सरकार ने धोनी को सूचित किया. बोली; "तुम तो पद्मश्री हो."
धोनी बोले; "हमें मालूम है. तुम हमें क्या बताओगी?"
सरकार बोली; "सॉरी. हमें लगा कि आपको बता दें."
धोनी जी बोले; "हमें हनुमान समझने की भूल न करो. हम क्या-क्या हैं, हमें मालूम है."
सरकार बोली; "तो अपना पुरस्कार लेने आ जाओ."
धोनी जी बोले; "तुम हमें सम्मान के लायक समझ रही हो. लेकिन हम बदले की भावना से काम करने वालों में से नहीं हैं. हम तुम्हें सम्मान के लायक नहीं समझते."
सरकार बोली; "यह कोई नई बात नहीं है. हमें वैसे भी सम्मान के लायक तो कोई नहीं समझता. हमारा सम्मान मत कीजिये लेकिन पुरस्कार का तो सम्मान कीजिये."
धोनी जी बोले; "ऐसे पुरस्कारों को हम सम्मान नहीं बल्कि सामान समझते हैं. वैसे भी ये पद्मश्री आई पी एल से बड़ा है क्या?"
सरकार बोली; "अरे, बड़ा तो है ही."
धोनी बोले; "काहे का बड़ा है? पुरस्कार देश में दिया जायेगा और आई पी एल विदेश में होगा. ऐसे में कौन बड़ा?"
सरकार बोली; "अरे पद्मश्री सबको नहीं मिलता."
धोनी बोले; "क्यों? सचिन को तो मिला हुआ है."
सरकार बोली; " इसीलिए तो सचिन ने आकर बाकायदा राष्ट्रपति से अपना पुरस्कार लिया था."
धोनी बोले; "सचिन को आई पी एल में हमसे कम पैसे भी तो मिले थे. ऐसे में वे पुरस्कार तो लेंगे ही."
सरकार बोली; "सचिन भी तो महान खिलाड़ी है. अगर वे पुरस्कार लेने आये तो आप क्यों नहीं?"
धोनी बोले; "काहे के महान? आज मेरे पास ज्यादा विज्ञापन हैं कि सचिन के पास?"
सरकार बोली; "पता नहीं."
धोनी बोले; "जब पता नहीं तो बहस काहे करती हो? ट्रेड रेकॉर्ड्स देखो. उसके बाद बात करो."
सरकार बोली; "ये पुरस्कार...."
धोनी बोले; "अरे क्या पुरस्कार पुरस्कार की रट लगाये जा रही हो? हम पुरस्कार से हैं कि पुरस्कार हमसे है?"
धोनी जी इतना कहकर दक्षिण अफ्रीका चले गए.
पुरस्कार धोनी जी का पंथ देखते-देखते सोच रहा है; "फालतू में गले पड़ने गए? न जाने कितने लेखक, कलाकार, अपना काम ईमानदारी से करते-करते इस दुनियाँ से चले गए. मेरी तरफ ताकते रहते थे. इस अभिलाषा के साथ कि मैं उन्हें मिल जाता तो उनका जीवन सफल हो जाता....... "
Thursday, April 16, 2009
हम पुरस्कार से हैं कि पुरस्कार हमसे है?
@mishrashiv I'm reading: हम पुरस्कार से हैं कि पुरस्कार हमसे है?Tweet this (ट्वीट करें)!
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धोनी जी बिलकुल ठीक किए. जब उनको मन करेगा ख़रीद लेंगे एक ठू पद्मश्री या पद्म विभूषण कुछहू. कौनो अकाल पड़ा है का?
ReplyDeleteसमय सबकी ठिकाने लगाता है अकल। यह बन्दा किस खेत की मूली है।
ReplyDeletepeople have forgotten to pay respect to national honour . such people should be condemned publicly
ReplyDeleteपाण्डेय जी से सहमत . यही धोनी जब समय के शिकार होंगे तब पूछेंगे
ReplyDeleteसमय बडा बलवान होता है मिश्राजी.
ReplyDeleteरामराम.
ये लीजिये, हमें तो इस बड़ी खबर की खबर ही नहीं थी....
ReplyDeleteसबको दुरबीनसिंह जैसे दिन देखने पढ़ते हैं!
ReplyDeleteसब कह रहे हैं तो मैं भी:
ReplyDeleteपुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान.
भीलन हर लीनी गोपिका, वही अर्जुन वही बाण.
समय बड़ा बलवान-एक दिन देखेगा पहलवान!!
ReplyDeleteट्रेड रेकॉर्ड्स -यह टर्मिनोलॉजी गज़ब रही.
पहला कोण सभी ने पढ़ लिया। कुछ हद तक मैं सहमत भी हूँ। अब एक दूसरा कोण दिखाता हूँ:
ReplyDeleteएक खिलाड़ी के लिये खेल ही सबसे महत्त्वपूर्ण है। देश की बड़ाई होती है टीम को जिताने से, न कि राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार लेते हुये बत्तीसी दिखाकर फोटो खिंचाने में।
माटी कहे कुम्हार से....
ReplyDelete.
सुंदर आयोजन!
ReplyDeleteराष्ट्र पुरस्कारो का सम्मान तो होना ही चाहिए.. फिर क्या फ़र्क पड़ता है क़ी इन पुरस्कारो का स्तर गली मोहल्लो से भी निम्न है.. पुरस्कारो के नाम पर होती राजनीति से सब वाकिफ़ है.. किसी बच्चे से भी कहेंगे तो वो भी बता देगा पुरस्कार कैसे मिलते है..
ReplyDeleteहमने भी पिछले साल राजस्थान दिवस पर एक काम किया था जिसके लिए हमे सम्मान दिया जा रहा था.. हम लेने नही गये क्योंकि उनका पुरस्कार देने का इरादा ठीक नही लगा..
हर ऐरे गेरे को दे कर पुरस्कारों की गरिमा तो सरकार ने गिराई है....
ReplyDeleteवैसे एक न एक दिन शान ठिकाने लग ही जाती है....
विनाश काले विपरीत बुद्धि .
ReplyDelete"न जाने कितने लेखक, कलाकार, अपना काम ईमानदारी से करते-करते इस दुनियाँ से चले गए " उन्हें नहीं दिया और जिसे दे रहे है उसे उसकी जरुरत ही नहीं है , क्या बात है !!
बहुत बहुत सटीक सही कहा........
ReplyDeleteअभी बबुआ नशे में हैं....जिस दिन नशा उतरेगा ,उन्हें दुनिया दिखेगी पर तब लोग उन्हें न देखेंगे...
पर सरकार को जो यह चोट लगी ,ठीक ही हुआ....अब तो कम से कम सम्ह्लें....
kya hai ki kucch to bikte hain, unhen kharid liya jaayega.
ReplyDelete"न जाने कितने लेखक, कलाकार, अपना काम ईमानदारी से करते-करते इस दुनियाँ से चले गए. मेरी तरफ ताकते रहते थे. "
ReplyDeleteयहां ईमानदारों की कौन कद्र करता है। इसीलिए तो पद्म्श्री लेने नहीं आए जो बद्म्श्री थे। राष्ट्रसम्मान पाने के लिए तो पहले समझ पैदा करें...तब ही तो न
...
पद्मश्री का क्या,
ReplyDeleteअगले साल जुगाड़ लग जायेगा ।
लेकिन तीन करोड़ का एक साल का ब्याज़ एकाउंट में तो आयेगा !
सही कहा जो लोग पुरूस्कार से ऊपर हैं उन्हें पुरुस्कृत करने से क्या लाभ...आप हम को दिया होता तो मंडवा कर ड्राईंग रूम में लटकाने के तो काम आता...आप तो देखे ही हैं किस कदर, बिना किसी प्रसश्ती पत्र के लटके, हमारे घर की दीवारें सूनी सूनी सी हैं...
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही अच्छी पोस्ट ,सही हैं न जाने कितने महान कलाकार,लेखक ,विद्वान् पद्म पुरस्कारों से वंचित रह गए,न जाने क्रिकेट को इतना महत्व क्यों मिल रहा हैं .
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