Show me an example

Tuesday, December 23, 2008

दुर्योधन की डायरी - पेज १९७१


@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज १९७१Tweet this (ट्वीट करें)!

पता नहीं ये युधिष्ठिर किस तरह से राज्य चला रहा है कि इन्द्रप्रस्थ की ताकत बढ़ती ही जा रही है. इकनॉमिक फॉरम की किसी भी मीटिंग में जाओ, सारे राज्यों के शासक उसका ही गुणगान करते मिलते हैं. इन्द्रप्रस्थ में ये प्रगति हो रही है, इन्द्रप्रस्थ में वो प्रगति हो रही है. इन्द्रप्रस्थ का एक्सपोर्ट्स बढ़ रहा है. इन्द्रप्रस्थ में आर्थिक विकास हो रहा है. इन्द्रप्रस्थ का ह्यूमन कैपिटल अच्छा है. इन्द्रप्रस्थ ने भारी मात्रा में आग्नेय अस्त्रों का भण्डार खड़ा कर लिया है.

प्रगति होगी भी कैसे नहीं? ये केशव इन्द्रप्रस्थ के लिए सब जगह सिफारिश करते फिरते हैं. अपने राज्य का दबाव डालकर इन्द्रप्रस्थ वालों का भला करते रहते हैं. द्वारका से निकलने वाले सारे एक्सपोर्ट्स आर्डर इन्द्रप्रस्थ के उद्योगपतियों और व्यापारियों को मिल रहे हैं. और तो और गायों का इंपोर्ट भी इन्द्रप्रस्थ से ही करते हैं. यही हाल रहा तो हमारा तो जीना दूभर हो जायेगा.

पाँच साल हो गए मुझे इन्द्रप्रस्थ में तोड़-फोड़ की गतिविधियों को बढ़ावा देते लेकिन आर्थिक विकास है कि रुकने का नाम नहीं ले रहा. ऊपर से वहां दूसरे राज्यों से आए सैलानियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है.

अभी पिछले महीने ही अपने गुप्तचरों को भेज वहां के एक शापिंग माल में आग लगवाई थी. गुप्तचरों ने एक ही स्थान पर प्रजा के सत्तर लोगों को मार दिया था लेकिन दो दिन बाद उसका असर ख़त्म हो गया.

मामाश्री के सुझाव पर अवन्ती से सेना से रिटायर हुए कुछ अधिरथियों और महारथियों को बुलाकर गुप्तचरों को तोड़-फोड़ और आतंक फैलाने के लिए ऊंचे स्तर की ट्रेनिंग दिलवाई. इन्द्रप्रस्थ में तोड़-फोड़ करवाया. राजमहल पर हमला करवाया लेकिन ये इन्द्रप्रस्थ वाले भी बड़ी मोटी चमड़ी के लोग हैं. तोड़-फोड़ की बातों पर ध्यान नहीं देते. लगे हुए हैं अपने आर्थिक विकास को आगे ले जाने में.

मुझे वो दिन याद हैं जब हस्तिनापुर में प्रजा के बीच असंतोष व्याप्त था. कभी-कभी तो प्रजा को देखकर लगता है जैसे एक दिन राजमहल के ख़िलाफ़ ही लामबंद हो जायेगी. जब मैंने अपनी इस चिंता से मामाश्री को अवगत कराया तो उन्होंने सुझाव दिया था कि राजमहल की तरफ़ से काम करने वाले अराजक तत्वों के ऊपर आंच नहीं आए इसके लिए ज़रूरी है कि प्रजा को भी अराजकता फैलाने दिया जाय.

एक बार प्रजा के लोग ऐसी गतिविधियों में रूचि लेने लगे तो फिर राजमहल की तरफ़ से होने वाली अराजकता पर ध्यान नहीं देंगे.

मामाश्री का कहना बिकुल सही साबित हुआ. हस्तिनापुर के सीमावर्ती इलाकों में हथियारों की खरीद-बिक्री का काम पिछले कुछ सालों से जोरों पर है. बिना लाईसेंस के ही लोग आग्नेय अस्त्रों के कारोबार में लगे हैं.

मामाश्री की दूरदृष्टि गजब की है.

आजकल राजमहल के कार्यों से असंतुष्ट लोगों की आवाज़ कम ही सुनाई देती है. मज़ा तो तब आया जब हथियारों की खरीद-बिक्री में लगे कुछ लोगों को पटाकर मामाश्री ने द्वारका में ही तोड़-फोड़ करवा दिया. द्वारका में तोड़-फोड़ की इस घटना से कृष्ण बड़े गुस्से में था. धमकी तक दे डाली कि हस्तिनापुर पर ही आक्रमण कर देगा. मैंने तो दो टूक जवाब दे दिया. मैंने तो कह दिया कि तोड़-फोड़ करनेवाले लोग हस्तिनापुर के हैं, इस बात का कोई सुबूत नहीं है.

ये लोग हस्तिनापुर के नहीं हैं, इस बात को साबित करने के लिए मामाश्री ने अपने ही गुप्तचरों के द्बारा हस्तिनापुर के ही एक शापिंग माल में विस्फोट करवा दिया. ताकि केशव को विश्वास दिलाया जा सके कि हम भी ऐसे तत्वों से पीड़ित हैं.

द्वारका और इन्द्रप्रस्थ में आतंक फैलाने वाले ये लोग हस्तिनापुर के ही हैं. लेकिन मामाश्री ने सुझाव दिया कि ये अच्छा मौका है कृष्ण से पैसा ऐठने का. मामाश्री ने तो कह दिया कि अगर आतंक फैलाने वाले हस्तिनापुर के हैं तो हम उनको सज़ा देंगे लेकिन इस मामले में कृष्ण हमारी मदद करें. हमें कुछ धन वगैरह मुहैय्या करायें जिससे हम इनलोगों को पकड़ सकें. मामाश्री की बात मानते हुए कृष्ण ने बारह कोटि स्वर्ण मुद्राएं हस्तिनापुर को दी हैं ताकि अराजक तत्वों को सज़ा दी जा सके.

स्वर्ण मुद्राएं हमारे बहुत काम आ रही हैं. हम इन्हे खर्च करके अपनी गुप्तचर शाखा को और मजबूती प्रदान करने में लगे हैं.

आज ही दुशासन की देख-रेख में इन्द्रप्रस्थ पर हमले का एक प्लान फाईनल हुआ है. इन्द्रप्रस्थ में आतंक फैलाने के लिए सत्रह लोगों का एक दल कल ही वहां के लिए रवाना होगा. कुछ स्थानीय लोगों को धन का लालच देकर हमारे लोगों की सहायता के लिए राजी कर लिया गया है. प्लान के मुताबिक इस बार हमला कुछ विद्यालयों और विश्राम स्थलों पर किया जायेगा.

एक बार ये हमला नियोजित ढंग से हो गया तो फिर हमारे पास मौका रहेगा कि हम केशव से और माल ऐंठ सकें.

17 comments:

  1. भीष्म पितामाह पे डाउट हो रहा है.. मुझे तो.. पता ही नही चल रहा किसकी साइड है..

    ReplyDelete
  2. केशव भी कम चालाक नहीं है, सब जानता है, मगर अपने स्वार्थ है. दोनो ही दलों को खूश रखने में लगा हुआ है. इन्द्रप्रस्त को अपना अच्छा भविष्य दिख रहा है इस लिए युद्ध में उलझना नहीं चाहता जबकि हस्तिनापुर को खोना कुछ नहीं है.

    ReplyDelete
  3. दुर्योधन कल भी गलतफहमी में था, वो आज भी गलतफहमी में है.. वो भुल गया उसकी एक बाह कुछ साल पहले ही कट चुकि है.. इस बार सुधरा नहीं तो धड़ के टुकडे होगें..

    अंत तय है..

    ReplyDelete
  4. हस्तिनापुर वासी बहुत दुर्भाग्यशाली हैं।

    ReplyDelete
  5. क्या लगता है? दुर्योधन सफल हो जायेगा?
    लगता तो है। :-(

    ReplyDelete
  6. दुर्योधन भैय़ा सही कर रहे है . ये युधिष्ठर की ही बुद्धी घास चरने गई है जो हमेशा मानवाधिकार वेत्ता न्याय प्रिय कहला कर नोबल प्राईज के चक्कर मे देश की ऐसी तैसी कराने मे लगे है .

    ReplyDelete
  7. चलो संतोष हुआ......अभी ही हमारे और हमारे आसपडोस के देशों की यह दुर्दशा नही.... द्वापर में भी ऐसी ही स्थिति थी.
    लगता है विश्व सदैव से ऐसा ही रहा है और आगे भी ऐसा ही रहेगा,चाहे कितने भी महाभारत लड़ लिए जायें.राजनीति सदा अधर्म का पर्याय ही रहेगा, जिसकी पताका कोई नही काट पायेगा...

    बहुत सही कटाक्ष किया है तुमने.

    ReplyDelete
  8. मिश्राजी बहुत जोरदार व्यंग लिखा है ! पर मैं समझता हू कि ना तो दुर्योधन मानने वाल है और ना युधिष्ठर कुछ करने वाले हैं ! दुर्योधन अपनी कुचाले चलता रहेगा और धर्मराज युधिष्ठर अपनी ध्य़ुत क्रीडा मे मग्न रहेंगे !

    अभी तो उल्टे दुर्योधन दादा ने ही अटेक करने का प्लान कर लिया और उसके हवाईजहाज भी चक्कर लगा रहे हैं ! क्या पता ससुरा फ़िर से महाभारत रचवा दे ? कोई भरोषा नही है ! अबकी बार अन्य सल्तनतों का दबाव बढ गया दिखता है !

    रामराम!

    ReplyDelete
  9. दुर्भाग्य से हमारी रीढ की हड्डियां गल चुकी हैं, अब तो केशव भी हमारी मदद नहीं कर सकते.

    ReplyDelete
  10. ये दुर्योधन इसीलिए महाभारत का युद्ध हार गया...जो इंसान हमेशा डायरी लिखने में व्यस्त रहता हो वो लडेगा कब? लगता है जब युद्ध चल रहा था तब महाशय डायरी लिख रहे होंगे...इस मायने में अपना नीरो अरे वो ही रोम वाला इनके बहुत करीब था ...उसे बांसुरी बजाने का शौक था....दुर्योधन को डायरी लिखने का....दोनों का हश्र एक ही हुआ... हाँ एक नाम और अपने बाजपेयी जी का जो कविता लिखते रहे और देश पर आक्रमण होता रहा...उनका भी हश्र आप देख ही चुके हैं....
    खैर ये तो हुई इतिहास की बात...एक बात साफ़ होती जा रही है की जो कुछ महाभारत काल में हुआ था वो ही अब हो रहा है...याने हम आज भी वहीँ हैं जहाँ द्वापर युग में थे....याने हम नहीं बदलेंगे...सिर्फ़ नाम बदलेंगे...क्रियायें वो ही करेंगे...धन्य हैं हम.
    नीरज

    ReplyDelete
  11. मुझे इस डायरी पेज के फ़र्जी होने का शक है. क्या वाकई दुर्योधन स्वयं इतना शक्तिशाली है? हमने तो सुना है कि हस्तिनापुर में सत्ता के कई केन्द्र हैं. गुप्तचर विभाग किसी की नहीं सुनता. सेना का अपना अलग एजंडा है. और सबसे ऊपर एक ग्लोबल अधार्मिक संगठन कार्य करता है. खैर उसका हाल शायद आप नहीं बता पायेंगे.

    ReplyDelete
  12. दुर्योधन कभी "सुयोधन" ना बन पायेगा - अन्यथा "महाभारत " की "जय गाथा " का स्वरुप ही ना बदल जायेगा ?
    वेद व्यास जी भी लाचार हैँ ! :-(
    -सर्प विषाक्त ही रहेगा -
    और हँस को ऊँची उडान भरनी होगी मानसर तक की -
    यही नैसर्गिक सत्य हैँ
    - लावण्या

    ReplyDelete
  13. युधिष्ठिर को उठा कर फ़ेकॊ, इस की जगह भीम को या अर्जुन को बिठाओ..... जब से यह युधिष्ठिर बेठा है तभी से दुर्योधन ओर उस की बुआ जो युधिष्ठिर को नचा रही है ताकत वर बन बेठे ओर हस्तिनापुर शक्त्ति शाली होते हुये भी पंगु बन गया !! है केशव इस युधिष्ठिर ओर वो नकचढी बुआ को निकालो वरना यह शक्त्ति शाली हस्तिनापुर तबाह ना हो जाये !!!
    राम राम जी की

    ReplyDelete
  14. बहुत बढ़िया !
    घुघूतीबासूती

    ReplyDelete
  15. दुर्योधन बेचारा जरदारी बना परेशान है।

    ReplyDelete
  16. इन्द्रप्रस्थ वाले या तो सोते रहेंगे या युद्ध करेंगे .और कुछ इन्हें आता ही नहीं .

    ReplyDelete
  17. कलयुग के केशव से इन्द्रप्रस्थ वाले कोई उम्मीद न करें तभी अच्छा है। यह दोनों को लड़ाकर अपने मजे करेगा।

    युधिष्ठिर अपनी राह खुद चेतें और दुर्योधन को तैयारी का और मौका न दें। मान-मनौवल बेनतीजा ही रहेगी।

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय