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Tuesday, December 25, 2007

बापी दास का क्रिसमस विवरण


@mishrashiv I'm reading: बापी दास का क्रिसमस विवरणTweet this (ट्वीट करें)!



यह निबंध नहीं बल्कि कलकत्ते में रहने वाले एक युवा, बापी दास का पत्र है जो उसने इंग्लैंड में रहने वाले अपने एक नेट फ्रेंड को लिखा था. इंटरनेट सिक्यूरिटी में हुई गफलत के कारण यह पत्र लीक हो गया. ठीक वैसे ही जैसे सत्ता में बैठी पार्टी किसी विरोधी नेता का पत्र लीक करवा देती है. आप पत्र पढ़ सकते हैं क्योंकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे 'प्राइवेट' समझा जा सके.
प्रिय मित्र नेटाली,

पहले तो मैं बता दूँ कि तुम्हारा नाम नेटाली, हमारे कलकत्ते में पाये जाने वाले कई नामों जैसे शेफाली, मिताली और चैताली से मिलता जुलता है. मुझे पूरा विश्वास है कि अगर नाम मिल सकता है तो फिर देखने-सुनने में तुम भी हमारे शहर में पाई जाने वाली अन्य लड़कियों की तरह ही होगी. तुमने अपने देश में मनाये जानेवाले त्यौहार क्रिसमस और उसके साथ नए साल के जश्न के बारे में लिखते हुए ये जानना चाहा था कि हम अपने शहर में क्रिसमस और नया साल कैसे मनाते हैं. सो ध्यान देकर सुनो. सॉरी, पढो.

हम क्रिसमस बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. थोडा अन्तर जरूर है. जैसा कि तुमने लिखा था, क्रिसमस तुम्हारे शहर में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है, लेकिन हम हमारे शहर में घूम-घाम के साथ मनाते हैं. हमारे जैसे छोकरे बाईक पर घूमने निकलते हैं और सडकों पर चलने वाली लड़कियों को छेड़ कर क्रिसमस मनाते हैं. हमारा मानना है कि हमारे शहर में अगर लड़कियों से छेड़-छाड़ न की जाय, तो यीशु नाराज हो जाते हैं. और हम छोकरे अपने माँ-बाप को नाराज कर सकते हैं, लेकिन यीशु को कभी नाराज नहीं करते.

क्रिसमस का महत्व केक के चलते बहुत बढ़ जाता है. हमें इस बात पर पूरा विश्वास है कि केक नहीं तो क्रिसमस नहीं. यही कारण है कि हमारे शहर में क्रिसमस के दस दिन पहले से ही केक की दुकानों की संख्या अचानक बढ़ जाती है. ठीक वैसे ही जैसे बरसात के मौसम में नदियों का पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है. क्रिसमस के दिनों में हम केवल केक खाते हैं. बाकी कुछ खाना पाप माना जाता है. शहर की दुकानों पर केक खरीदने के लिए जो लाइन लगती है उसे देखकर हमें विश्वास हो जाता है दिसम्बर के महीने में केक के धंधे से बढ़िया धंधा और कुछ भी नहीं. मैंने ख़ुद प्लान किया है कि आगे चलकर मैं केक का धंधा करूंगा. साल के ग्यारह महीने मस्टर्ड केक का और एक महीने क्रिसमस के केक का.

केक के अलावा एक चीज और है जिसके बिना हम क्रिसमस नहीं मनाते. वो है शराब. हमारी मित्र मंडली (फ्रेंड सर्कल) में अगर कोई शराब नहीं पीता तो हम उसे क्रिसमस मनाने लायक नहीं समझते. वैसे तो मैं ख़ुद क्रिश्चियन नहीं हूँ, लेकिन मुझे इस बात की समझ है कि क्रिसमस केवल केक खाकर नहीं मनाया जा सकता. उसके लिए शराब पीना भी अति आवश्यक है. मैंने सुना है कि कुछ लोग क्रिसमस के दिन चर्च भी जाते हैं और यीशु से प्रार्थना वगैरह भी करते हैं. तुम्हें बता दूँ कि हमारी दिलचस्पी इन फालतू बातों में कभी नहीं रही. इससे समय ख़राब होता है.

अब आ जाते हैं नए साल को मनाने की गतिविधियों पर. यहाँ एक बात बता दूँ कि जैसे तुम्हारे देश में एक जनवरी से नया साल शुरू होता है वैसे ही हमारे देश में भी नया साल एक जनवरी से ही शुरू होता है. ग्लोबलाईजेशन का यही तो फायदा है कि सब जगह सब कुछ एक जैसा रहे. नए साल की पूर्व संध्या पर हम अपने दोस्तों के साथ शहर की सबसे बिजी सड़क पार्क स्ट्रीट चले जाते हैं. है न पूरा अंग्रेजी नाम, पार्क स्ट्रीट? मुझे विश्वास है कि ये अंग्रेजी नाम सुनकर तुम्हें बहुत खुशी होगी. हाँ, तो हम शाम से ही वहाँ चले जाते हैं और भीड़ में घुसकर लड़कियों के साथ छेड़-खानी करते हैं. हमारा मानना है कि नए साल को मनाने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं होगा. सबसे मजे की बात ये है कि हम जैसे यंग लडके तो यहाँ जाते ही हैं, ४५-५० साल के लोग जो जींस की जैकेट पहनकर यंग दिखने की कोशिश करते हैं, वे भी आते हैं. भीड़ में अगर कोई उन्हें यंग नहीं समझता तो ये लोग बच्चों के जैसी अजीब-अजीब हरकते करते हैं जिससे लोग उन्हें यंग समझें.

तीन-चार साल पहले तक पार्क स्ट्रीट पर लड़कियों को छेड़ने का कार्यक्रम आराम से चल जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से पुलिस वालों ने हमारे इस कार्यक्रम में रुकावटें डालनी शुरू कर दी हैं. पहले ऐसा ऐसा नहीं होता था. हुआ यूँ कि दो साल पहले यहाँ के चीफ मिनिस्टर की बेटी को मेरे जैसे किसी यंग लडके ने छेड़ दिया. बस, फिर क्या था. उसी साल से पुलिस वहाँ भीड़ में सादे ड्रेस में रहती है और छेड़-खानी करने वालों को अरेस्ट कर लेती है. मुझे तो उस यंग लडके पर बड़ा गुस्सा आता है जिसने चीफ मिनिस्टर की बेटी को छेड़ा था. उस बेवकूफ को वही एक लड़की मिली छेड़ने के लिए. पिछले साल तो मैं भी छेड़-खानी के चलते पिटते-पिटते बचा था.

नए साल पर हम लोग कोई काम-धंधा नहीं करते. वैसे तो पूरे साल कोई काम नहीं करते, लेकिन नए साल में कुछ भी नहीं करते. हम अपने दोस्तों के साथ ट्रक में बैठकर पिकनिक मनाने जरूर जाते हैं. पिकनिक मनाने में कोई बहुत दिलचस्पी नहीं रहती मेरी लेकिन चूंकि वहाँ जाने से शराब पीने में सुभीता रहता है सो हम खुशी-खुशी चले जाते हैं. एक ही प्रॉब्लम होती है. पिकनिक मनाकर लौटते समय एक्सीडेंट बहुत होते हैं क्योंकि गाड़ी चलाने वाला ड्राईवर भी नशे में रहता है.

नेटाली, क्रिसमस और नए साल को हम ऐसे ही मनाते हैं. तुम्हें और किसी चीज के बारे में जानकारी चाहिए, तो जरूर लिखना. मैं तुम्हें पत्र लिखकर पूरी जानकारी दूँगा. अगली बार अपना एक फोटो जरूर भेजना.

तुम्हारा,
बापी

पुनश्च: अगर हो सके तो अपने पत्र में यीशु के बारे में बताना. मुझे यीशु के बारे में जानने की बड़ी इच्छा है, जैसे, ये कौन थे?, क्या करते थे? ये क्रिसमस कैसे मनाते थे?

6 comments:

  1. हमारे यहां भी लड़के लोग कुछ ऐसे ही क्रिसमस मनाते हैं। बल्कि यहां तो सर्वधर्म समभाव भी है। सारे त्यौहार आप की जैसी स्टाइल में ही मनाए जाने लगे हैं। मैं तो असमंजस में था कि इन्हें ये ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ? अब पता लगा, यह तो आप के कलकत्ता से आयात हुआ है। आजकल दिक्कत यह भी है कि माल पर मेड-इन का मारका ऐसा लगा होता है कि कम्प्यूटर में घुसाए बिना पढ़ नहीं सकते। शुक्रिया जी जानकारी के लिए।

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  2. बंधू
    ये लो हम तो समझे थे की आप भी आज मुखोटा लगाये पार्क स्ट्रीट पर छेड़ छाड़ कर रहे होंगे (हर शरीफ इंसान येही करता है....साँप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती..आप समझ रहे हैं न मैं क्या कह रहा हूँ...???) लेकिन आप ने तो हमारी धारणा को बिल्कुल ही चकनाचूर कर दिया. आप तो हमारी तरह ऑफिस में बैठे ब्लॉग लिख / देख रहें हैं. जो लोग अपना जमाना भूल जाते हैं वो ही इसतरह के लेख लिखते हैं....ग़लत कह रहा हूँ तो मान हानि का मुकदमा ठोकिये न हम पे...
    नीरज

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  3. बापी जी के "पुनश्च:" का उत्तर मिल जाये तो जरा हमें भी बता दीजियेगा। बस यूंही कौतूहल है! :-)

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  4. सॉरी-सॉरी , पार्क स्ट्रीट से लौटने में जरा देर हो गई इसलिए जरा देर सी देखी यह पोस्ट अपन ने।
    मज्ज्जा आ गया बावा, क्या भीड़ थी पार्क सट्रीट में एक्दम वैसीच जैसा आपने इधर लिखा है, अपन तो किसी सादी वर्दी वाले की नज़र में नई आए और "एंजॉय" करके निकल लिए उधर से!!

    बॉस लिखा बढ़िया तो झमाझम है पन ऐसे ओपन मत किया करो न अपन लोगो का कुछ तो ख्याल किया करो, मजे करने के यई तो दो चार मौके मिलते है न। ;)

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  5. तुम अगर ऐसा कुछ नहीं कर सके तो वो क्या बापी दास की गलती थी. ख़ुद कुछ नहीं करने वाले लोग ऐसा ही लिखते हैं. नीरज भइया के सवालों का जवाब दो.

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  6. नेताली जी के जवाब से हमें भी अवगत कराएं

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय