इतिहास पुरुषों के साथ यह बड़ा बवाल है. वे दुनियाँ से कूच करने के बाद भी लोगों को चैन से नहीं रहने देते. इतिहास पुरुषों के चक्कर में न जाने कितने इतिहास बन जाते हैं. जिन्ना जी को ही ले लीजिये. क्या कहा? कहाँ मिलेंगे? अरे भैया, ले लीजिये से मेरा मतलब है उन्हें लेकर मत जाइए. मेरा मतलब है कि उनकी बात कर लीजिये. हाँ, अब समझे.
तो मैं कह रहा था कि जिन्ना जी को ही ले लीजिये. आज इस असार संसार में नहीं है तो क्या हुआ, औरों को डुबाय दे रहे हैं. देखकर लगता है जैसे उकसाते रहते हैं कि; "मेरे बारे में यह कह दो. मेरे बारे में वह कह दो. मुझे महान बता दो."
मैं पूछता हूँ, आप महान थे तो थे. लेकिन इतना भी क्या महान होना कि दूसरों को उकसाय दें कि दूसरे पग-पग पर आपको महान कहते फिरें? जिनके ऊपर साम्प्रदायिक होने के आरोप लगते रहते हैं वे भी आपको सेकुलर बताते रहते हैं. मैं पूछता हूँ, महानता की कोई लिमिट है कि नहीं?
देखकर तो यही लगता है कि आप लिमिटलेस महान थे. आखिर आज तक ऐसा नहीं हुआ कि नेहरु जी को किसी पाकिस्तानी नेता ने महान कह दिया हो और उसकी छीछालेदर हो गई हो. ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि महानता में आप सबसे ऊपर थे. इतने ऊपर कि न जाने कितने लोगों का बुढापा खराब कर दिया आपने. हो सकता कुछ और अभी भी लाइन में हों.
कुर्बान जाऊं आपकी महानता पर.
अब तो ऐसा लगता है कि जिसे अपना बुढापा खराब करवाना हो, वो आपको महान बता कर खराब करवा लें. अब जसवंत सिंह जी को ही ले लीजिये. फिर वही सवाल? उन्हें लेकर क्या करेंगे? क्या कहा? उन्हें पार्टी में से निकाल दिया गया? अरे भैया पार्टी में से ही निकाला गया है. पार्टी कोई अफीम पीने की थोड़े न थी. पार्टी से मतलब राजनीतिक पार्टी से है न. अफीम पीने की पार्टी होती तो पेज थ्री की खबर बनती. ये खबर तो पेज वन की है. अंतर तो है ही.
हाँ तो मैं जसवंत सिंह जी की बात कर रहा था. क्या-क्या नहीं किया उन्होंने पार्टी से निकलने के लिए. पार्टी हारी तो इलेक्शन इंचार्ज नेताओं के ऊपर आरोप लगा दिया. उससे कुछ नहीं हुआ तो चिट्ठी लिख डाली. चिट्ठी से भी जब कुछ नहीं बना तो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर डाला. उन्हें लगा होगा कि पार्टी वाले ऐसे नहीं निकालेंगे. जिन्ना को महान बता दो और फिर देखो असर. जिन्ना जी की महानता पर प्रकाश डाला और असर हो गया. निकाल दिए गए.
भारतीय संस्कृति की रक्षा का दावा करने वालों के लिए ब्रह्मास्त्र का मतलब ही बदल गया है. समझ में नहीं आता कि सालों से पॉलिटिक्स में रहने वाले पोलिटिकली करेक्ट बातें करना कब सीखेंगे?
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सिंह जी की किताब के विमोचन के अवसर पर मंच पर एक सज्जन को देखा. एकदम नामवर सिंह जी जैसे. देखकर लगा जैसे उनके जुड़वा भाई हैं. एक बार के लिए लगा कि कहीं ऐसा न हो कि कोई उन्हें नामवर सिंह समझ कर ऐसी छीछालेदर न कर दे जैसी उदय प्रकाश जी की हुई.
अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा. हो सकता था जल्दबाजी में उन्हें नामवर सिंह ही समझ लिया जाता और फिर.....
Wednesday, August 19, 2009
कुर्बान जाऊं आपकी महानता पर
@mishrashiv I'm reading: कुर्बान जाऊं आपकी महानता परTweet this (ट्वीट करें)!
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आपका ब्लॉग तो सच कहें आजतक से भी तेज है...उधर से खबर आयी नहीं की इधर उसकी पोस्ट तैयार...वाह...मान गए आपको...इतनी मुस्तैदी ब्लॉग जगत में आपको महंगी पड़ेगी...हम को ऐसा लगता है...क्यूँ लगता है इसका जवाब सोच कर बताएँगे...
ReplyDeleteपोस्ट हमेशा की भांति उम्दा है...आप लिखते ही उम्दा है...अब उम्दा को तो उम्दा कहना ही पड़ेगा...बोलिए उम्दा बात कही की नहीं...उम्दा लोग ही उम्दा बात लिख और समझ पाते हैं...याने आप भी उम्दा और हम भी...:))
नीरज
जिसने कायदे आजम का साथ पकड़ा तबाह हो गया। शुरुआत पाकिस्तान से हुयी थी। जसवंत जी के बारे में कुछ न कहेंगे। चुनाव को अभी पांच साल हैं। तब तक वो का करेंगे पार्टी में! बाहरै रह लेंगे।
ReplyDeleteजिन्ना की महानता तो अपनी जगह है लेकिन उनकी महानता की चर्चा करके हाशिये की ओर अग्रसर कुछ चर्चित लोग हमेशा चर्चा में रहकर खुद महान बनना चाहते हैं। है न ये शानदार नुस्खा? मजेदार पोस्ट।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
भाजपा को शायद बहुत जल्दी है.. किस बात की शायद उसे खुद ही नहीं पता.. अडवाणी या बयान आया.. विरोध इस्तिफा और वापसी वो भी भावी प्रधानमंत्री.. और जसवंत का बयान उसी लाइन में तो निष्काशन.. क्या कोई व्यक्ति भाजपा में रह कर अपनी विचारधारा नहीं रख सकता.. या किसी को तीस साल परखने के बाद पता चलता है कि उसकी सोच पार्टी से अलग है.. जसवंत कोई एरा गैरा नत्त्थु खैरा नेता नहीं है.. भाजपा सरकार में महत्तवपूर्ण मंत्री थे... अनुशासनहिनता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में फर्क करना शायद भाजपा के बस का नहीं.. वसुंधरा ने पर्दे के पिछे से सभी को नचाया कोई बात नहीं पर जसवंत चिट्ठी लिख देते है तो हंगामा..
ReplyDeleteजिस तरह से एक एक कर कद्दावर नेता बीजेपी से जा रहे है वो उसके लिये खतरे की घंटी है.. समझ लो तो संभल लो नहीं तो देश में पार्टीयों की कोई कमी थोड़ी न है..
सिंह जी की किताब के विमोचन के अवसर पर मंच पर एक सज्जन को देखा. एकदम ...
ReplyDelete--------------
अच्छा, आप भी विमोचन में गये थे? तब तो पार्टी आपको भी निकाल देगी। संघ से परमीशन ली थी कार्यक्रम में जाने की?
:)
आप समझते नही हैं ये सब इन ताउओं की नूरा कुश्ती है. यकीन ना हो तो थोडे दिन रुक जाईये.:)
ReplyDeleteरामराम.
आपने शुरूआत में ही हमें उसका दिया कि जिन्ना को ले लीजिए,
ReplyDeleteजब हमने अच्छे चेले की तरह जिन्ना को ले लिया तब आप बता रहे हैं कि जिन्ना को लेने से बहुत नुकसान है ,
यह कोई अच्छी बात नहीण जी !
नहीण को नहीं पढ़ा जाय
ReplyDeleteअब आप कहेंगे कि आपने पढ़ लिया तब हम बता रहे हैं ,
हमें पता है आप यही कहेंगे !
he...he...he...he.....aapki post b.j.p kee tarah mast lagi....goya ki jaswant kee ho gayi balle-balle....!!
ReplyDeleteजिन्नात्मक चर्चायें हानिकारक हैं । इसमें हानि के अतिरिक्त यदि कोई लाभ है तो वह है प्रसिद्धि का । बगदाद में ७५ मरे, वह खबर बेअसर है इसके आगे । पार्टीशन जैसी समस्या के लिये कोई बकरा ढूढ़ना जरूरी है क्या ? इतने लोग तो बकरे की तरह उस समय काट दिये गये और अभी भी बकरे को बचाने के लिये कुछ कटने को तैयार बैठे हैं ।
ReplyDeleteव्यक्तित्वों को श्वेत या श्याम में पोतना व्यर्थ है । सभी साँवले हैं और उन्हें वैसा ही रहने दीजिये । इतिहास का सत्य खोद कर निकालने में आप कितने नगर बर्बाद करेंगे ।
सुना था जिन्न बहुतई डेंजर होते है मगर ई जिन्ना तो उससे भी डेंजर निकला।
ReplyDeletewaah !
ReplyDeletebahut khoob !
zinna ki zindgi ka toh ilm nahin,
par maut ke baad bhi yah kuchrani karne ke kaam aa rahe hain ha ha ha ha
बहुत पुराना पंजाबी गीत है:
ReplyDeleteबांह 'जिन्ना' दी पकड़िये,
सर दीजे बांह न छोड़िये.
यहां 'जिन्ना' से मतलब 'जिस' से रहता है. पर लगता है लोग समझ नहीं पाते और जिन्न के लिये सर गंवा देते हैं.
जो जिन्ना के साथ जाएगा वो डूबेगा. चाहे आडवाणी हो चाहे जसवंत या खूद पाकिस्तान...
ReplyDeleteमगर जसवंत द्वारा पटेल की आलोचना उन्हे ले डूबी...खबर जिन्ना की बनी, जो गलत है. जिन्ना से तो बच जाते मगर पटेल.....सॉरी भाई गलत आदमी को छेड़ लिया जसवतं जी ने...
भाई टाइम बहुत जोर पलटी मार गया है......अब लोग विख्यात होने में नहीं बल्कि कुख्यात होने में विश्वास करने लगे हैं...इसमें एकदम डाइरेक्ट डाइरेक्ट इंस्टेंट फायदा जो है.....चाहे वह समाज का कोई भी वर्ग हो,यही राह पकडे चल रहा है........
ReplyDeleteसुविख्यात होने में बड़ी मेहनत लगती है भाई, सो लोग पतली गली पकड़ कर कुविख्यात हो जाते हैं,देखना अब जसवंत साहब के लिए कई दलों की बड़ी गद्देदार कुर्सियां लोग झाड़ पोछ कर तैयार रखे होंगे,तोल मोल डील चल रही होगी...
अगले सनसनीदार खबर के लिए तैयार रहो.....
यूँ अनूप भाई ने सौ टका सही कहा है....
बूढों का ऐसा हाल होता है तो जवानों का क्या होगा :)
ReplyDeleteनिकाले गये..फिर ले लिए जायेंगे-कम से कम इसी बहाने चर्चा में तो आयेंगे वर्ना तो लोग जान भी न पाते कि अधिवेशन चल रहा है. जिन्ना की महानता और आपका लेखन तो वाकई लिमिटलेस है. :)
ReplyDeletebhaiya unka to ham nam bhi nahi lete kya pata mai bhi............
ReplyDeleteany way quick responce badhiya hi
Bekayde Azam Mo. Ali Zinnah ki baat kar rahe hain kya.
ReplyDeleteBade Acche Aadami the. Jub tak zinda the partition mein logon ko katwaye. Ab marne ke baad unka zin kitaab ragdane walon ke peeche pada hua hai.
कायदे आजम के बारेमें हमने भी थोडा-बहुत पढ़ा है... हम भी कम्पाइल कर दें क्या :) लेकिन उससे क्या होगा... फतवा जारी होने वाला काम होता तो थोडा नाम भी होता इसमें तो उसका भी चांस नहीं है. और हम किसी पार्टी में भी नहीं है !
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