हर देश के अपनी रीति-रिवाज़ होते हैं. मुझे तो आज ही पता चला कि ईराक में परंपरागत रिवाज़ के अनुसार ईराक वाले 'गुडबाय किस' देने के लिए जूते फेंककर मारते हैं. बढ़िया परम्परा है. अपने देश में जूता शादी-व्याह में चुराकर कर पैसा वसूल करने के काम आता है या फिर हनुमान जी के मन्दिर के सामने चुराए जाने के. एक बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा में मार-पीट के काम आया था लेकिन उसके बाद हमारे विधायक इस परम्परा को आगे नहीं ले जा सके.
आज अखबार में पढ़ा और टीवी पर देखा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के नए राज्य ईराक में किसी पत्रकार ने जॉर्ज बुश के ऊपर जूते फ़ेंक कर 'गुडबाय किस' देने की कोशिश की. ईराक का पत्रकार था, लिहाजा निशाना बिल्कुल सही था. लेकिन जॉर्ज बुश ठहरे अनुभवी आदमी. साल २००० में जब राष्ट्रपति पद के लिए शपथ लेने जाने वाले थे उसी समय इनके पिताश्री ने ईराक की मिसाईलों से बचने की ट्रेनिंग दी थी. लिहाजा बुश बाबू फेंके गए जूते को डाज कर गए. वे फट से अपना सर झुका गए.
ऐसे मौकों पर सिर झुकाना श्रेयस्कर रहता है.
पत्रकार को जूते फेंककर मारने का अधिकार है और राष्ट्रपति बुश को उससे बचने का. इसी को लोकतंत्र कहते हैं.
खैर इस घटना पर देश-विदेश के नेताओं और श्रेष्ठजनों ने अपने-अपने वक्तव्य दिए. पेश है उन्ही वक्तव्यों में से कुछ चुनिन्दा वक्तव्य.
लालू प्रसाद जी: "हम त पहिले ही कह रहे थे कि बजरंग दल और आरएसएस वाले ऐसा कुछ करने के फिराक में हैं. इनलोगों के ऊपर बैन लगना चाहिए. हमें पता है कि ये पत्रकार बजरंग दल का है."
लालकृष्ण आडवानी: "हमारा मानना है कि पोटा जैसे कानून फ़िर से लाने की ज़रूरत है. अगर कठोर कानून नहीं लाये गए तो इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी."
शिवराज पाटिल: "हम इस घटना की 'निर्भर्त्सना' करते हैं. हमें राष्ट्रपति बुश के परिवार के साथ सहानुभूति है. आई बी की रिपोर्ट थी कि जूते फेंके जा सकते हैं लेकिन पत्रकार कौन से पाँव का जूता फेंकेगा, इसके बारे में जानकारी नहीं थी. ऐसे में इस तरह की घटनाओं को रोकना कठिन हो जाता है......."
अमिताभ बच्चन: "अब देखिये जो हो गया उसे भूल जाना चाहिए. हमें याद रखना चाहिए कि बुश भी इसी दुनियाँ में रहेंगे और वो पत्रकार भी.....पूज्यनीय बाबू जी कहा करते थे कि आदमी को भविष्य की और देखना चाहिए. मुझे उनकी कविता याद आ रही है; "जो बीत गई वो बात गई...."
प्रकाश करात: "ये घटना साम्राज्यवाद के मुंह पर जूता है. हमें तो इस बात का पछतावा है कि केवल एक पत्रकार के पास जूता था. हम चीन की सरकार से कहेंगे कि वे सस्ते जूते बनाकर ईराक के पत्रकारों को मुहैया करवाए जिससे आने वाले दिनों में ज्यादा जूते फेंके जा सके."
बाबा रामदेव: "राष्ट्रपति बुश ने जिस तरह से फेंके गए जूते से अपना बचाव किया उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे नियमित कपालभांति और अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते हैं...हे हे हे...बड़ी-बड़ी बीमारी ठीक हो जाती है. हमने देखा है कि ह्रदय-रोग, कैंसर जैसी बीमारियाँ भी प्राणायाम से ठीक हो जाती हैं..... हाँ..हाँ..करो बेटा...करो..."
नटवर सिंह: " ये घटना हमारे लिए अच्छी ख़बर है. अब मैं सोच रहा हूँ कि अपने पुत्र जगत सिंह को एकबार फिर से ईराक भेज दूँ. हमारे पास मौका है कि फ़ूड फॉर आयल प्रोग्राम की तरह ही हम शूज फॉर आयल प्रोग्राम में हिस्सा ले सकते हैं....."
कुलदीप नैय्यर: "इस तरह की घटनाएं विचलित ज़रूर करती हैं लेकिन हमारा मानना है कि भारत और पकिस्तान एक दिन फिर से एक देश हो जायेंगे. जूता फेंकने की ये घटना दोनों देशों की दोस्ती के आड़े नहीं आएगी...."
अटल बिहारी वायपेयी : "राजधर्म नहीं निभाना लोकतंत्र में अच्छी बात नहीं है....केवल राजधर्म निभाना ही ज़रूरी नहीं है...काजधर्म निभाना भी उतना ही ज़रूरी है....मेरी इस बात को ध्यान में रखते हुए पत्रकार ने अपना 'काजधर्म' निभाया...मैंने आज ही एक नई कविता लिखी है;
गीत नया गाता हूँ, मीत नया पाता हूँ
'गुडबाय किस' देने का धर्म निभाता हूँ
हार नहीं मानूंगा, रार भी मैं ठानूंगा
बुश के कपाल पर जूता बरसाता हूँ
गीत नया गाता हूँ....
अर्जुन सिंह: " मैं ईराक की संसद में ये मुद्दा उठाऊंगा कि केवल जूते फेंककर मारने की इजाजत न दी जाए. मैं संसद में ऐसी घटनाओं के लिए चप्पल और सैंडिलों, जिन्हें दलित वर्ग का समझा जाता रहा है, के लिए सत्ताईस प्रतिशत का आरक्षण देने की अपनी मांग रखूंगा... मेरा विचार है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस पत्रकार को मुक़दमा लड़ने के लिए धन मुहैय्या करवाए..हम उसे धन ज़रूर देंगे ताकि वो अपना बचाव कर सके,
सद्दाम हुसैन: "बुश ने ईराक में कुर्दों की तरह रेबेल होने का काम किया. पत्रकार की जगह मैं होता तो बुश के ऊपर पॉँच टन नर्व गैस फेंक मारता..."
कार्ल मार्क्स: "ये एक ऐतिहासिक घटना है जो एक न एक दिन होनी ही थी...."
मार्टिन लूथर किंग: "मैं एक ऐसे ही विश्व की कल्पना करता था जहाँ हर पत्रकार जूते फेंक कर मारने के लिए स्वतंत्र हो...."
जॉर्ज बुश सीनियर: " हमारी कोशिशों की वजह से ईराक में इतनी डेमोक्रेसी आ गई कि पत्रकार भी शासकों के ऊपर जूते फेंक सकते हैं. सद्दाम के रहते ऐसा नहीं हो पाता...."
मनेका गाँधी: "हमने पता लगा लिया है कि फेंका गया जूता चमड़े का था. इसका मतलब किसी एक जानवर को मारकर उसका चमड़ा इस्तेमाल किया गया होगा. हम इस पत्रकार के ख़िलाफ़....."
अमर सिंह: "इस पत्रकार को जूते खरीदने के लिए मैंने पैसा नहीं दिया. माननीय मुलायम सिंह जी ने हमसे कहा होता तो हम ज़रूर उसे पैसा......"
बिल गेट्स: "हम कोशिश करेंगे कि विन्डोज़ के अगले एडिशन में हम ऐसा सॉफ्टवेर इंटीग्रेट करें जिससे जूते फेंकने से पहले सही कोण और रफ़्तार के साथ-साथ सामने वाले के सिर झुकाने के रफ़्तार का सही पता लगाया जा सके."
फिडेल कास्त्रो: "जूता फेंकने के लिए हम इस पत्रकार को एक दर्जन सिगार गिफ्ट करेंगे...."
सचिन तेंदुलकर: "जब तक ये पत्रकार जूता फेंकने को एन्जॉय करता है, इसे फेंकते रहना चाहिए...."
इमाम बुखारी: "एक काफिर के ऊपर जूते फेंकने के लिए हम इस पत्रकार को पाँच करोड़ का इनाम देंगे...."
और अंत में कुछ ब्लॉगर क्या कहते हैं....
अनूप शुक्ल जी: " सही है. मौज लेना चाहिए. फ़िर चाहे वो जूता फेंककर ही क्यों न मिले."
समीर लाल जी: " क्या जूता फेंका है. इसके लिए उस पत्रकार को साधुवाद और बधाई."
आलोक पुराणिक जी: "क्या केने... क्या केने...जमाये रहिये जी.."
डॉक्टर अनुराग आर्य: "रेड लाईट के पास वाले फुटपाथ पर जो जूते मिलते हैं, उन्हें फेंकने में आसानी होगी..."
कुश: " इस प्रहार के लिए ब्लागाचार्य के खडाऊं का उपयोग श्रेयस्कर रहता..."
प्रमोद सिंह जी: "धुंध में बटोरे गए जूतों को अकबका कर फेंकने की....पत्रकार ने सलाम सॉरी सलम वाला काम किया है..."
अजित वडनेरकर जी: "अभी कुछ कह पाना मुश्किल है. पहले मैं जूता और पत्रकार जैसे शब्दों की व्युत्पत्ति पर पोस्ट लिखूंगा उसके बाद ही इस घटना पर कोई टिप्पणी करूंगा..."
Tuesday, December 16, 2008
ब्लागाचार्य के खडाऊं का उपयोग श्रेयस्कर रहता...
@mishrashiv I'm reading: ब्लागाचार्य के खडाऊं का उपयोग श्रेयस्कर रहता...Tweet this (ट्वीट करें)!
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अभी लोग कहेंगे आप तो बहुत पहुँचे हुए हो . आखिर गुरु किसके हैं :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा और सामयिक पोस्ट ....मजेदार लगा।
ReplyDeleteहमको तो अब इस बात की चिंता सता रही है कंही सुरक्षा कारणो से यंहा प्रेस-कांफ़्रेंस मे पत्रकारो के जूते उतरवाना ना शुरू हो जाये,क्योंकी यहां बुश से बडे और जूते के ज़्यादा हक़दार लोग प्रेस-कांफ़्रेंस लेते है।इस पर तो पूरी पोस्ट ही लिखनी पड जायेगी शिव भैया।
ReplyDeleteइतना मजा़ तो जुता फेकते देख भी नहीं आया था.. बहुत अच्छा... मजा आ गया
ReplyDelete
ReplyDeleteशिव भाई, मैं तो अपना फटा जूता भी इन पर नहीं जाया करने वाला !
वैसे उसके ज़ूते के मुकाबले आपका जूता ज़्यादा सटीक निशाने पर है !
पाँव का जूता पैरों को सुकून देता है,यह तो पता था,पर यह दिल को भी ठंडक पहुंचा सकता है.......यह नया अनुभव ज्ञानवर्धक और सुखदायक दोनों रहा.
ReplyDeleteदोनों ही जूते (तुम्हारा और उस पत्रकार महोदय का) जबरदस्त ठंडक दे गए दिल को.बस अफ़सोस रह गया कि पत्रकार के पास हमारे पुरातन हिन्दुस्तानी चप्पल (खडाऊं) होते तो मजा आ जाता.
चलो , पूरे विश्व में कोई तो ऐसा निकला जिसने बुश बाबू को जूते मारने की हिम्मत की.अब यही कामना है कि मरते दम तक बुश बाबू को यह जूता सोते जागते अपनी ओर आते हुए दिखे..............
हम तो बुश बाबू की फ़ुर्ती के कायल हो गये. सचिन से भी बेह्तर डक करके वार बचा गये. सोचते हैं इनकी जगह अगर कोई भारी तोंद वाला देसी नेता होता तो क्या बच पाता. लालू, मुलायम, अमर सिंह..... डिसर्विंग केन्डीडेट्स की कमी अपने इधर भी नहीं है.
ReplyDeleteऊपर इतने लोगो की प्रतिक्रिया देखकर लगा की ब्लॉगर्स की प्रतिक्रिया भी लिखी जानी चाहिए.. नीचे उतरा तो मज़ा आ गया.. हमे तो आपको आइडिया किंग कहकर बुलाना चाहिए..
ReplyDeleteजूता फिकता देख कोई मजा नहीं आया, मगर आपकी पोस्ट मजे से भरपूर है.
ReplyDeleteये कोई मज़े-वज़े लेने वाली घटना नहीं थी। लेकिन ऐसा होता है। अक्सर होगा। हमारे नेताओं में बुश जितनी फुर्ती कहां ? इसीलिए यहां ऐसा कम होता है। वैसे भी भीड़ में कार्यकर्ता ही ज्यादा होते हैं। फिर पुलिस वाले। पत्रकार तो ये हिमाकत कभी नहीं करेंगे।
ReplyDeleteव्यंग्य हमेशा की तरह अद्भुत है। धारदार है। मजे़दार है। खबरदार भी है।
आपकी जैजैकार है।
बुश भईय्या पर एक जूता क्या चल गया ब्लोगर से लेकर हर कोई ऐरा गैरा परेशां है और वक्तव्य दे रहा है...हमारे देश में जूतम पैजार की बात सदियों पुरानी है...यहाँ तो जूतों में दाल तक बंटती देखी गयी है...और तो और "जिसका जूता उसी का सर" और "मेरा जूता है जापानी...." जैसे गीत धूम मचा चुके हैं...याने जूते खाना और जूता मारना हमारी संस्कृति का अहम् हिस्सा है और इसका प्रदर्शन हम पहला अवसर मिलते ही करते हैं...मुझे स्व.क्रिशन चंदर जी की एक कहानी याद आ रही है जिसमें एक अमीर अपने मनोइरंजन के लिए एलान करवा देता है की उस से जूता खायेगा उसे सौ रुपये मिलेंगे...दूसरे दिन उसके घर के सामने जूता खाने वालों की इतनी लम्बी लाइन लग जाती है की पुलिस को लाठी चार्ज करना पढ़ता है....
ReplyDeleteनीरज जी फरमा गए हैं की:
ज़िन्दगी में मार खाना सीखिए
और जूता भी चलाना सीखिए
हाथ गर बाटा का न लग पाए तो
जो मिले उसको चुराना सीखिए
नीरज
बहुत मंहगा हो गया है जूता। हम तो न फैंक पायें।
ReplyDeleteवैसे लेदर का था? तो रेड चीफ ही होगा! :)
क्या बात है शिव भइया !!
ReplyDelete..कुश की बात पर ध्यान दिया जाए
क्या बात है ........... मजेदार लगा।
ReplyDeleteअरे शिव जी, हिम्मत देखिये उस पत्रकार की. क्या जिगर है उसका.
ReplyDeleteपहली बात तो कद्दाफी पैलेस की खिड़कियों के पीछे से की गयी अपनी प्रायवेट टिप्पणी के शीकुमार द्वारा यहां इस तरह सार्वजनिक करने से मैं निहायत सन्न हूं, हतप्रभ हूं, हर्ट हूं, और सबसे ज्यादा ह्यूजली एजीटेटेड हूं. कद्दाफी की बेटी आयशा ने ऐसे ही शौर्यपदक की घोषणा नहीं कर दी है, मुंतधार अल-ज़ैदी को मनाने, चप्पल फिंकवाने की पूरी कहानी मुंतधार के मन में नहीं, हमारे व आयशा के इश्क़ो-जतन से परवान चढ़ी. और यह सारा, सो सीक्रेटिव बैकग्राउंड शीकुमार सुरती की तरह आराम से फांककर हजम कर गये, सोचकर फिर-फिर सन्न होने से पता नहीं बच क्यों नहीं पा रहा हूं. जबकि अनूप के इस कथन से कतई नहीं हो पा रहा हूं कि ऐसा दु:स्साहसिक कारनामा महज मौज और मज़े के लिए अंजाम दिया गया. अरे, अपने को रिपीट करने की भी एक सीमा होती है! कल को कहेंगे बेटे की पढ़ाई हमने उसके जीवन-बनवायी के लिए नहीं अपने मौज के लिए करवाया था? एनीवे, ऑल दिस शोज़ व्हाट अ पैथेटिक स्टेट हिन्दी ब्लॉगिंग इज़ स्टिल ए पार्ट ऑफ़.. अपने को रिपीट करने के ख़तरे के बावज़ूद कहने से बच नहीं पा रहा कि हद है.
ReplyDeleteएक टिप्पणी, जिसे देने की ज़रूरत मुझे महसूस हो रही है....
ReplyDelete"इस पोस्ट की वजह से अगर पाठकों को तकलीफ हुई है, तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. प्रमोद जी से क्षमा मांगता हूँ."
वाह क्या बात है जूते भी अब सर चढ़ के बोल रहे हैं -कल से ही जूतम पैजार का नजारा है !
ReplyDeleteये जूता एक आम इराकी का है ... शायद फटा हुआ ....महंगा नही हो सकता ....पर फेंकने वाला वाकई हिम्मत का पात्र है ...मै उसके जज्बे को सलाम करता हूँ...कम से कम उसमे उतनी सचाई तो है की वो वैसा ही दिखाता है जो महसूस करता है.
ReplyDeleteवाकई डाक्टर अनुराग जी से सहमत होने को जी चाहता है सौ प्रतिशत !
ReplyDeleteराम राम !
बहुत ही सटीक एवं धारदार रही आपकी यह पोस्ट्
ReplyDeleteवाहा जी वाह !
ReplyDeleteमैं तो ये सोच रहा था की अर्जुन सिंह होते तो २ घंटे में भी ना झुक पाते :-) हमारे यहाँ कोई ऐसा पत्रकार क्यों नहीं ! ससुर ब्रेकिंग न्यूज़ बटोरने में लगे रहते हैं कभी ऐसे किसी को ब्रेक करने की कोशिश करते तब असली पोपुलारिटी मिलती.
बुश की जगह दूसरे राष्ट्राध्यक्ष होते तो कैसा नजारा होता?
ReplyDeleteइस लेख को मेरी ओर से +1
ReplyDelete"हम कोशिश करेंगे कि विन्डोज़ के अगले एडिशन में हम ऐसा सॉफ्टवेर इंटीग्रेट करें जिससे जूते फेंकने से पहले सही कोण और रफ़्तार के साथ-साथ सामने वाले के सिर झुकाने के रफ़्तार का सही पता लगाया जा सके." बिल गेट्स की यह बात तो सच हो गई। सुना है इंटरनेट पर कुछ गेम आ गये जिसमें इस घटना की मसखरी की गई है। प्रमोद जी का कमेंट आधा समझ में आया आधा समझ नहीं आया सो उस बारे में कुछ कहना बड़ा मुश्किल है। कहीं हमें भी तो नहीं खेद प्रकट करना है।
ReplyDeleteपत्रकार की तुड़ैया हो गयी। सुना है उसका हाथ और पसली टूट गई। एक आम पत्रकार खास खबर बन गया।
लेख पढ़कर मजा आया। कल्पना के घोड़े बहुत अच्छे दौड़ाये।
जॉर्ज बुश = डाज बुश !! :-)
ReplyDeleteमुंतधार अल-ज़ैदी पत्रकार फेमस हो गया ...अच्छा व्यँग्य रहा ..
पत्रकार ने तो एक को जूता मारा. आपने तो कईयों को मार दिए.
ReplyDeleteसर्वर रूम के बाहर जूता उतार कर सर्वर रूम में गया था, वापस लौटा तो जूता गायब । पता चला WAN के जरिये LAN होता हुआ Bush के पास चला गया:)
ReplyDeleteकिसी भी स्वाभिमानी देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण घटना जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।‘अल बगदादिया’ चैनल के द्वारा अपनें ख़बरनवीस ‘मुंतदर अल जैदी’ द्वारा की गई इस बे़जा हरकत को न केवल ज़ायज ठहराया गया है वरन् उसकी गिरफ्तारी को लोकतंत्र की हत्या और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बताया गया है?अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या यह वाज़िब ढ़ंग है?ज्ञातव्य है कि उक्त चैनल सुन्नी फिरके से ताल्लुक रखता है और पिछले वर्ष ही जैदी को शिया मिलीशिया द्वारा अपहृत कर लिया गया था।
ReplyDeleteज़ार्ज बुश द्वारा जो कुछ किया गया उसको मुशकिल से ही जायज ठहराया जा सकता है लेकिन जैदी द्वारा की गई हरकत पर मज़ा आनें की बात भी कम ही समझ आती है।
सामान्य व्यक्ति से ऎसी प्रतिक्रियाओं को समझा जा सकता है किन्तु कल रात एन०डी०टी०वी पर इस समाचार को दिखाते हुए वरिष्ठ पत्रकार? और उदघोषक विनोद दुआ की टिप्पड़ीं थी‘हिन्दुस्तान की जनता आज मोमबत्ती लेकर चल रही है अगर कल हाथ में जूता लेकर निकल पड़ी तो?’जैदी और दुआ की मानसिकता में मूलतः क्या अन्तर है?क्या इसे हम सभ्य समाज के निर्माण के लिए आवश्यक कारक तत्व मान सकते हैं?
भई, आपने जूतों के उपयोग और प्रयोग से जो लेख शुरू किया उसमें एक और अहम कार्य में जूते के प्रयोग को भूल गए- तन्खया हुए नेता से गुरुद्वारे के आगे जूते साफ करने की सज़ा भी दि जाती है। यहां गंदे से गंदा जूता भी गर्व अनुभव करता है।
ReplyDeleteवैसे आपने काफ़ी करारा लिखा है !!वैसे जुता फ़ेंकने पर आपकी राय यह होती कि -
ReplyDeleteई बुश का अऊर क्या होगा ....
अजी हम तो कल से बहुत खुश है जेसे बेगानी शादी मै अब्दुला दिवाना हो जाता है, लेकिन आज आप का लेख पढ कर तो भगडा *पाने* डालने को मन करता है.
ReplyDeleteधन्यवाद
***FANTASTIC
ReplyDeletehttp://ombhiksuctup.blogspot.com/
बुश का भी ब्यान लिखिए बुश ने कहा था - देखी मेरी फुर्ती
ReplyDeleteदिमाग पर ज्यादा जोड़ डालने के चक्कर में नहीं हूँ, सो प्रमोद जी का कमेन्ट समझने कि कोशिश भी नहीं कि.. ;)
ReplyDeleteवैसे पोस्ट और लोगों के कमेन्ट दोनों शानदार हैं.. :)
१००% पंगा कराऊ फ़ेकने के लिये जोर से लगने वाले हलके सुंदर सस्ते टिकाऊ जूते यहा से खरीदे थोक मे लेने पर ५०% की विशेष छूट देसी नेताओ पर फ़ेकने की गारंटी देने पर फ़्री मे भी उपलब्ध
ReplyDeleteक्या खूब लिख डाला है बस ये नही बताया कि शिव कुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पांडे ने क्या कहा
ReplyDeleteउसकी कमी बहुत खली
behtarin vyang shivji.
ReplyDeleteblog par likhne ke bavjood aapke vyang me jo aatamsayam rehta hai, vo kabilyatarif hai. varna blog par hasay likhte waqat aasani se phoohad hua ja sakta hai.
जूता चर्चा
ReplyDeleteचमकदार रही
जूतमपैजार
से भी रोचक
और बेधक।
मजेदार, धारदार, पंगेबाज जी की ऑफ़र बड़िया है
ReplyDeleteसिर्फ इतना ही कहूंगा कि क्या शानदार जूतायुक्त व्यंग्य है.
ReplyDeleteपछता रहा हूँ, यहाँ देर से आने के लिए। मजा आ गया पढ़ कर। जोरदार व्यंग्य।
ReplyDeleteआज यह भी जान पाया कि प्रमोद जी को न समझ पाने की समस्या अकेले मेरी नहीं है।
जूता पुराना है पर चल आज भी रहा है , वलेंटाइन गिफ्ट में भी बहुत चलेगा
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