Show me an example

Monday, May 5, 2008

लाईफ विदाऊट बुश, बुशेज एंड बुशिज्म? कभी नहीं.


@mishrashiv I'm reading: लाईफ विदाऊट बुश, बुशेज एंड बुशिज्म? कभी नहीं.Tweet this (ट्वीट करें)!

लीजिये, बुश बाबू ने भी कह दिया कि भारतीय ज्यादा खाते हैं. अगर कोंडोलीजा राईस ने पहले ही नहीं कहा होता तो मुझे इस बात पर शंका रहती कि बुश बाबू के पास इतनी महत्वपूर्ण और खुफिया जानकारी पहुँची कैसे? उनके अपने देश की खुफिया एजेन्सी इतनी बढ़िया तो है नहीं जो इतनी बड़ी और खुफिया जानकारी पा सके. अरे जो एजेन्सी सालों से लादेन साहेब को नहीं ढूंढ सकी, वो क्या खाकर इतनी बड़ी सूचना हासिल करेगी.

लीजिये, यहाँ भी खाने की बात आ गई. आदमी जो कुछ भी करता और बोलता है, वो खाकर ही तो बोलता है. अब अगर प्रफुल्ल पटेल जी को खाने के बारे में अनुभव नहीं रहता तो वे कैसे कह पाते कि भारतीय ज्यादा खाने लगे हैं. ओहो, लीजिये, ये प्रफुल्ल पटेल ने ही तो सबसे पहले ये महत्वपूर्ण जानकारी फैलाई कि भारतीय ज्यादा खाने लगे हैं. और हम हैं कि हाथ-पाँव धोकर बुश बाबू के पीछे पड़े हैं. अरे भइया इतना तो सोचिये कि आजतक बुश बाबू ने जो भी कहा है वे उनके अपने मौलिक विचार नहीं होते. वो तो उन्हें कोई बताता है तब जाकर बात मुंह के द्वार से बाहर निकलती है.

जब से फ्लोरिडा में मतपेटी लूटकर भाई जेब ने अपनी जेब में रखा और इन्हें राष्ट्रपति भवन पहुंचाया है तब से रेकॉर्ड है कि बुश बाबू बिना किसी के बताये कुछ बोले हों. पहले कॉलिन पावेल और रम्स्फील्ड बताते थे कि साहब ये ये बोलना है. पढ़कर याद कर लीजिये. बाद में रिचर्ड आर्मिटेज जगह-जगह घूमते और नोट तैयार करके देते कि साहब भारत जाकर ये बोलियेगा और पाकिस्तान जाकर ये. अब राईस मैडम बताती हैं तब साहब कुछ बोल पाते हैं.

ऐसा नहीं है कि साहब ने कभी कुछ मौलिक बोला ही नहीं. बोला है. लेकिन जब भी बोला, अपनी ऐसी-तैसी करवा ली है. एक बार अड़ गए. सेक्रेटरी को बोले; "आज मैं अपनी सोच वाली मौलिक बातें बोलूँगा. ये राईस ने जो भी भेजा है, उसे वापस कर दो." जानते हैं क्या बोले? जॉन हावर्ड को ऑस्ट्रिया का प्रधानमंत्री बता डाला. एक बार आर्थिक सलाहकारों ने लिख कर दिया कि क्या बोलना है. सलाहकारों को डपट दिए. और भाषण में अर्थशास्त्रियों के सामने नया खुलासा कर डाला. बोले; "अमेरिका में जो कुछ भी इंपोर्ट होता है, सब बाहर के देशों से आता है." अर्थशास्त्री सुनकर हैरान. तुरंत नोट बनाने लगे.

साहब के कहने का मतलब था कि देखो, हम अमेरिकी कितने इंटेलिजेंट हैं. जो कुछ भी इंपोर्ट करते हैं, सब बाहर के देशों से करते हैं. और चीन और भारत टाइप देशों को देखो. जो कुछ भी इंपोर्ट करते हैं, सब अपने देश के भीतर से ही कर डालते हैं.

सुनने में तो यहाँ तक आया है कि नटवर सिंह के समय में भारतीय विदेश मंत्रालय के दस आला अफसर इस बात के लिए तैनात किए गए थे कि वे रोज बुश साहब के कार्यालय को याद दिलाते रहें कि मुशर्रफ साहब पाकिस्तान के राष्ट्रपति हैं. इन अफसरों की नींद हराम रहती थी. इन्हें डर था कि कहीं ऐसा न हो कि मुशर्रफ साहब अमेरिका जाएँ तो बुश बाबू उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बता डालें.

लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई. बुश बाबू के इस वक्तव्य पर इतनी हाय तौबा क्यों मची है? एक तरफ़ तो हम अपने ही नेताओं को एक दम सीरीयसली नहीं लेते. दूसरी तरफ़ बुश बाबू की बातों को लेकर बैठ गए हैं. भाई बुश जी ने क्यों ऐसा कहा किसे पता? उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. अफगानिस्तान से लेकर इराक तक, सूडान से लेकर लोहबान तक (लोहबान नाम का देश न हो तो पाठक क्षमा करें, लोहबान सुनकर लगता है कोई तेल वाला देश होना चाहिए), सब जगह नाक घुसाए बैठे हैं.

उनके ही देश की मीडिया पिछले एक साल से उनकी ऐसी-तैसी कर रही है. लोगों में उनके द्वारा किए गए कारनामों को लेकर असंतोष व्याप्त है. अब ऐसे में कोई इंसान बोलेगा तो कुछ भी बोल सकता है. हो सकता है बुश बाबू के कहने का मतलब हो कि; "हे भारत वालों तुम केवल खाते क्यों हो? कभी-कभी पी भी लिया करो. देखो मेरी बेटियों को. केवल पीती रहती हैं. पीने से बड़ा फायदा है. आटा, चावल, दाल वगैरह की रक्षा होती है."

एक और बात को लेकर मन में शंका है. ऐसा तो है नहीं कि भारतीय पिछले दो महीने से ज्यादा खाने लगे हैं. खाने का ये सिलसिला तो सालों से चल रहा होगा. फिर ये बात आज क्यों सामने आ रही है. सुना है अमेरिका हर डेढ़ घंटे पर एक खुफिया उपग्रह अन्तरिक्ष में रख आता है जो पता लगाते हैं कि पूरे संसार में क्या हो रहा है. किसके घर में नई बनियान खरीदी गई है. किसके घर में नया टीवी आया है. किसके घर में पानी की बोतल टूट गई है. और तो और, रात दिन चाँद-सूरज और मंगल-शनि तक को चैन से बैठने नहीं देते. रोज बिना नागा यान दौड़ाते रहते हैं. रोज धमकी टाइप देते रहते हैं कि बस एक साल और रुको, हम मंगल ग्रह के सारे रहस्यों पर से परदा तो क्या धागा तक खींच के उतार देंगे. फिर ऐसा कैसे हो गया कि पृथ्वी लोक में आने वाले खाद्यान्न संकट का अनुमान नहीं लगा सके.

इतने इंटेलिजेंट वैज्ञानिक हैं इनके पास. अर्थशास्त्रियों की तो फौज है. फिर खाद्यान्न संकट के बारे पता क्यों नहीं लगा सके? कहीं ऐसा तो नहीं है कि खाद्यान्न वगैरह के बारे में स्टडी के लिए अब नेताओं को तैनात कर दिया है? वैसे मुझे लगता है कि आने वाले संभावित खाद्यान्न संकट के बारे में अमेरिका पता लगा लेता, इसका चांस बहुत कम है. आख़िर करोड़ों कम्यूटर और लाखों मैनेजर जब सबप्राईम का संकट नहीं ताड़ सके तो पूरे विश्व के संभावित खाद्यान्न संकट के बारे में क्या पता लगाते.

तो जी, मेरा कहना केवल इतना है कि नेताओं को गंभीरता से न लिया जाय. फिर नेता चाहे भारत का हो, अमेरिका का या फिर पोलैंड का. आख़िर आप ही सोचिये न. अगर बुश बाबू को विश्व अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी हो जायेगी तो फिर उनके देश के अर्थशास्त्री क्या करेंगे? वैसे ही प्रफुल्ल पटेल जी को भारतीयों के खाने की आदतों की जानकारी हो जाए, तो पटेल साहब के अपने खाने का क्या होता? इसलिए आराम से खाईये और खूब खाईये. बुश क्या कहते हैं और राईस क्या कहती हैं, इसके बारे में सोचकर नींद क्यों हराम करें.

15 comments:

  1. ये क्या बताय रहे है जी,हम को तो बस पिछले छै महॊना ते जे बहुराष्ट्रीय कंपनी वाले बरगरलाये हूये हते ,कि जे बरगर खाओ,ठंडा पियो जे सस्ता है ,हम तो बस वई खाय रये हते हमको मालूमै नही की वो बुश साहब को खानो हतॊ, भाई हम तौ कल्लै से घर मे बोल दिये है की देसी खायेगे जी और कूछ बासी वासी बच जाय तो जानवरन को ना डार के बुश साहब को भिजवाय दे :)

    ReplyDelete
  2. सही कहा जनाब आपने.
    ये बुश टाइप के लोग होते ही ऐसे है.
    अपना कुछ दिखता संभालता नही है और दूसरे के फट्टे मे टांग अडाते रहते हैं.
    क्या करे बेचारे मजबूर जो ठहरे.
    और हाँ ये आपने बिल्कुल सही कहा कि " हमारे देश में सब यही से इंपोर्ट होता है अमेरिका कि तरह बाहर के देश से नही"

    ReplyDelete
  3. भाई हम तो बुश से सहमत है भूल गये बेकद्रो वो दिन जब भूखे पेटो को अमेरिका के सुअरो का गेहू दिया था साथ में गाजर घास मुफत में दी । इन्‍तजार करो एहसानफरामोसो अब की बार तुम्‍हारा राम तेल न बनाया तो देखना

    ReplyDelete
  4. आज के बिजनेस स्टेण्डर्ड में आंकड़े हैं कि भारत में खाद्यान्न की खपत (मिलियन टन के अनुसार) एक साल में 2.17% बढ़ी है। अगर सालाना जन संख्या बढ़त की दर देखी जाये तो एक आदमी अब पहले से कम खा रहा है।
    पर यह आंकड़ों का खेल है। असल बात यह है कि हमारी हरित क्रांति सस्टेन नहीं कर रही और अत्मनिर्भरता खतम हो गयी है। लिहाजा भविष्य में और प्रवचन मिलने हैं बुश जैसों से।
    हमने बचपन में पीएल 480 खाया है। बुश जी का क्या बुरा मानना।
    आज से एक रोटी कम खाने की सोचें। :)

    ReplyDelete
  5. इनको क्या गम्भीरता से लेना जी...इन्हे ही नहीं पता भारत आखिर है कहाँ, ज्ञाता होते तो नेता होते?

    ReplyDelete
  6. बुश अपने चरित्र के अनुकूल बुसी हुई बातें छोंक रहे हैं . प्रभाष जी ने एक बार पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति
    अल गोर के लिए लिखा था 'अल गोर,अज्ञान घनघोर'. बुश का अज्ञान तो गोर से भी घनघोर है .

    एक बहुत छोटे वर्ग को छोड़ दें तो भारत में लोगों की आय बढने के बावजूद औसत आदमी का स्टेपल डाइट पर / दैनिक खाने पर खर्चा घटा है . न्यूट्रीटिव वैल्यू कितनी घटी है यह तो और भी स्पष्ट है . मध्य वर्ग जितना खाता है उससे ज्यादा तो उसकी गाड़ी पीती है . उसकी गाड़ी पेट्रोल कम उसका खून ज्यादा पीती है . और रही बात भारत और अमेरिका की तुलना की तो अमेरिका के एक आदमी का औसत 'कनज़म्प्शन' हमसे बारह-चौदह गुना ज्यादा है . जितने में वहां के एक आदमी की समाई है उतने में हमारे बारह-चौदह आदमी अपनी इच्छा-पूर्ति कर लेते हैं . उनकी जनसंख्या की एक प्रतिशत वृद्धि हमारी दस-बारह प्रतिशत वृद्धि से ज्यादा घातक है क्योंकि वह संसाधनों का ज्यादा उपभोग करती है .

    पर बुश का अपना अर्थशास्त्र है जिसमें सबसे ज्यादा कृपा भारत और चीन पर है . चीन पर जोर नहीं चलता . उसके लिए भारत है .

    शिव भाई! बहुत अच्छा लिखा है

    ReplyDelete
  7. ये तो सरासर ग़लत बात है, अन्याय है भाई.अब देखो अपने देश का काम धंधा छोड़ बेचारे बुश बाबा और राईस माता सारे दुनिया के देशों की हर तरह की गंदगी साफ करने मे लगे हुए हैं.ध्यान से देखो दिनों दिन बेचारे चिंता मे कैसे दुबले हुए चले जा रहे हैं.हमारे लिए उन्होंने भात खाना छोड़ सिर्फ़ मैदे की डबलरोटी और दारू से काम चलाना शुरू कर दिया है और तुम हो कि उन्ही की खिंचाई कर बैठे.अरे देखो तो वे सर्वज्ञ,सर्वसमर्थ और दुनिया का भला चाहने वाले लोग हैं, सो हमे अपना समझ हमारे भले के लिए कह दिया कि भाई आप तीसरी दुनिया के भूखे नंगे लोग अपनी खुराक घटाइए और देश बचाइए.इसके लिए तो वे धन्यवाद के पात्र हैं,इसमे बुरा मानने वाली कौन सी बात है.भला चाहते हो तो कल ही माफ़ी मांग लो सार्वजनिक रूप से.बड़े दिल वाले हैं झट माफ़ कर देंगे जैसे मुस्सर्रफ साहब को माफ़ कर दिया.

    ReplyDelete
  8. अरे छोडिये, वो कहावत नही सुनी, खाये जा मजे के साथ जब तला क उधार दे" अभी तो अपना ही खा रहे हैं ।

    ReplyDelete
  9. सुबह सुबह किस आदमी का नाम ले दिया आपने-अब तो लगता है दिन भर खाना नसीब नहीं होगा.

    अपने यहाँ कहते हैं न कि बंदर का नाम या दर्शन सुबह सुबह पहले पहल कर लो तो खाना नहीं नसीब होगा.

    आज भूखा रहूँगा और कल से ज्ञान जी के साथ एक रोटी पर आ जाता हूँ. :)

    ReplyDelete
  10. इतनी लंबी छुट्टी मारना ठीक नहीं है।
    बुश को ठीक करने के लिए व्यंग्यकारों को छुट्टी अलाऊ नहीं है

    ReplyDelete
  11. छोडिये बुश जी को, उनके तो दिन अब गिने चुने रह गए हैं. अब तो मेक्केन जी की चिंता कीजिये. वैसे अच्छी ख़बर है, भारतीय मूल के बौबी जिंदल को उनका उनका डेपुटी बनाने का प्रस्ताव आया है.

    ReplyDelete
  12. कमाल है ना की आज सुबह आज तक दिखा रहा था की ब्रिटिश वैगानिको का नया शोध आया है जिसमे उन्होंने बताया है की भारतीय मूल के लोगो के जींस मे गडबडी है इसलिए वो दूसरे लोगो की अपेक्षा मोटे है .....पता नही आजकल सबको भारतीयों की अचानक चिंता होने लगी है.......बुश तो खैर पता नही इस रिपोर्ट से इत्तेफाक करे ना करे .......शुक्र है अपने मनमोहन बाबु छरचरे से है वरना वे कह देते देखिये ....उनके प्रधान्म्नात्री को.......जय हो बुश ......हिन्दुस्तान की आबादी मे भूख से मरने वाली मौतों की xerox भिज्वयो कोई उन्हें यार .....

    ReplyDelete
  13. अमेरिका में जो कुछ भी इंपोर्ट होता है, सब बाहर के देशों से आता है."
    इसे कहते है ओफिसिअल सेक्रेट बाहर आना. इतनी बड़ी बात सार्वजनिक हो गयी तो थू थू तो होनी थी.
    बहुत बढ़िया आप ने लिखा है. अब आप तो क्या है की हमेशा ही बढिया ही लिखते हैं , बल्कि लिखने से पहले लगता है की शपथ लेते हैं की मैं बढिया ही लिखूंगा और बढिया के सिवा कुछ नहीं लिखूंगा...अब बढ़िया इंसान हैं, तो बढ़िया ही लिखेंगे इसमें आश्चर्य भी क्या है? अब आप एक बढ़िया सी बात सुने. ऐसा करें की अपनी पोस्ट को एक पुस्तक का रूप देदें. आईडिया बहुत बढ़िया है बंधू, अगर किसी ने उड़ा लिया तो वो बढ़िया कहलायेगा दुनिया में और आप टापते रह जाओगे. कहिये तो किसी बढ़िया से प्रकाशक से बात करें यहाँ मुम्बई में? किसी बढ़िया से इंसान से विमोचन में भी कर देंगे...सब काम बढ़िया होगा...आप बढ़िया सा धन खर्च कर देन बस.
    (हम क्या लिख गए हमें ख़ुद नहीं मालूम लेकिन क्यूंकि हमने लिखा है तो बढिया ही लिखा होगा ऐसी भ्रांति पाल लेते हैं...अब इस से बढिया कमेन्ट की उम्मीद हम से मत करना भाई.)
    नीरज

    ReplyDelete
  14. थोड़ा देर से पहुँचा,
    लेकिन तब तक तो आप लिख कर पोस्ट भी कर चुके हैं ।
    कुछ महत्वपूर्ण स्कूप तो मेरे पास ही रह गयी ।
    उनके बिना भी पोस्टिया चौंचक है ।
    बधाई

    ReplyDelete
  15. Great information, i was searching of this kind of information, thankyou very much for sharing with us
    Ultraiso Crack
    Zwcad Crack
    Roland Cloud Crack

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय