ये स्वाइन फ्लू भी बड़ा जबर रोग है. इतनी दूर से चला लेकिन भारत पहुँच कर ही दम लिया. दम भी ऐसा कि भारतवासियों को दम नहीं लेने दे रहा. इससे अच्छा तो चायनीज फ्लू था जो चला तो ठीक लेकिन कहीं नहीं जा सका. जाता भी कैसे, चीन में पैदा हुई चीजें वैसे भी ज्यादा दिन नहीं चलतीं.
लेकिन स्वाइन फ्लू तो आकर ही बैठ गया. हालत यह है कि छींकना मुश्किल हो गया है. इस बात का डर रहता है कि छींक सुनकर (अब छींक को देख तो नहीं सकते न) दोस्त-यार साथ ही न छोड़ दें. किसी को एक बार खांसी आ जाए तो लोग ऐसे देखते हैं जैसे धमकी दे रहे हों कि; "अगर मुझे स्वाइन फ्लू हुआ तो मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा."
हमारे एक मित्र स्वाइन फ्लू को लेकर अति-उत्साही हो गए. इतने उत्साही जैसे कोई नया ब्लॉगर पहली पोस्ट पर चार से ज्यादा टिप्पणियां मिलने पर होता है. उत्साह ने उनके मन में घर बसाया तो मुझसे बोले; "ऐसा करें न, कि अगले दस दिन के लिए आफिस बंद कर देते हैं."
मैंने पूछा; "क्या ज़रुरत है आफिस बंद करने की? कलकत्ते में तो अभी तक स्थिति सामान्य है."
मेरी बात सुनकर उन्होंने विश्व-प्रसिद्द कहावत ठेल दी. बोले; "प्रेवेंशन इज बेटर दैन क्योर."
जब मैंने कहा कि वे ओवर रेअक्ट कर रहे हैं तो बोले; "अच्छा, ठीक है लेकिन डॉक्टर से मिलकर स्वाइन फ्लू के बारे जानकारी तो हासिल कर ही लेना चाहिए."
इतना कहते हुए तुंरत अपने डॉक्टर को फ़ोन कर दिया. बोले; "आज मैं आपसे मिलना चाहता हूँ. मुझे स्वाइन फ्लू के बारे में जानकारी चाहिए."
उन डॉक्टर साहब को मेरे दोस्त के साथ बात करने में बड़ा मज़ा आता है. वे तुंरत राजी हो गए. एक बार भी नहीं कहा कि; "मेरे पास आने की क्या ज़रुरत है? इन्टरनेट पर उसके बारे में जानकारी हासिल कर लो. टीवी देख लो. अभी सारे चैनल स्वाइन-मय हो लिए हैं."
और तो और यह भी कह सकते थे कि हिंदी ब्लॉग पढ़ लो. स्वाइन फ्लू तो क्या, उसके बाप के बारे में भी जानकारी मिल जायेगी. लेकिन नहीं.
अब मित्र के साथ ही शाम को घर के लिए निकलता हूँ तो उनके साथ डॉक्टर के पास जाना पड़ा. साढ़े आठ बजे उन्होंने डॉक्टर साहब को फ़ोन करके बता दिया कि; "आप अपने चेंबर में ही रहें. मैं आपसे मिलने आ रहा हूँ."
नौ बजे डॉक्टर साहब के पास पहुंचे. डॉक्टर साहब से मिलने में मुझे दिलचस्पी नहीं थी. इस बात का पता मेरे दोस्त को था. इसलिए वे मुझसे बोले; "आप तो जायेंगे नहीं. गाडी में बैठिये. मैं पॉँच मिनट में आता हूँ."
चले गए. चालीस मिनट बाद आये. मैंने पूछा; "क्या-क्या सावधानी के लिए कहा डॉक्टर साहब ने?"
बोले; "अरे कुछ नहीं. वही सब कहा जो टीवी में बताता है. हाथ धोकर रखिये. ज्यादा लोगों से नहीं मिलना है. स्वीमिंग बंद कर दीजिये. और ज्यादा कुछ नहीं."
मैंने कहा; "और क्या बातें हुईं?"
मित्र बोले; "वही सब. कह रहे थे कि मुझे अपना बिजनेस और आगे बढ़ाना चाहिए. फिर बोले कि कौन सी पिक्चर देखी मैंने? फिर बोले एक दिन चलिए साथ में पिक्चर देखने चलते हैं."
लीजिये. मैंने सोचा था कि स्वाइन फ्लू के बारे में जानकारी लेने गए हैं. और यहाँ पिक्चर देखने की बातें हो रही हैं. जहाँ रात को नौ बजे घर पहुँचते हैं, वहां साढ़े दस बजे घर पहुंचे.
घर पहुंचे और टीवी देखा तो वहां भी स्वाइन फ्लू से कोई बचाव नहीं. कोई चैनल खोल लीजिये आज कल हर ब्रेकिंग न्यूज स्वाइन फ्लू के बारे में है. एक हैल्थ मिनिस्टर है. बेचारा न घर का रहा न मंत्रालय का. केवल न्यूज चैनल का होकर रह गया है. पिछले सात दिनों से बयान की सफाई करते फिर रहा है. मैंने ये नहीं कहा. मैंने वो नहीं कहा. मैंने ३३ प्रतिशत वाली बात नहीं कही. टैमीफ्लू के बारे में दिए गए मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.
बेचारा यही कहते फिर रहा है. मिनिस्ट्री का बारह तो क्या साढ़े बारह बज गया है.
टीवी चैनल के संवाददाता मास्क पहने घूम रहे हैं. बड़े क्यूट लग रहे हैं. चिरकुट संवाददाता भी डॉक्टर लग रहा है. हॉस्पिटल से रिपोर्टर लोग रिपोर्टिंग कर रहे हैं. मास्क पहने संवाददाता ऐसा लग रहा है जैसे कोई डॉक्टर हो और माइक्रोफोन से ही ऑपरेशन करने के लिए कमर कसे है.
आज नीरज भैया से बात हो रही थी. मैंने कहा; "खोपोली तो पुणे और मुंबई के बीच है. ऐसे में वहां की स्थिति क्या है?"
वे बोले; " बड़ी हालत खराब है यहाँ तो. सब डरे हुए हैं. फैक्टरी में लोगों को देखकर लग रहा है जैसे डब्लूएचओ ने डॉक्टरों का एक विशिष्ट दल हमारी फैक्टरी के लिए भेज दिया है. चश्मा पहने मजदूर भी डॉक्टर दिखाई दे रहा है."
मैंने पूछा और क्या हो रहा है तो बोले; "हमें तो डर है कि कहीं कोई बुजुर्ग वायरस बाकी के वायरसों को यह न कह दे कि खोपोली में एक शायर रहता है. जाओ उनसे तरन्नुम में गजलें सुनकर आ जाओ. हम बताते हैं बंधुवर, अगर ऐसा हो गया तो खोपोली में भी स्वाइन फ्लू फैलने की आशंका है."
अब हम तो यही कहेंगे कि ऐसा न हो.
और यह कहेंगे कि स्वाइन तो जाने से रहे. भला स्वाइन फ्लू ही चला जाए.
Friday, August 14, 2009
एक मौसमी पोस्ट - स्वाइन फ्लू
@mishrashiv I'm reading: एक मौसमी पोस्ट - स्वाइन फ्लूTweet this (ट्वीट करें)!
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यही होता है . पहले हर सही बात का मजाक बनाया जाता है . जब कलकत्ता में भी फ्लू फैलेगा तब ऑफिस बन्द करेंगे क्या ? मित्र ठीक कह रहे हैं . हमारी भी यही राय है कि जब तक देश में स्थिति सामान्य न हो जाय ऑफिस बन्द ही रखा जाय ! हम तो कहते हैँ देश के सारे ऑफिस बन्द कर देने चाहिये !
ReplyDeleteस्वान फ्लू का चक्कर
ReplyDeleteसबको बना रहा है घनचक्कर
कोई आर्युवेद के नाम पर तो कोई योग के नाम धंधा कर रहे है . इस देश में पहले हौवा पैदा करो फिर धंधा करो वाला हिसाब ज्यादा दिखने लगा है . मार्केट में नाकटोप (माउस) के रेट तिगुने हो गए है और नाकटोपो को गायब करने की तीन पॉँच शुरू हो गई है . हाहाकार मचा है कुछ मचा दिया गया है .
ई का बंधू? हम जो बात आपको फुनवा पे बोले उसे आप सार्वजनिक कर दिए...वेरी बेड वेरी बेड...हम तो मजाक किये थे...ये तो भला हो स्वाईन फ्लू का जो आपका ब्लॉग नहीं पढता है अगर पढता होता तो जरूर खोपोली चला आता....आखिर स्वाईन फ्लू भी इंसान है उसका भी रूचि ग़ज़ल सजल में रहता है...चला आता तो हम का कर लेते?
ReplyDeleteअभी सुने हैं की मुंबई उसे रास नहीं आ रहा है...दस परसेंट से दो परसेंट केसेज में रह गया है...याने छोड़ने की तैय्यारी कर ली है...कोई जासूस उसे आपकी पोस्ट की खबर न देदे जे ही प्रार्थना कर रहें हैं...स्वाईन फ्लू के मूड का कोनो पता नहीं है बंधू...सच.
नीरज
पुनश्च: आजकल सब टी.वी .पर रात साढ़े दस बजे "टेढी बात-शेखर के साथ" कार्यक्रम आता है आप देखते हैं की नहीं? नहीं देखते तो जल्द देखना शुरू कीजिये...ना देखने वालों को स्वाईन फ्लू होने का खतरा है...सच.
:) हमरे ऑफिसवा में भी सब लोग हलकान हुये दिख रहे हैं.. सब्बे कोई मुहवा पर मास्क लगईले घूम रहे हैं..
ReplyDeleteभाई स्वाईन फ़्ल्यु का इलाज हमको स्वाईन ने ही बताया है कि रोज दस टिपणी ज्यादा करो तो स्वाईन क्या स्वाईन की अम्मा भी पास नही फ़टकेगी और नही तो आप खुद ही ज्ञानी हैं.:)
ReplyDeleteरामराम
अब तो ब्लॉगवाणी खोलने में डर लग रहा है। सारी पोस्टें सुअरबुखारा से भरी पड़ी हैं। अगर कहीं से कोई वायरस इनसे बाहर निकल पड़ा तो आफ़त हो जाएगी। बच्चों को तो एकदम मना कर दिया है इण्टरनेट खोलने से। :)
ReplyDeleteदिलचस्प अंदाज इस फ्लू का...
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्ट्मी व स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteजय हिन्द!!
भारत मॉ की जय हो!!
आई लव ईण्डियॉ
आभार
मुम्बई-टाईगर
द फोटू गैलेरी
महाप्रेम
माई ब्लोग
SELECTION & COLLECTION
Aaap to baidhe baidhe dara rahe ho.
ReplyDeleteहमको नहीं लगता ..ई स्वाईन फ्लू अब अपना देश छोड़ के जायेगे...ससुर इत्ता फुटेज मिलेगा ..ता पगला है का जून जाएगा...और हाँ ई डाक्टर साहब बहुते बढ़िया हैं..बकिया सब तो ...खाली फीस ले के दवाई दे देता है..ई पिक्चर-शिक्चार का बात कौनो नहीं करता
ReplyDeleteअभी हाल क्या है जनाब का?
ReplyDeleteबड़े निकम्मे सूअर हैं इस देश के। इतने सारे हैं, फिर भी सूअर फ्लू इम्पोर्ट करना पड़ा!
ReplyDelete-------
कृष्ण जन्माष्ट्मी व स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
जय हिन्द!!
भारत मॉ की जय हो!!
"छींक सुनकर (अब छींक को देख तो नहीं सकते न) ..."
ReplyDeleteदेखा जा सकता है...ज़रा धूप में खडे़ हो जाइए और छींक मारिए....फिर देखिए कैसा इंद्रधनुष दिखता है:)
विवेकजी का सुझाव तो अच्छा है पर उसमें एक खतरा भी है- इस प्रकार देश में छुट्टी तो हो जाएगी पर...NO WORK NO PAY:(
मिश्रजी,
ReplyDeleteभइया मज़ा आ गया पढ के. कोई कुछ भी कहे, कहने दीजिए. सुअर बुखारा से लडने का ई सबसे निम्मन तरीका निकाला आपने. खूब चुटिआया आपने. अब हास्य व्यंग्य से जिन्हें चिढ हो, उन्हें सुअर बुखारा हो ,हमारी बला से. हम तो भइया हरिशंकर परसाई के अनुयायी. प्रहार के लिए बधाई.
swine to janese rahe bhala swine flu hee chala jaye ....................................!
ReplyDeleteबड़े चर्चे हैं इसके... हमने तो सुना है पुणे वापस जाकर ४८ घंटे की छुट्टी मिलाने वाली है. कुछ जांच वाच भी होगी... हम तो बड़े एक्साईटेड हैं :)
ReplyDeleteवैसे हम पुणे में थे तो न्यूयार्क में बड़ा फैला था अब वहां फैला है. आशा है की मेरे पहुचने से कुछ स्थिति में सुधार हो. देखिये में भी पत्रकारों की तरह कारन देने लगा :)
hamare office me ek colleague aaj mask laga ke aaya hai, uske room mate ko sare lakshan hai...
ReplyDeleteham bhi jor laga rahe hain ki kamse kam work from home to kar hi diya jaaye.
aapka lekh padha dete hain...shayad kuch asar pade
भाई,मुझे तो भारतीय मंदी और भारतीय स्वाइन फ्लू ,दोनों ही एक से लग रहे हैं.....
ReplyDeleteनहीं ????
हम भारतीय भेड़ बकरियों से हैं,जिन्हें मिडिया जब चाहे जैसे चाहे अपने मनमाफिक हांकने में सफल रहता है.....
कहते हैं हम प्रगतिवादी हैं,अंधविश्वासों को हमने कबका धता बता दिया......क्या सचमुच ???
गाँव में कहते हैं कि पढ़े लिखे तीन बार मल मांखते हैं .....शायद सही ही है ,नहीं....??
बाकी तुम्हारी पोस्ट ........पढ़कर गदगद हुए बिना कोई रह जाय ........यह भला हो सकता है...
हमारे एक मित्र स्वाइन फ्लू को लेकर अति-उत्साही हो गए. इतने उत्साही जैसे कोई नया ब्लॉगर पहली पोस्ट पर चार से ज्यादा टिप्पणियां मिलने पर होता है....
ReplyDeleteहा....हा....हा.....क्या प्रमाण दिया है आपने .......अब तो स्वाइन फ्लू वाले ब्लॉग से भी dar लगने लगा है .....!!
स्वाइन फ्लू, स्वाइन फ्लू. सभी स्वाइन फ्लू को कोस रहे हैं. इसके फायदे को कोई नहीं देखता.इसने आप और मुझ सहित अनेक लोगों को ब्लॉग के लिए मसाला जुटाया है.
ReplyDeleteहैप्पी स्वाइन फ्लू महोत्सव.
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