Tuesday, December 9, 2008
टिंकू भविष्य की आशा है
@mishrashiv I'm reading: टिंकू भविष्य की आशा हैTweet this (ट्वीट करें)!
शिव कुमार मिश्र की पोस्ट पर तीन चरित्र उभरे हैं – मनोहर और उनके भतीजे रिंकू और टिंकू। मनोहर और रिंकू चिरकुट समाज की उपज और अंग हैं। ये भारत के सेल्फ-अप्वॉइण्टेड नेतृत्व हैं। टिंकू आज की तारीख में अभिजात्य है – एलीट। फ्लैटियाती (समतल होती) दुनिया का पूरा लाभ लेने वाला और तकनीकी जगत को दोहन के लिये सन्नध।
आप माने न माने, टिंकुओं की संख्या भविष्य के भारत में बढ़ने वाली है। अर्थव्यवस्था को भले ही अस्थाई सेट-बैक का सामना है, पर अंततोगत्वा भारत का उच्च मध्यवर्ग बढ़ने वाला है।
टिंकू चाहे मनोहर चाचा का सम्बन्धी हो या रहमान या रुस्तम अंकल का। पर बम्बई की घटनाओं ने यह अहसास उसको करा दिया है कि वह सेफ नहीं है। आतंक की नजर में अब चिराग दिल्ली, डोम्बीवली, महरौली या दन्तेवाड़ा ही नहीं, ओबेराय और ताज भी हैं। एलीट का सेफ्टी-आइसोलेशन भरभरा कर ढ़ह गया है।
एक तरीके से यह अच्छा ही हुआ है। टिंकू के अगले चुनाव में वोट डालने की सम्भावनायें बढ़ गयी हैं। टिंकू बेहतर मीडिया मैनेजमेण्ट से आतंक के खिलाफ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय जनमत मोबिलाइज करने में सन्नध हो गया है। टिंकू अब तक मोमबत्ती जला कर अपने दायित्व से मुक्त हो जाता था, अब वह बत्ती के वैकल्पिक उपयोग करने के मोड में आ रहा है।
टिंकू पहले इस देश से कट लेने, अमरीके जा कर बस लेने की सोच लेता था। पर अब उत्तरोत्तर यहीं रहने और यहां की समस्याओं से दो-चार होने की सोचेगा। कित्ते टिंकू अमरीके जायेंगे? उच्च मध्यवर्ग अगर बढ़ना है तो भारत और भारत की समस्याओं से जूझे बिना निजात नहीं है।
मनोहर और रिंकुओं से मुझे ज्यादा आशा नहीं है। ये दोनो बड़ा बड़ा बोलते पर प्राइवेटली करते अपोजिट हैं। रिंकू के मां-बाप और रिंकू तो दहेज की आशा में गदगद हुये जा रहे हैं, भले ही कहते हैं कि उनकी कोई डिमाण्ड नहीं है। उसी दहेज से उनका तरण होना है। ये फटीचर आदर्शवाद बूंकते हैं, पर अपनी कुण्ठा और अपनी लार से लाचार हैं।
अब मुझे आशा टिंकू और उसके (उत्तरोत्तर) बाकी समाज से घटते आइसोलेशन से है।
पोस्ट पर रीविजिट: कौन मनोहर है, कौन रिंकू और कौन टिंकू; इस पर मारपीट हो सकती है। बहुत से हैं जो मनोहर/रिंकू/टिंकू नहीं हैं। मेरे बचपन से अब तक भारत ने वास्तविक अर्थों में प्रगति की है। यह सब मनोहरों के बावजूद हुई है। अनेक टिंकूगण अपनी अभिजात्य स्नॉबरी में इतराते रहे हैं, पर बहुतों ने मौलिक योगदान भी किये हैं।
आगे की पीढ़ी के बारे में सार्थक बात पाठक लोग करेंगे।
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मनोहर, रिंकू और टिंकू को लेकर आपने बड़ी ही गहन और सार्थक चर्चा की है.
ReplyDeleteआने वाले समय में भी तीनों रहेंगे: मनोहर, रिंकू और टिंकू-..टिंकू के प्रयास की गति बढ़ेगी और मनोहर और रिंकू इन प्रयासों की गति धीमी करते रहेंगे-रोक तो खैर क्या पायेंगे..बस, संभावनाऐं इसी में ज्यादा हैं कि रिंकू टू टिंकू कनवर्जन स्पीड कितनी बढ़ती है.
अच्छा आलेख.
पोस्ट पर रीविजिट: कौन मनोहर है, कौन रिंकू और कौन टिंकू; इस पर मारपीट हो सकती है।
ReplyDelete" ये तो बडी गम्भीर समस्या लगती है, हमने तो सोचा था की इनके बारे मे आपसे ही पूछेंगे , मगर अब लगता है खामोश रहना ही बेहतर है"
regards
इसपर नज़र मारा जाये.
ReplyDeleteअभी तो जिसे आप उच्च मध्यवर्ग कह रहे हैं वह उच्च-मध्यवर्ग है भी या नहीं?
ReplyDeleteमुझे तो सब एक दुसरे में गुंथे हुए लग रहे है. मनोहर, रिंकू और टिंकू के गुण सब में कम ज्यादा है.
ReplyDeleteएक पुरुष यदि स्त्री का शोषण करे तो सारी पुरुष बिरादरी को बदनाम नही किया जा सकता..
ReplyDeleteएक स्त्री अगर चरित्रहीन हो तो समस्त स्त्री जाति को बदनाम नही किया जा सकता..
ठीक यही नियम टिन्कू केटेगरी पर भी लागू होता है..
एक टिन्कू को आधार मानकर सारे टिन्कुओ को बदनाम नही किया जा सकता..
वैसे आप कौनसी केटेगरी से है?? टिन्कू रिंकू या मनोहर अंकल ???
सच तो यही है कि "टिंकू" जमीन और समाज से कटा हुआ है… और साथ ही "कन्फ़्यूज़्ड" भी…
ReplyDeleteयही टिंकू हमारी भी आशा है...ओर हमें ऐसा लगता है जैसे इस बार वोटर कार्ड का भी इस्तेमाल होगा ,कम से कम लोकसभा चुनाव में .....कई टिंकू जो अमेरिका या किसी दूसरे देश में कई बार मुझे ज्यादा जुड़े नजर आते है इस देश से ....भले ही भावनात्मक रूप से ही
ReplyDeleteहम वहाँ आपको ढूँढ ढूँढकर परेशान थे . आप यहाँ टिन्कू के पास बैठे हैं . चलो टिंकू ने आपको आज साझे में सक्रिय तो किया :)
ReplyDeleteएकदम सही सटीक और सार्थक व्यंग्य आलेख.पूर्ण सहमत हूँ.
ReplyDelete"टिंकू के अगले चुनाव में वोट डालने की सम्भावनायें बढ़ गयी हैं।" ये संभावना अगर क्षेत्रीयता, जातिवाद जैसे मुद्दों से ऊपर उठकर बृहद मुद्दों पर केंद्रित हो तो काम बन जाए !
ReplyDeleteभारत के कुल मानव संसाधन के सापेक्ष टिंकुओं की संख्या कितनी होगी? शायद एक प्रतिशत से भी कम। और हम उन्हीं पर दाँव लगाए बैठे हैं। वह भी जब ये मन्दी की मार से भारतीय जमीन पर उतरने को मजबूर हुए हैं। देश के मनोहर चाचा लोगों को उन रिंकुओं और अन्य वंचित युवाशक्ति को अधिकाधिक अवसर देने के बारे में योजना बनाकर उसका क्रियान्वयन करना होगा जो संसाधन और अवसर के अभाव में कुन्द, हताश, विचलित या पथभ्रष्ट होते जा रहे हैं।
ReplyDeleteकुछ-कुछ जोशी जी के इर्द-गिर्द घूमता सा लग रहा है, मुझे. मजा आया.
ReplyDeleteइस पोस्ट के हिंदी अनुवाद का इंतजार है ताकि बूझ सकें।
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ReplyDeleteअब आगे टिंकू.. रिंकू.. एवं मनोहर पर एक अलग अलग पोस्ट और दे डालें,
तो इस पोस्ट की सार्थकता में इज़ाफ़ा हो जायेगा !
चर्चा बहुत सार्थक है. अभी तक इस जनतंत्र को मनोहर, रिंकू ही चलाते रहे हैं. खुशी है कि टिंकू को भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ. देर आयद, दुरुस्त आयद!
ReplyDeleteकौन मनोहर है, कौन रिंकू और कौन टिंकू; इस पर मारपीट हो सकती है। बहुत से हैं जो मनोहर/रिंकू/टिंकू नहीं हैं।
ReplyDelete... बहुत प्रसंशनीय लेख है, मजा आ गया।