जनता सरकारी राशन दुकानों में फैले भ्रष्टाचार से त्रस्त है. राज्य की जनता सरकारी राशन दुकानों को लूट ले रही है क्योंकि उन्हें राशन ठीक से नहीं मिल रहा."; पत्रकार ने कहा.

"देखिये, पहले तो हम ऐसी घटनाओं को समस्या नहीं मानते. लेकिन अगर आपको ये लगता है कि ये राज्य की समस्याएं हैं, तो इसके लिए भी केन्द्र ही जिम्मेदार है. आज अगर केन्द्र की सरकार ने अमेरिका से न्यूक्लीयर डील करने से मना कर दिया होता, तो ऐसी घटनाएं नहीं होतीं"; नेता ने समझाते हुए कहा. पत्रकार भौचक्के रह गए. नेता जी क्या कह रहे हैं. राज्य की समस्याओं के लिए केन्द्रीय सरकार जिम्मेदार है, ये बात उनकी समझ के बाहर थी.

नेता ने शायद पत्रकारों की सोच को भांप लिया. उसने पत्रकारों को समझाते हुए कहा; "आप नहीं समझे न.मैंने पहले ही कहा था, आप लोग राजनीति की बातें नहीं समझेंगे. अरे बहुत सीधी सी बात है. केन्द्र सरकार अगर न्यूक्लीयर डील नहीं करती तो हम विरोध नहीं करते. हम विरोध नहीं करते तो हमारे पास समय होता. हमारे पास समय होता तो हमें याद रहता कि इस राज्य में हमारा शासन है और हम यहाँ की समस्याओं को दूर करने की कोशिश करते."

पत्रकारों में एक ने पूछा; "लेकिन आपके द्वारा शासित राज्य में पुलिस बहुत बुरे-बुरे काम कर रही है।रिजवानुर की घटना को लेकर पुलिस की बड़ी किरकिरी हुई. साथ में सरकार की भी. आपको इसके बारे में क्या कहना है?"

"देखिये हमने सी आई डी की जांच करवाई. अब तो हमने पुलिस वालों का तबादला भी कर दिया है"; नेता ने जवाब दिया.

"लेकिन आपने सी बी आई की जांच करवाने से क्यों मना कर दिया?"; एक पत्रकार ने पूछा।

"हम तो सी बी आई की जांच करवाने के लिए तैयार थे. बाद में पता चला कि सी बी आई के कुछ अफसर अमेरिका जाकर ट्रेनिंग लेकर आए थे. हमने इसीलिए सी बी आई की जांच से इनकार कर दिया. हम हर उस बात को नहीं मानते, जो अमेरीकी है "; नेता ने सफाई दी।

तभी एक और पत्रकार ने पूछा; "आपकी पार्टी अब समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर थर्ड फ्रंट बनाना चाहती है. क्या आपलोग सरकार से समर्थन वापस लेने की तैयारी कर रहे हैं?"

"हमने कहा था न, आपलोगों को राजनीति की समझ नहीं है. आप मुहावरा भी भूल गए, 'वामपंथ दो काज'. अरे बहुत सीधी बात है, फ्रंट फर्स्ट हो या थर्ड, बिना हमारे नहीं चलेगा. हम अभी देख रहे हैं कि हम फर्स्ट फ्रंट में फर्स्ट रहेंगे या थर्ड फ्रंट में फर्स्ट रहेंगे. हम जिस फ्रंट में फर्स्ट रहेंगे, उसी को समर्थन देंगे."

पत्रकारों को अब तक राजनीति का पाठ कुछ कुछ समझ में आने लगा था. उन्होंने आपस में मशविरा किया और नेता जी को धन्यवाद देते हुए वहाँ से चले गए. इस सीख के साथ कि 'नेताओं की राजनीति को पत्रकारिता में इस्तेमाल करके आगे बढ़ा जा सकता है.'

10 comments:

  1. वामपंथ दो काज,शिव-ज्ञान काज ही काज. इतना अच्छा मारक कटाक्ष करेंगे तो हमारा क्या होगा.ऎसे ही दूसरों के उपन्यास छापने पड़ेंगे. जबरदस्त.

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  2. मारक...धांसू..'वामपंथ, दो काज'// आनन्द आ गया. बहुत खूब भाई. जारी रहो- बने रहो.

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  3. वो प्रोफेशनल काम है जी। वामपंथी नाराज यूं होते हैं,जैसे भरतनाट्यम डांसर भरतनाट्यम करती है। कत्थक वाली कत्थक करती है। नाराजगी अदा है, धंधा है। सबके अपने होते हैं। आप को इस पर नाराज होते हैं।

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  4. "आप नहीं समझे न.मैंने पहले ही कहा था, आप लोग राजनीति की बातें नहीं समझेंगे. अरे बहुत सीधी सी बात है. केन्द्र सरकार अगर न्यूक्लीयर डील नहीं करती तो हम विरोध नहीं करते. हम विरोध नहीं करते तो हमारे पास समय होता. हमारे पास समय होता तो हमें याद रहता कि इस राज्य में हमारा शासन है और हम यहाँ की समस्याओं को दूर करने की कोशिश करते."
    आप तो व्यंग लेखन के गुरु बनते जा रहे हैं. भाई वाह. राजनीति जिससे हम अब तक कोसों दूर रहे अब आप को और ज्ञान जी को पढ़ कर कुछ कुछ समझ आ रही है. ज्ञान वर्धन के लिए धन्यवाद.
    नीरज

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  5. कविरा इस संसार में सबको अपनो साज
    बाम पंथ को राज में बाम पंथ को काज।
    मस्त पोस्ट पढ़ाने के लिए मस्त रहने की दुआ।

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  6. हम आपकी आज की लेफ़्ट पोस्ट का राईट समर्थन करते है,लेकिन आपके व्यंग लेखन के विरोध मे है.
    अरूण

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  7. भाई साहब छा गए हो. क्या " मारक", "धांसू", "जबरदस्त", "छेदक" व्यंग्य लिखा है. लेफ्ट-राइट तक तो ठीक था लेकिन आपने पत्रकार भाइयों को लपेट कर अच्छा काम नही किया.

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  8. वामपंथ, दो काज़!!
    शानदार!!
    शिकायत दर्ज की जाए कि आप कम लिखते है, लेखन आवृत्ति बढ़ाएं!!

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  9. बहुत बढिया। वामपंथियों की अच्‍छी खबर ली है आपने। दोमुंहापन ही तो उनकी विचारधारा है।

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  10. शिव भैया एक दम धांसू लिखे हो..मजा आ गया. रोज लिखिए

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय