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Monday, December 3, 2007

क्रिकेट और तिरंगे से छलकती देशभक्ति


@mishrashiv I'm reading: क्रिकेट और तिरंगे से छलकती देशभक्तिTweet this (ट्वीट करें)!

लीजिये साहब, तिरंगे का अपमान एक बार फिर से हो गया. अभी कुछ दिनों पहले ही तो जयपुर में हुआ था. लेकिन ये क्या, कल फिर से हो गया. कलकत्ते में. जयपुर में तो कुछ विदेशी ‘मेहमानों’ ने टेबल पर तिरंगा बिछाकर शराब पी डाली. मामला पुलिस के पास था. लेकिन यहाँ, कलकत्ते में तो पुलिस वालों ने ही अपमान कर डाला. बीते कई दिन देश में अपमान के लिए याद किए जायेंगे. तिरंगे का अपमान, असम में औरतों का अपमान, बंगाल में लेखिका का अपमान, कुल मिलाकर बड़ा ‘अपमानित’ समय चल रहा है. सरकार को अब एक कमीशन बना ही देना चाहिए. ये पता करने के लिए कि पिछले एक साल में देश में सबसे ज्यादा अपमान किसका हुआ. कानून और न्यायालय का, औरतों का, तिरंगे का, या फिर जनता का.


पहले तिरंगे के अपमान के बारे में ज्यादा कुछ नहीं सुनाई देता था. शायद इसलिए कि तिरंगे का सीमिति उपयोग होता था. पहले तिरंगा सरकारी होता था. सरकारी भवनों और स्कूल में पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को उड़ाने के काम आता था. किसी नेता-वेता के मरने पर झुकाने के काम आता था. शायद सरकार को मालूम था कि तिरंगे की इज्जत करना केवल सरकार ही जानती है. इसलिए तिरंगे की इज्जत या फिर उसका संभावित अपमान, दोनों सरकार के हाथ में था.

लेकिन नवीन जिंदल जी के कारण तिरंगा सरकार के एकाधिकार से निकल कर तमाम देशवासियों के हाथों में और शरीर तक पर जा पहुंचा. जिंदल साहब ने कानूनी लड़ाई लड़ी. देश की सरकार से लड़ना कितना मुश्किल काम होता है. लेकिन उन्होंने किया. उन्होंने शायद सोचा था कि तिरंगे का इस्तेमाल अगर सभी के हाथों में दे दिया जाय तो देशभक्ति बढेगी. देश का भला होगा. लिहाजा तिरंगा सरकारी इमारतों से निकलकर लोगों की कारों और उनके ड्राइंग रूम तक पहुँच गया. लेकिन जिंदल साहब को एकबार सोचना चाहिए था कि क्रिकेट के खेल में देशभक्ति ढूढ़ने और देखने वाली जनता के लिए तिरंगे में देशभक्ति ढूढ़ने का प्रयोजन कितना था.

नवीन जिंदल जी की सारी कवायद तिरंगा फहराकर देशवासियों में देशभक्ति का संचार करने के लिए थी. लेकिन शायद हमें लगा कि केवल फहराने से उचित मात्रा में देशभक्ति का संचार मुश्किल है. लिहाजा केवल फहराने की बात से आगे निकलते हुए हमने तिरंगे को पहनने का, टेबल पर बिछाने का और यहाँ तक कि साड़ी की तरह उसका इस्तेमाल करने में कोई कसर नहीं छोडी. क्रिकेट में देशभक्ति ढूढ़ने वाली जनता अगर तिरंगे के साथ क्रिकेट को जोड़ दे, तो फिर क्या कहने. आए दिन सुनने में आता है कि क्रिकेट हमारे देश में केवल खेल नहीं रह गया. अब ये धर्म हो गया है. अब धर्मांधता में डूबी जनता कभी-कभी पागल हो जाती है. नतीजा सामने है. पिछले कई महीनों में तिरंगे का सबसे ज्यादा अपमान क्रिकेट मैच के दौरान हुआ है. वैसे भी जिस देश के लोग औरतों का अपमान खुले आम सडकों पर करें, उनके लिए अपने देश के झंडे का महत्व कपड़े के एक टुकड़े से ज्यादा और क्या होगा.

वैसे समय बदलता है. मुझे आशा है कि आनेवाले दिनों में समय बदलेगा. तिरंगे का अपमान करने वाली देश की जनता शायद किसी का सम्मान भी करे. आनेवाले दिनों में हम इसी जनता को किसी लुच्चे नेता को सोने-चांदी या फिर सिक्कों से तौलते हुए देख सकेंगे.

11 comments:

  1. मेरी ये समझ मे नही आता की राष्ट्र ध्वज को ले के हमारे यहाँ इतनी संकुचित मानसिकता कीऊ है | २० - २० विश्व कप फाइनल का मामला ही ले ले विदेशो मे फुटबाल के मैच के दोरान भी खिलारियो को अपने देश का झंडा ओढ़ते है लेकिन अमेरिका या यूरोप के किसी देश मे एस तरह का हंगामा होते नही देखा |

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  2. चंगा लिखा तिरंगा पर। जब सारी मानसिकता दुमुहीं हो तो क्या मान और क्या अपमान। हाथी के दांत की तरह दो सेट तिरंगे के भी होने चाहियें - एक मान के लिये और एक अपमान के लिये!

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  3. सही कहा है आपने,

    मेरा मानना है कि खेलों के लिये एक अलग प्रतीकात्‍मक ध्‍वज होना चाहिए। जैसा इग्‍लैंड का है।

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  4. सबसे ज़्यादा तक़्लीफ़ तब होती है जब किसी रैली मे भीड़ का जोश समाप्त हो जाता है और पूरे मैदान मे रौधें हुए तिरंगे ही तिरंगे दिखायी पड़ते हैं

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  5. सरजी नंगों का सम्मान,तिरंगे का अपमान,जमाना येसा है
    कहां कहां का चिंता, तू मजे की छान, जमाना येसा है

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  6. सही है जी आप भी कुछ दिनों चिंतित रहिये.

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  7. आमतौर पर अनजाने ही तिरंगे का अपमान होता है. आप जरा उस अपमान के बारे में भी लिखें जो जानबूझकर किए जाते हैं. जैसे कि इन नेताओं की अन्तिम यात्रा में इन्हें ओढाया जाता है. इन्ही भ्रष्ट हाथों से वे ध्वजारोहण भी करते है. मेरा मानना है की सिर्फ़ शहीद सैनिकों के शव के अलावा तिरंगे को किसी भी शव पर ओढाना उसका अपमान माना जाना चाहिए.

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  8. "वैसे समय बदलता है. मुझे आशा है कि आनेवाले दिनों में समय बदलेगा. तिरंगे का अपमान करने वाली देश की जनता शायद किसी का सम्मान भी करे. आनेवाले दिनों में हम इसी जनता को किसी लुच्चे नेता को सोने-चांदी या फिर सिक्कों से तौलते हुए देख सकेंगे."
    आने वाले दिनों में क्यों ? क्या अभी हम लुच्चे लफंगों को सिक्कों या सोने चाँदी से नहीं तौलते ?
    नीरज

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  9. अपने ही देश में ऐसी हालत देख कर कर ही क्या सकते सिवाय अपमानित महसूस करने के।

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  10. वह वक्त गया जब लोग गाते थे----
    चाहे जान भले ही जाए
    शान न इसकी जाने पाए।
    अब तो यही सब होगा...कभी मंदिरा बेदी के साड़ी में पावों के पास छापा जाएगा और कभी कोई कम अक्ल उतार कर फेंक देगा.....क्या कर सकते हैं...इस अजब गजब समाज में।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय