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Friday, December 28, 2007

धमकी पुराण


@mishrashiv I'm reading: धमकी पुराणTweet this (ट्वीट करें)!

एक दिन वामपंथी हिसाब लगाने बैठे. इस बात का नहीं कि नंदीग्राम में उन्होंने क्या किया बल्कि हिसाब इस बात का कि उन्होंने साल २००७ में कितनी बार कांग्रेस और केन्द्र सरकार को धमकी दी. हिसाब लगाकर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि साल २००७ में बड़े नेता, छोटे नेता, महत्वपूर्ण नेता, बेकार नेता सभी नेताओं की धमकी को मिलाकर कुल तीन हजार सात सौ सत्ताईस धमकियाँ दी गईं. वामपंथियों ने अपने प्रदर्शन पर संतोष जाहिर किया. वे अपने प्रदर्शन पर प्रस्ताव पारित करने ही वाले थे कि एक नेता पूछ बैठा; "हमारी इन धमकियों का सरकार के ऊपर क्या असर हुआ?"

एक वरिष्ठ नेता ने बताया; "असर की देखें, तो कोई असर नहीं हुआ. और फिर हमारी धमकियों से कोई असर हो, ये जरूरी नहीं. धमकी देने से हमें जो फायदा हुआ, केवल उसके बारे में सोचना चाहिए."

"लेकिन हमने इस बात का हिसाब नहीं लगाया कि हमें इन धमकियों से क्या फायदा हुआ"; पहले नेता ने कहा.

फिर क्या था. एक कमिटी बना दी गई. उसे कहा गया कि वो इस बात का पता लगाए कि वामपंथियों को धमकियों से क्या फायदा हुआ. दो दिन बाद कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया;

हमने हमारे नेताओं द्वारा दी गई धमकियों की समग्र जांच की. अपनी जांच से हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हमने जो धमकियाँ दी थी उससे हमें सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि धमकी देने की हमारी प्रैक्टिस होती रही. कुछ और फायदे हैं लेकिन कमिटी का मानना है कि उन फायदों को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. कमिटी अपने सुझाव के तौर पर ये भी कहना चाहती है कि बदलाव के लिए हम कुछ दिनों के लिए सरकार को धमकी देना बंद कर दें.

कमिटी के सुझाव को मान लिया गया. दूसरे दिन ही वामपंथियों ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि वे नए प्रयोग के तहत अब से सरकार को धमकी नहीं देंगे. वामपंथियों की इस घोषणा से सरकार खुश हो गई. कांग्रेस पार्टी ने भी वामपंथियों की सराहना की. सरकार और पार्टी दोनों को विश्वास हो गया कि अब सरकार अपना काम शांति-पूर्वक करेगी.

अभी कुछ दिन ही बीते थे कि सरकार के कई मंत्रियों ने वामपंथियों की शिकायत करनी शुरू कर दी. एक मंत्री ने संवाददाता सम्मेलन में कहा; " पिछले पूरे एक साल से हमें वामपंथियों के धमकियों की आदत सी लग गई थी. उनकी धमकियों के बीच सरकार चलाने का अपना मज़ा था. जब भी वे धमकी देते थे तो हमें लगता था कि हम वाकई काबिल हैं जो उनकी धमकियों के बावजूद सरकार चला रहे हैं. लेकिन वामपंथियों ने धमकियों को बंद कर हमारे साथ अच्छा नहीं किया."

पत्रकार मंत्री जी के ऐसे बयान सुनकर दंग रह गए. उन्हें लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि धमकी बंद होने की वजह से भी सरकार को परेशानी हो. एक पत्रकार ने मंत्री जी से पूछा; "लेकिन आपको तो खुश होना चाहिए कि वामपंथियों ने धमकी देना बंद कर दिया. अब तो आप चैन के साथ अपना काम कर सकते हैं."

मंत्री जी ने अपनी बात का खुलासा करते हुए कहा; "असल में वामपंथी जब धमकी देते थे तो हमें जनता से बहुत सहानुभूति मिलती थी. लोग ये सोचकर संतोष कर लेते थे कि वामपंथियों के दबाव के चलते सरकार अपना काम नहीं कर पा रही है. लेकिन जब से वामपंथियों ने धमकी देना बंद कर दिया है, जनता आए दिन सवाल करती है कि अब आप अपना काम क्यों नहीं करते? अब वामपंथियों ने धमकी बंद कर दी है. अब जनता को पता चल गया है कि हम अपना काम नहीं करते, वामपंथी धमकी दें या न दें."

पत्रकारों को अबतक मंत्री जी की बात समझ में आ गई थी.

सुनने में आया है कि सरकार ने वामपंथियों को धमकी देना शुरू कर दिया है. कुछ लोगों का मानना है कि सरकार ने वामपंथियों को धमकी दी है कि; 'आपलोग सरकार को धमकी देना फिर से शुरू कर दें नहीं तो हम आपका समर्थन आपको वापस दे देंगे.'

9 comments:

  1. यह तो धमकी पुराण की प्रस्तावना है। और प्रस्तावना जबरदस्त है। जैसा कि नियम है - पुराण में १८ अध्याय होने चाहियें। उन्हे भी प्रस्तुत किया जाये। अन्यथा ’धमकी पुराण’ पीडीएफ़ फ़ाइल का डाउनलोड करने का लिन्क दिया जाये।
    इस पुराण का मंचन अभी साल भर और होना है!

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  2. लेकिन, कांग्रेस-लेफ्ट की जूतम पैजार पर आपने जो भीगा जूता चलाया है। गजब है!

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  3. हम हर्ष और ज्ञानजी दोनों से 100% सहमत है, क्या गजब का जूता मारा है जी अब इसकी अगली कड़ी तो आनी ही चाहिए। जरा बी जे पी को भी लपेटिए और गुजरात के चुनावों के बारे में क्या कहना है

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  4. प्रति वामपंथी नेता 420 धमकियां हो चुकी हैं।
    मैने कैलकुलेट किया है, सेनसेक्स की उठान का ग्राफ धमकियों के उठान के ग्राफ के आगे शर्मा कर बैठ लिया है।

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  5. अंतिम लाइने मस्त थी, आपका समर्थन वापस करते है :) मस्त.

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  6. हम अभी स्थिती का अध्ययन कर रहे है शाम को अपनी प्रतिक्रिया देगे..:)कि आप राईट है या लेफ़्ट राईट,या फ़िर काग्रेस लेफ़्ट के लिये राईट है,या लेफ़्ट काग्रेस के लिये राईट..या फ़िर लेफ़्ट लेफ़्ट के लिये राईट है या काग्रेस काग्रेस के लिये राईट,और फ़िर देश के लिये लेफ़्ट राईट है या काग्रेस राईट..अमा छोडो भी शिव जी क्या ले बैठे कहा फ़साने के चक्कर मे हो ..आपके इस लेफ़्ट राईट के चक्कर मे हम हमारा लेफ़्ट कौन सा है और राईट कौन सा और क्या वो वाकई मे राईट है या लेफ़्ट की तरह राईट है हम यही भूल गये है

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  7. बंधू
    कभी कभी आप की पोस्ट इतनी बढ़िया होती है की हम जैसे अज्ञानियों की समझ में भी आ जाती है वरना तो आप राजनीती की उठा पटक पे इतने सारगर्भित लेख लिखते हैं की सर के ऊपर से निकल जाते हैं. ये पोस्ट आप की बहुत ही गज़ब की लगी. सच में आनंद जो है सो समझो फुल ही आगया. लाल सलाम.
    नीरज

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  8. शानदार!! अंतिम लाईन्स वाकई गज़ब है।

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  9. गिल्ली डंडा से लेकर किरकिट तक कोई खेल बिना धमकी के नहीं चलता। यहां तो दोनों एक साथ चल रहे हैं। आप तो ये बताऐं कि आप की पाइंमेन से रेफरी कब परमोट हो रहे हैं।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय