पिछली पोस्ट जिसमें मैंने रतीराम जी का लेख प्रकाशित किया था, को पढ़ने के बाद कुछ ब्लॉगर साथियों ने डिमांड राखी कि रतीराम जी के और लेख पढ़वाए जाएँ. आज जाकर उनकी दूकान से लेख ले आये. चुनावी भाषणों में नेता जी लोगों की भाषा पर उन्होंने कुछ लिखा है.
आप बांचिये.
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नया कारोबारी साल शुरू हो गया. तमाम झमेला है. ख़तम होने का बखत भी झमेला. शुरू होने का बखत भी झमेला. हम कहते हैं कि ज़रुरत का है पुराना ख़तम करके नया शुरू करने का? कारपोरेशन वाला सब ट्रेड लाइसेंस री-न्यू करने के लिए माथा पर सवार है. अब हम अपना बिजनेस देखें कि कारपोरेशन जाकर ई काउंटर से ऊ काउंटर दौडें. कभी क्लर्के नहीं आता है त कभी कैशियर. एगो ट्रेड लाइसेंस रि-न्यू करने के लिए चार दिन जाना पड़ेगा.
पान लगाना और ग्राहक को खिलाना, लगता है एही काम करते-करते जिनगी बीत जायेगा. ग्राहक भी अईसे-अईसे कि बलिहारी जाऊं. लोग बोलता है सब कि रतीराम बहुत चूना लगाता है. कोई नहीं देखता कि खाता चलाने वाला ग्राहक सब जब-तब चूना लगाकर निकल लेता है.
एगो निंदक जी हैं, चार महीना हो गया हिसाब नहीं करते. ससुर पान का बीड़ा मुंह में दबाकर देश को सुधारने का बीड़ा जब-तब उठाये रहते हैं. इनके लगता है कि इनका भाषन देने से देश सुधर जायेगा. हम कहते हैं; "अरे पहिले खुद तो सुधरो. देश अपने आपे सुधर जायेगा."
बाकी इनका अन्दर आजतक सुधार का कौनो गुन्जाईस रत्ती भर नहीं लौका. जब-तब भाषन देता रहता है. कहता है देश का राजनीति से करप्शन हटा कर छोड़ेगा. खुद एतना करप्ट है कि मोहल्ला में कौनो दूकानदार बचा नहीं है जिसका उधार नहीं है इसका ऊपर. बड़ा-बड़ा बात करने का हो त देखिये फिर. थोडियो बहाना मिला नहीं इसको कि मोहल्ला बंद. चक्का जाम. दूकान बंद.
अऊर कुछ नहीं त चाट्ठो गुंडा लेकर सड़के जाम कर देता है. खुद को समाजसेवी बताता है ससुर. हम पूछते हैं, ई का है? अईसे ही देश सुधरेगा?
कल कह रहा था; "वरुनवा बड़ा खराब काम कर दिया. नौजवान नेता होकर इस तरह का भाषण नहीं देना चाहिए था उसको."
अब इनके कौन समझाए कि; "तुम कभी अपना भाषा के बारे में सोचा है? किस-किस तरह का भाषा उगलता रहता है, कभी विचार किया है इसके बारे में? जिसको-तिसको गाली-फक्कड़ देता रहता है और वरुनवा का विनाजी बतियाता है."
ओइसे देखा जाय तो वरुनवा भी कम नहीं निकला. हम पूछते हैं का ज़रुरत था अईसन भाषन देने का? अभी त राजनीति में इंटर किये हो तुम. पहिले कुछ सीखो. पुराना लोग को देखो. सीनियर लोग का भाषण सुनो. प्राइवेट में त ओइसे ही न जाने का का करते होगे? कम से कम पब्लिक में खड़ा होकर अईसा बात मत बोलो. देश का नेता बनो. न खाली हिन्दू-मुस्लिम का नेता बनोगे? सत्ता में नहीं हो तब त ई हाल है, सत्ता में बैठ जाओगे त न जाने का कर दोगे?
हम पूछते हैं; " रेलगाड़ी चलवाने का अईसा आदत पड़ गया है कि जो तो चलवा देंगे? और फिर रोलर ही त चलवा सकते हैं. और का कर सकते हैं? देश में मूंग त जाने कब से ख़तम होई गवा है. पहिले के लोग छाती पर मूंग दलते थे. अब खाने-पीने का चीज का ई हाल है कि मूंग त का, मटर भी नहीं मिलता. "
सोचे होंगे कुछ दलवा नहीं सकते त कुछ चलवा ही दें.
देखकर लगता है कि लालू जी भी का से का हो गए हैं? हम कहते हैं; कौनो जिम्मेदारी है कि नहीं? रोलर चलवा देंगे? अईसन सोच ही रखते हैं त काहे कानून का दोहाई देते हैं? आप ही फैसला कर लेंगे? आप ही रोलर चलवा देंगे? न्यायपालिका को पालिका बाज़ार से जादा नहीं समझते का? नेता हैं त जो चाहेंगे बोल देंगे?
बाकी देखा जाय त एही हो रहा है. नेता लोग न जाने का-का बोलकर निकल जा रहा है सब. एगो भाईको जी हैं. ओनका भारत के तमिल लोगों का ओतना चिंता नहीं है जेतना परभाकरण जी का चिंता है. ऊ भी कह रहे थे कि अगर परभाकरण जी को कुछ हुआ त तमिलनाडु में खून का नदी बह जायेगा.
हम कहते हैं; का भईया? कावेरी नदी का पानी तमिलनाडु तक कम ही पहुँचता है त इसका का एही समाधान है कि तमिलनाडु में खून का नदी बहा दो?
आज तुम अईसा बोल रहे हो. कल को कोई आसाम से खड़ा हो जायेगा. बोलेगा उल्फा के नेता सब को कुछ हुआ त असाम में खून का नदी बह जायेगा. ओइसे ही ब्रह्मपुत्र हर साले न जाने का-का बहा ले जाती है. खून का नदी बहना शुरू हो जायेगी त पूरा असमे बह जायेगा.
ई नेतवा सब को देश का पईसा बहाकर संतोख नहीं मिलता जो खून-वून का नदी बहाने के लिए धमकाता रहता है. चुनाव में एतना-एतना खर्चा कर देता है लोग. पता नहीं कहाँ से पईसवा आता है? सुने हैं इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आम मनई का हर चीज का जानकारी रखता है. अब त ई बात टीवी पर बताकर जब-तब डराते भी रहता है. समझ में नहीं आता कि आम आदमी का हर जानकारी है तुम्हरे पास. और ख़ास आदमी का जानकारी नहीं है?
कहीं अईसा त नहीं कि आम आदमी का इनकम छोटा है बोलकर जानकारी रखने में सुबिस्ता है. खास आदमी का इनकम बड़ा है त जानकारी रखना कठिन हो जाता है.
और सारा जानकारी का खाली इनकम टैक्सवे को है? ऊ चुनाव आयोग के पास भी जानकारी-ओनकारी है कि नहीं? ठाकरे जी का ही बात ले लो. अरे ओही आमची मुम्बई वाले. उत्तर भारतीय सब को खदेड़ने वाले. हम पूछते हैं उनका बात का जानकारी काहे नहीं रखते हो?
बहुत लबेदर आदमी है. बताईये प्रधानमंत्री को इतना खराब बात कह दिया.
समाचार चैनलवा वाला सब देखा रहा है. बाकी जब ठाकरे का बोला हुआ शब्दवा आता है त एक ठो न जाने पी से बजा देता है. हम पूछते हैं काहे भाई? का ज़रुरत है अईसा करने का? जब एक मनई बोल ही दिया है त तुम्हरे पी बजाने से भाषन बदल जायेगा का? भोटरवा सब को सुनने दो कि उनका नेतवा सब कैसा-कैसा बात करता है?
याद आता है त बड़ा खराब लगता है आज का नेता सब का बात सुनकर. पहिले बाबूजी कहा करते थे कि शास्त्री जी केतना नीक भाषन देते थे. बाजपेई जी केतना बढ़िया बोलते थे. इंदिरा जी बढ़िया बोलती थीं. इतना बड़ा-बड़ा लीडर सब था. अऊर ई टुटपुजिया सब को देखो. ससुर हम त जानते हैं कि कुछ करने के लायक नहीं हो. अईसे में बातचीत त ढंग का करो. लेकिन नहीं. उहे बात है कि एक त करेला आ दुसरे नीम चढा.
का कहें? केतना कहें? ई त ओइसे ही है कि हरि अनंत, हरि कथा अनंता....
अई हो मईया. एतना लिखा गया? हम भी का-का करते रहते हैं. रात के नींद नहीं आ रहा त इहे लिख दिए. बाकी ई सब करने का फायदा का? आजकल त मिसिर बाबा भी हमरा लेख नहीं मांगते अपना ब्लॉग पर छापने के लिए. खाली सिंगुर पर लिखा एक पोस्ट छापकर चुप हो गए. लगता है इन्सीक्योर फील करता होगा मनई. पानवाला कहीं लेखक न बन जाए, एही बास्ते आजकल लेख नहीं मांगता.
अब त अपना खुद का एगो ब्लॉग बनाना पड़ेगा.
बिल्कुल रतिराम का ब्लॉग बनना ही चाहिए। वे तो बहुत पहुँचे हुए राजनीतिज्ञ भी हैं। उन्हें राजनेताओं की ट्यूशन भी लेनी चाहिए।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बना दो ना सर जल्दी से बना दो फिर देखते हैं कैसा लगता है उनका ब्लागिंग सफर
ReplyDeleteबैसाखी की आप सभी लख लख बधाईयां जी
रतीराम का ब्लाग कब आ रहा है?
ReplyDelete"एतना करप्ट है कि मोहल्ला में कौनो दूकानदार बचा नहीं है जिसका उधार नहीं है इसका ऊपर..." ---ई करपसन का ही तो निसानी देत है ना रत्तिरामजी। हर करप्ट के कुर्ते पर रत्तिराम के पान के छीटे लाल लाल दिख ही तो रहत हा:)
ReplyDeleteab aitnaa sab keh diye hain ta ego blog bhee banaa hee diyaa jaye ,aur hum log ko kaun uu sasur netwaa jaisan pee wala baat kehnaa hai, so ab ta ban hee ego blog "ratiram ke gumtiyaa "
ReplyDeleteरतिरामजी आप बहुत अच्छा लिखते हैं। आप अपना एक ठो ब्लाग बना ही लीजिये। जो होगा देखा जायेगा। नाम रखियेगा- पान की दुकान,गोरी का मकान!
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ReplyDeleteऎ भाई, रतीराम कौन कोचिंग में राजनीति सीख रहे हैं ?
एक भाई समूचा मीडिया का लड़ैता बना है, ई सब देख के.. ऊ बेचारा मुखप्रिश्ठ पर आने को तनि सा मुँह खोले.. अउर सीधे धरा गये ।
धरा गये त ललुआ घबरा गै.. कुच्छौ बम्पिलाट बोलने के चक्कर में मन का बात निकाल दिये !
रोलर से पिचवा देंगे, तबहि न चैन से मूँग दलेंगे ।
ई बुरबकई पर सोनिया का मीठी नज़रिया मीला ऊ अलग से..
इनका कोचिंग बदलाइये, भाई !
ReplyDeleteई अनूप सुकुल कौन हैं भाई ?
अईसा लँठई का सलाह देंगे, कि ब्लगिये डूब जाये, धुत्त !
सब ठप हो जायेगा..
नीचे पान की दूकान.. ऊपर गोरी का मकान.. रहें ब्लागर हलाकान !
ईहाँ से टरबे नहीं करेंगे.. कनपुरिया आई.पी. बड़ा डैंज़र चीज है, भाई !
देरी न कीजिये हजूर
ReplyDeleteसबको इंतज़ार है
आप रति राम जी को समझाईये की ऐसा कदम न उठायें...उन्हें कहिये की आप ही अपने ब्लॉग का नाम " शिव -ज्ञान- रतिराम की मानसिक हलचल " रखने की सोच रहे हैं...इस बहाने आपके ब्लॉग पर आने जाने वालों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो जायेगी...यकीन न हो तो आजमा कर देख लें...
ReplyDeleteइस बहाने सारे मानसिक हलचल वालों को एक ही जगह पर पढने की सुविधा भी हो जायेगी...
नीरज
रतिराम जी को ब्लॉग बनाना ही चाहिए .
ReplyDeleteलगता है रतिराम जी ने भी अपनी दुकान पे बोर्ड लगवा रखा है जिसपे लिखा है "यहाँ ज्ञान न बाटे, यहाँ सब ज्ञानी है "
अउर का कहें? केतना कहें? ई त ओइसे ही है कि हरि अनंत, हरि कथा अनंता....
सोचिये अगर रतिराम जी का ब्लाग बन गया तो सारे ब्लागरों के नेता वही होंगे. आखिर पान की दूकान चलाते हैं जहां सारा शहर का क्रीम दिमाग लोग जुगाली करते हैं.
ReplyDeleteरतिराम जी की जय हो.
रामराम रतिराम जी.
रति राम जी के अलग ब्लॉग की क्या जरूरत? इसी ब्लॉग को शिवकुमार मिश्र और रतिराम पानवाले का ब्लॉग कर दिया जाये।
ReplyDeleteजनता की पापुलर डिमाण्ड पर हम अपना नाम हटाने को तैयार हैं! :)
ह-हा-हा-हा-हा-हा.................
ReplyDeleteग़जब भाई. विचित्र शैली है आपकी. मज़ा आ गया.
भाई, जल्दी से मुडिया घुटाई के,माला शाला ले के चले जाओ रतिराम जी के शरण में शिशत्व ग्रहण करने.....उन जैसा राजनीति और देस दुनिया का मर्मग्य मीमांसक दूसरा न मिलेगा....
ReplyDeleteब्लॉग अपना ही रखो,बस शिक्षा उनसे लिया करो....उ ब्लॉग लिखने में लग जायेंगे तो भारी बरडेन पड़ जायेगा उनपर....पान खिलावेंगे,सोचेंगे और लिखेंगे......सब एक साथ करेंगे तो एकोठो ठीक से नहीं सपरेगा.... सब गडबडा जायेगा.....
मूंग-दलक यन्त्र ने तो दिल ले लिया..
ReplyDeleteन्यायपालिका को पालिका बाज़ार से जादा नहीं समझते का?
इस लाइन के लिए तो १०० नंबर
इसी ब्लॉग का नाम शिवकुमार मिश्र, ज्ञानदत्त पाण्डे और रतिराम पानवाले का ब्लॉग कर दिया जाए.. क्योंकि रति राम जी शायद जानते नहीं है कि अलग ब्लॉग बनाया तो टिपियाना भी पड़ेगा.. बगैर टिपियाये तो कोई आता ही नहींहै
एक तो ब्लॉग की सलाह और ऊपर से गोरी का मकान... कहे भाई आप लोग रतिराम को आराम से नाहीये जीने देंगे :-)
ReplyDeleteपहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
ReplyDeleteआपने बहुत ही खुबसूरत रूप से विस्तार किया है !
लाजवाब है!